हमारा समाज विकृत और पथ भ्रष्ट हो रहा है। अफ़सोस है कि यह प्रभाव दिया जा रहा है कि जैसे ‘दूसरे’ से हमारे प्राचीन धर्म और परम्परा को गंभीर खतरा है। असहिष्णुता नई नई सीमाएँ पार कर रही है। हाल ही में कई ऐसे उदाहरण मिलें है जो बहुत तकलीफ़ देते है। फैब इंडिया एक ऐसा ब्रांड है जिसने भारतीय लिबास, रंग, कपड़े और देसी संस्कृति को न केवल देश के कोने कोने तक पहुँचाया है, बल्कि इसे अंतराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय किया है। दिवाली से पहले इन्होंने ख़ूबसूरत जश्न-ए-रिवाज रेंज निकाली थी लेकिन भाजपा के युवा सांसद तेजस्वी सूर्या को इस पर आपति हो गई कि ‘हिन्दू उत्सव’ के लिए उर्दू के शब्द का इस्तेमाल कर उसका ‘अब्राहमकरण’ किया जा रहा है। सोशल मीडिया पर भी फैब इंडिया के ख़िलाफ़ खूब ज़हर उगला गया कि वह ‘हिन्दू भावनाओं को आहत कर रहें हैं’। यह जानते हुए कि आज के भारत में उन्हे सुरक्षा नही मिलेगी कम्पनी ने उस रेंज को वापिस ले लिया और झिलमिल सी दिवाली का ट्वीट कर दिया। आपति यह भी थी कि विज्ञापन में जो मॉडल दिखाईं गईं उन्होने बिंदी नही लगाई हुई थी।
बस इस से हमारी संस्कृति खतरे में पड़ गई। क्या हमारे रीति रिवाज और परम्पराएँ उर्दू के कुछ लफज़ों से खतरें में पड़ जाऐंगे? उर्दू वैसे भी संविंधान में दर्ज 22 भाषाओं में से एक है। अपने रोज़ के बोलचाल में हम उर्दू का इस्तेमाल करतें है। यह स्वतन्त्रता सेनानियो से लेकर कवियों और लेखकों की भाषा रही है। शहीद भगत सिंह ने फाँसी पर चढ़ने से पहले अपने छोटे भाई कुलतार को जो पत्र लिखा था वह उर्दू मे था जिसमें इकबाल की नज़्म की यह पंक्तियाँ भी लिखी थीं,
कोई दम का मेहमां हूँ ऐ अहल-ए-महफ़िल
चराग-ए-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ
अब क्या तेजस्वी सूर्या जैसे लोगों के भारत में भगत सिंह का भी बहिष्कार होगा क्योंकि वह उर्दू का इस्तेमाल करते थे? हम तो सदा से ही ‘दिवाली मुबारिक’ कहते आएँ हैं। अभी से ‘हैप्पी दिवाली’ के मैसेज आ रहे है।क्या इनसे हमारा धर्म खतरे मे तो नही पड़ जाएगा? दीवाली की पवित्रता फीकी तो नही पड़ जाएगी ? टीके के 100 करोड़ डोज़ देने के बाद मोबाइल पर जो सरकारी मैसेज सुनाई देता है उसमें इसे बेमिसाल उपलब्धि कहा गया है पर ‘बेमिसाल’ तो उर्दू का शब्द है,तो क्या इससे हमें आहत होना चाहिए? टीकाकरण का बहिष्कार करना चाहिए? संविधान में लिखा हुआ है कि “ हमारी मिश्रित संस्कृति की समृद्ध धरोहर को सम्भाल कर रखना” हर नागरिक और विशेष तौर पर राज्य का कर्तव्य है। संविधान ‘मिश्रित संस्कृति’ की बात करता है, न कि हिन्दू संस्कृति की। संविधान निर्माताओं को मालूम था कि देश सबका साँझा है लेकिन यहाँ समाज को लगातार बाँटने की कोशिश हो रही है और अधिकतर दोषी वह हैं जो राज्य, व्यवस्था या सतारूढ राजनीति का हिस्सा हैं। हमारी संस्कृति जो उदार है को संकीर्ण बनाने की कोशिश हो रही है। यह पागलपन कितना फैल गया है यह पता चलता है कि हाल ही में इंफोसिस को ‘राष्ट्र विरोधी’ करार दिया गया।
पांचजन्य ने एक लेख में आरोप लगाया है कि इंफोसिस वामपंथी,नक्सल और टुकड़े टुकड़े गैंग के साथ मिल कर भारत की अर्थव्यवस्था को अस्थिर करने की कोशिश कर रहा है। शिकायत यह थी कि कम्पनी द्वारा तैयार किया गया इनकम टैक्स पोर्टल सही काम नही कर रहा। यह ठीक है कि कम्पनी को अपना काम दरूस्त करना चाहिए पर अगर कई गड़बड़ हो गई है तो यह साजिश कैसे हो गई? इंफोसिस वह कम्पनी है जिसने देश में आई टी की क्रान्ति शुरू की थी और जो दुनिया में विख्यात है। आज वह देश विरोधी हो गए? क्या संदेश दिया जा रहा है कॉरपरेट वर्ग को कि आज के भारत में किसी की भी प्रतिष्ठा सुरक्षित नही है? आर.एस.एस. ने इस लेख से दूरी बनाते हुए कहा है कि यह हमारा मुख्य पत्र नही है। चिन्ता की बात तो है कि बार बार ऐसे ठेकेदार उग रहें है जो किसी को भी देश विरोधी या हिन्दू विरोधी कह सकतें हैं। इन्हे सज़ा तो क्या मिलनी इन्हें रोकने वाला भी कोई नही इसलिए ज़हर के ऐसेसेल्समैन की तादाद बढ़ती जा रही है। सोशल मीडिया पर विशेष तौर पर बहुत नफरत फैलाई जाती है जिसकी शिकायत मुख्य नयायधीश एनवी रमना भी कर चुकें हैं।
पाकिस्तान के साथ मैच हारने के बाद ही पता था कि साम्प्रदायिक ग़ाज़ रोहित शर्मा या के एल राहुल पर नही मुहमद शम्मी पर गिरेगी। हुआ भी यही। जिन बल्लेबाज़ के कारण हम हार गए उन्हे छोड़ कर सारी ट्रौल आर्मी इस एक गेंदबाज़ के पीछे पड़ गई। जब विराट कोहली ने शम्मी का ज़बरदस्त समर्थन किया तो उनकी 10 महीने की बच्ची को रेप करने की धमकी सोशल मीडिया पर डाल दी गई। क्या वैहशीपन है?क्या आज के भारत में नैशनल आईकॉन का परिवार भी सुरक्षित नही है? आशा है सरकार ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करेगी। दुख है कि देश से उदारता खत्म होती जा रही है।डर को मैनूफैकचर किया जा रहा है, नफरत घड़ी जा रही है। क्या हमारी देशभक्ति इतनी नाज़ुक है कि क्रिकेट की एक जीत या हार से ध्वस्त हो जाएगी? मध्य प्रदेश में वैब सीरिज़ आश्रम-3 की फिलमिंग को लेकर हंगामा किया गया। बजरंग दल के 50 कार्यकर्ताओं ने सैट पर तोड़ फोड़ की, कुछ लोगों को पीटा और प्रसिद्ध निर्देशक प्रकाश झा के मुँह पर स्याही पोत दी। मध्य प्रदेश के गृहमंत्री का कहना है, “ हमारी भावनाओं को आहत करने वाले दृश्य फिलमाते क्यों हों? अगर हिम्मत है तो दूसरे किसी धर्म की भावनाओं को आहत करने वाले दृश्य क्यों नही फ़िल्माते?” मैंने यह सीरीज़ नही देखी इसलिए इसमें दिखाए दृश्यों पर टिप्पणी नही कर सकता पर अगर कुछ आपत्तिजनक है तो उसे रोकने का रास्ता क्या केवल यह ही रह गया है कि कुछ कार्यकर्ता भेज कर उन्हे ठोक दो? प्रदेश गृहमंत्री जिनका काम क़ानून का पालन करवाना है वह ही इसे तोड़ने वालों को क्यों प्रोत्साहित कर रहें हैं?
इससे पहले पद्मावत, तांडव, सूटेबल बॉय, पाताल लोक आदि पर आपति हो चुकी है कि वह ‘भावनाओं को आहत करते हैं’। शूटिंग के दौरान गुंडागर्दी हो चुकी है। यह विशाल हिन्दू समाज जिसने अपनी आंतरिक ताकत से विदेशी हमलावरों के प्रयासों को भी पराजित कर दिया, वह अब कुछ दृश्यों से या बयानों से खतरे में पड़ जाएगा ? हम आहत भावनाओं का गणराज्य बन रहे है। अगर मॉडल ने बिंदी नही लगाई तो भी आपति है। ग़रीबी,बेरोज़गारी,तेल की बढ़ती क़ीमतें,कोविड, किसान आन्दोलन, ठप्प हो गए कारोबार जैसे मुद्दे हमे उतेजित करने वाले होने चाहिए पर नही,हम धर्म पर आधारित मुद्दों को लेकर ही उतेजित होतें है। हम विलेन ढूँढते रहते हैं। ऐसा आभास मिलता है कि यहाँ ऐसे ठेकेदार भरे हुए है जो समझते है कि उन्हे ही मालूम है कि देश या धर्म के लिए क्या अच्छा हैबाकी हम सब भेड़ बकरी है जिनकी अपनी सोच नही है। उर्दू के शब्दों के इस्तेमाल से भी हिन्दू भावना आहत हो रही है। फिर क्या हम समोसा खाना बंद कर दें क्योंकि ‘समोसा’ शब्द भी हिन्दी का नही है, यह फ़ारसी से आया है। क्या समोसा खाने से हमारी शुद्ध हिन्दू भावनाएँ आहत तो नही हो जाऐंगी?
इस असहनशीलता का चरम हमने सिंघु बार्डर पर देखा जहाँ निहंगो ने एक व्यक्ति के हाथ पैर काट कर मार डाला क्योंकि उन्हे शिकायत थी कि उस व्यक्ति ने उनके ग्रंथ की अवमानना की है। केरल में कुछ साल पहले एक ईसाई टीचर के हाथ उग्रवादी मुसलमानों ने काट दिए थे क्योंकि उन्हे आपति थी कि उस टीचर द्वारा तैयार किए गए प्रश्न पत्र में ऐसा सवाल पूछा गया जिससे ‘उनकी धार्मिक भावनाएँ आहत होती थी’। कोई अपील नही कोई दलील नही। ऐसा न्याय तो तालिबान या पाकिस्तान के कटटरवादी करते है पर हमे तो अपने क़ानून के शासन पर नाज था पर यहाँ भी क़ानून भीड़ तंत्र के आगे सहमा और बेबस लगता है। झगड़ा हरियाणा मे होता है और किसान जालंधर-अमृतसर में रास्ता रोक कर बैठ जाते हैं। योगेन्द्र यादव को किसान जत्थेबंदियों ने इसलिए निलम्बित कर दिया क्योंकि वह लखीमपुर खीरी की घटना के बाद मृत भाजपा कार्यकर्ताओं के घर दुख साँझा करने गए थे। क्या संवेदना बिलकुल खत्म हो गई?
कमल हसन ने भी कहा है कि जब इन्हें ज़रूरत पड़ती है तब यह कथित धार्मिक लोग ब्लड बैंक में यह नही पूछते कि हिन्दू ख़ून है या ईसाई ख़ून है या मुस्लिम ख़ून है। जो देश को धर्म, जाति, नसल के कारण विभाजित करते है वह वास्तव ने ‘राष्ट्र विरोधी’ है। वह देश को कमजोर करते है और विदेशों में बदनाम करते है। हमने पाकिस्तान नही बनना। संघ प्रमुख भागवत का कहना है कि हिन्दू -मुसलमानों का डीएनए एक जैसा है। उनके कहना है कि मुसलमानों को डरने की कोई ज़रूरत नही क्योंकि हिन्दू किसी के प्रति वैमनस्य की भावना नही रखते। भागवतका कहना सही है क्योंकि हमारा दर्शन उदार है। ऋग्वेद में भी लिखा हुआ है कि, ‘ सत्य एक है जिसे विद्वान विभिन्न नामों से पुकारते है’। यह ही बात स्वामी विवेकानन्द ने भी दोहराई थी पर हमारी समस्या यह स्वयंभू संरक्षक है जो समझते है कि वह ही जानते है कि हमारे हित में क्या है। अगर संघ प्रमुख और भाजपा का नेतृत्व ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ सख़्त क़दम उठाएँ तो देश, धर्म और समाज का भला होगा।
आज दिवाली है। प्रकाश उत्सव है। ख़ुशी का त्योहार है। सभी लोगों,सभी धर्मों, सभी परम्पराओं, सभी रिवाजों को मिल कर यह त्योहार मनाना चाहिए। यह ही सर्वधर्म समभाव है। दिवाली की हार्दिक बधाई, दिवाली मुबारिक, हैप्पी दिवाली।