सरकारी उपेक्षा और लोगों की बेरुख़ी का शिकार टूरिस्ट सेक्टर, Tourism – Victim of Government apathy and people’s disinterest

1 जनवरी को धर्मशाला के गग्गल हवाई अड्डे से दिल्ली का हवाई जहाज़ का किराया 18000 रूपए था जबकि दिल्ली- बैंकॉक, दिल्ली-कोलम्बो, दिल्ली – कुआलालम्पुर का इकानिमी क्लास का किराया 10000-12000 रूपए तक है। हवाई कम्पनियाँ जानती है कि नव वर्ष के अगले ही दिन लोगों को काम पर लौटना है इसलिए धर्मशाला- दिल्ली का किराया इतना अधिक  था। कई बार हम देख चुकें हैं कि जब भी माँग अधिक होती है तो हवाई कम्पनियाँ किराया बेहतहाशा बढ़ा देती है। कोविड के बाद कई बार तो दिल्ली- मुम्बई का हवाई किराया 20000 रूपए तक को पार कर चुका था। यात्रियों की मजबूरी के इस शोषण पर शिकायतों के बावजूद सरकार ख़ामोश रहती है। एक तरफ़ प्रधानमंत्री कह चुकें हैं कि वह चाहतें हैं कि चप्पल पहने व्यक्ति भी हवाई जहाज़ का सफ़र कर सके तो दूसरी ओर किराए आसमान को छू रहें हैं। सब सम्बन्धित पक्षों की लापरवाही के कारण यह सोने के अंडे देने वाली मुर्ग़ी,टूरिज़्म, बीमार पड़ रही।

हमारा टूरिज़्म सेक्टर आज दोराहे पर खड़ा है, एक तरफ़ बहुत अवसर है तो विदेश से बड़ी चुनौती है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक हमारे देश में देखने और घूमने के लिए बहुत कुछ है। प्रसिद्ध तीर्थस्थल हैं। हिमालय है, नदियाँ है, झरने है, जंगल हैं। खान-पीन, भाषा, संस्कृति की विभिन्नताएँ है। और भी बहुत कुछ है, पर बहुत कमज़ोरियाँ है, बाधाएँ है। हर टूरिस्ट स्थल अत्याधिक भीड़भाड़ वाला है। हाल ही में हम देख कर हटें हैं कि किस तरह बर्फ़ देखने निकले टूरिस्ट हिमाचल में फँस गए थे। कईयों को ठिठुरती सर्दी में रात वाहनों में गुज़ारनी पडी।अटल टनल के आर पार कई सौ गाड़ियाँ फँस गईं। यह अव्वल दर्जे की सरकारा मिसमैनेजमैंट है। इस मौसम में आपने इतने लोगों को ऊपर जाने ही क्यों दिया यह जानते हुए कि सड़कों पर बर्फ़ जम कर शीशा बन जाती है और मैदानी ड्राइवर ऐसी स्थिति से निबटने के जानकार नहीं है?

हमारी भी भेड़ चाल है। जिस तरफ़ शुरू हो गए उधर ही जाना है जब तक कि स्थल का कचूमर नहीं निकल जाता। आजकल अटल टनल पर मेहरबानी है। शिमला, नैनीताल, मसूरी,दार्जिलिंग अब व्यवस्थित हिल स्टेशन नहीं रहे। अपनी जलवायु के साथ साथ वह अपना आकर्षण भी खो रहें हैं। टूरिज़्म सरकार की प्राथमिकता नहीं लगती। वह भूलतें है कि यह सेक्टर केवल राजस्व ही नहीं, जो युवा बहुत स्किल्ड नहीं हैं,बहुत पढ़ें लिखें नहीं हैं,उन्हें रोज़गार भी देता है। सरकार की उपेक्षा और लोगों की लापरवाही और सिविक सैंस के अभाव के कारण हम विदेशियों के लिए कम आकर्षित होते जा रहें हैं। विदेशी स्थानीय लोगों द्वारा शोषण की शिकायत करतें हैं। हमारा हाल यह है कि हम श्रद्धा के साथ जिस धार्मिक स्थल पर जातें हैं वहाँ कचरा छोड़ आतें हैं। वहाँ कूड़ा और गंदगी मिलेगी। गंगा दुनिया के 10 सबसे प्रदूषित नदियों में क्यों हैं? गंगा को साफ़ करने की हर सरकारी कोशिशें हार गईं हैं क्योंकि जनता सहयोग नहीं करती। राजधानी दिल्ली समेत हमारे शहर गंदे और प्रदूषित हैं।  जापान में बस स्टाप पर टॉयलेट साफ़ मिलेंगे क्योंकि इस्तेमाल करने वाले दूसरों के लिए इन्हें साफ़ छोड़ कर जातें हैं। भारत में ऐसी कल्पना ही नहीं की जा सकती। दूसरों के प्रति शिष्टाचार की बहुत कमी है।

 रोहतांग दर्रे पर टूरिस्ट कचरे का ढेर छोड़ जातें हैं। दक्षिण के प्रसिद्ध मंदिरों के सामने भगदड़ में मौतें हो चुकीं है क्योंकि दर्शन के लिए भी हम अनुशासन में नही रह सकते और एक दूसरे से आगे निकलने की कोशिश करतें हैं। शिक्षा संस्थानों में अधिकारों पर अधिक ज़ोर दिया जाता है, कर्तव्यों पर कम। अब चीनी अधिकारी कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर गए भारतीय तीर्थयात्रियों को बाल्टी देते हैं कि सरोवर में नहाने की जगह आप पानी निकाल कर तट पर नहा लो और झील को गंदा मत करो। धर्म स्थल को किस तरह व्यवस्थित और साफ़ सुथरा रखना है वह सिख भाईचारे से सीखना चाहिए। यहाँ आस्था के साथ साथ सेवा भावना भी है। अमृतसर का गोल्डन टेम्पल इसकी उच्च मिसाल है। पर उस परिसर से थोड़ी दूर सामान्य अव्यवस्था है। एक चार मंज़िला पार्किंग सथल है पर इस में लिफ़्ट नहीं है। नीचे आने के लिए ई-रिक्शा लेनी पड़ती है जो 100 रूपए लेती है। आज के युग में लिफ़्ट क्यों नहीं है? दक्षिण में कन्याकुमारी बहुत लोकप्रिय स्थल है। अब तो मालूम नहीं क्या हाल है, पर कुछ साल पहले जब मैं वहाँ गया था तो पूरी तरह अव्यवस्थित पाया। विवेकानंद रॉक मेमोरियल जाने के लिए फैरी (बड़ी नाव), मिलती है जिसका टिकट लेना पड़ता है। आज भी यह टिकट सस्ता 50 रूपए है पर जहां टिकट मिलते हैं वहाँ कोई छत नहीं थी जो चिलचिलाती धूप में टार्चर से कम नहीं। न ही पानी का संतोषजनक प्रबंध था। और जो फैरी थी उसे देख कर तो डर लगता था कि यह कहीं समुद्र में ही न रह जाए। सरकार वहाँ आधुनिक टूरिस्ट टर्मिनल क्यों नहीं बना सकती? माडर्न फैरी क्यों नहीं चला सकती?

टूरिज़्म के प्रति बेरुख़ी का नतीजा हम अब गोवा में देख रहें हैं जहां से सैलानी पूर्वी एशिया के देशों की तरफ़ मुँह कर रहें हैं। वैसे तो हमारा अपना देश बहुत बड़ा है,बहुत जनसंख्या है। विदेशी कम भी आऐं तो भी अपने बहुत लोग है। पर अब तो हमारे लोग भी कुछ और नज़दीकी देशों को ट्रैवल कर रहें हैं क्योंकि हवाई किराया गोवा जितना ही है और होटल सस्ते हैं। सोशल मीडिया में आजकल गोवा के खिलाफ बहुत कुछ छप रहा है। यहाँ तक लिखा गया कि टूरिस्ट डैसटीनेश्न गोवा का ‘कोलैप्स’ अर्थात् पतन हो गया। यह भी लिखा गया कि ‘टूरिस्ट ने गोवा को त्याग दिया’। यह सही नहीं है। मैं खुद अगस्त में वहाँ गया था। मानसून में कम लोग वहां जातें हैं पर हवाई अड्डा खचाखच भरा हुआ था जबकि गोवा में अब दो हवाईअड्डे हैं। पर यह  हक़ीक़त है कि विदेशी कम आ रहें हैं। पहले इज़राइल और रूस से बहुत लोग आते थे यहाँ तक कि सड़कों के नाम हीब्रू और रशियन में भी लिखे मिलते हैं। रेस्टोरेंट में मेन्यू कार्ड भी रशियन में मिलते हैं। लेकिन अब यह लोग कम आ रहें हैं क्योंकि दोनों देश युद्ध में फँसे हुए है।

(चित्र उपर : टूरिस्ट की इंतज़ार में गोवा की बीच। नीचे: टूरिस्ट से खचाखच भरी हुई कुआला लम्पुर की फ़ूड स्ट्रीट, जलान अलोर। छाया, लेखक)

गोवा का अपना आकर्षण है। हरा भरा है, खूबसूरत है। समुद्र है, बीच है, रेत है। कई बातों की खुली छूट है। भाजपा प्रदेश होने के बावजूद रेस्टोरेंट और होटलों में बीफ़ परोसा जाता है। कैसीनो है। गोवा में अभी भी पुरानी पुर्तगाली शहर का चार्म है। पर यह भी हक़ीक़त है कि गोवा के टूरिज़म सेक्टर ने खुद को इतना महँगा कर लिया कि वह बराबर के टूरिस्ट स्थल की तुलना में पिछड़ रहा है। दिल्ली से गोवा बिसनेस क्लास का किराया दिल्ली-बैंकॉक से अधिक है। फिर टूरिस्ट बैंकॉक क्यों नहीं जाएगा? गोवा के शैक( समुद्र तट पर झोंपड़ी नुमा लोकप्रिय रेस्टोरेंट) सोसायटी के प्रमुख क्रुज़ कारडोज़ो ने माना है कि इस बार विदेशी टूरिस्ट नहीं आए। थाइलैंड,मलेशिया, वियतनाम, श्रीलंका सब भारतीयों के लिए वीज़ा- फ़्री हैं। इन सरकारों ने हमारे लोगों को आकर्षित करने के लिए वहाँ जाना आसान कर दिया है। गोवा के टूरिज़्म मंत्री रोहन खौंटे का कहना है कि ‘हम गोवा को थाईलैण्ड नहीं बनाना चाहते’। यह जायज़ है। टूरिस्ट को आकर्षित करने के लिए थाईलैण्ड ने बहुत नैतिक समझौते किए हैं पर सब नहीं कर रहे। मलेशिया जिसके खूबसूरत शहर कुआलालम्पुर से मैं यह भेज रहा हूँ, ने कोई समझौता नहीं किया। साफ़ सुथरा पर्यटन है। क्योंकि चारों तरफ़ समुद्र है इसलिए पर्यटन के बहुत स्थल है जो बहुत महँगे भी नहीं है। लोग बहुत फ्रैंडली हैं।

 हमारे अपने नेता लोग विदेश में छुट्टियाँ मनाते हैं। राहुल गांधी हाल ही में वियतनाम में कुछ दिन गुज़ार कर हटें हैं। देश के अंदर खूबसूरत पर्यटन स्थल की कमी नहीं, केवल उनका प्रचार कम है और सुविधा विश्व स्तरीय नहीं है। गोवा के मंत्री ने माना है कि होटल किराए, टैक्सी, कनेक्टिविटी को लेकर मसले हैं। पर आप इन्हें हल कब करोगे? अमृतसर जहां से मैं उड़ान पकड़ता हूँ, से कुआलालम्पुर के लिए रोज़ाना तीन फ़्लाइट है जबकि गोवा के लिए एक थी जो बंद हो गई है। दुबई- शारजाह के लिए भी तीन फ़्लाइट हैं। अब तो पर्यटक उज़बेकिस्तान, कज़ाखस्तान, जार्जिया, अज़रबैजान भी जाना शुरू हो गए हैं। यह जगह भी सस्ती हैं और यहाँ नस्ली व्यवहार की चिन्ता नहीं जैसे पश्चिम में रहती है।

 2024 के पहले आठ महीनों में हमारे देश में 60 लाख विदेशी आए थे जिनमें सबसे अधिक संख्या बांग्लादेशियों की थी। छोटे से थाईलैण्ड में इस अवधि में 3 करोड़ विदेशी आए थे, इंडोनेशिया में 1करोड। स्पेन में 8.5 करोड़। अकेले दुबई शहर में पिछले साल लगभग पौने दो करोड़ विदेशी आए थे। दुबई महँगा शहर है पर कार्य कुशल है। हर साल दो साल में कोई वह नया आकर्षण खड़ा कर देते हैं जबकि हम अभी भी मुग़ल जमाने की इमारतों या प्राचीन मंदिरों के सहारे टूरिस्ट को आकर्षित करने की कोशिश करते हैं। आज़ाद भारत ने नया ऐसा कुछ नहीं बनाया जो विदेशी को आकर्षित कर सके।

हमारा रवैया है कि हमें परवाह नहीं। जो पर्यटन स्थल है उनकी देखरेख की चिन्ता नहीं। कई विदेशियों, विशेष तौर पर महिलाओं, का यहां अनुभव अच्छा नहीं रहा। वह असुरक्षित महसूस करते हैं जबकि पूर्व एशिया के देशों में ऐसी कोई समस्या नहीं है। वह देश पर्यटन में बहुत निवेश कर रहें है, खूब मार्केटिंग की जा रही है। हमें इस तरफ़ और ध्यान देना है और दीर्घकालिक, लाभदायक और ज़िम्मेवार योजना बनानी है। हम बहुत विनम्र और अनुशासित लोग नहीं हैं। अब तो विदेशों से भी शिकायत आ रही है कि हमारे टूरिस्ट अनुशासन में कम रहतें हैं, लाईन तोड़ने में सबसे पहले हैं। हमें समाज को विदेशियों के स्वागत के लिए शिक्षित करना है, नहीं तो ‘अतिथि देवो भव:’ भी खोखला जुमला बन कर रह जाएगा।

   

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.