कहते हैं ‘इश्क ने गालिब निकम्मा कर दिया वरना हम भी आदमी थे काम के।’ जिस तरह इमरान खान आज-कल बड़बड़ा रहें उन्हें न केवल इश्क बल्कि राजनीति ने भी बिल्कुल निकम्मा कर दिया लगता है। इश्क में तो वह कप्तान रहें ही हैं! हाल ही के कुछ सप्ताहों में वह भारत के प्रधानमंत्री तथा भारत के नेतृत्व को ‘कायर’ , ‘हिटलर’ , ‘नाजी’, ‘फासीवादी’, ‘मुस्लिम विरोधी’ कई प्रकार की गालियां निकाल चुके हैं। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की योजना भारत से मुसलमानों के ‘नस्ली सफाए’ की है। यह उस देश का नेता कह रहा है जहां अल्पसंख्यक धीरे-धीरे लुप्त होते जा रहे हैं। उन्होंने खुद को ‘कश्मीर का अम्बैसेडर’ घोषित कर दिया है। उन्हें यह भी चिंता सताए जा रही है कि यह गांधी तथा नेहरू का भारत नहीं रहा और ‘आरएसएस की विचारधारा ने भारत से धर्मनिरेक्षता खत्म कर दी है।’ 5 अगस्त को धारा 370 हटाए जाने के बाद इमरान साहिब ‘दिल्ली को सबक सिखाने’ की बात कह चुके हैं और उनका कहना था कि पुलवामा जैसी घटनाएं दोहराई जाएंगी। इमरान को यह आशा है कि मुसलमान भारत के खिलाफ उठ खड़े होंगे।
भारत विरोध में इमरान खान किस तरह सुदाई बन रहे हैं यह बात से पता चलता है कि उन्होंने पाकिस्तानियों को ‘कश्मीरियों के समर्थन में’ हर जुम्मे के दिन आधा घंटा खड़े होने को कहा है। वहां यह मज़ाक का विषय बन गया है और लोग कह रहे हैं कि मामला कश्मीर का है पर सजा हमें दी जा रही है। पाक पत्रकार गुल बुखारी ने सवाल किया है कि “क्या बच्चों को सरकारी स्कूलों से निकाल कर सडक़ पर उतारने से कश्मीर आजाद हो जाएगा?” लेकिन इमरान खान बताना चाहते हैं कि वह कश्मीर के मामले में कितने गंभीर हैं इसलिए तमाशों का सहारा ले रहे हैं। वह मुजफ्फराबाद जाकर पाक अधिकृत कश्मीर के लोगों को भडक़ाने की कोशिश कर चुके हैं। उन्होंने इस्लाम का वास्ता देकर खुलेआम युवाओं को घुसपैठ के लिए उकसाया लेकिन फिर शायद अकल आ गई तो बोले, “अभी एलओसी की तरफ नहीं जाना जब तक मैं नहीं बताऊं…।” क्या यह शख्स अपना मानसिक संतुलन खो बैठा है? क्या वह समझता नहीं कि एलओसी के पार नागरिकों को धकेलने के क्या परिणाम हो सकते हैं?
इमरान खान की मानसिक स्थिति को देख कर चिंता हो रही है क्योंकि वह हमारे पड़ोसी देश के प्रधानमंत्री हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि उन्हें मालूम नहीं कि 5 अगस्त के बाद उत्पन्न नई परिस्थिति के बारे क्या करना है इसलिए रोजाना नपुंसक गर्ज रहे हैं और बदतमीजी की हदें पार कर रहे हैं। कभी कहते हैं कि भारत में उग्रवाद पैदा हो रहा है तो कभी कहते हैं कि युद्ध हो सकता है। उनका कहना है कि दोनों परमाणु सम्पन्न देशों के बीच युद्ध से दुनिया खतरे में पड़ जाएगी। शायद सोचा होगा कि युद्ध का हौवा खड़ा कर वह इस तरफ अंतर्राष्ट्रीय ध्यान खींच सकेंगे लेकिन जब यह बेअसर रहा तो फिर कह दिया कि “युद्ध कोई विकल्प नहीं है।” उनकी समस्या है कि भारत सरकार ने पाकिस्तान के वर्तमान नेतृत्व को पलोसने की कोई कोशिश नहीं की। वार्ता का कोई प्रस्ताव नहीं भेजा इसलिए हताशा में इमरान खान गर्म-सर्द हो रहे हैं। अब फिर उनका कहना है कि भारत के साथ परम्परागत युद्ध पाकिस्तान हार जाएगा लेकिन पाकिस्तान अपनी आजादी के लिए आखिरी दम तक लड़ेगा। लेकिन पाकिस्तान की आजादी को खतरा है कहां से? भारत तो उनकी जमीन को लालच भरी आंखों से नहीं देख रहा। अगर सिंध, बलूचिस्तान, गिलगित-बाल्टीस्तान आदि क्षेत्रों के लोग बुरी तरह से असंतुष्ट हैं तो यह पाकिस्तान का अपना मामला है।
पाकिस्तान तथा इमरान खान की बड़बड़ाने का बड़ा कारण है कि नरेन्द्र मोदी सरकार ने धारा 370 हटा कर कश्मीर का विवाद ही खत्म कर दिया। पाकिस्तान के हाथ से कश्मीर का मसला फिसल गया है, कोई ‘डिस्प्यूट’ हीं रहा। यह कदम अब वापिस नहीं लिया जाएगा। कश्मीर के दर्जे को लेकर किसी भी प्रकार की वार्ता पर भारत ने ज़ोर से दरवाज़ा बंद कर दिया है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को पाकिस्तान के विलाप या परमाणु धमकियों में दिलचस्पी नहीं है। अमेरिका में हयूस्टन में प्रधानमंत्री मोदी की प्रवासी भारतीयों की सभा में शामिल होने की इच्छा व्यक्त कर राष्ट्रपति डानल्ड ट्रम्प ने बता ही दिया कि अमेरिका किस के साथ है।
लेकिन इमरान खान मजबूर हैं। पिछले 72 साल से पाकिस्तान की अवाम को बताया गया कि ‘कश्मीर बनेगा पाकिस्तान।’ जिसे वहां देश के विभाजन का ‘अधूरा काम’ कहा जाता था वह नाटकीय तरीके से ठप्प हो गया है। पाक पत्रकार आयशा सदीका लिखती हैं, “धारा 370…. पाकिस्तानी सरकार पर जबरदस्त दबाव है कि वह इस मसले को जीवित रखे… इससे पाकिस्तान की अपनी सुरक्षा को कोई खतरा नहीं पर यह मुद्दा वह है जो पाकिस्तान की कल्पनाशक्ति का केन्द्र है।’ लेकिन आयशा सदीका ने एक और बहुत दिलचस्प बात कही है कि इमरान खान देश के अंदर कश्मीर को लेकर प्रदर्शन नहीं चाहते क्योंकि ऐसे प्रदर्शन नियंत्रण से बाहर हो सकते हैं और पाकिस्तान को सैनिक कदम उठाने पर मजबूर कर सकते हैं। इसीलिए विदेशों में भारतीय दूतावासों को बाहर प्रदर्शन करवा या पाक अधिकृत कश्मीर में जलसा कर इमरान खान अपनी लोकराय को संतुष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं। वह यह भी जानते हैं कि अगर कश्मीर के मामले में पाकिस्तानियों का गुस्सा अधिक भडक़ गया तो वह उनका भी शिकार कर सकते हैं।
उनके पास विकल्प नहीं है। वह जानते हैं कि भारत के साथ युद्ध वह जीत नहीं सकते। चीन के इलावा दुनिया में कोई उनकी बात नहीं सुनता जो उनके गृह मंत्री ब्रिगेडियर एज़ाज अहमद शाह ने भी स्वीकार किया है जिनका कहना है कि इमरान खान सरकार दुनिया को कश्मीर पर अपना रुख समझाने में नाकाम रही है। मध्यपूर्व के पाकिस्तान के दोस्त मुस्लिम देश भी सहानूभूति व्यक्त करने या नरेन्द्र मोदी सरकार की निंदा करने को तैयार नहीं, जो बात उनके प्रमुख पत्रकार जाहिद हुसैन ने भी स्वीकार की है। जाहिद हुसैन की सख्त टिप्पणी है, “वर्तमान संकट ने हमारे नेतृत्व के अनाड़ीपन को बिल्कुल नंगा कर दिया है।”
पाकिस्तान के पास आतंकवाद भडक़ाने का विकल्प है पर उन के उपर एफएटीएफ की तलवार लटक रही है। अगर वह भारत में कोई बदमाशी करेंगे तो उनकी सारी आर्थिक स्थिति संकट मेें पड़ जाएगी। और कौन कह सकता है कि भारत की प्रतिक्रिया क्या हो? वह बालाकोट भूले नहीं। भूखा और भ्रष्ट पाकिस्तान भारत का मुकाबला नहीं कर सकता। स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के अनुसार पाकिस्तान की जितनी जीडीपी है उससे अधिक उस पर कर्ज है। केवल 17 लाख पाकिस्तानी ही टैक्स अदा करतें हैं जबकि भारत में यह संख्या 7 करोड़ है। इस फटेहाल में वह युद्ध की सोच ही नहीं सकते इसीलिए वह कश्मीर में बगावत भडक़ाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन वहां एक सियानी राय भी है। पाकिस्तान की वरिष्ठ पत्रकार मरियाना बाबर लिखती हैं कि “पाकिस्तान की बहुसंख्यक खामोश आबादी टकराव से सहमत नहीं। वह चाहती है कि दोनों मुल्कों को सीधे आपस में बात करनी चाहिए नहीं तो जेहादी तत्व अपने हाथ-पैर फैलाने शुरू कर देंगे।” यह लोग जानते हैं कि पाकिस्तान जिस नाजुक हालत मेें है वह भारत के साथ पंगा नहीं ले सकता और पाकिस्तान के अपने अस्तित्व के लिए भारत के साथ अच्छे रिश्ते लाज़मी है लेकिन जिन्हें वह गालियां निकालते रहें हैं उनके साथ फिर से रिश्ता कायम करना कितना मुश्किल है यह इमरान खान को जल्द समझ आ जाएगा। अगर हालात और खराब हो गए तो हो सकता है कि पाकिस्तान की सेना उन्हें एक तरफ फैंक कर नया वजीर-ए-आज़म “सिलैक्ट’ कर लें।