महाराणा प्रताप किस से लड़े थे, सर?, Whom Did Maharana Pratap Fight With : History Lessons

मयंक ने ट्विटर पर एक अध्यापक और छात्र के बीच काल्पनिक वार्तालाप डाला है। अध्यापक बताता है कि महाराणा प्रताप हल्दीघाटी में बहुत वीरता से लड़े थे। पर जब छात्र पूछता है कि किस से लड़े थे तो अध्यापक इधर उधर के जवाब देता है कि वीरता से लड़े थे, या तलवार से लड़े थे, या जुलम से लड़े थे आदि। पर जब छात्र बार बार पूछता है कि ‘जिस से लड़े थे उसका नाम क्या है, सर’ तो अध्यापक जवाब देता है कि यह सिलेबस से बाहर का सवाल है। यह व्यंग्य एनसीईआरटी द्वारा 12वीं के इतिहास के सिलेबस में बदलाव कर मुग़ल दरबार, उनके शासकों और उनके इतिहास को पाठ्यक्रम से हटाने पर है। इसके अतिरिक्त महात्मा गांधी, आरएसएस, गुजरात के दंगों, आपातकाल, नक्सली आंदोलन, शीतयुद्ध आदि से सम्बन्धित कई परिवर्तन किए गए हैं या उन्हें पूरी तरह से हटा दिया गया है। संस्था के निदेशक का कहना है कि कोविड के कारण बच्चों पर बहुत बोझ बढ़ गया था इसलिए इसे ‘युक्तिसंगत’ बनाने के लिए यह परिवर्तन किए गए हैं लेकिन पूरे के पूरे चैप्टर हटाने के कारण विवाद खड़ा हो गया है।

इतिहास की किताबों में परिवर्तन होता रहता है। जैसे जैसे नए तथ्य आते हैं या नई खोज का पता चलता है परिवर्तन किए जाते हैं। कई बार राजनीतिक परिवर्तन और समाजिक आन्दोलन के कारण भी परिवर्तन होते हैं। हमारे बारे यह भी शिकायत रही है कि इतिहास की किताबें उत्तर भारत पर अधिक केन्द्रित  है, दक्षिण भारत तथा उत्तर पूर्व को बराबर जगह नहीं मिली। अगर परिवर्तन करना भी है तो यह प्रक्रिया पारदर्शी होनी चाहिए जैसे नई शिक्षा नीति लागू करते वक़्त सभी सम्बन्धित पक्षों से मशविरा किया गया था। पर ऐसा इस बार नहीं किया गया जिससे यह आलोचना को आमंत्रित किया गया है कि इतिहास को राजनीतिक हितों के अनुसार बदला जा रहा है और  अप्रिय तथ्यों से बचने की कोशिश हो रही है। पर आज के दिनों में जब सब कुछ विकिपीडिया पर उपलब्ध है आप इतिहास पर पर्दा नहीं डाल सकते। यह भी ज़रूरी है कि अतीत की ग़लतियों या ज़्यादतियों को उजागर किया जाए ताकि भविष्य में ऐसा न हो। मिसाल के तौर पर एनसीईआरटी की 12वीं कक्षा की समाजिक विज्ञान की किताब में 1984 के सिख दंगों का तो उल्लेख है पर 2002 के गुजरात दंगों का ज़िक्र नहीं। पर किसी ने सही कहा है कि ‘अगर आप चाहते हो कि वर्तमान अतीत से अलग हो तो अतीत का अध्ययन करो’।

हमारे अतीत में बहुत कुछ अप्रिय है। हम शताब्दियों गुलाम रहें हैं। इस अतीत का सामना करना है ताकि फिर कभी ऐसी परिस्थिति पैदा न हो।  हमें इस कड़वी सच्चाई का भी सामना करना है कि कोई भी हमलावर सफल न होता अगर उसे स्थानीय सूबेदारों का सहयोग न मिलता। मुग़लों की सेना में बहुत हिन्दू राजा थे जिन्होंने मुग़ल   बादशाहों को इलाक़े  जीत कर दिए। हल्दी घाटी में महाराणा प्रताप का सामना करने वाली अकबर की सेना का सेनापति राजा मानसिंह था। क्या यह इतिहास अब पढ़ाया नहीं जाएगा? सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश जस्टिस नागरत्ना का भी कहना  है कि “विदेशी आक्रांता हमारे इतिहास का अंग हैं। क्या आप इसे इतिहास से हटा सकते हो?” उन्होंने यह भी कहा है कि देश में हमारे पास निबटने के लिए और चुनौतियाँ नहीं है कि हम अतीत को लेकर परेशान रहते हैं?” वैसे भी क्या मुग़लों को हमारे इतिहास से निकाला जा भी सकता है? क्या ताजमहल या दिल्ली के लाल क़िले के बारे जानने का छात्रों का अधिकार नहीं है सिर्फ़ इसलिए कि इन्हें मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने बनवाया था? आख़िर बच्चों का अधिकार है कि उन्हें बताया जाए कि जिस लाल क़िले से प्रधानमंत्री 15 अगस्त को देश को सम्बोधित करते हैं वह बना किस शासक के काल में था? और बच्चों को यह भी बताया जाना चाहिए  कि मुग़ल बादशाहों ने कैसे कैसे अत्याचार किए। बाबर से लेकर औरंगजेब ने कितने मंदिर नष्ट किए? ग़ैर मुसलमानों पर जज़िया लगाया गया। जर्मनी में नाज़ी इतिहास पढ़ाया जाना अनिवार्य है। अमेरिका में बताया जाता है कि उन्होंने हिरोशिमा और नागासाकी पर बम गिराया था और लाखों लोग मारे गए थे। इतिहास से बचा नहीं जा सकता। पाकिस्तान ने इतिहास से बचने की कोशिश का थी, हश्र हमारे सामने है। और यह भी याद रखना चाहिए कि हमारा असली नुक़सान अंग्रेजों ने किया था जो हमें लूट कर एक पिछड़ा गरीब देश छोड़ गए।

दूसरा बड़ा विवाद किताब के इस हिस्से को लेकर है जिसका सम्बंध महात्मा गांधी से है। यह प्रसंग हटा दिया गया है कि ‘उनसे (गांधीजी)  विशेष तौर पर वह लोग नफरत करते थे जो चाहते थे कि हिन्दू बदला लें या जो चाहते थे कि भारत हिन्दुओं का देश बन जाए जैसे पाकिस्तान मुसलमानों का देश है। उनके  हिन्दू -मुस्लिम एकता के अटल  प्रयास से हिन्दू चरमपंथी उकसा गए और उन्होंने उनकी हत्या के कई प्रयास किए…गांधीजी की हत्या का देश की साम्प्रदायिक स्थिति पर भारी असर पड़ा …भारत सरकार ने उन संस्थाओं पर बहुत सख़्ती की जो साम्प्रदायिक वैमनस्य फैला रहीं थी। राष्ट्रीय सवंय सेवक संघ को कुछ देर के लिए बैन कर दिया गया है’। 30 जनवरी 1948 के बाद के इस  सारे प्रकरण के बारे राज मोहन गांधी सरदार पटेल की जीवनी में लिखते हैं, “:फ़रवरी के शुरू में आरएसएस पर बैन लगा दिया गया। पटेल और जवाहरलाल नेहरू में इस संगठन को लेकर मतभेद थे। नेहरू इसे फासीवादी तो पटेल इसे देशभक्त पर पथभ्रमित समझते थे…फ़रवरी के आख़िर में नेहरू ने पटेल को बताया कि उनकी राय में बापू की हत्या इकलौती घटना नहीं थी बल्कि आरएसएस द्वारा चलाए गए अभियान का हिस्सा था। पटेल इस राय से असहमत थे। 27 फ़रवरी को पटेल ने नेहरू को पत्र लिखा कि ‘सभी अभियुक्तों ने अपने अपने लम्बे बयान दिए हैं…इन बयानों से यह साफ़ होता है कि आरएसएस इसमें बिलकुल संलिप्त नहीं था। यह हिन्दू महासभा के धर्मांन्ध हिस्से का काम था’। आख़िर में कुछ महीनों के बाद यह बैन बिना शर्त हटा दिया गया।

यह तथ्य हैं जिन्हें छिपाने की ज़रूरत नही। यह भी हक़ीक़त है कि गांधी की हत्या इसलिए की गई क्योंकि वह हिन्दू -मुस्लिम सौहार्द की बात करते थे।  गोडसे ने गांधी की यह कह कर आलोचना की थी वह ‘मुसलमानों को खुश करने वाले (अपीज़र) थे’। जिस व्यक्ति ने राष्ट्रपिता की हत्या की हो उसका कहा क्यों मिटाया जा रहा है? एक विचारधारा है जो आज भी  गांधी को पसंद नहीं करती और जो उनके विचारों का प्रभाव कम करने की कोशिश कर रही है। कई लोग उनके हत्यारे गोडसे का गुणगान करते रहते है। पर जैसे राजमोहन गांधी ने लिखा है, “ गांधी को मारना आसान था, उनके विचारों कि भारत सब का है, की हत्या करना…असम्भव है”। एनसीईआरटी यह छिपाने की कोशिश क्यों कर रही है कि गांधी वध क्यों हुआ था? यह तो बताया गया  कि हत्या नत्थूराम गोडसे ने की थी पर भावी पीढ़ियों से यह छिपाने की कोशिश हो रही है कि उसने ऐसा क्यों किया? गांधी के जीवन और मौत दोनों में भावी पीढ़ियों के लिए सबक़ छिपा है कि अगर विवेकहीन नफ़रत हावी हो जाए तो कैसी तबाही ला सकती है। एक महात्मा की भी हत्या कर सकती है।

हमारे देश में जहां दुनिया भर के मतभेद है नफ़रत के बेक़ाबू होने से बहुत तबाही होगी। आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने बहुत अच्छी बात कही है कि ‘जिस समाज में हिंसा हावी हो जाती है उसका अंत नज़दीक है। हमें सदा अहिंसक और शान्ति प्रिय होना चाहिए’। यही बात तो गांधी कहते रहे जिसके लिए उनकी हत्या की गई। पर अफ़सोस है कि राजनीति समाज का हुलिया बिगाड़ रही है जो राम नवमी पर हुई हिंसा से पता चलता है। सुप्रीम कोर्ट भी चेतावनी दे रहा है।  हेट स्पीच पर बार बार सावधान करने के पीछे भी बड़ी अदालत का यही मक़सद है कि देश पर नफ़रत हावी न हो जाए।  अदालत का सवाल है कि ‘21वीं सदी में हम घर्म के नाम पर कहाँ आ गए?’ अदालत की यह टिप्पणी एक जनहित याचिका पर की गई कि विदेशी आक्रांताओं ने बहुत नाम बदल दिए इसलिए इन्हें दोबारा रखने के लिए ‘नामकरण आयोग’ का गठन किया जाए।  अदालत का याचिकाकर्ता से पूछना था कि ‘क्या आप देश को उबलता रखना चाहते हो?’ पर नाम बदलने का काम केवल इसी सरकार के समय ही नहीं हो रहा, कांग्रेस के समय भी दिल्ली के आईकॉनिक कनॉटप्लेस और कनॉटसर्कस का नाम बदल कर राजीव चौक और इंदिरा चौंक रख दिया गया था। और भी बहुत सी मिसालें हैं।

अफ़सोस है कि यहाँ सदियों का हिसाब सही करने का प्रयास किया जा रहा है। लेकिन अगर हम पुराने ज़ख़्म कुरेदने लगे तो बहुत नफ़रत फैल जाएगी और हो सकता है कि वह बेक़ाबू हो जाए। चीन इतनी तरक़्क़ी कर सका क्योंकि वहाँ समाजिक स्थिरता है। हम चीन वाला ढंग तो अपना नहीं सकते पर आंतरिक सौहार्द को क़ायम रखने का  प्रयास होना चाहिए। यहाँ रोज़ाना नया बखेड़ा शुरू हो जाताहै। हमारा धर्म महान है यह कट्टरवाद की इजाज़त नहीं देता। उदारता हिन्दू धर्म की कमजोरी नहीं, विशेषता है, ताक़त है। जस्टिस के एम जोसफ़ का कहना है कि वह ईसाई हैं पर उन्हें हिन्दू धर्म से लगाव है।  पर अब तो सुप्रीम कोर्ट को भी नहीं बख्शा जा रहा। जो इतिहास में घटित है उसे हम ओझल नहीं कर सकते। हमले हम पर हुए थे, हम पराधीन रहे। यह हम इतिहास से मिटा नहीं सकते। यह भी याद रखना चाहिए कि युवा छात्र एक ऐसी दुनिया में बड़े हो रहें हैं जहां पढ़ाई की किताबें ही सूचना का एकमात्र साधन नहीं है।ऑनलाइन बहुत कुछ उपलब्ध है, ग़लत सच। अगर सही जानकारी नहीं दी जाएगी तो ख़तरा यह है कि बच्चे ग़लत जानकारी हासिल कर जाएँगे। इसलिए ज़रूरी है कि ‘सर’ बच्चों को बताएँ कि महाराणा प्रताप थे तो अकबर भी था।

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About Chander Mohan 708 Articles
Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.