हाल ही में हुए उपचुनावों में हिमाचल प्रदेश के परिणाम उल्लेखनीय है। वास्तव में देश को हिमाचल की जनता का आभारी होना चाहिए जिसके जनादेश ने केन्द्र सरकार को दिशा सह करने के लिए मजबूर कर दिया जो पेट्रोल और डीज़ल के दाम में केन्द्र और भाजपा सरकारों द्वारा तुरन्त कटौती के रूप में सामने आया है। इन परिणामों से पहले सरकार मज़े से दाम बढ़ाती जा रही थी जैसे कि जनता धोबी का गधा है जिसे मर्ज़ी से लादा जा सकता है। ख़बर केवल यह ही नही कि भाजपा हिमाचल में एक लोकसभा और तीन विधानसभा उपचुनाव हारी है पर जिस तरह से हारी है वह बताता है कि ज़मीन नीचे से खिसक रही है। 2019 के मंडी लोकसभा चुनाव में भाजपा का उम्मीदवार चार लाख से अधिक वोट से जीता था अब पार्टी 7500 वोट से हार गई है और यह क्षेत्र मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का गृहक्षेत्र है। जुब्बल कोटखाई में भाजपा के उम्मीदवार की ज़मानत ज़ब्त हो गई, उसे केवल 2600 वोट और 4 प्रतिशत वोट मिले। केवल 4 प्रतिशत ! पिछले चुनाव मे भाजपा ने यह सीट जीती थी। हिमाचल में कितना परिवर्तन आया है यह इस बात से पता चलता है कि कांग्रेस को 48.9 प्रतिशत और भाजपा को 28.05 प्रतिशत वोट मिलें है। पराजय भी उस कांग्रेस के हाथ मिली जो वीरभद्र सिंह के देहांत के बाद व्यवहारिक तौर पर नेतृत्वहीन है। जिसका अर्थ है कि जब लोग नाराज़ हो जाऐ तो अपना विकल्प ख़ुद खड़ा कर लेते हैं। हिमाचल भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा की होम स्टेट भी है। जयराम ठाकुर का भविष्य अनिश्चित लगता है। राज पाठ छिन सकता है। प्रदेश में उनकी वह स्वीकार्यता नही जो शांता कुमार या प्रेम कुमार धूमल की थी। भाजपा का नेतृत्व तो वैसे ही परिवर्तन के मामले में बेरहम है। कांग्रेस को भी नया नेतृत्व खड़ा करना होगा।
सत्तारूढ़ पार्टी की कमर तोड़ पराजय बताती है कि प्रदेश में शासन विरोधी भावना प्रबल है। जयराम ठाकुर ने करारी हार का ठीकरा केन्द्र पर फोड़ दिया है और इसके लिए महँगाई को दोषी ठहराया है। यह सच्चाई है कि महँगाई भाजपा को मार गई। हिमाचल के अतिरिक्त बंगाल, राजस्थान और हरियाणा में मिली हार और बाकी जगह वोट प्रतिशत में गिरावट का भी यही संदेश है। पिछले एक साल में पेट्रोल की कीमत 26 रूपए लीटर और डीज़ल 25 रूपए लीटर बढ़ी है। टैक्स इसका लगभग आधा हिस्सा है। सरकार ने संसद में बताया है कि 2021 में पेट्रोल और डीज़ल पर एक्साइज़ ड्यूटी से 334894 रुपए एकत्रित किए गए हैं। आम लोग जिनका रोजगार या कारोबार पेट्रोल या डीज़ल पर निर्भर करता है वह क्या करें, किधर जाऐं? एलपीजी में वृद्धि के कारण असंख्य रसोई वापिस लकड़ी के चूल्हे पर लौट आईं हैं। हैरानी है कि कीमत बढ़ाते समय इस तरफ ध्यान नही दिया गया उलटा भाजपा के प्रवक्ता राजस्व बढ़ाने के लिए इस वृद्धि को सही ठहराते रहे।
उत्तर पूर्व और तेलंगाना को छोड़ कर भाजपा के लिए कहीं से भी अच्छी ख़बर नही है। मध्य प्रदेश जहाँ भाजपा ने दो और कांग्रेस ने एक सीट जीती है, वोट प्रतिशत में अंतर मामूली है। भाजपा को 47.58 प्रतिशत और कांग्रेस को 45.45 प्रतिशत वोट मिला है। खंडवा लोकसभा सीट पार्टी जीतने में सफल रही है पर 7 प्रतिशत वोट में कमी आई है। रैगांव की सीट पार्टी कांग्रेस को हार गई जहाँ चुनाव पार्टी के विधायक का देहांत के कारण हुआ था। असम में भाजपा और सहयोगियों ने पाँचो सीटें जीत लीं हैं। कर्नाटक में नए सीएम अपने गृह जिले की हानागल सीट कांग्रेस को हार गए है जिसका अर्थ है कि जरूरी नही कि नया परिवर्तन बेहतर रहेगा। राजस्थान में मुख्य मंत्री अशोक गहलोत दोनों सीटें जीतने में सफल रहें हैं। वहां का वोट प्रतिशत भी भाजपा के लिए बुरी ख़बर है। कांग्रेस को 37.51 प्रतिशत तो भाजपा को18.80 प्रतिशत वोट मिला है। अर्थात कांग्रेस में गृहयुद्ध कि स्थिति के बावजूद वह भाजपा से दोगुना वोट ले जाने में सफल रहें हैं। भाजपा न केवल हारी है बल्कि उसका उम्मीदवार धरियावद में तीसरे और वललभनगर में चौथे नम्बर पर रहें है। गहलोत की स्थिति मज़बूत होगी। महाराष्ट्र में कांग्रेस एकमात्र सीट जीत गई और उसका वोट प्रतिशत भारी 57.03 रहा है। महाराष्ट्र से ही सम्बन्धित समाचार है कि शिवसेना दादरा और नगर हवेली की सीट 51000 से जीतने में सफल लही है। यह शिवसेना की महाराष्ट्र से बाहर पहली जीत है। जितना उस सरकार को दबाने का कोशिश की जा रही है उतना वह मज़बूत हो रहे है। जिस तरह एनसीबी बालीवुड के पीछे पड़ा है इसकी भी आगे चल कर कीमत चुकानी पड़ सकती है। हरियाणा मे ऐलनाबाद की सीट फिर अभय चौटाला जीतने में सफल रहें हैं। वहां किसान आन्दोलन बड़ा मुद्दा है लेकिन भाजपा उम्मीदवार पर उनकी मामूली 6700 की जीत बताती है कि किसान आन्दोलन से सभी सहमत नही और लम्बे चले आन्दोलन से लोग तंग आने लगे हैं क्योंकि उनके दैनिक जीवन में बाधा पड़ रही है। किसान नेतृत्व को ग़ौर करना चाहिए।
हिमाचल की ही तरह भाजपा को पश्चिम बंगाल में भारी धक्का लगा है जो भाजपा के लिए 2024 में सरदर्द बन सकती है। प्रदेश की चारों सीटों पर ममता बैनर्जी की पार्टी ने भाजपा को तृणमूल अर्थात तिनके की तरह उड़ा दिया है। यह वह प्रदेश है जहाँ भाजपा ने बहुत जोर लगाया था पर यहाँ भाजपा न केवल अपनी दो सीटें बरक़रार नही रख सकी बल्कि उसका वोट 38 प्रतिशत से घट कर 15 प्रतिशत रह गया है। तीन सीटों पर भाजपा के उम्मीदवार अपनी ज़मानत भी नही बचा सके। कांग्रेस और वामदल पहले ही वहां अप्रासंगिक हो चुकें हैं। अर्थात बंगाल में ममता बैनर्जी का एकाधिकार बनता जारहा है जो उपचुनाव में मिले भारी 75 प्रतिशत मत से पता चलता है। यह न केवल भाजपा बल्कि कांग्रेस के लिए भी अच्छी ख़बर नही है क्योंकि ममता बैनर्जी राहुल गांधी के लिए चुनौती होंगी। पश्चिम बंगाल की 42 सीटों के बल पर ममता बैनर्जी राष्ट्रीय विकल्प बनना चाहती हैं। वहां भाजपा की जीती 18 सीटें खतरे में लगती है। ममता अब ‘ बांग्ला निजरे मेये के चाय’ अर्थात बंगाल अपनी बेटी को चाहता है, के नाम पर वोट माँगेंगी तो भारी समर्थन मिलेगा। तेलंगाना की हजूरा सीट भाजपा ने जीत ली है। वहां नगर निगम के चुनावों में भी भाजपा का प्रदर्शन अच्छा रहा था। लालू प्रसाद यादव की एंट्री के बावजूद बिहार में नीतीश कुमार की जेडीयू दोनों सीटें जीतने में सफल रही। जहाँ भाजपा के लिए भी संदेश है कि उसे अभी नीतीश कुमार की ज़रूरत है वहां राजद और कांग्रेस को भी सोचना है कि शायद दोनों को एक दूसरे की ज़रूरत है। यहाँ कांग्रेस की ज़मानत ज़ब्त हो गई।
आगे पाँच विधानसभा के चुनाव हैं जहाँ पंजाब को छोड़ कर बाकी प्रदेशों, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भाजपा सत्ता में है। पंजाब अलग है क्योंकि मालूम नही कि नवजोत सिंह सिद्धू का बयानबाज़ी इसे कहीं पहुँचाएगी। भाजपा को इन सरकारों को बचाने के लिए संघर्ष करना है क्योंकि किसान आन्दोलन, महँगाई और पड़ोसी हिमाचल प्रदेश की हार का असर पड़ेगा। लखीमपुर खीरी की घटना का असर भी होगा। पिछली बार भाजपा को उत्तर प्रदेश में 39 प्रतिशत वोट मिला था। इसमें कमी आएगी पर क्योंकि विपक्ष एकजुट नही है इसलिए फ़ायदा होगा। प्रियंका गांधी काफ़ी सक्रिय है पर पिछले तीन चुनावों में पार्टी को केवल 6 प्रतिशत वोट ही मिले थे। कांग्रेस ने महिलाओं को 40 प्रतिशत टिकट देने का वायदा किया है पर यह 6 प्रतिशत वोट से उभरने के लिए पर्याप्त नही हैं। वैसे प्रदेशों में कांग्रेस का प्रदर्शन संतोषजनक रहा है पर यह भी महत्वपूर्ण है कि जो जीत मिली है वह या तो स्थानीय कारण मिली है या भाजपा से लोगों की नाराज़गी के कारण मिली है। हाई कमान की अधिक भूमिका नही रही है। लेकिन भाजपा भी घबराई लगती है जो योगी आदित्यनाथ द्वारा 31 साल पहले कारसेवकों पर चलाई गई गोली का मामला उठाने से पता चलता है। वह वोट अपने काम पर नही माँग रहे और फिर भावनात्मक मुद्दे उठा रहें है पर इस बार यह सिक्का नही चलेगा क्योंकि लोगों का ध्यान अपनी रोज़मर्रा के कष्टों पर है। महँगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है।
उत्तराखंड में भाजपा एक साल में तीन मुख्यमंत्री बदले जा चुकें हैं। वहां मुक़ाबला कांग्रेस से है पर ‘आप’ के बीच कूदने से भाजपा को राहत मिल सकती है क्योंकि विपक्ष के वोट बँट जाऐंगे। गोवा का हाथ थामने के लिए चार आशिक, भाजपा, कांग्रेस, आप और तृणमूल कांग्रेस कोशिश कर रहें हैं।ममता बैनर्जी बंगाल से बाहर और अरविंद केजरीवाल दिल्ली से बाहर अपनी अपनी उपस्थिति दर्ज करना चाहते है। इन चुनाव परिणामों में दोनों सत्तापक्ष और विपक्ष के लिए संदेश है। एक, भाजपा से लोग नाराज़ हैं और अपना क्षोभ वोट के ज़रिए व्यक्त कर रहें हैं। जब लोग नाराज़ हो जातें हैं तो अपना विकल्प ख़ुद खड़ा कर देते हैं। राजनीति अब महँगाई के इर्दगिर्द घूम रही है। यह हर इंसान को छूती है और इसमें किसी भी सरकार को अस्थिर करने की क्षमता है। दो, विपक्ष भी टुकड़े टुकड़े हैं। वह बुरी तरह से बँटा हुआ है और इकट्ठा करने केलिए कोई जय प्रकाश नारायण भी नही है। चाहे भाजपा का ग्राफ़ कमजोर पड़ा है पर उसका फ़्रंट रन्नर का दर्जा संदेह में नही है। पी चिदम्बरम ने भी लिखा है अगले लोकसभा चुनाव में बदलाव के लिए निर्णायक वोट ही भाजपा को हरा सकता है। कभी सलाहकार रहे प्रशांत किशोर ने राहुल गांधी को नसीहत दी है कि वह भ्रम में न रहें, 40 साल भाजपा कहीं नही जा रही। नरेन्द्र मोदी की जगह लेने के लिए संघर्षरत नेता, राहुल गांधी-ममता बैनर्जी -अरविंद केजरीवाल की भीड़ में उद्धव ठाकरे भी शामिल हो रहे लगतें हैं, क्या यह साधारण सच्चाई समझेंगे और अपनी अपनी ईगो को एक तरफ रख देश के लोकतन्त्र को मज़बूत करने के लिए एकजुट होंगे?