उत्तर प्रदेश में 37 वर्ष के बाद किसी मुख्यमंत्री को दोबारा बनने का मौक़ा मिला है। कोविड के दौरान मौतें, महंगाई, बढ़ती बेरोज़गारी, आर्थिक संकट, किसान आन्दोलन, के बावजूद भाजपा दोबारा सत्ता में आने में सफल रही हैं। योगी आदित्यनाथ अनथक है और विशेष तौर पर क़ानून और व्यवस्था के क्षेत्र में प्रदेश ने भारी सुधार किया है। उन्हे ‘बुलडोज़र बाबा’ के नाम से जाना जाता है, जो जरूरी नही कि अच्छी बात है। इस बार तो अयोध्या या धारा 370 का मामला भी नही था, चाहे योगी आदित्यनाथ ने 80 बनाम 20 का मुद्दा उठा कर ध्रुवीकरण की कोशिश की थी। अभी से कहा जारहा है कि भाजपा में उनकी स्थिति नम्बर 2 की बन गई है क्योंकि भाजपा का कोई और सीएम उनका मुक़ाबला नही कर सकता। आख़िर उत्तर प्रदेश तो वह प्रदेश है जिसने देश को अधिकतर प्रधानमंत्री दिए है। जिस मुख्यमंत्री के काल में फिर दो तिहाई बहुमत मिला हो भविष्य में उसका दावा तो बनता ही है, शायद योगी आदित्यनाथ की भी यही सोच है।
चुनाव के दौरान डबल इंजन की बहुत बात उठाई गई, एक दिल्ली वाला तो दूसरा लखनऊ वाला। लेकिन असलियत है कि इस बड़ी जीत में दिल्ली वाले बड़े इंजन ,नरेन्द्र मोदी, का बड़ा योगदान है। जब योगी को लेकर कुछ अफ़वाहें फैलाई गईं तो नरेन्द्र मोदी ने उनके कंधे पर हाथ रखे दो तस्वीरें निकलवा कर इस चर्चा को खत्म कर दिया। आज योगी जहाँ है वह उनकी मेहनत का परिणाम तो है ही, पर इसका बड़ा कारण है कि उन्हे नरेन्द्र मोदी का संरक्षण प्राप्त है। अगर मोदी वहां इतना समय न लगाते तो शायद यह काँटे की टक्कर बन जाती। चुनाव परिणाम बता गए हैं कि नरेन्द्र मोदी का व्यक्तित्व एंटीइंकमबंसी पर भारी पड़ा है क्योंकि भाजपा केवल उत्तर प्रदेश ही नही, उतराखंड, गोवा और मणिपुर भी अच्छी तरह से जीतने में सफल रही है। पंजाब को छोड़ कर हर जगह मोदी की लोकप्रियता का असर नजर आया है।
नरेन्द्र मोदी का कहना है कि लोगो ने भाजपा में भरोसा व्यक्त किया है। यह बात तो सही है। पार्टी का संगठन बहुत मज़बूत है पर असली बात है कि लोगो का भाजपा से अधिक नरेन्द्र मोदी में विश्वास है कि कई ग़लतियों और कमज़ोरियों के बावजूद वह देश को मज़बूत करने और ग़रीबों के कल्याण में लगे हैं। जनता के साथ उनका जो भावनात्मक रिश्ता है, वह किसी और नेता का नही है। वास्तव में कोई नज़दीक भी नही फटकता। भाजपा को मिले समर्थन में महिलाओं का बड़ा योगदान है जिन्हें केन्द्र की योजनाओं से सीधा फ़ायदा पहुँच रहा है। ‘लाभार्थी’ का यह जो नया वर्ग बना है, वह मोदी का भक्त है। इस वक़्त लोगो के लिए हिन्दुत्व से अधिक जेब में क्या सीधा डल रहा है, का महत्व है। लोगो को घर मिले, मुफ़्त शिक्षा मिली, इलाज मिला, राशन-पानी मिला इसलिए समर्थन भी मिला। हर चुनाव मे यह साबित हो रहा है कि सीधी दी जा रही सुविधाओं फ़ायदा पहुँचाती हैं। भाजपा का नेतृत्व समझ गया है कि समाजिक संकट का सामना करने के लिए कल्याणकारी योजनाओं पर बल देने की ज़रूरत है। इसीलिए मनरेगा में अधिक दिलचस्पी नही रही क्योंकि वह तो अधिकार बन जाता है। पंजाब में आप की बम्पर जीत का भी यह एक बड़ा कारण है क्योंकि केजरीवाल मुफ़्त करने और मुंफत बाँटने में माहिर हैं।
उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम कितने आश्चर्यजनक है यह इस बात से पता चलता है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जहाँ किसान आंदोलन खूब चला और राकेश टिकैत खूब गरजे, वहां भाजपा को अच्छा बहुमत मिला यहां तक कि लखीमपुर खीरी जहाँ एक मंत्री के पुत्र की कार किसानों को रौंदते आगे बढ गई, वहां की आठों सीटों पर भाजपा विजयी रही है। हाथरस में भी भाजपा की उम्मीदवार एक लाख से अधिक वोट से विजयी रही है। इसका कारण भी यही है कि लोगो का नरेन्द्र मोदी में विश्वास है। मोदी भी हर चुनाव को गम्भीरता से लेते है। अगर उन्होने यूपी में इतने जोरशोर से प्रचार न किया होता तो यह परिणाम न निकलता। इस वक़्त वह वर्ग, जाति और धर्म के मतभेद से उपर हैं, जैसे इस बार अरविंद केजरीवाल पंजाब में रहें हैं। मोदी ने कई दिन वाराणसी में लगाए और अमित शाह ने डोर टू डोर पर्चे बाँटे जबकि कांग्रेस के डीफैकटो प्रधान राहुल गांधी ने दो रैलियों को ही सम्बोधित किया। उतराखंड में भाजपा ने पाँच महीने में दो बार मुख्यमंत्री बदले।कोई और पार्टी होती तो डूब जाती जैसे पंजाब में कांग्रेस डूबी है, पर मोदी पार्टी को न केवल बचा गए बल्कि अच्छा बहुमत दिलवाने में सफल रहे। यहां भी केन्द्र की योजनाओं काम आईं। उतराखंड में भी पहली बार कोई पार्टी दोहराई जा रही है। भाजपा की चार प्रदेशों में जीत मे एक ही कॉमन फ़ैक्टर है, नरेन्द्र मोदी। इस जीत के अगले ही दिन उनका अहमदाबाद में रोड शो करना बताता है कि वह पार्टी को कामयाब बनाने की अपनी ज़िम्मेवारी को कितना गम्भीरता से लेते हैं।
समाजवादी पार्टी और उसके नेता अखिलेश यादव की रैलियों में भारी भीड़ से तो यह प्रभाव मिल रहा था कि इस बार सपा की सरकार बन सकती है। हताश यूथ उनके साथ नज़र आया। आख़िर योगी सरकार के ख़िलाफ़ भारी असंतोष था, पर ख़ामोश वोटर भाजपा के पक्ष में भुगत गया। लोगो में नाराज़गी थी पर अभी उस स्तर तक नही पहुँची कि पार्टी को हटा दें। इस ग़ुस्से को नियंत्रण में करने में भी बड़े इंजन का बड़ा हाथ है। सपा नेतृत्व को भी सोचना चाहिए कि लोगो के असंतोष को वह अपनी जीत में परिवर्तित करने में सफल क्यों नही रहे? सपा का वोट2017 के 21.8 प्रतिशत से बढ कर 32.02 हो गया और सीटें भी 47 से बढ़ कर 111 हो गई पर इतना कुछ ख़िलाफ़ होने के बावजूद भाजपा का वोट प्रतिशत गिरा नही। पार्टी चारों प्रदेशों में अपना वोट बढ़ाने नें सफल रही है।
अखिलेश यादव रैलियों में भीड़ को जीत मे परिवर्तित क्यों नही कर सके? इसका बड़ा कारण है कि अखिलेश यादव अभी तक अतीत के बोझ से छुटकारा नही पा सके। उनकी सरकार भी अच्छी मिसाल नही थी। कोविड के दौरान जब योगी सरकार बेबस और अक्षम नजर आरही थी, ज़मीन पर लोगो की मदद करने के लिए अखिलेश और उनकी पार्टी भी कहीं नजर नही आए। जब मुक़ाबला नरेन्द्र मोदी जैसे फ़ुल टाईम नेता के साथ हो तो लापरवाही की कोई गुंजायश नही है। उत्तर प्रदेश में भाजपा की सीटों में 57 सीटों की भारी गिरावट आई है, उस पर मंथन की ज़रूरत है। अगर अखिलेश यादव की जगह ममता बैनर्जी या अरविंद केजरीवाल जैसा कोई नेता होता तो भाजपा के लिए परिणाम इतना सुखद न रहता। कांग्रेस का पतन जारी है और लगता है जारी रहेगा। वोट 6.3 प्रतिशत से गिर कर 2.3 प्रतिशत रह गया है। देश के सबसे बड़े प्रदेश, जो नेहरू-गांधी परिवार की कर्म भूमि रही है, में पार्टी 2 सीटों पर सिमट कर रह गई है। प्रियंका गांधी वाड्रा ने खूब जोर लगाया। 40 प्रतिशत सीटें महिलाओं को दी पर जनता का मोहभंग हो चुका है। अपनी जेबी कार्यकारिणी में तीनों गांधी ने ‘पार्टी के लिए क़ुरबानी’ के लिए इस्तीफ़ा देने की पेशकश का थी जिसे रद्द कर दिया गया है। अर्थात पार्टी इसी तरह धक्के खाती अप्रासंगिकता की तरफ अपना सफ़र जारी रखेगी। यही स्थिति बसपा की है जिसे केवल 1 सीट मिली है। और यह वह पार्टी है जिसे 2007 में बहुमत मिला था। पार्टी ने तो हाराकारी कर ली लगती है। यह स्वेच्छा से की है या किसी की प्रेरणा से की, यह सवाल ज़रूर है पर परिणाम तो वही है कि कांशीराम की पार्टी खत्म हो रही है। पंजाब में भी सिर्फ़ 1 सीट ही मिली हैं।
क्या 2022 के चुनाव का 2024 के आम चुनाव पर असर पड़ेगा? क्या पंजाब के चुनाव परिणाम ने अरविंद केजरीवाल को इतना उभार दिया कि वह अगले चुनाव में मोदी के चैलेंजर होंगे? नरेन्द्र मोदी का कहना है कि 2022 के उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव 2024 का चुनाव परिणाम तय कर गए हैं। दूसरी तरफ विश्लेषक प्रशांत किशोर का कहना है कि इन चुनावों का 2024 पर असर नही पड़ेगा, ‘लड़ाई प्रदेश चुनाव से तय नही होती’। और तीसरी तरफ आप का कहना है कि 2024 में मोदी बनाम केजरीवाल होगा। निश्चित तौर पर पंजाब के चुनाव ने आप और उसके एकमात्र लीडर अरविंद केजरीवाल को राजनीति का बड़ा खिलाड़ी बना दिया है। लोग उन्हे बदलाव का उत्प्रेरक समझने लगे है। इस पर विस्तार से मैं अगले लेख में लिखुंगा, पर इस समय केवल इतना कहना चाहूँगा कि जिस पार्टी(आप) को उत्तर प्रदेश में केवल 0.3 प्रतिशत वोट मिलें हों और 0 सीट मिली हों वह इतनी जल्द राष्ट्रीय विकल्प नही बन सकती।
पर अरविंद केजरीवाल, भगवंत मान और आप बधाई के पात्र है कि उन्होने पंजाब में वह कर दिखाया जिसकी कल्पना भी नही की जा सकती थी, उन्होने जर्जर और अति भ्रष्ट व्यवस्था के सरदारों को इतिहास के कूड़ेदान में फेंक दिया। प्रकाश सिंह बादल, अमरेन्द्र सिंह, नवजोत सिंह सिदधू, सुखबीर बादल, बिक्रमजीत सिंह मजीठिया, मनप्रीत बादल, चरणजीत सिंह चन्नी, जिन सबने मिल कर पंजाब की यह दयनीय हालत बना दी है को आप ने अपने झाड़ू से साफ़ कर दिया। सदा के लिए। सारा नैरेटिव, सारी कहानी, बदल दी जिसकी गूँज देश भर में सुनी जा रही है। अब नया नेतृत्व उभरेगा जो आशा है पंजाब को इस खाई से निकालने में सफल होगा। पंजाब का परिणाम बाकी देश के लिए भी संदेश है कि लोग पुरानी बंजर नकारा भ्रष्ट व्यवस्था से तंग आ चुकें है और फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के साथ कह रहें हैं,
ऐ ख़ाक -ए-नशीनो उठ बैठो वो वक़्त क़रीब है आ पहुँचा,
जब तख़्त गिराए जाएँगे, जब ताज उछाले जाऐंगे !