आस्था और अनुशासन का संगम चाहिए, Sangam Of Devotion And Discipline Needed

144 सालों के बाद बने त्रिवेणी योग के कारण प्रयागराज कुम्भ में इस बार भीड़ भी बहुत थी। देश में जो धार्मिक लहर आजकल चल रही है उसके कारण भी बहुत लोग वहाँ पहुँच रहें हैं। अत्यंत दुःख की बात है कि मौनी अमावस्या के दिन मची भगदड़ में (सरकारी तौर पर) 30 लोग मारे गए। पर बहुत लोग लापता हैं। बहुत लोग अपने प्रियजनों को ढूँढने के लिए बदहवास दर दर भटक रहें हैं। इस हृदयविदारक घटना के बारे बताया जाता है कि ब्रह्म मुहूर्त पर अमृत स्नान के लिए हज़ारों श्रद्धालु संगम पर इंतज़ार कर रहे थे। इससे भी अधिक संख्या वहाँ जाने की इंतज़ार में थी। यह संख्या लाखों में बताई जाती है। इस दबाव में बैरिकेड टूट गए और प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार भीड़ नीचे सोए हुए लोगों को रौंदती निकल गई। 10-15 मिनट में संगम तट पर भयावह दृश्य देखने को मिला। बहुत लोग कराह रहे थे, जिनमें अधिकतर महिलाऐं थी। बहुत बेहोश थे। एक व्यक्ति झोकू राम जो परिवार के 10 लोग के साथ वहाँ था ने बताया कि, “हम न आगे जा सके थे न पीछे। हम फँस गए थे। अचानक चारों तरफ़ लोग गिर रहें थे”।

 यह सही है कि प्रशासन ने जल्द नियंत्रण पा लिया और अब फिर सब कुछ सुचारू ढंग से चल रहा है, पर यह हादसा परेशान करने वाला है क्योंकि देश में धार्मिक आयोजनों पर ऐसे दृश्य बार बार देखने को मिलते हैं।

विपक्ष ने इसके लिए सरकारी बदइंतज़ामी और वीआईपी मूवमैंट को ज़िम्मेवार ठहराया है। राहुल गांधी का कहना है कि इस हादसे के लिए ‘वीआईपी कल्चर’ ज़िम्मेवार है तो अखिलेश यादव मिसमैनेजमैंट को ज़िम्मेवार ठहरा रहें है। जहां तक वीआईपी का सम्बंध है,वह हमारे दैनिक जीवन का सरदर्द हैं। वह खुद को कानून से उपर समझतें है, और शायद हैं भी। क्योंकि कुम्भ का बहुत प्रचार किया गया इसलिए बहुत से वीआईपी, मंत्री, सेलिब्रिटी, फ़िल्म स्टार,वहां पहुँच गए थे। 100 के क़रीब तो विदेशी राजनयिक स्नान के लिए पहुँचे थे। इन सब के लिए विशेष प्रबंध करना पड़ता है जो विघ्न डालता है। यह भी उल्लेखनीय है कि किसी वीआईपी को कोई तकलीफ़ नहीं होती,न किसी को खरोंच तक आती है। रौंदें वह आम लोग जाते हैं जो फ़ोटो- औप या सेल्फ़ी के लिए नहीं, वास्तविक श्रद्धा के साथ वहाँ पहुँचते हैं। उन्हें 20-20 किलोमीटर चलाया जाता है।

सरकार का यह दावा है कि आरटिफिशियल इंटेलिजेंस से सब कुछ सम्भाला गया। पर हमारे लोगों के उतावलेपन ने ऐआई को भी फेल कर दिया। निश्चित तौर पर बदइंतज़ामी तो हुई है। जिसे संगम नोज़ कहा जाता है, वहां व्यवस्था सही नहीं थी। अखाड़ों का अमृत स्नान देखने के लिए लाखों एकत्रित थे पर संगम पर आने और जाने का रास्ता एक ही था। इस कुव्यवस्था ने हादसे को आमंत्रित किया। तंग रास्ते के कारण धक्का मुक्की शुरू हो गई, बैरिकेड टूट गए और जो फँस गए उन्हें निकलने का मौक़ा नहीं मिला। इसके बाद जो हुआ वह और भी बुरा था। सरकार के हाथ पैर फूल गए। यह मानने में कि लोग मारे गए हैं सरकार को 17 घंटे लग गए जिस दौरान पीड़ित परिवार इधर उधर भटकते रहे। अभी तक भी हताहतों का सही आँकड़ा नहीं बताया गया जिससे मलिकार्जुन खरगें जैसों को कहने का मौक़ा मिल गया कि ‘हज़ारों मारे गए’। यह दावा आधारहीन है पर अगर सरकार स्पष्टता अपनाती तो ऐसे दावे न किए जाते। जो दर्जनों लापता हैं वह कहाँ गए? यह प्रभाव अच्छा नहीं कि सरकार कुछ छिपा रही है।

यह भी बताया जाता है कि उसी रात वहाँ से ढाई किलोमीटर दूर झंसी में भी हादसा हुआ है जिसके बारे सरकार मौन है जबकि बेसुध लोगों के वीडियों मौजूद हैं। वहाँ बिखरे चप्पल, जूते, बैग,कपड़े,गठरियाँ, कम्बल  जिन्हें जेसीबी के द्वारा उठाया गया, वह किसके थे? यह अफ़सोस की बात है कि सरकार पारदर्शी ढंग से हादसे से नही निपटी। इससे अनावश्यक तनाव पैदा होता है और अफ़वाहें फैलती है। छिपाने की ज़रूरत भी नहीं थी क्योंकि जिस तरह का प्रबंध उत्तर प्रदेश की सरकार ने किया है, इन हादसों के बावजूद उन्हें शर्मिंदा होने या रक्षात्मक होने की कोई ज़रूरत नहीं। छोटी सी जगह में जब लाखों लोग पूजा करना चाहते हों या स्नान करना चाहतें हों तो भगदड़ की सम्भावना तो रहती ही है। सरकार की यह गलती रही कि कुम्भ का अत्यधिक प्रचार किया गया। इससे बहुत लोग और तैयार हो गए और भीड़ बढ़ती गई। हादसे के बाद रास्ते ब्लॉक करने से प्रयागराज के बाहर तीन लाख वाहन इकट्ठे हो गए। जब भी ऐसे आयोजन का प्रबंध किया जाए यह याद रखना चाहिए कि हमारे लोग बिलकुल अनुशासनहीन है। हम तो सिनेमा टिकट के लिए लाइन में लगने के लिए तैयार नहीं होते। इसी अनुशासनहीनता के कारण यहाँ बार बार धार्मिक समागमों के दौरान भगदड़ से मौतें होती रहती हैं।

कुम्भ कितना पुराना है, यह मुझे जानकारी नहीं है। पहला वर्णन चीनी यात्री ह्यूंग सांग ने किया है। ह्यूंग सांग राजा हर्षवर्धन के समय 630 ईस्वी में भारत आया था। उसने बताया कि राजा हर्षवर्धन ने गंगा तट पर कुम्भ का आयोजन करवाया था। कुम्भ मेला दुनिया का सबसे पुराना धार्मिक आयोजन है। यह भी दुख की बात है कि कुम्भ का भी त्रासदी का लम्बा इतिहास है। मार्च 1820 के हरिद्वार मेले में 430 लोग मारे गए। 1954 के प्रयागराज कुम्भ मेले में भी मौनी अमावस्या के ही दिन 800 लोग मारे गए थे। 1986 के हरिद्वार कुम्भ मेले में 200 लोगों की मौत हो गई थी। 2003 के नासिक कुम्भ में 39 लोग मारे गए। 2010 के हरिद्वार कुम्भ में भगदड़ में 7 लोग मारे गए तो 2013 में प्रयागराज रेलवे स्टेशन पर फुटब्रिज ढहने से 42 जानें चली गईं। न केवल कुम्भ के दौरान बल्कि अनेकों धार्मिक समागमों में भगदड़ हो चुकी है और जानी नुक़सान हो चुका।

सूची बहुत लम्बी और कष्टदायक है। हाथरस, मध्यप्रदेश में रत्नगढ़ मंदिर,राजस्थान में चामुंडानगर मंदिर, हिमाचल में नयना देवी मंदिर, महाराष्ट्र में मंधेर देवी मंदिर, केरल में पुतिंगल मंदिर कोलम, साबरीमाला मंदिर केरल, चामुंडा मंदिर जोधपुर सब जगह दर्शन की अभिलाषा में आए लोग मारे गए। अर्थात् जो अब प्रयागराज में घटित हुआ, वह पहले भी होता आया है। कारण स्पष्ट है। एक,वीआईपी कलचर हैं जिनके आने जाने के लिए वह बड़ी जगह छोड़ दी जाती है जो आम श्रद्धालु के लिए चाहिए थी। उनके वाहनों को निकाला जाता है जिसके लिए सामान्य चल रहे व्यक्ति को एक तरफ़ धकेल दिया जाता है। प्रयागराज में भी शिकायत सुनने को मिल रही है कि लोगों के आने और जाने का रास्ता एक ही था। यह तो तबाही को आमंत्रित करने के बराबर है। दूसरा, हमारी कार्य संस्कृति बहुत कमजोर है। यहाँ पुल, इमारतें आदि सामान्य तौर पर गिरते रहतें हैं। सड़कें बनती है जो पहली बरसात में टूट जाती है। हर दूसरे दिन कहीं न कहीं लोगों के दब जाने का समाचार मिलता है। भारत में हादसे असामान्य नहीं है।

 बड़ी कमजोरी है कि हमारे लोगों में संयम और अनुशासन की बहुत कमी है। झाँसी से प्रयागराज जाने वाली स्पेशल ट्रेन के दरवाज़े जब हरपालपुर स्टेशन पर नहीं खुले तो इंतज़ार कर रहे कुछ लोंगों ने पथराव कर दिया और ट्रेन से तोड़फोड़ की। वंदे भारत ट्रेन पर भी कई बार पथराव हो चुका है। हमारे लोग बहुत जल्दी नियंत्रण खो बैठें हैं। आस्था के साथ कुछ संयम भी चाहिए, अनुशासन भी चाहिए। साबरीमाला के मंदिर में दो बार भगदड़ हो चुकी है क्योंकि लोग बारी की इंतज़ार करने को तैयार नहीं। इस घबराहट में कि वह रह न जाऐं, वह एक दूसरे को खदेड़ना शुरू कर देते हैं। परिणाम यह है कि सारे इंतज़ाम नाकाफ़ी साबित होतें है। प्रयागराज में भक्तों के उत्साह और श्रद्धा ने बैरिकेड तोड़ दिए। सब संगम में स्नान करना चाहेंगे पर करोड़ों के लिए यह सम्भव नहीं, यह समझने की ज़रूरत है। जब भीड़ उतावली हो जाती है तो सारे इंतज़ाम धरे के धरे रह जाते हैं। हम दूसरों के प्रति संवेदनशील क्यों नहीं हैं? पीड़ित बता रहें हैं कि ‘लोग दूसरों के उपर ले लांघ गए कोई नही रूका’।

इतने बड़े समागम को सफल बनाना केवल सरकार का ही काम नहीं, भक्तों का भी कुछ ज़िम्मेवारी है। करोड़ों लोगों को सम्भालना बहुत मुश्किल काम है। यह संतोष की बात है कि बहुत जल्द स्थिति को नियंत्रण में लाया गया। बसंत पंचमी के दिन, सरकारी आँकड़ों के अनुसार,दो करोड़ लोगों ने संगम पर स्नान किया और सब कुछ सुचारू ढंग से सम्पन्न हो गया। ज़रूरी है कि दुर्घटना से उचित सबक़ सीखा जाए।  वीआईपी पर जो पाबंदियाँ अब लगाईं गईं हैं वह पहले लगाई जानी चाहिए थीं। इसी के साथ जो वहाँ जा रहे हैं उन्हें भी समझना चाहिए कि केवल आस्था ही नहीं, अनुशासन भी चाहिए। अगर संयम में नहीं रहेंगे तो हादसे होते रहेंगे। जो हताहत हुए उनका गहरा शोक है लेकिन इस हादसे के बावजूद करोड़ों लोगों को सम्भालने और स्नान का उचित प्रबंध करने के लिए उतर प्रदेश सरकार अपनी पीठ थपथपा सकती है। पर पारदर्शिता के अभाव ने सरकार को जवाबदेह बना दिया।

VN:F [1.9.22_1171]
Rating: 0.0/10 (0 votes cast)
VN:F [1.9.22_1171]
Rating: 0 (from 0 votes)
About Chander Mohan 754 Articles
Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.