इमरान खान के प्रस्थान और शाहबाज़ शरीफ़ के पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनने के बाद कुछ आशा जगी है कि दोनों देशों के बीच सम्बन्ध बेहतर होंगे। शरीफ़ परिवार के साथ हमारे सम्बन्ध अच्छे रहे हैं। नवाज़ शरीफ़ के समय प्रधानमंत्री वाजपेयी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दोनो लाहौर यात्रा कर आएँ थे, चाहे नतीजा अच्छा नही निकला था। पहले कारगिल हो गया और फिर आतंकी हमलों ने रिश्तों को ऐसी जगह पहुँचा दिया कि नवम्बर 2019 से दोनों देशों के बीच राजदूत भी नहीं है। पर जिसे बैकचैनल कहा जाता है, उसके द्वारा बातचीत चलती रही है। रिश्तों को बिगाड़ने में इमरान खान ने विशेष भूमिका निभाई और शर्त रख दी कि जब तक भारत 2019 में जम्मू कश्मीर में किए गए संवैधानिक बदलाव को वापिस नहीं ले लेता तब तक रिश्ते सामान्य नहीं होंगे। अब इमरान खान वजीरेआजम नहीं रहे, और बड़ा परिवर्तन यह भी है कि पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष कमर जावेद बाजवा भारत से रिश्ते बेहतर करने के पक्ष में हैं। वह नवम्बर में रिटायर हो रहें हैं और कोई नहीं जानता कि अगले सेनाध्यक्ष का भारत के प्रति रवैया क्या होगा इसलिए दोनों देशों के पास बहुत समय नहीं है। फ़रवरी 2021 से दोनों देशों के बीच युद्ध विराम आज तक क़ायम है। इसका मतलब है कि पाकिस्तान की सेना सहयोग कर रही है। पर अगले साल उनके चुनाव है जिसके अगले साल हमारे चुनाव है। इसलिए रिश्ते सुधारने की खिड़की बहुत देर खुली नहीं रहेगी।
प्रधानमंत्री मोदी के बधाई संदेश के जवाब में शाहबाज़ शरीफ़ का कहना था कि पाकिस्तान भारत के साथ शांतिमय सम्बन्ध चाहता है पर साथ ही जोड़ दिया कि ‘जम्मू कश्मीर समेत बाक़ी विवादों का शांतिमय हल अत्यावश्यक है’। पाकिस्तान के किसी भी प्रधानमंत्री के लिए कश्मीर के मुद्दे को पीछे डालना आसान नहीं होता, शाहबाज़ शरीफ़ के लिए तो और भी मुश्किल होगा क्योंकि एक तो वह अस्थिर गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहें हैं, और दूसरा इमरान खान उनके पीछे पड़े हुए हैं और किसी भी रियायत पर देश में तूफ़ान खड़ा कर देंगे। इस लिए तत्काल बर्फ़ पिघलने की सम्भावना बहुत कम नज़र आ रही है। भारत के साथ बेहतर रिश्ता पाकिस्तान के हित में ही नहीं उनके जीवित रहने के लिए भी ज़रूरी है। और वह यह जानते हैं। उनके योजना मंत्री एहसान इक़बाल का कहना है कि, ‘पाकिस्तान को मज़बूत बनने के लिए ज़रूरी है कि वह वैश्विक अर्थव्यवस्था से जुड़ जाए और अपना अलगाव ख़त्म कर दें’। उन्होंने भारत का नाम नहीं लिया पर असली अलगाव तो अपने पड़ोसी से है।
पाकिस्तान की नई सरकार ने पाँच साल के बाद नई दिल्ली में अपने उच्चायोग में ट्रेड मिनिस्टर नियुक्त किया है। संकेत यह है कि दोनों देशों में व्यापार को बढ़ाया जाएगा जो कई वर्षों से लगभग ठप्प है या तीसरे देशों के द्वारा हो रहा है। अगर पाकिस्तान ने एक दिन श्रीलंका नहीं बनना तो भी ज़रूरी है कि भारत के साथ व्यापारिक रिश्ता सुधारे जाए। लेकिन इस कदम की वहाँ इतनी आलोचना हुई कि शाहबाज़ सरकार को कहना पड़ा कि वह भारत के साथ व्यापारिक सम्बन्ध सुधारने ‘नहीं’ जा रही। अकल तो यह ही कहती है कि पड़ोस की आर्थिक महाशक्ति के साथ व्यापार शुरू कर पाकिस्तान अपना उद्धार करे, पर अकल और तर्क से काम करना उस देश ने बहुत पहले छोड़ दिया था। देश में आर्थिक संकट है और भारी महंगाई हैं जो भारत के साथ व्यापार कर कम हो सकते है। अगर व्यापारिक रिश्तों के भविष्य को भी कश्मीर के साथ जोड़ा जाएगा तो प्रगति होने की सम्भावना ख़त्म हो जाएगी। अब देखना है कि शाहबाज़ शरीफ़ भारत के साथ व्यापारिक, कूटनीतिक और राजनीतिक सम्बन्धों को सुधारने के रास्ते में बिखरे विस्फोटक के बीच से किस तरह निकलते हैं, क्योंकि उनके सामने भी समस्याओं और चुनौतियों का भंडार है।
सबसे बड़ी चुनौती उनकी चरमराती अर्थव्यवस्था है। अभी तक वह श्रीलंका नहीं बने पर जैसे वरिष्ठ पाकिस्तानी पत्रकार मरिआना बाबर ने लिखा है कि विशेषज्ञ चेतावनी दे रहें हैं कि पाकिस्तान भी श्रीलंका के नक़्शे कदम पर चल सकता है। वह गम्भीर चेतावनी दे रही है कि, ‘अगर सरकार तत्काल कदम नहीं उठाती तो वह देश को दिवालियापन से नहीं बचा सकते’। शाहबाज़ शरीफ़ ने खुद स्वीकार किया है कि पाकिस्तान ‘क़र्ज़ में डूब रहा है’। इमरान खान ने एक बार कहा था कि मैं भीख का कटोरा लेकर कहीं नहीं जाऊंगा, पर पाकिस्तान के हर प्रधानमंत्री के नसीब में यह लिखा है कि उन्हें ‘भीख का कटोरा’ लेकर विभिन्न राजधानियों के चक्कर काटने ही है। निगाह आईएमएफ़ के छह अरब डालर के क़र्ज़े पर है लेकिन वह कुछ शर्तों के साथ ही मिलेगा जो राजनीतिक तौर पर महँगी साबित होंगी। शाहबाज़ शरीफ़ बुरे फँसे है। अगर आर्थिक स्थिति बदलती नहीं तो उनकी सरकार टिक नहीं सकेंगी। डालर के मुक़ाबले में उनका रूपया लगातार गिरता जा रहा है। 10 अप्रैल को इमरान खान को हटाए जाने से लेकर अब तक रूपए में लगभग 9 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है। 2018 के मुक़ाबले यह 46 फ़ीसदी गिर चुका है। विदेशी मुद्रा भंडार 2020 जून के बाद सबसे कम 8 अरब डालर रह गया है। महंगाई आसमान के छू रही हैं जो किसी भी सरकार को अस्थिर कर सकती है। भारत सरकार को यह अहसास है इसीलिए पेट्रोल और डीज़ल के दाम में भारी कमी की गई है, जिसकी तारीफ़ इमरान खान ने भी की है। 2018 के बाद महंगाई दोगुनी हुई है। पेट्रोल और डीज़ल के दाम एक साल में 45 फ़ीसदी बढ़ें हैं। 10 किलो आटा 900 रूपए में मिल रहा है। दूध 150 रूपए लीटर है। पाकिस्तान की यह भी समस्या है कि ‘आयरन ब्रदर’ चीन भी मदद नहीं कर रहा क्योंकि चीन को विश्वास नहीं कि पैसा वापिस आएगा।
कराची में एक महीने में तीन आतंकी हमले हो चुकें हैं। सबसे गम्भीर कराची विश्वविद्यालय में आत्मघाती हमला था जिस में तीन चीनी शिक्षक मारे गए। आत्मघाती हमलावर एक बलूच महिला थी। तब से पाकिस्तान और चीन के रिश्तों में गर्माहट कम हो गई है। चीन समझता है कि पाकिस्तान में उसकी परियोजनाओं का भविष्य बहुत उज्ज्वल नहीं है। राष्ट्रपति आरिफ़ अल्वी जिन्हें इमरान खान ने बनाया था, रूकावटें खड़ी कर रहें हैं। रिश्ते इतने कटु हो गए हैं कि सरकार ने घोषणा की है कि संविधान को तोड़ने के आरोप में वह राष्ट्रपति पर महाभियोग लाएगी। लगभग आधा मंत्रीमंडल ज़मानत पर है। एक और बड़ी सरदर्द सेनाध्यक्ष कमर बाजवा और आईएसआई के प्रमुख फ़ैज़ हमीद के बीच गम्भीर मतभेद है। और यह भी मालूम नहीं कि यह रंग बिरंगी गठबंधन सरकार चलेगी कितना? वरिष्ठ पत्रकार इफ़्तिख़ार चौधरी का मानना है कि यह गठबंधन लंबे वकत तक नहीं चलेगा क्योंकि अभी से मतभेद सामने आ रहे हैं।
शाहबाज़ शरीफ़ के लिए अर्थव्यवस्था के बराबर चुनौती इमरान खान है। इमरान को किसी तरह हटा दिया गया है पर वह बाग़ी हो गए हैं और इस उपमहाद्वीप में जो भी बाग़ी होकर व्यवस्था को चुनौती देता है, वह लोकप्रिय बन जाता है। इमरान विशेष तौर पर युवाओ में लोकप्रिय हैं क्योंकि वह ख़ुद को हटाए जाने के लिए विदेशी ताक़तों, अर्थात् अमेरिका, को दोषी ठहरा रहे हैं। उनका कहना है कि ‘इमपोरटेड हकूमत नामंज़ूर है, नामंज़ूर है’। वह यहीं तक ही नहीं रूके, उन्होंने तो सेना के एक हिस्से को भी उनके हटाए जाने की ‘साज़िश’ में शामिल होने का आरोप लगाया है। इशारा जनरल बाजवा की तरफ़ था। ऐसा पाकिस्तान में पहली बार हो रहा है कि कोई खुलेआम सेना पर आरोप लगा रहा है। क्योंकि सेना उस व्यवस्था का हिस्सा है जिसने पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया है इस कारण सेना की भी वह इज़्ज़त नहीं रही। अब इमरान खान सड़कों पर उतरने की योजना बना रहे हैं जिससे बड़ी क़ानून और व्यवस्था की समस्या बन जाएगी। शाहबाज़ शरीफ़ का कहना है कि इमरान खान गृहयुद्ध शुरू करना चाहते हैं। उनकी पार्टी 25 से 29 मई तक विभिन्न शहरों से इस्लामाबाद के लिए ‘लॉंन्ग मार्च’ शुरू करने जा रहे हैं। इस दौरान वह सरकार को महंगाई के लिए और अमेरिका परस्त होने का दोषी ठहराएँगे। प्रेक्षक कह रहें हैं कि सरकार और इमरान खान के बीच टकराव और तीखा होगा। उनकी लोकप्रियता को देखते हुए उनके साथ वह सलूक नहीं किया जा सकता जो ज़ुल्फ़िकार भुट्टो के साथ किया गया (फाँसी) या जो नवाज़ शरीफ़ के साथ किया गया ( निर्वासन)। पर पाकिस्तान के बारे निश्चित कुछ नहीं कहा जा सकता। वरिष्ठ पत्रकार इम्तियाज़ गुल का कहना है कि इमरान खान की लोकप्रियता बढ़ रही है पर पाकिस्तान में बड़ा सवाल है कि क्या आने वाले चुनाव तक उन्हें खुला छोड़ दिया जाएगा ?
पाकिस्तान में आने वाले दिन तनावपूर्ण और बेचैन होंगे। जैसे पाकिस्तान में हमारे पूर्व राजदूत टीसीए राघवन ने लिखा है कि ‘ पाकिस्तान का अस्थिरता के साथ मेल फिर शुरू हो रहा है’। बड़ी संख्या में सेना के रिटायर्ड अफ़सर इमरान खान के साथ हैं। पाकिस्तान की सेना के अन्दर भी उनको अच्छा समर्थन है। नई सरकार को टिकने का मौक़ा मिलने से पहले भारी चुनौती का सामना करना पड़ेगा। दिलचस्प है कि इस बार अपने झगड़े में उन्होंने हमें नहीं घसीटा पर हमारी नज़रें उधर रहेगी क्योंकि स्थिर और मैत्री पूर्ण पाकिस्तान हमारे हित में है। एक समय लग रहा था कि इमरान खान के प्रस्थान के बाद और व्यवहारिक नए वजीरेआजम बनने से सम्बन्धों में खिंचाव कम होगा विशेष तौर पर जब सेनाध्यक्ष भी यही चाहते हैं।लेकिन जैसी स्थिति वहाँ की है फ़िलहाल तो कोई सम्भावना नज़र नहीं आती कि उस देश की सरकार भारत के प्रति खुद का नुक़सान करने वाली नीति बदलेगी। कई लोग आशावान है कि भुगौलिक अनिवार्यता और आर्थिक मजबूरी आख़िर में पाकिस्तान को बदलने पर मजबूर कर देगी। सामरिक विशेषज्ञ सी राजा मोहन ने कुतूहल बढ़ाने वाला सवाल किया है कि क्या भारत ऐसा कुछ कर सकता है जो पाकिस्तान में अपरिहार्य बदलाव को तेज़ कर सकता हो?’ इस कथन में यह स्वीकृति है कि पाकिस्तान में सकारात्मक बदलाव लाज़मी है। मैं सहमत नहीं हूँ। पड़ोस में ही अफ़ग़ानिस्तान हैं जो तबाह हो गए पर बंदा नहीं बने। श्रीलंका ने भी सुसाइड कर लिया। पाकिस्तान के बारे केवल इतनी आशा की जा सकती है कि रिश्ते इतने तल्ख़ नहीं रहेंगे।