इन्हें बख्श दो (Why Divide Freedom Fighters)

 

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव बहुत असुखद विवाद छोड़ गया है। भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में विनायक दामोदर सावरकर जिन्हें वीर सावरकर के नाम से भी जाना जाता है, को भारत रत्न देने की मांग की है। चुनाव प्रचार में भाजपा के नेताओं ने कांग्रेस से स्पष्टीकरण मांगा कि उनकी सरकारों ने सावरकर को भारत रत्न क्यों नहीं दिया? वह भूल गए कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार तथा नरेन्द्र मोदी की पहली सरकार ने भी सावरकर को भारत रत्न नहीं दिया था लेकिन अब महाराष्ट्र के चुनाव की मजबूरी थी इसलिए मामला गर्म किया गया। इसके विपरीत बहुत से लोग है जो सावरकर को भारत रत्न देने का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि सावरकर ने पांच बार अंग्रेजों को रहम के लिए पत्र लिखा था और वह गांधी हत्या के साजिशकर्त्ता थे। कई लोग जिनमें मनीष तिवारी, असदुद्दीन ओवैसी या कन्हैया कुमार जैसे लोग शामिल हैं का कहना है कि सावरकर को नहीं भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को भारत रत्न मिलना चाहिए। एनएसयूई कार्यकर्त्ताओं ने तो दिल्ली विश्वविद्यालय में सावरकर के बुत पर कालिख पोत दी थी।

सावरकर एक विवादास्पद व्यक्तित्व रहें हैं लेकिन याद रखना चाहिए कि कालापानी भेज कर उन्हें बहुत यातनाएं दी गई थी। उन्हें 50 साल की दो आजीवन कारावास की सजा दी गई। उन पर गांधी हत्या के मामले में मुकद्दमा चला था लेकिन वह बरी हो गए क्योंकि पुष्ट करने वाला प्रमाण नहीं मिला था। यह भी सही है कि उनके धर्म, गाय, शाकाहारवाद आदि पर कई विचार आज जो उनका समर्थन कर रहें हैं, भी पचा नहीं पाएंगे। यह इस विवाद का एक पहलू है कि सावरकर को भारत रत्न दिया जाए या न दिया जाए, लेकिन बराबर असुखद पहलू है कि उनके सामने भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को खड़ा कर दिया गया। अगर आप वामपंथी झुकाव के हो तो आप भगत सिंह और उनके साथियों का समर्थन करेंगे और अगर आप संघ समर्थक हो तो सावरकर को भारत रत्न देने का समर्थन करेंगे। देश का यह घोर दुर्भाग्य है कि इस प्रदूषित राजनीतिक वातावरण में तुच्छ राजनीति के लिए कुर्बानियों की तुलना की जा रही है। सावरकर की तुलना में कहा जा रहा है कि भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु ने ब्रिटिश सरकार को लिखी ‘दया याचिका’ में लिखा था, “अदालत के अनुसार हमने युद्ध किया है इसलिए हम युद्ध कैदी हैं और हम चाहते हैं कि ऐसा ही हमारे साथ बर्ताव किया जाए। हम यह मांग करते हैं कि हमें फांसी न लगाई जाए बल्कि हमें गोली से उड़ाया जाए। ”

ऐसी दिलेरी कहां मिलेगी? लेकिन भगत सिंह की तुलना सावरकर से क्यों की जाए? आप हिन्दू राष्ट्रवाद पर उनके विचारों से मतभेद रख सकते हैं लेकिन यह तो निर्विवाद है कि सावरकर महान देशभक्त थे। क्या अब देशभक्त भी बांटे जाएंगे कि यह तेरा है यह मेरा है? चाहे सरकार तथा भाजपा ने गांधीजी को अपना लिया और उनकी 150वीं जयंती को खूब जोर-शोर से मनाया जा रहा है पर वहां बहुत लोग हैं जो गुपचुप गांधी की अवमानना में लगे हैं। कहा जा रहा है कि उन्होंने लार्ड इरविन के साथ अपनी मुलाकात में भगत सिंह और उनके साथियों की फांसी रुकवाने का गंभीर प्रयास नहीं किया। यह भी शिकायत है कि उन्होंने देश के विभाजन पर सहमति व्यक्त कर दी थी। ऐसी ही शिकायतें जवाहरलाल नेहरू के प्रति भी की जा रही हैं कि (1) उन्होंने देश का विभाजन करवाया और (2) कश्मीर के मामले में उन्होंने बहुत गलतियां की। इसकी तुलना सरदार पटेल से की जा रही है कि अगर सरदार कश्मीर का मामला देख रहे होते तो इतना घपला नहीं होता।

अर्थात यह मामला भी नेहरू बनाम पटेल का बनाया जा रहा है जबकि हकीकत है कि (1) गांधी की इच्छा को रद्द करते हुए आखिर में नेहरू, पटेल, आजाद, कृपलानी, राजेन्द्र प्रसाद आदि सब देश के विभाजन के हक में हो गए थे और इतिहासकार लिख गए हैं पटेल से अधिक कोई विभाजन का इच्छुक नहीं था। केवल गांधी तथा अब्दुल गफार खान इसके विरुद्ध थे लेकिन उन्हें बहुमत की बात माननी पड़ी थी। (2) इसी प्रकार कश्मीर के बारे सरदार पटेल की राय उदासीन थी। इतिहासकार राजमोहन गांधी लिखते हैं, “वल्ल्भभाई निसंदेह नहीं थे कि उन्हें कश्मीर का सेब चाहिए।” इसका बड़ा कारण था कि कश्मीर मुस्लिम प्रदेश था जबकि पटेल की दिलचस्पी हिन्दू बहुमत वाले हैदराबाद तथा जूनागढ़ के विलय में थी। कश्मीर के अपने दौरे के दौरान माऊंटबैटन ने महाराजा हरी सिंह को बताया था, “अगर कश्मीर पाकिस्तान में शामिल हो गया तो भारत सरकार इसे अमित्रापूर्ण कार्रवाई नहीं समझेगी… मुझे यह खुद सरदार पटेल से पक्का आश्वासन मिला है।” यह भी उल्लेखनीय है कि माऊंटबैटन पटेल के आश्वासन की बात कर रहे थे नेहरू के नहीं जिनके लिए कश्मीर की भावनात्मक अहमियत थी। महात्मा गांधी भी चाहते थे कि कश्मीर भारत में शामिल हो जाए पर पटेल स्पष्ट नहीं थे। राजमोहन गांधी लिखते हैं, “पटेल ने यह कहा था कि अगर शासक यह महसूस करतें हैं कि उनका तथा उनके राज्य का हित पाकिस्तान में शामिल होना है तो वह रास्ते में रुकावट नहीं खड़ी करेंगे। ”

यह सही है कि बाद में शेख अब्दुल्ला के दबाव में जवाहरलाल नेहरू ने गलतियां की थी लेकिन अगर आज कश्मीर भारत का हिस्सा है तो यह जवाहरलाल नेहरू के कारण है, सरदार पटेल की तो इसमें बिल्कुल दिलचस्पी नहीं थी। नेहरू के कारण ही अंग्रेज मान गए कि पंजाब की गुरदासपुर तहसील भारत में शामिल की जाए ताकि भारत को जम्मू-कश्मीर की तरफ रास्ता मिल जाए जबकि उस वक्त यह मुस्लिम बहुसंख्यक क्षेत्र था। लेकिन कश्मीर को लेकर रोजाना भाजपा के नेता जवाहरलाल नेहरू को रगड़ा लगा रहें हैं। सवाल तो यह है कि किसने गलतियां नहीं की? क्या भविष्य में हम अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को केवल इसलिए याद करेंगे कि उस दौरान इंडियन एयरलार्ईन्स की उड़ान 814 का अपहरण हुआ था और सरकार के हाथ-पैर फूल गए थे और उसने समर्पण कर दिया और तीन कुख्यात आतंकी भारतीय जेलों से रिहा कर दिए जिसके बाद कश्मीर में आतंकवाद का खूनी दौर शुरू हो गया? या उस सरकार को इसलिए याद किया जाएगा कि उस दौरान कारगिल हुआ था और हमारे 500 से अधिक सैनिक शहीद हुए थे? इसी प्रकार क्या जवाहरलाल नेहरू को केवल इसलिए कोसा जाएगा क्योंकि वह कश्मीर का सही विलय नहीं कर सके जबकि देश को आजाद करवाने, उसके भविष्य की मज़बूत नींव रखने तथा विभाजन की त्रासदी से उसे उभारने में नेहरू का महान योगदान था। अगर यह देश पाकिस्तान नहीं बना तो यह काफी हद तक नेहरू के कारण है।

देश की आजादी में बहुत लोगों ने योगदान डाला था। गांधी, नेहरू, पटेल, सुभाष बोस, भगत सिंह और उनके साथी, सावरकर सब महान देशभक्त थे जिन्होंने अपनी-अपनी सोच के मुताबिक कदम उठाए थे। वह परिस्थितियां अलग थी। वह चुनौतियां अलग थी। हमें 70 साल के बाद दबे मुर्दे उखाड़ कर उनकी याद के साथ अन्याय नहीं करना चाहिए। और इन्होंने इसलिए कुर्बानियां नहीं दी कि 70 साल के बाद हम उन्हें भारत रत्न देने के नाम पर आपस में भिड़ जाएं। हमें वह राष्ट्र नहीं बनना जो सदैव अपने अतीत से झगड़ता रहता है तथा स्थाई तौर पर तनाव में है। गलतियां हुई हैं लेकिन देखना यह है कि यह सब लोग मिल कर कितना बड़ा काम कर गए, हमें आजाद करवा गए। किसी भी स्वतंत्रता सेनानी को नीचा दिखाना या उसे बदनाम करने का प्रयास क्यों हो? आज यह महान देश भक्त हमें कहते प्रतीत होते हैं,
मेरे आशियाने का तो गम न कर
कि वह जलता है तो जला करे,
लेकिन इन हवाओं को रोकिए
ये सवाल चमन का है।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.