
पंजाब में ख़ालिस्तान का कोई मसला नहीं, न कोई माँग ही है। ब्रैंड-न्यू खालिस्तानी अमृतपाल सिंह के प्रकरण के बाद विदेशों में इसकी गूंज ज़रूर है। पंजाब मेँ कुछ वाहनों पर भिंडरावाले का चित्र लगा नज़र आएगा पर कुछ लोगों के उत्पात के सिवाय ज़मीन पर खालिस्तान की माँग को कोई समर्थन नहीं है। हाँ, पंजाब के कुछ मसलों को ‘सिख मसला’ बना कर कई बार पेश किया जाता है। पंजाब ने अतीत में उग्रवाद को लेकर बहुत संताप भुगता है कोई इसे दोहराना नहीं चाहेगा। अमृतपाल सिंह के अस्थायी उभार के बाद कुछ समय के लिए तनाव पैदा हुआ था पर जिस तरह वह जगह जगह भटक रहा है उसके बाद उसकी लोकप्रियता की, राहुल गांधी की भाषा में, ‘हवा निकल गई’ प्रतीत होती है। जो युवकों को ‘हिन्दोस्तान की हुकूमत से टक्कर’ लेने के लिए उकसा रहा था, अब लिबास बदल बदल कर छिप रहा है। सिखों में व्यापक राय है कि वह उन्हें ‘साज़िश’ की तहत उस तरफ़ धकेलने की कोशश कर रहा था जिधर वह जाना नहीं चाहते। पत्रकार हरजिन्दर सिंह लाल ने लिखा है कि ‘पंजाब और भारत में रहने वाले सिखों की अपनी समस्याएँ है,उनका खालिस्तान के प्रति दृष्टिकोण विदेश में रहने वाले सिखों से मेल नहीं खाता’।
पंजाब को समृद्धि और आधुनिक विकास चाहिए न कि धर्मांन्धता, ड्रग्स और अवसरवादी राजनीति जो पहले भारी नुक़सान कर चुकी है। सोशल मीडिया पर ऐसा झूठा प्रचार किया जा रहा है कि जैसे सारा सिख समुदाय खालिस्तान चाहता है। किसान आन्दोलन के समय भी ऐसा ही किया गया। जिस प्रकार अमृतपाल सिंह के नेतृत्व में अजनाला थाने पर कुछ सौ लोगों ने हमला किया और सरकार ने समर्पण कर दिया उससे बहुत ग़लत संदेश गया है। बराबर चिन्ताजनक है कि कुछ पश्चिमी देशों में यह खालिस्तानी तत्व भारत विरोधी उग्र प्रचार कर रहें हैं और कई जगह हमारे दूतावासों और लोगों पर हमले हुए हैं। बाहर गांधी जी की प्रतिमा तोड़ी जा चुकी है और आस्ट्रेलिया में मंदिरों पर हमले हो चुकें हैं। हमें ऐसी हरकतों को गम्भीरता से लेना चाहिए क्योंकि यह बढ़ रहीं हैं। हमें नहीं भूलना चाहिए कि एयर इंडिया के विमान कनिष्क को खालिस्तानी तत्वों द्वारा जून 1985 में एटलांटिक महासागर के उपर बम से उड़ा दिया गया था जिसमें सभी 329 लोग मारे गए थे। बम कैनेडियाई खालिस्तानियों ने रखा था। इस विमान के एक कैप्टन सतविनदर सिंह भिंडर थे।
अमेरिका में सैन फ़्रांसिस्को में हमारे दूतावास पर हमला पुलिस रोक नहीं सकी पर उस देश में सरकार का उनके प्रति रवैया नरम नहीं है। यही हम इंग्लैंड और कैनेडा के बारे नहीं कह सकते जहां सिख उग्रवादी ग्रुप राजनीति में ज़रूरत से अधिक प्रभाव रखतें हैं। यह सरकारें ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ की अवधारणा की आड़ में इन संगठनों को अपना उत्पात मचाने की इजाज़त देतीं हैं। इंग्लैण्ड में हमारे हाई कमीशन पर हमला हुआ और राष्ट्रीय ध्वज की बेअदबी की गई और पुलिस तमाशा देखती रही। चाहे पंजाब हो या कश्मीर का मसला, ब्रिटेन की सरकारों ने भारत विरोधी तत्वो को सदा संरक्षण दिया है। हमें बताया जाता है हम क्या करें हम तो उदारवादी लोकतंत्र है, पर यही मेहरबानी तालिबान समर्थक संगठनों पर नहीं दिखाई जाती। उनके समर्थकों से सख़्ती से निपटा जाता है। ब्रिटिश सरकार से यह तो पूछा जा सकता है कि कब से हाई कमीशन की पहली मंज़िल पर ज़बरदस्ती चढ़ना और हमारे दरवाज़े तक प्रदर्शन की इजाज़त देना और हमारे ध्वज की बेअदबी करना ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ का हिस्सा बन गए हैं?
1984 में कश्मीरी अलगाववादियों द्वारा भारतीय राजनयिक रविन्द्र म्हात्रे की बरमिंघम में हत्या की गई थी। क्या ब्रिटेन की सरकार ऐसी घटना दोहराने की इंतज़ार में हैं? आख़िर जो व्यक्ति हाई कमीशन की बॉलकनी पर चढ़ गया वह हमला भी कर सकता था क्योंकि खालिस्तानी भीड़ के पास तलवारें भी थी। क्या लंडन की सड़कों पर तलवारें के साथ प्रदर्शन करने की इजाज़त तालिबान समर्थकों को भी दी जाएगी? कैनेडा की ट्रूडो सरकार विशेष तौर पर बदमाशी करती है क्योंकि उन्हें उग्रवादी सिख समर्थन की ज़रूरत है। ऐसे लोग भी वहाँ केन्द्रीय मंत्री हैं जो खालिस्तान का समर्थन करते हैं। कैनेडा के कई गुरुद्वारों पर जिन्हें ‘गर्म ख्याली’ कहा जाता है, का क़ब्ज़ा है। भारत सरकार का धैर्य भी ख़त्म हो रहा है। लंडन में राष्ट्रीय ध्वज की बेअदबी का ज़िक्र करते हुए विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने बताया कि तत्काल वहाँ और भी बड़ा ध्वज लगा दिया गया। उसे बाद उनकी तीखी टिप्पणी थी कि ‘यह न केवल इन तथाकथित खालिस्तानियों के लिए बल्कि ब्रिटिश सरकार के लिए भी संदेश है’।
संदेश यह है कि हम और बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं। नई दिल्ली में ब्रिटिश हाईकमीशन और हाईकमिशनर के निवास से अतिरिक्त सुरक्षा हटा कर भारत सरकार ने संदेश भेज ही दिया है कि अगर आप हमारी संवेदनाओं के प्रति लापरवाह है तो हमें भी परवाह करने की ज़रूरत नही है। हम अपनी नाराज़गी आपसी यात्राओं को रोक कर और एफटीए पर बातचीत को स्थगित कर भी बता सकतें हैं। हम अंग्रेजों को जानते है। वह भारत की प्रगति को पचा नहीं सके। जब से उन्होंने योरूप से नाता तोड़ा है उनकी नज़रें भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था से फ़ायदा उठाने की है। पर पुरानी औपनिवेशिक मानसिकता को भी लगातार कमजोर हो रहा ब्रिटेन छोड़ने को तैयार नहीं। वह खालिस्तानी तत्वों को राजनीतिक संरक्षण और आश्रय दे रहे हैं। इससे न केवल ब्रिटेन में बल्कि कैनेडा और दूसरी जगह बैठे खालिस्तानियों को बल मिलता है। जो रिश्ता वह देश हमारे साथ चाहता है उसके लिए उच्च स्तर का आपसी विश्वास चाहिए, जो नहीं है।
पत्रकार और लेखक टैरी मिलेवस्की जिन्होंने ‘गलोबल खालिस्तानी प्रोजेक्ट’ पर किताब भी लिखी है का कहना है कि ‘पश्चिमी सरकारों की शिथिल प्रतिक्रिया ने खालिस्तान के लिए दरवाजे खोल दिए हैं’।पाकिस्तान की संलिप्तता भी महत्वपूर्ण योगदान डाल रही है। बहुत समय से पाकिस्तान इन लोगों को सुरक्षित आश्रय के अतिरिक्त पैसे और हथियारों की मदद करता रहा है। अब भी लगातार पंजाब में ड्रोन के द्वारा हथियार और ड्रग्स गिराए जा रहे हैं। यह भी दिलचस्प है कि खालिस्तान की उनकी अवधारणा में पाकिस्तान का कोई ज़िक्र नहीं। पाकिस्तान स्थित ननकाना साहिब और करतारपुर साहिब को कथित खालिस्तान में शामिल करने की उनकी कोई माँग नहीं है। लाहौर महाराजा रणजीत सिंह की राजधानी थी। यहीं गुरू अर्जुन देव को शहीद किया गया। पर सिख इतिहास और संस्कृति की यह जो भूमि है उस पर कोई दावा नहीं किया जाता। न ही पाकिस्तान में रह रहे सिखों पर जो अत्याचार हो रहा है की ही भर्त्सना की जाती है। अब फिर समाचार है कि पाकिस्तान से सिखों का पलायन शुरू हो रहा है पर कोई कथित खालिस्तानी नेता विदेशों में पाकिस्तान के दूतावास के बाहर प्रदर्शन नहीं करेगा।
इस बीच 18 मार्च से लापता अमृतपाल सिंह की फ़रारी ही अच्छी ख़ासी बालीवुड फ़िल्म बनती जा रही है। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने भी पूछा है कि 80000 पुलिस फ़ोर्स के बीच वह भाग कैसे गया? जगह जगह से उसकी तस्वीरें प्रकाशित हो रही है कि जैसे उसके एक कदम पीछे कैमरा चल रहा हो। उसके कुछ वीडियो भी प्रसारित हुए है। सारा मामला ही रहस्यमयी है। अचानक दुबई से आकर वह इतना बड़ा कैसे बन गया ? वह प्रशासन के लिए इतनी भारी समस्या खड़ी करने में कैसे सफल हो गया जहां पहले ऐसी कोई समस्या नहीं थी? कौन लोग या संगठन उसके पीछे हैं? पैसा -हथियार कहाँ से आए? पनाह कौन दे रहे हैं? कुछ लोगों को हथियारों की ट्रेनिंग दी गई पर किसी को खबर नहीं हुई? उसने गुरू ग्रंथ साहिब को साथ लेकर अजनाला थाने पर हमला किया पर किसी को खबर नहीं थी कि ऐसा होने वाला है? ख़ुफ़िया विभाग क्या करता रहा? आख़िर में एक दिन वह पकड़ा जाएगा पर प्रशासन का तो जलूस निकल रहा है।
पहले भी पंजाब के अमन और चैन को चुनौती मिल चुकी है इसलिए वर्तमान अमृतपाल सिंह प्रकरण से सबक़ सीखना चाहिए। सभी राजनीतिक दलों, आप, कांग्रेस, अकाली दल, भाजपा और कम्यूनिस्ट को अपने अपने मतभेद हटा कर सिख उग्रवाद उबारने के प्रयास के खिलाफ एकजुट होना चाहिए। उन्हें समझना चाहिए कि अगर ऐसे लोग हावी हो गए तो वह खुद अप्रासंगिक हो जाएँगे। सिख नेतृत्व पर विशेष ज़िम्मेवारी है। अकाल तख़्त के कार्यकारी जत्थेदार हरपरीत सिंह ने भारतीय दूतावासों पर खालिस्तानियों के हमले की निन्दा की है। यह अच्छी बात है। पर कई बार उनके वचन विवाद भी खड़ा कर चुकें हैं। अकाली दल ने पहले अमृतपाल सिंह का विरोध कर फिर उसकी और उसके समर्थकों की क़ानूनी लड़ाई लड़ने की घोषणा की है। इस यू-टर्न से पंजाब का क्या भला होगा? कुछ सिख नेता बार-बार यह प्रचार करते रहते हैं कि जैसे सिखों के खिलाफ साज़िश हो रही है। वह समझते नहीं कि यह उत्पीड़न की झूठी कहानी को क़ायम रख वह उनके लिए जगह बना रहे हैं जो न देश का भला चाहते है, न उनका। सिख देश का सबसे समृद्ध और प्रगतिशील समुदाय है। जनसंख्या मात्र दो प्रतिशत है फिर भी एक सिख ज्ञानी ज़ैल सिंह राष्ट्रपति और एक सिख डा.मनमोहन सिंह 10 साल प्रधानमंत्री रह चुकें है। फिर भी लगातार प्रचार किया जा रहा है कि ‘धक्का’ हो रहा है।
देश से बाहर 3 करोड़ भारत वंशी रहतें हैं। कई यहाँ से अपने पूर्वाग्रह, अपनी शिकायतें, अपने मतभेद और झगड़े वहाँ ले गए है। वहाँ तो हमारे गैंगस्टर भी हैं ! बाहर खालिस्तानी तत्वों को सम्भालना अब बड़ा चैलेंज बनता जा रहा है। पश्चिम के देशों में खालिस्तानी पागलपन के बीच वहाँ बहुत बड़ी तादाद में देशभक्त सिख है जो घटनाक्रम से दुखी है। कई खालिस्तान के विरोध में वीडियो जारी कर रहें हैं। एक नौजवान सिख ने बहुत भावुक वीडियो जारी किया है। इसका सम्बन्ध उस दिन की घटना से हैं जिस दिन लंडन में हमारे हाई कमीशन पर हमला किया गया था। वहाँ एक उग्रवादी ने पास से गुजर रहे एक गुजराती बुजुर्ग से बदतमीज़ी करते हुए धमकी दी कि ‘अब हम गुजरात में तुम से लड़ेंगे’।अपने लम्बे वीडियो में ऐसी हरकतों का तीखा विरोध करते हुए इस नौजवान ने अख़िर में हाथ जोड़ कर उस ‘गुजरती अंकल’ से माफ़ी माँगी कि मैं शर्मिंदा हूँ। संतोष हैं कि हमारे संस्कार अभी ज़िन्दा हैं।