अपनी माँगो को लेकर एक बार फिर मोर्चा लगाने की तैयारी में कुछ किसान संगठनों से मुख्यमंत्री भगवंत मान ने पूछा कि ‘बताएँ की मैं ग़लत क्या कर रहा हूँ’? दुख भरी आवाज़ में सीएम का कहना था कि
‘मैं धरती को बचाने का प्रयास कर रहा हूँ। कम से कम एक साल मेरा साथ दें’। धान रोपाई की तारीख़ बदलने और गेहूं के सिंकुड़े दाने को लेकर किसानों का एक वर्ग चंडीगढ़ के बाहर दिल्ली जैसा मोर्चा लगाने की तैयारी कर रहा था। मामला टल गया पर मान ने स्पष्ट कर दिया कि वह पंजाब के पानी को बचाने की लड़ाई लड़ करें हैं। यह हकीकत है कि पंजाब में गिरता भूजल बहुत गम्भीर समस्या है। एक प्रकार से हमारा अस्तित्व खतरें में हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल के अध्यक्ष जस्टिस जसबीर सिंह का कहना है कि, ‘विशेषज्ञों की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के पास केवल 17 वर्ष का भूजल रह गया है और प्रदेश ख़तरनाक अवस्था से गुजर रहा है’। केवल 17 वर्ष ! उसके बाद क्या होगा? क्या विभिन्न किसान संगठनों ने कभी यह सोचा है कि 17 वर्ष के बाद पंजाब किधर जाएगा, और उनकी अगली पीढ़ी का क्या होगा? विशेषज्ञों के अनुसार भूजल जो तीन से दस मीटर मिलता था वह दो दशक में 30 मीटर से नीचे चला गया है। कई ज़िलों में यह 100 मीटर से नीचे चला गया है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की रिपोर्ट के अनुसार लगभग हर ज़िले में हर साल एक मीटर भूजल में गिरावट आ रही है।अर्थात् हमारी आने वाली नस्लें पानी के लिए तरसेंगी। पिछली सारी सरकारें खेती में डाईवरसिफ्केशन अर्थात् विविधीकरण की बात तो बहुत करती रहीं हैं पर कोई भी गम्भीर प्रयास नहीं किया गया। बड़ी समस्या धान की फसल है। अगर भूजल को बचाना है तो या तो किसान को इस फसल से हटाना होगा या इसका तरीक़ा बदलना पड़ेगा।
इस समस्या से निकलने के लिए पंजाब सरकार ने दो कदम उठाए हैं। एक, वह किसान को धान की सीधी बोआई के लिए प्रोत्साहित कर रही है। इससे 20 प्रतिशत तक पानी की बचत हो सकती है पर यह पर्याप्त नहीं है। इसके अलावा पहली बार मूँग की दाल की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए निर्णय लिया गया है कि उसे भी एमएसपी पर ख़रीदा जाएगा। यह अच्छी बात है कि सरकार नए कदम उठाने की कोशिश कर रही है। पिछली सरकारें केवल दिखावटी कदम ही उठाती रहीं हैं। भारत सरकार भी पहली बार एसएसपी पर मूँग ख़रीदने जा रही है। लेकिन यह सब प्रयास तब ही सफल होंगे अगर किसान सहयोग करेंगे। किसानों को भी समझना चाहिए कि उनके बार बार धरनों से पंजाब का अहित हो रहा है। उद्योग यहाँ आने को तैयार नहीं क्योंकि यह आंदोलनों का घर बन गया हैं। रोज़गार पैदा कैसे होगा? इस बार उन्होंने देखा होगा कि उनके प्रस्तावित मोर्चे को पहले वाला समर्थन नहीं मिला।
एक बड़ा कदम उठाते हुए मुख्यमंत्री भगवंत मान ने अपने एक मंत्री, विजय सिंगला, को रिश्वत माँगने के आरोप में न केवल बर्खास्त कर दिया बल्कि जेल भी भेज दिया। ऐसा कर उन्होंने न केवल अपने मंत्रियों और विधायकों को कड़ा संदेश भेजा है बल्कि बाक़ी प्रदेशों और यहां तक कि केन्द्र के लिए भी मिसाल क़ायम कर दी है। पहले भी भ्रष्टाचार के मामलो में मंत्री बर्खास्त हो चुकें हैं, इतने नहीं जितने होने चाहिए, पर किसी भी प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री ने भ्रष्ट मंत्री को जेल भेजने की हिम्मत नहीं दिखाई। लालूँ प्रसाद यादव या ओम प्रकाश चौटाला के मामले में दूसरी सरकारों ने कदम उठाए हैं, पर किसी भी सत्तारूढ़ सरकार ने अपने पूर्व मुख्यमंत्री या मंत्री को जेल नहीं भेजा। मुख्यमंत्री मान ने अपने साथियों से कहा है कि वह अपने रिश्तेदारों को सरकारी कामकाज से दूर रखे। प्रायः देखा गया है कि कई मंत्रियों के बेटे या भाई या कई मामलों में उनकी पत्नियां सरकारी कामकाज में दख़लअंदाज़ी करती है और मंत्रीजी को चढ़ावा उनके द्वारा जाता है। कई अपवाद भी रहें हैं। याद आतें हैं पूर्व मुख्यमंत्री दरबारा सिंह जिनके पुत्रों का आसनसोल में बड़ा काम था। उन्हें पिता का आदेश था कि वह किसी भी हालत में चंडीगढ़ नहीं आएँगे। अगर शिमला जाना है तो भी बाइपास से निकल जाओ, चंडीगढ़ कदम मत रखो।
विजय सिंगला के मामले में प्रदेश कांग्रेस की प्रतिक्रिया भी दिलचस्प रही है। पूर्व कांग्रेसी मंत्री सुखजिन्दर सिंह रंधावा ने मुख्यमंत्री से कहा है कि वह पिछली सरकार के कार्यकाल में हुई अवैध माइनिंग और दूसरी अवैध गतिविधियों में संलिप्त मंत्रियों और विधायकों की सूची अमरेन्द्र सिंह से हासिल कर उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करें। उल्लेखनीय है कि पूर्व मुख्यमंत्री ने पद छोड़ते हुए दावा किया था कि उनके कार्यकाल में बहुत मंत्री और विधायक अवैध कारोबार में संलिप्त थे पर वह कार्यवाही नहीं कर सके क्योंकि वह पार्टी को ‘एमबैरेस’ अर्थात् शर्मिंदा नहीं करना चाहते थे ! उनका कहना है कि उन्होंने सोनिया गांधी को बताया था कि ‘नीचे से उपर तक’ सब शामिल है। प्रशासनिक और राजनीतिक कायरता की इससे बड़ी मिसाल नहीं मिलती !और उल्टा कहना है कि सीएम मान के पूछने पर मैं नाम बताने को तैयार हूँ। अर्थात् यह स्वीकार करते हुए कि अपनी संवैधानिक शपथ कि वह ‘भय या पक्षपात’ के बिना क़ानून का पालन करवाएँगे, का घोर और शर्मनाक उल्लंघन करते हुए अब वह यह मामला नए सीएम के सर मढ़ना चाहतें हैं। विपक्ष यह भी कह रहा है कि मान की कार्रवाई तो स्टंट है। अगर यह स्टंट है तो आपको ऐसे स्टंट करने से कौन रोक रहा है? भ्रष्टाचार बहुत बड़ी समस्या है इसलिए तारीफ़ करनी चाहिए कि किसी ने तो इस तरफ़ मज़बूत कदम उठाया है।
विधायकों को एक से अधिक पैंशन मिलने पर रोक लगाने की कोशिश की जा रही है। यह अफ़सोस की बात है कि सरकार के इस अध्यादेश को गवर्नर ने वापिस भेज दिया कि इसे विधानसभा के द्वारा लाया जाए। इसी के साथ यह सवाल भी उठता है कि विधायकों का आयकर हमारी जेब से क्यों जाए? हर व्यक्ति अपनी आय पर कर अपनी जेब से देता है पर पंजाब समेत 7 राज्य ऐसे हैं जहां विधायकों की आय पर कर सरकारी ख़ज़ाने से दिया जाता है। आशा है कि एक पैंशन बंद करने के साथ ही यह आयकर देने वाली प्रथा को भी ख़त्म कर दिया जाएगा। इन से व्यवस्था में बहुत अधिक फ़र्क़ नहीं पड़ेगा, पर जैसे असरार- उल- हक़ मिज़ाज ने लिखा है,
कुछ नहीं तो कम से कम ख़्वाब-ए-सहर देखा तो है
जिस तरफ़ देखा न था अब तक उधर देखा तो है!
पर भगवंत मान और उनकी सरकार की असफलता और है, और बड़ी है। यह क़ानून और व्यवस्था के मामले में है जहां लगातार हो रही घटनाओं से लोग विचलित हो रहें हैं। पकड़ कमजोर लगती है। नवीनतम परेशान करने वाली घटना लोकप्रिय गायक सिद्धू मूसेवाला की सरेआम दिन दहाड़े हत्या है। सरकार के लिए यह और भी फ़ज़ीहत की बात है क्योंकि एक दिन पहले मूसेवाला की सुरक्षा में कटौती की गई थी और इसका प्रचार किया गया। इससे पहले पटियाला में काली मंदिर पर हमला हो चुका है और मोहाली में पंजाब पुलिस के ख़ुफ़िया विभाग के कार्यालय पर राकेट हमला हो चुका है।
मूसेवाला की हत्या पंजाब को स्तब्ध छोड़ गई है। अभी तक कि रिपोर्ट के अनुसार यह गैंगवार का परिणाम लगता है। विपक्ष चाहे सरकार पर दोष मढ़ रहा है पर पंजाब में यह गैंगस्टर कलचर तो बहुत समय से पनप रही है।पिछली सरकारें गैंगस्टर से मिल रही चुनौती से निबटने में असफल रही हैं। अनुमान है कि पंजाब में 700 सदस्यों वाले 80 गैंग हैं। एक गैंग के पास तो कई सौ आदमी है। इनसे निपटने के लिए योगी आदित्य नाथ जैसे संकल्प की ज़रूरत है। अगर तिहाड़ जेल में बैठा कोई गैंगस्टर अपना नेटवर्क चला रहा है तो यह सरकारी संरक्षण के बिना नहीं हो सकता। पिछली सरकारों के समय ड्रग्स के फैलने और उसे राजनीतिक सरक्षण मिलने से मामला और जटिल हो गया है। दुख की बात है कि ड्रग्स और गन संस्कृति फैलाने में पंजाबी के सिंगरस ने बड़ी भूमिका निभाई है। यह लोग नशे, बंदूक़ और गैंगस्टर का महिमागान करते रहे हैं। मूसेवाला की हत्या के बाद पंजाब की म्यूज़िक इंडस्ट्री को अन्दर झांकना चाहिए कि वह किस प्रकार अश्लीलता, नशा और हिंसा की संस्कृति को गौरवान्वित करती रही है और इसका कैसा नुक़सान हो सकता है। एक बार जब मूसेवाला से इस बारे पूछा गया तो लापरवाह जवाब था कि ‘मैं गाना बंद कर दूँगा तो क्या गैंगस्टर रूक जाएँगे’? गीतों में हथियारों और हिंसा की प्रमोशन के दुःखद नतीजे निकलते हैं। ऐसे गाने नशे से भी अधिक घातक सिद्ध हो सकते हैं। ओटोमैटिक के साथ मूसेवाला का वीडियो है, वह खुद भी ओटोमैटिक का शिकार हुआ है।
इसी बीच अकाल तख़्त साहिब के जत्थेदार का अत्यंत निन्दनीय बयान आया है। उन्होंने सब सिखों से कहा है कि वह अपने पास हथियार रखें, हर सिख को शस्त्रधारी होना चाहिए। मालूम नहीं कि किस उत्तेजना में आकर जत्थेदार ने यह बयान दिया है पर सवाल तो उठता है कि किस के खिलाफ शस्त्र रखने हैं? मुग़ल तो रहे नहीं, फिर किस के खिलाफ यह इस्तेमाल होने है? क्या सिखों को कोई ख़तरा है? या वह किसी हताश पार्टी की राजनीति कर रहें हैं? हथियारों के कारण पंजाब 20 साल संताप भोग चुका है, जत्थेदार यह इतनी जल्दी भूल गए? क्या वह देखते नहीं कि बंदूक़ संस्कृति ने अमेरिका का कितना सत्यानाश किया है कि बच्चे भी स्कूलों में गोलियाँ चला रहे हैं ?अकाल तख़्त के जत्थेदार का अपना रुतबा है, उनकी आवाज़ की क़ीमत है। वह उस पंथ का प्रतिनिधित्व करते हैं जो ‘सरबत दा भला’ चाहता है। उन्हें ऐसी कोई बात नहीं कहनी चाहिए जिससे उकसाहट बढ़े। सिद्धू मूसेवाला की दर्दनाक मौत बता गई है कि बंदूक़-संस्कृति से कैसी कैसी तबाही हो सकती है। जहां तक भगवंत मान का सवाल है, उन्हें पूरा मौक़ा मिलना चाहिए। पंजाब की सारी समस्याओं को लिए पिछले 20 साल का दो परिवारों का शासन ज़िम्मेवार है। जो आज ‘इस्तीफ़ा दो’, ‘इस्तीफा दो’, कह रहें हैं उन्हें याद रखना चाहिए कि यहाँ तक उन्होंने ही पहुँचाया है।