मुम्बई पर 26/11 हमला: हमारी प्रतिक्रिया अशक्त थी, Mumbai 26/11 Attack: Our Reaction Was Feeble

“मैं उस दिन का सपना देखता हूं जब हम अमृतसर में ब्रेकफास्ट, लाहौर में लंच और काबुल में डिनर कर सकेंगे”—डा. मनमोहन सिंह, प्रधानमंत्री भारत, 8/1/2007

  • महीने के अंदर अंदर ही यह शब्द हमारे भोले प्रधानमंत्री को परेशान करेंगे क्योंकि 26/11/2008 को पाकिस्तान से भेजे गए आतंकियों ने मुम्बई, पर हमला कर दिया। तीन दिन गोलीबारी होती रही जिसमें 166 लोग मारे गए। मुम्बई पर हमले से कोई सबक़ नही सीखा गया। दोस्ती का हाथ लेकर प्रधानमंत्री वाजपेयी बस में लाहौर गए और कारगिल हो गया, नरेन्द्र मोदी नवाज़ शरीफ़ के पारिवारिक समारोह में शामिल होने के लिए लाहौर उतरे तो उरी और पठानकोट एयर बेस पर हमले हो गए। मुम्बई हमले के एक बड़े आरोपी तहव्वुर हुसैन राणा को भारत लाया गया है पर अफ़सोस है कि इसके साथी डेविड कोलमैन हैडली को अमेरिका ने हमारे हवाले नहीं किया। पूर्व गृह सचिव जी.के.पिल्लई का कहना है कि राणा तो छोटी मछली है, असली साज़िशकर्ता तो हैडली है। पर तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण से पुराना ज़ख़्म हरा हो गया। इस घटना से सबक़ लेने कि लिए यह जानना ज़रूरी है कि, (1)क्या हुआ, (2)क्यों हुआ और (3)फिर क्या हुआ?
  1. 26 नवम्बर 2008 को शाम 8 बजे के बाद दस पाकिस्तानी आतंकी एक किश्ती में सवार मुम्बई के दक्षिणी तट कोलाबा पर उतर गए और दक्षिण मुम्बई पर कई जगह शूटिंग शुरू कर दी। तीन दिन यह उत्पात चलता रहा। हमारी असफलता थी कि हमारी ख़ुफ़िया एजेंसियों को इस हमले की जानकारी नहीं थी और उन्हें ख़त्म करने में हमें तीन दिन लग गए। अपने अपने टीवी सेट पर दुनिया ने हमारी बेबसी देख ली थी। शुरू में तो ऐसा लग रहा था कि सरकार के हाथ पैर फूल गए हैं। यह मुम्बई पुलिस के सब इंस्पेक्टर शहीद तुकाराम ओंबले की बहादुरी थी कि उसने गोली खाने के बावजूद आतंकी अजमल कसाब को ज़िंदा पकड़ लिया और पाकिस्तान का सारा खूनी खेल जगज़ाहिर हो गया। उसी ने बताया कि आतंकियों को लश्करे तोयबा ने ट्रेन किया था और हमले के बीच कराची के कंट्रोल रूम से निर्देश मिल रहे थे।

सारी साज़िश पाकिस्तान में तैयार की गई पर मुम्बई में ज़मीन पर इसे लागू करने में प्रमुख भूमिका तहव्वुर राणा और डेविड हैडली की थी। वह भारत से नफ़रत करते थे। अमेरिका के क़ानून मंत्रालय ने राणा और हैडली के बीच एक वार्तालाप को पकड़ा है जिसमें हमले के बाद राणा हैडली से कहता है कि ‘हिन्दोस्तानियों के साथ यह होना चाहिए था’। वह तो चाहता था कि मुम्बई में मारे गए लश्कर के 9 आतंकियों को पाकिस्तान में बहादुरी का सर्वोच्च सम्मान निशान-ए-हैदर दिया जाए। दिल्ली की अदालत को बताया गया कि मुम्बई के बाद वह और शहरों पर हमले की योजना बना रहे थे। इस मामले से जुड़े सात अभियुक्त अभी पाकिस्तान में हैं जिनमें प्रमुख हाफिज मुहम्मद सईद है। अंतरराष्ट्रीय दबाव में बताया गया कि वह क़ैद में हैं, पर सब जानते हैं कि यह ‘क़ैद’ कैसी है! हैडली ने मुम्बई पर हमले की जगह तय की थी, उसी ने रेकी की थी। अपना अपराध क़बूल करते हुए उसने अमेरिकी क़ानून विभाग के साथ सौदा कर लिया था कि उसे भारत को नहीं सौंपा जाएगा। 2006 और 2009 के बीच उसने भारत की नौ यात्रा की थी जिनमें पाँच मुम्बई की थीं।

लेकिन हैडली को हमारे हवाले नहीं किया गया जिससे शक उभरा था, जो अब तक क़ायम है, कि अमरीकी अधिकारियों ने उसकी गतिविधियों के बारे पूरी जानकारी हमसे सांझी नहीं की। यह भी चर्चा है कि डेविड हैडली डब्बल एजेंट था, वह अमेरिका की ख़ुफ़िया एजेंसियों को भी जानकारी देता था जिस कारण उसे हमें नहीं सौंपा गया। हैडली को मुम्बई जाने के लिए वीज़ा राणा ने अपनी इमिग्रेश्न फ़र्म की मार्फ़त ले कर दिया था। राणा खुद नवम्बर 11 और 21 के बीच मुम्बई आया था और हमले से पाँच दिन पहले दुबई लौट गया था। मुम्बई के बाद वह नैशनल डिफ़ेंस कॉलेज और दिल्ली के इंडिया गेट तथा यहूदी केन्द्रों को निशाना बनाना चाहते थे। हैरानी है कि यह दोनों हमारी एजेंसियों के रेडार पर नज़र नहीं आए। यह भी हैरानी की बात है कि हैडली को बार बार वीज़ा दिया गया।

2.यह हमला क्यों हुआ और मुम्बई को  निशाना क्यों बनाया गया? वह 1971 का बदला लेना चाहते थे।  मुम्बई हमारी आर्थिक राजधानी है, वह हमारे आर्थिक दिल पर चोट करना चाहते थे। यही कारण है कि मुम्बई पर बार बार हमले होते रहें है। मार्च 1993 में यहाँ हुई बमबारी में 257 लोग मारे गए। जुलाई 2006 में स्थानीय ट्रेनों में हुए बम विस्फोटों में 650 लोग मारे गए। पाकिस्तान को यह आशा थी कि इन हमलों से भारत की आर्थिक प्रगति पटरी से उतर जाएगी इसीलिए इस बार विदेशियों को भी निशाना बनाया गया। यह भी आशा रही होगी कि इससे देश में साम्प्रदायिक आग भड़क उठेगी और मुसलमानों पर हमले होंगे जो दंगों का रूप धारण कर लेंगे। लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ। भारत की आर्थिक तरक़्क़ी उस दौरान तेज़ी से होती रही जब पंजाब और जम्मू कश्मीर में सीमा पार से आतंकवाद चरम पर था।

पाकिस्तान इन घटनाओं में अपनी भूमिका नकारता रहा है। इस कारण भी तसव्वुर राणा से पूछताछ महत्वपूर्ण है। उससे पूछताछ से मालूम होगा कि हमले में मेजर इक़बाल, साजिद मीर,अब्दुल रहमान हाशिम और इलयास कश्मीरी जैसों की सही भूमिका क्या थी? इन सभी के नाम एनआईए की चार्जशीट में हैं और सभी पाकिस्तान में खुले घूम रहे हैं। पाकिस्तान की सेना और आईएसआई की सही भूमिका क्या थी? अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हकानी ने 2016 में लिखी अपनी किताब में बताया था कि मुम्बई पर 26/11 के हमले के बाद आईएसआई के प्रमुख शुजा पाशा ने स्वीकार किया था कि इस हमले के योजनाकार ‘हमारे लोग’ थे पर यह ‘हमारा आपरेशन नही था’। इसका मतलब क्या है कोई नहीं समझ सकता। अगर अजमल कसाब न पकड़ा जाता तो पाकिस्तान इतना भी स्वीकार न करता। अगस्त 2015 को कराची के डॉन अख़बार में लिखे अपने लेख में पाकिस्तान की प्रमुख जाँच एजेंसी एफ़आईए के पूर्व प्रमुख तारिक खोसा ने लिखा था कि, “पाकिस्तान को इस बात का सामना करना है कि मुम्बई में उत्पात की योजना और शुरूआत हमारी जमीन से हुई थी। इसके लिए ज़रूरी है कि हम सच्चाई का सामना करें और गलती को स्वीकार करें”। लेकिन यह अभी तक नहीं हुआ। वहाँ अभी से कहना शुरू हो गए हैं कि तसव्वुर राणा हमारा नही कनाडा का नागरिक है।

3. मुम्बई पर बार बार हमलों का बडा कारण था कि हमने सख़्त प्रतिक्रिया नहीं की। इसका सैनिक जवाब क्यों नहीं दिया गया जैसे अब पुलवामा के बाद बालाकोट पर बमबारी की गई ?आख़िर हमारी प्रभुसत्ता को इससे बड़ी चुनौती क्या हो सकती थी कि कराची से किश्तें में आए दस लोगों हमारी आर्थिक राजधानी में तीन दिन खून बहाते रहे। हमारी सरकार की निष्क्रियता का अजब स्पष्टीकरण दिया गया। पाकिस्तान में हमारा पूर्व राजदूत शरत सभ्रवाल ने अपनी किताब इंडियाज़ पाकिस्तान कौननड्रम में लिखा है, “भारत द्वारा सामरिक संयंम रखने की आलोचना हुई थी। वास्तविकता है कि भारत पाकिस्तान पर काफ़ी अंतराष्ट्रीय दबाव डाल सका कि वह मुम्बई के हमलावारों पर कार्रवाई करे”। यह स्पष्टीकरण बिल्कुल खोखला है क्योंकि मुम्बई पर हमला करने वाले कई अभी भी वहाँ खुले घूम रहे हैं। हाफ़िज़ मुहम्मद सईद पर भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। अपनी किताब चौयसेज़ में पूर्व राजदूत और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिव शंकर मेनन बतातें हैं कि कई बैठकों के बाद देश के शीर्ष स्तर पर यह तय किया गया कि, “पाकिस्तान पर हमला न करने का हमला करने से अधिक फ़ायदा होगा”।

इस तर्क का स्पष्टीकरण यह दिया गया कि अगर हम हमला करते तो पाकिस्तान के लोग सेना के साथ एकजुट हो जाते, पाकिस्तान की नागरिक सरकार और कमजोर हो जाती, युद्ध की स्थिति बन जाती,हमारी अर्थव्यवस्था को नुक़सान होता, हम पर अंतराष्ट्रीय दबाव बढ़ता इत्यादि इत्यादि। यह भी समझाया गया कि हम पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय खलनायक प्रस्तुत करने में सफल रहे।  दिल बहलाने को स्पष्टीकरण अच्छा है! दिलचस्प है कि खुद शिव शंकर मेनन जो उस समय विदेश सचिव थे, बदले की कार्रवाई करने के हिमायती थे। वह लिखतें हैं कि, “मैंने तब तत्काल ऐसे बदले की कार्यवाही की वकालत की थी जो नज़र भी आए। हम मुरीदके में लशकरे तोयबा पर या पाक अधिकृत कश्मीर में उनके कैम्पों पर या आईएसआई जो साफ़ तौर पर संलिप्त थी, पर कार्यवाही कर सकते थे। अगर हम ऐसा करते तो यह न  केवल भावनात्मक तौर पर संतुष्ट करने वाला होता, बल्कि इसके द्वारा हमारी पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों ने तीन दिन दुनिया के टेलिविज़न के सामने जो अक्षमता दिखाई थी, उसकी शर्म भी धुल जाती”।

लेकिन बड़े नेताओं ने यह फ़ैसला कर लिया कि सैनिक कार्यवाही से कुछ फ़ायदा नहीं। यह बहुत अशक्त  निर्णय था। सब कुछ हिसाब किताब नही होता। कई बार देश की इज़्ज़त के लिए भी कार्यवाही करनी पड़ती है। पाकिस्तान को ठोकने की ज़रूरत थी। युक्रेन तबाह हो गया पर लड़ता जा रहा है। मुम्बई के हमले का मुँह तोड़ जवाब न दे कर हमारी सरकार ने कमजोरी दिखाई जिस कारण देश में बाद में भी हमले होते रहे। अंतराष्ट्रीय आतंकवाद का सामना गांधीवादी नीति से नहीं हो सकता पर गांधी जी ने भी लिखा था कि अपमान सहने से बेहतर है कि हम शस्त्रों का सहारा ले लें। 26/11 के बाद सख़्त कार्यवाही न करना 26/11 के हमले को रोकने में नाकामी के बराबर असफलता गिनी जाएगी।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.