277 दिन में 100 करोड़ टीका की हमारी अद्भुत यात्रा नेतृत्व, प्रशासन, फ़ार्मा कम्पनियों और हेल्थ वर्करस के संकल्प की शानदार गाथा है। इस देश में बहुत ग़लत चल रहा है पर कभी कभी हम वह संकल्प और कर्तव्य निष्ठा दिखातें हैं कि न केवल दुनिया बल्कि हम भीख़ुद दंग रह जातें है। हमने कितना बड़ा काम किया है यह इस बात से पता चलता है कि जिन लोगों को यहाँ एक डोज़ मिली है उनकी संख्या 8 जर्मनी या 18 कैनेडा या 5 रूस या 10 इंग्लैंड या 11 फ़्रांस की जनसंख्या के बराबर है। स्पष्ट संदेश है कि हम कर सकतें है अगर हम फ़िज़ूल के ‘जश्न-ए-रिवाज’ में उलझे न रहें। प्रधानमंत्री ने सही इसे ‘भगीरथ प्रयास’ और ‘टीम इंडिया’ की ताकत का प्रदर्शन बताया है। हमारे हैल्थ वर्करस ने पहाड़ों, नदियों, नालों,जंगलों, तूफ़ानों को पार कर अपना राष्ट्रीय कर्तव्य निभाया है। पुणे कीडा. इंदिरा पारख की कहानी पढ़ी है जो फ़रवरी में पति की मौत के सदमें के बीच ड्यूटी पर लौटी और एक दिन में 19 गाँवों के 5900लोगों को टीका लगवाया। तवांग की डा. रिनचिन नीमा ने 12 घंटे दुर्गम पैदल यात्रा कर 14000 फ़ुट की उंचाई पर चीन की सीमा से लगते लुगथांग गाँव में याक चराते लोगों को टीका लगाया। उनका कहना है, “ वह हमारे तक नही आ सकते थे,इसलिए हमे उन तक जाना है…वह अंतिम भारतीय नागरिक हैं।“ इन लोगों ने न केवल प्राकृतिक चुनौतियों का ही सामना किया पर इन्हें लोगों की हिचकिचाहट और विरोध से भी जूझना पड़ा। सबसे दिलचस्प राजस्थान के अजमेर के नरेन्द्र कुमावत की कहानी है जो टीका लगाने के लिए सँपेरों के डेरे में पहुँच गए। वहां इतना विरोध था कि एक सपेरा अन्दर जा कर एक पिटारा ले आया। नरेन्द्र कुमावत को समझा दिया गया कि उसके अन्दर क्या है लेकिन इसके बावजूद वह सफल रहे और सारे परिवार को टीका लगा कर ही लौटे।
यह देश इन लोगों के जनून का कृतज्ञ रहेगा। याद कीजिए दूसरी लहर की प्रचंडता जब लग रहा था कि हमने सब कुछ गँवा दिया है। गंगा में शव बह रहे थे, अस्पतालों के बाहर मरीज़ों की लाईने लगी हुई थी और शमशान गृहों में जगह नही रही थी। सरकार और प्रशासन ग़ायब थे। हम उस स्थिति से उभरे हैं। आज हमारी 70 करोड़ जनता को 1 टीका और 30 करोड़ जनसंख्या को दोनों टीके लग चुकें है। और टीके का विस्तार शहरी और ग्रामीण इलाक़ों में बराबर रहा है। दूसरी लहर के दौरान जहाँ 20 लाख टीका रोज़ लगाना भी मुसीबत था वहां पिछले महीने हमने औसत 78 लाख टीका लगाया है और छ: दिन तो ऐसे भी रहे है जहाँ हमने 1 करोड़ से अधिक टीके लगाए हैं। टीकाकरण की यह रफ़्तार चीन के बाद सबसे तेज़ है और शायद चीन से भी तेज़ क्योंकि चीन ने पिछले साल जून में टीका लगाना शुरू कर दिया था। हमारा सौभाग्य है कि हमारे पास प्रमाणित क्षमता वाले वैक्सीन उत्पादक है। पुणे की सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया का विशेष योगदान है। आपातकालीन स्थिति में सुरक्षा और गुणवत्ता से समझौता किए बिना इतने बड़े देश में वैक्सीन डिलीवर करना बड़ी कामयाबी है।
विपक्ष का कहना है कि केवल आधी लड़ाई जीती गई है। कांग्रेस का कहना है कि जी-20 देशों में भारत 19वें नम्बर पर है। वह पहले हुई ग़लतियों की जाँच की माँग भी कर रहे हैं और ‘नक़ली जशन’ की आलोचना कर रहें है। मैं समझता हूँ कि यहाँ कांग्रेस अनावश्यक विलाप कर रही है। हाँ, शुरू में ग़लतियाँ हुई जिनको लेकर सरकार की जायज़ आलोचना भी हुई पर उसके बाद सरकार जाग उठी और टीकाकरण का ज़बरदस्त अभियान चलाया गया। पूरे देश के लिए टीका तैयार करना, केन्द्र और प्रादेशिक सरकारों में समन्वय बनाना, हमारी सुस्त हैल्थ व्यवस्था को चुस्त करना, लोगों की हिचकिचाहट से निबटना, दूर दूर तक टीका पहुँचाना मामूली काम नही था। सितम्बर में गृहमंत्रालय के एक एक्सपर्ट पैनल ने कहा था कि सितम्बर और अक्तूबर के बीच तीसरी लहर आ सकती है। अक्तूबर सकुशल निकल रहा है और मानना पड़ेगा कि सरकार ने अपना धर्म निभाया है। विशेष तौर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मशीनरी को चुस्त करने और लोगों को टीका लगवाने के लिए प्रेरित करने में महती भूमिका निभाई है। अगर उनकी आलोचना हुई थी तो अब वह श्लाघा के पात्र हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने तो प्रेरित करने के लिए पुणे और हैदराबाद में वैक्सीन उत्पादकों का दौरा भी किया। जब मनसुख मंडाविया को स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया था तो देश की अंग्रेज़ी-लाबी ने इनकी इंग्लिश का बहुत मज़ाक़ उड़ाया था। तब भी मैंने लिखा था कि उनकी इंग्लिश न देखों इनका काम देखों। मनसुख मंडाविया ने भी अपने आलोचकों का मुँह बंद कर दिया है। अगर हम दुनिया के सबसे विकसित जी-20 देशों में 19वें नम्बर पर हैं तो भी यह मामूली उपलब्धि नही। राजनीतिक इच्छा शक्ति और सरकारी संकल्प के कारण हम आज सुविधाजनक स्थिति में है जबकि योरूप में 23 प्रतिशत की रफ़्तार से केस और 14 प्रतिशत की दर से मौतें बढ़ रही हैं।
लेकिन पूरी तरह सुरक्षित होने का सफ़र अभी लम्बा है। हम वर्षांत तक अपनी पूरी जनसंख्या को टीका लगाना चाहतें हैं पर हमारी विशाल जनसंख्या बहुत बड़ी चुनौती है। 36 करोड़ बच्चे है जिन्हें टीका लगना है। विदेश में बच्चों को टीका लगना शुरू हो गया है। फाइज़र और चीनी कम्पनी सिनोफार्म ने बच्चों का टीका तैयार कर लिया है। भारत में भी कोवैक्सीन का बच्चों के लिए टीका तैयार है लेकिन अंतिम अनुमति की इंतेजार है। बच्चे स्कूलों में लौटना शुरू हो चुकें हैं इसलिए बच्चों को सुरक्षित रखने का जल्द से जल्द इंतेजाम होना चाहिए। पूरी जनसंख्या को टीका लगाने के लिए 31 दिसम्बर तक 90 करोड़ टीका चाहिए। यह बहुत बड़ी संख्या है, लगभग उतना ही काम करना है जितना अब तक हुआ है और समय दो महीने हैपर अगर लक्ष्य दिसम्बर की जगह जनवरी में पूरा होता है तो क्या हो जाएगा? जब तक अभियान रुकता नही दुखी होने की बात नही है। टीकाकरण के कारण रोज़ाना अब 20000 से कम केस आ रहें है और मौतों की गिनती भी लगातर गिर रही है और 500 से कम हो गई है जबकि मई-जून में क्या भयावह स्थिति थी वह हम जानते हैं। यह सवाल भी है कि जो साल के शुरुआती महीनों में टीका लगवा चुकें हैं उनकी क्षमता क़ायम रखने के लिए बूसटर टीका कब लगवाया जाए क्योंकि समय के साथ इम्यूनिटी घटती है ? अमेरिका और कैनेडा में यह शुरू हो चुका है लेकिन हमने तो पहले सभी को दूसरी डोज़ लगानी है इसीलिए सरकार बूसटर डोज़ के बारे गम्भीरता नही दिखा रही और अगले साल पर इसे डाल रही है। पर प्रधानमंत्री की इकनामिक एडवाइज़री कौंसल की पूर्व सदस्या शमिका रवि का कहना है, “हमे सर्वे कर पता करना चाहिए कि जिन्होंने मार्च से पहले टीका लगवाया था उनमें कितनी एंटीबॉडीज़ हैं। अगर यह घटने लगी है तो हमे तेज़ी से बूसटर डोज़ देने होगे”।
टीकाकरण के कारण भी सभी संकेतक तेज़ आर्थिक रिकवरी का संकेत दे रहें हैं। दोहरे अंक का विकास अब सम्भव नजर आता है इसलिए जरूरी है कि जो हासिल किया है उसे गँवाया नही जाए। अति आत्मविश्वास के कारण अमेरिका, इंग्लैंड और रूस फिर फँस गए हैं। इंग्लैंड में रोज़ाना 45000 केस आ रहें हैं। रूस जहां केवल 36 प्रतिशत ने ही टीका लगवाया है में मौत की दैनिक गिनती 1000 तक पहुँच चुकी है और दैनिक 40000 के क़रीब केस आरहे है। अब पुटिन ने आदेश दिया है कि काम पर मत जाओ। अमेरिका मे रोज़ाना एक लाख के क़रीब केस आ रहें है। सरकार सर पीट रही है पर अंधविश्वास और जिद्द के कारण लोगों में टीका का विरोध खत्म नही हो रहा। चीन में भी कोरोना की वापिसी हो रही है पर वहां सरकार सख़्त है और प्रभावित जगहों में स्कूल कालेज बंद कर दिए गए हैं और फ़्लाइट रद्द हो गई है। अमेरिका, इंग्लैंड, रूस आदि को देखते हुए यह सवाल उठता है कि क्या यहां भी तीसरी लहर आएगी? अभी तक तो विशेषज्ञ और वरिष्ठ डाक्टर इस सम्भावना को रद्द कर रहें हैं। उनका कहना है कि जैसे जैसे टीकाकरण बढ़ता जाएगा सम्भावना और कम होती जाएगी। अगर इनफेक्शन होता भी है तो वह पहले जैसे घातक नही होगा। लेकिन लापरवाही बहुत महँगी होगी। अभी तक कोई नया वेरियंट नजर नही आता पर सम्भावना को बिलकुल रद्द नही कर सकते। त्यौहार सीज़न में विशेष तौर पर चौकस रहने की ज़रूरत है।
इस समय देश सम्भला हुआ है पर हमे उन्हे नही भूलना चाहिए जिन्हें कोरोना गिरा गया है और जिनकी ज़िन्दगियाँ तबाह हो चुकीं हैं। लाखों लोग मारे गए, हज़ारों बच्चे अनाथ हो गए,लाखों बच्चों की पढ़ाई छूट गई,करोड़ों लोगों का रोजगार छिन गया। उनकी गिनती नही जो मानसिक तनाव और अवसाद से गुज़र रहें हैं। सरकार की विशेष ज़िम्मेवारी है कि जो पिछड़ गए है या जो पीड़ित है उनकी सम्भाल की जाए।इंग्लैंड पहले कायम कर चुका है और अब कोविड के लोगों पर दुष्प्रभाव से लोगों को बचाने के लिए जापान ने भी ‘मिनिस्टरी ऑफ़ लोनलीनैस’ अर्थात एकाकीपन का मंत्रालय बना दियाहै जो उनकी देखरेख करेगा जिन्हें कोरोना पीड़ित छोड़ गया है। हमे भी ऐसा विशेष मंत्रालय कायम करना चाहिए। जैसे बिल गेटस ने भी भारत को बधाई देते हुए लिखा है, पिछले 18 महीनों की दुखद पीड़ा को तो हम वापिस नही ले सकते पर हम यह तो कर सकतें हैं कि अगले 18 महीने बहुत बहुत बेहतर रहें।