‘शीश महल’ का रहने वाला, The Occupant of Sheesh Mahal

हो जाता है जिन पे अन्दाज़-ए-खुदाई पैदा

              हमने देखा है वह बुत्त तोड़ दिए जातें हैं

अरविंद केजरीवाल का राजनीतिक सफ़र वैगन- आर और मफ़लर से शुरू हुआ और अंत शराब घोटाले के आरोपो और ‘शीश महल’ के कारण हुआ। उनकी शुरूआत अन्ना हज़ारे के ‘इंडिया एगेंस्ट करप्शन’ आंदोलन से हुई और अंत करप्शन के आरोपो के कारण भी हुआ। समझा गया कि वह वैकल्पिक राजनीतिक दिशा दिखाएँगे पर अंत में स्पष्ट हो गया कि अरविंद केजरीवाल कुछ अलग नहीं, वहीं कमज़ोरियाँ है जो आम राजनेता में होती है। मिडिल क्लास विशेष तौर पर उनके सादे जीवन से बहुत प्रभावित थी कि वह देश की राजनीति में शुद्धता लाएँगे। दिल्ली की जनता ने भी बहुत समर्थन दिया। 70 सदस्यों वाली विधानसभा में आप ने 2015 में 67 सीटें और 2020 में 62 सीटें जीत लीं। पंजाब में 117 सदस्य वाली विधान सभा में आप को  92 सीटें मिलीं। गुजरात में भी वह तीसरी ताक़त बन कर उभरे थे। राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल गया। लेकिन तब तक पतन के बीज बीजे जा चुके थे।

दिल्ली का परिणाम केवल भाजपा की जीत की ही कहानी ही नहीं यह उस नेता और उस पार्टी के पतन की कहानी भी है जिसे साफ़ सुथरी राजनीति की बड़ी आशा समझा जाता था। भ्रष्टाचार विरोधी धर्म-योद्धा की केजरीवाल की छवि कथित शराब घोटाले और तिहाड़ जेल की क़ैद ने तहस-नहस कर दी। एक ‘सिम्पल’ आदमी की बहुत ध्यान से बनाई उनकी छवि के चिथड़े जिसे विपक्ष ‘शीश महल’ कहता है, अर्थात् मुख्य मंत्री निवास, ने उड़ा दिए। अपने सरकारी निवास की साज सज्जा पर उन्होंने 33.66 करोड़ रूपए खर्च किए। सब जानते हैं कि नेता लोग सार्वजनिक पैसे के प्रति लापरवाह होतें हैं पर ‘शीश महल’ में लगे लाखों के पर्दे, लाखों के ही लग्ज़री टॉयलेट्स, जकूज़ी, सपा, सॉना, जिम इत्यादि बता गए कि लोगों के पैसे के प्रति दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री कितने बेदर्द थे। वह तस्वीरें देख कर तो सर चकरा जाता है कि क्या किसी नेता को ऐसी विलासिता चाहिए? तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता याद आतीं हैं। जो सत्ता में आने से पहले कहा करता था कि मंत्रियों को दो कमरे के फ़्लैट में रहना चाहिए वह राजाओं की तरह रहने लगा। जनता ने भी ऐसा बदला लिया कि न केवल पार्टी हार गई बल्कि खुद की सीट भी वह हार गए। शराब घोटाले में जेल जाने के बावजूद कुर्सी से चिपके रहने से भी छवि और दाग़दार बन गई।

सारे राजनीतिक वर्ग के लिए यह एक सबक़ है कि लोगों को मूर्ख बनाने की जुर्रत न करें। पूर्व न्यायाधीश मार्कण्डेय काटजू ने बहुत सही टिप्पणी की है, “किसी भी राजनेता पर विश्वास मत करो जो कहता है कि वह भ्रष्टाचार ख़त्म करेगा और सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी निश्चित करेगा… मुख्यमंत्री बनने के जल्द बाद अरविंद केजरीवाल को समझ आ गई कि अगर वह ईमानदार रहे तो उन्हें राजनीति छोड़नी पड़ेगी पर अगर वह सार्वजनिक जीवन में रहना चाहतें हैं तो उन्हें ईमानदारी छोड़नी होगी। और हमें मालूम है कि उन्होंने क्या चुनाव किया”। मेरा अपना अनुभव है कि जो ईमानदारी और नैतिकता की बहुत बात करतें हैं वह अंदर से खोखले होतें हैं। अरविंद केजरीवाल भी आख़िर में उस व्यवस्था का हिस्सा बन गए जिसे वह उखाड़ने आए थे।

अरविंद केजरीवाल राष्ट्रीय नेता बनना चाहते थे और एक समय तो उनके लोग उन्हें नरेन्द्र मोदी का विकल्प भी समझने लगे थे। वह खुद भी अहंकार का शिकार हो गए और नरेन्द्र मोदी को ललकारते हुए यहाँ तक कह दिया कि, “हमें दिल्ली में हराने के लिए आपको एक और जन्म लेना पड़ेगा”। केजरीवाल बच जाते अगर दिल्ली में उनकी कारगुज़ारी अच्छी रहती। शिक्षा और मुहल्ला क्लिनिक के क्षेत्र में अच्छा काम किया गया। लेकिन लेफ़्टिनेंट गवर्नर के साथ उनकी लगातार लड़ाई रही जिससे दिल्ली लगातार बदसूरत बनती गई। वायु प्रदूषण और जगह जगह गंदगी के ढेर लोगों को परेशान करते रहे। कोई समाधान नहीं निकाला गया केवल ड्रामाबाजी का इस्तेमाल किया गया। केजरीवाल ने वायदा किया था कि पाँच वर्ष में यमुना का पानी इतना साफ़ हो जाएगा कि आप उसे पी सकेंगे और नहा सकेंगे। यमुना के उपर तैरती झाग बताती है कि हालत बदतर हो चुकें हैं। जब विपक्ष ने यह वायदा याद करवाया तो केजरीवाल ने ध्यान हटाने के लिए कह दिया कि हरियाणा सरकार पानी में ‘ज़हर’ मिला रही है। इस गम्भीर आरोप का न कोई आधार था न ही पेश किया गया। इससे केवल अरविंद केजरीवाल की अपनी विश्वसनीयता कम हुई।  

 पहली बार मिडिल क्लास को खुश करने के लिए मिडिल क्लास घोषण पत्र जारी किया लेकिन इसमें कोई घोषणा नहीं की गई केवल केंद्र से माँगने का वायदा किया गया। अगर केन्द्र ने ही करना है तो मिडिल क्लास को आप को वोट देने की क्या ज़रूरत है, वह सीधा भाजपा के द्वारा केन्द्र तक पहुँच सकें हैं। और हुआ भी ऐसे ही। मिडिल कलास ने बजट में मिली छूट और आप से निराशा के कारण पूरी तरह से भाजपा का साथ दे दिया। दिल्ली की केवल सात लोकसभा सीटें हैं पर दिल्ली देश की राजधानी है जहां हर प्रांत के लोग बसते है, वह वास्तव में छोटा हिन्दोस्तान है। दिल्ली में जीत का प्रभाव सारे देश पर पड़ता है। भाजपा नेतृत्व की आँख में आप बहुत चुभ रही थी। यह भी समझा गया कि अगर केजरीवाल चौथी बार मुख्यमंत्री बनने में सफल हो गए तो बड़े राष्ट्रीय नेता बन जाऐगे। यह न केवल भाजपा बल्कि कांग्रेस को भी स्वीकार नहीं था। आप को तमाम करने के मामले में दोनों भाजपा और कांग्रेस की राय एक जैसी थी।

कांग्रेस को मिला 6 प्रतिशत वोट भी आप की हार का कारण बना क्योंकि भाजपा और आप के वोट मेँ केवल 2 प्रतिशत का अंतर है। महाराष्ट्र और हरियाणा की जीत के बाद दिल्ली पर क़ब्ज़े से भाजपा को और गति मिलेगी। कांग्रेस का तो सहयोगी दलों को संदेश लगता है कि अगर हमें कमजोर करने की कोशिश की गई तो इसकी क़ीमत चुकानी पड़ेग। आप की फ़ज़ीहत से कांग्रेसी बहुत प्रसन्न हैं चाहे खुद को तीसरी बार शुन्य मिला है। आप के बारे कांग्रेस का कहना है कि उन्हें जीताना हमारी ज़िम्मेवारी नहीं। यह बात तो सही है पर ख़ुद को जीताने की आप की ज़िम्मेवारी है कि नही? तीसरी बार दिल्ली में सफ़ाया बताता है कि दिल्ली भी पकड़ से दूर जा रही है। कांग्रेस के 70 में से 67 उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हुई है । इसका इंडिया गठबंधन के भविष्य पर असर पड़ेगा। गठबंधन में किसी और को कनवीनर बनाने की माँग उठेगी। दिल्ली के चुनाव में तृणमूल कांग्रेस, सपा और राष्ट्रीय जनता दल नें आप का साथ दिया, कांग्रेस का नही। कांग्रेस के नेतृत्व के ‘अहंकार’ की शिकायतें और तेज होंगी।

आप का भविष्य क्या है? यह तो स्पष्ट ही है कि बहुत बड़ा धक्का लगा है लेकिन इसके बावजूद पतन की भविष्यवाणी समय से पूर्व होगी। इस चुनाव में भी सब कमज़ोरियों के बावजूद आप को 43.8 प्रतिशत वोट मिले और 22 सीटें मिली, जबकि भाजपा को 45.8 प्रतिशत मिला है। इसका अर्थ है कि आप के पास अभी भी वफादारों की भारी संख्या है। जिसे कभी प्रधानमंत्री मोदी ने ‘रेवड़ी’ कहा था,अर्थात् कमजोर वर्ग की सीधी मदद, ने केजरीवाल को लोकप्रिय बना दिया। महिलाओं के लिए मुफ़्त बस सफ़र, 200 युनिट तक मुफ़्त बिजली, मुफ़्त पानी और महिलाओं को 2100 रूपए मासिक की मदद जैसी स्कीमें बहुत पसंद की गईं और भाजपा भी इन्हें अपनाने के लिए मजबूर हो गई। अब तो हर पार्टी वोटर के आगे गाजर लटका रही है। इससे अर्थव्यवस्था पर भारी दबाव पड़ रहा है पर हमारे नेताओं के लिए चुनाव जीतना ही सब कुछ है। पर आप की हार में यह सबक़ भी छिपा है कि केवल मुफ़्त स्कीमों के बल पर चुनाव नहीं जीते जा सकते।

पंजाब की आप सरकार के भविष्य को लेकर भी अटकलें शुरू हो गईं है। इस सरकार की कारगुज़ारी बहुत बढ़िया नहीं है। हाल ही में हुए नगर निगम के चुनावों में पटियाला को छोड़ कर कहीं भी आप को बहुमत नहीं मिला। दलबदल करवा बहुमत कर लिया पर जनता ने तो समर्थन नही दिया। विपक्ष अभी से सरकार के पतन की बात कर रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि केजरीवाल भगवंत मान की जगह लेना चाहतें है। यह बेतुकी बात है क्योंकि पंजाबी किसी हरियाणावी को सीएम बर्दाश्त नही करेंगे। सरकार भी गिर नहीं सकती क्योंकि 117 सदस्यों वाली विधानसभा में आप के पास 92 विधायक है। इतनी बड़ी संख्या को तोड़ना सम्भव नहीं है। लेकिन मुख्यमंत्री भगवंत मान पर दबाव बढ़ रहा है। सरकार को गवरनेंस बेहतर करने पर बहुत ध्यान देना पड़ेगा क्योंकि लोग संतुष्ट नहीं है। दिल्ली की दखल भी पंजाब आप को कमजोर कर रही है।

दिल्ली में भाजपा का 27 वर्ष का बनवास समाप्त हो गया पर अब आगे चुनौती है क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी ने खुद दिल्ली की हालत बदलने का वायदा किया है। यमुना को साफ़ कर तट उसी तरह सुन्दर बनाना है जैसे अहमदाबाद में साबरमती का तट है। वायु प्रदूषण पर नियंत्रण कर दिल्ली को रहने लायक़ बनाना है। गंदगी के पहाड़ हटाने है। संक्षेप में, दिल्ली को वर्ल्ड क्लास कैपिटल बनाना है। सारे देश की नज़रें अब दिल्ली पर लगेंगीं। क्योंकि डब्बल इंजन सरकार होगी इसलिए बहाना भी कोई नहीं रहेगा। जहां तक शीशमहल का सवाल है, इसे स्मारक बना दिया जाना चाहिए, नेताओं की ऐयाशी और आवारगी का, और जनता के थप्पड़ का।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.