
पहलगाम में टूरिस्ट पर हमला केवल पहलगाम पर या कश्मीर पर हमला नहीं है। यह सीधे तौर पर भारत पर हमला है। कर्नाटक से गए एक परिवार के मंजूनाथ की हत्या करने के बाद उनकी पत्नि को एक आतंकी ने कहा भी है, “जाओ मोदी को यह बता देना”। हमला पहलगाम से उपर बैसरन वादी में एक टूरिस्ट ग्रुप पर किया गया। इस जगह कोई सड़क नहीं है, केवल पैदल या घोड़े पर जाया जा सकता है। अभी तक 26 टूरिस्ट के मारे जाने का समाचार है, कई घायल है। वैसे तो जम्मू कश्मीर में आतंकी घटनाऐं लगातार हो रही है पर टूरिस्ट को कम निशाना बनाया जाता रहा है। कश्मीरी ऐसे हमले पसंद नही करते क्योंकि उनकी रोज़ी रोटी टूरिस्ट पर निर्भर करती है। मुझे वहाँ एक टैक्सी ड्राइवर ने बताया था कि, “आप आते रहें हमारा काम चलता रहेगा”। इसीलिए हमले के बाद कश्मीर में जगह जगह मृतकों को श्रद्धांजलि देने के लिए कैंडल मार्च निकाले गए। पिछले साल 2.35 करोड़ टूरिस्ट जम्मू कश्मीर गए थे, ऐसा सरकार का दावा है। अब सब वहाँ से भाग रहें हैं। पाकिस्तान को कश्मीरियों की रोज़ी रोटी की चिन्ता नहीं, वह सीधा देश पर निशाना साध रहा हैं। फ़रवरी 2019 में पुलवामा के हमले, जिस में 40 सुरक्षाकर्मी मारे गए थे, के बाद यह सबसे बड़ा हमला है।
कहने को तो कहा जाएगा कि हमला लश्कर ए तोयबा या जैश ए मुहम्मद या रसिसटेंस फ़ोर्स या ऐसे किसी संगठन ने किया है, पर इसके पीछे पाकिस्तान की सेना का हाथ है। मुम्बई पर नवम्बर 2008 के हमले के बारे भी यही कहा गया कि यह हमला लश्कर ए तोयबा ने करवाया था जबकि स्पष्ट हो चुका है कि इसके पीछे पाकिस्तान की सेना के लोग थे। पाकिस्तान का सेना प्रमुख असीम मुनीर पूरी तरह से भारत विरोधी है। हाल ही में उसका दिया भाषण बहुत चर्चा में है जिसमें उसने भारत के खिलाफ ज़हर उगला कि ‘पाकिस्तान इसलिए बना क्योंकि मुसलमान हिन्दुओं के साथ नहीं रह सकते…हिन्दू और मुसलमान दोनों अलग राष्ट्र हैं…हमारा मज़हब अलग है’। मुनीर फिर कश्मीर पर आ गया कि ‘कश्मीर हमारे गले की नस है” और कहा, “हम कश्मीरी भाइयों को भारत के क़ब्ज़े के खिलाफ लड़ाई में अकेले नहीं छोड़ेंगे”। आम तौर पर ऐसे भाषण राजनेता देते हैं। ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो को ऐसे बोलने का बहुत शौक़ था। परवेज़ मुशर्रफ भी शुरू में ऐसी बातें करते थे। पर जबसे मुनीर सेनाध्यक्ष बना है सम्बंध और बिगड़ गए है। पाकिस्तान का दुर्भाग्य है कि सरकार बिल्कुल कमजोर है। शाहबाज़ शरीफ़ एक मुखौटा हैं जिन्हें पैसे इकट्ठे करने के लिए दूसरे देशों में भेजा जाता है। विदेश और रक्षा नीति पर सेना का क़ब्ज़ा है। वह ही होता है जो मुनीर चाहता है।
पहलगाम पर हमला कर क्या मुनीर कोई संदेह भेज रहा है या पाकिस्तान आदत से मजबूर है और दुष्ट आचरण पर वापिस लौट आया है ? दुनिया उसे बदमाश देश मानती है। ख़ामोश तो वह कभी भी नहीं रहे, पर यह हमला अलग क़िस्म का है। हाल ही में जो बड़े हमले हुए हैं वह सुरक्षा बलों पर हुए हैं। बहुत देर के बाद न केवल यह टूरिस्ट पर बड़ा हमला है पर पहली बार हिन्दुओं को अलग कर गोली मारी गई है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार ‘पहले धर्म पूछा, फिर कलमा पढ़ने को कहा, और जिन्हें नहीं आता था उन्हें गोली मार दी गई’।इस कार्यवाही को मुनीर के बयान से जोड़ा जा सकता है कि ‘हिन्दू और मुसलमान अलग हैं’। ऐसा कर वह देश के अंदर साम्प्रदायिक तनाव भी पैदा करना चाहते हैं। अब हमारी सरकार की ज़िम्मेवारी है कि वह स्थिति पर नियंत्रण रखें और पाकिस्तान के इस मनसूबे को सफल न होने दें।
निश्चित तौर पर यह हमारी बड़ी ख़ुफ़िया असफलता है, जैसे पुलवामा हमला या मुम्बई हमला भी थे। आजकल के इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस, सैटेलाइट इमेजरी, ड्रोन आदि के ज़माने में हमें कोई खबर नहीं थी। हमला उस जगह हुआ जहां कोई सुरक्षा कर्मी मौजूद नहीं था। यह बड़ी चूक है कि जहां 1000-1500 टूरिस्ट मौजूद थे वहां एक भी सुरक्षा कर्मी नहीं था। बताया गया कि आतंकी आराम से जंगल से निकले और फ़ायरिंग शुरू कर दी क्योंकि रोकने वाला कोई नहीं था। तस्वीरें वह दर्दनाक दृश्य दिखा रहीं हैं जहां शव बिखरे पड़ें है और पास बैठी बेबस महिलाऐं मदद की गुहार कर रहीं है। दो महीने के बाद शुरू होने वाली अमरनाथ यात्रा जो 38 दिन चलती है,पहलगाम से हो कर निकलती है। यहाँ से ही हर पन्द्रह मिनट के बाद अमरनाथ की गुफा के लिए हैलिकॉप्टर उड़ान भरता है। दो साल पहले पहलगाम में मैंने तीन दिन यहाँ गुज़ारे थे। अत्यंत सुन्दर जगह है। हरियाली है, पानी है, पहाड़ हैं, ठंडी हवा है, सुकून है। रास्ते में चप्पे चप्पे पर सुरक्षाकर्मी तैनात देखे थे। पर अब यह हमला हो गया। क्या हम बेपरवाह हो गए थे कि कश्मीरी संतुष्ट है, पत्थरबाज़ी रूक गई, वादी शांत हो गई? क्या हमारी सुरक्षा में ढील आगई थी, जैसा कुछ विशेषज्ञ कह रहें है, कि आतंकी घुसपैंठ कर गए? इसका अब पोस्टमार्टम होगा पर पहले तो आतंकियों को ख़त्म करना है जो जंगलों और पहाड़ों में छिपें हैं।
पाकिस्तान ने इस समय ऐसा क्यों किया जब वह खुद बुरी तरह से जकड़ा हुआ है? पाकिस्तान के कदमों के बारे निश्चित तौर पर कुछ भी कहना सम्भव नहीं। उस असंतुलित देश को समझते समझते हमारी सारी सरकारें हार गईं है। पाकिस्तान में हमारे पूर्व राजदूत शरत सभ्रवाल ने लिखा है, “कई सालों से भारत ने जो नीति निर्णय लिए हैं…वह पाकिस्तान को हमारे साथ सामान्य रिश्ता रखने के लिए न मजबूर कर सके न मना सकें’। भारत की हर सरकार ने पाकिस्तान के साथ बेहतर संबंध करने का प्रयास किया और हर सरकार फेल हुई।पाकिस्तान जो करता है उसका कोई औचित्य नहीं होता। ऐसे हमले हमें परेशान करतें हैं पर यह हमारी प्रगति को रोक नहीं सकते जबकि दुनिया भर में उनकी बदनामी होती है। कश्मीर का टूरिस्ट सीजन तबाह हो गया पर देश तो नहीं रूका। नार्दन कमान के कमांडर रहे लै.जनरल डी.एस.हुड्डा की राय है कि ‘पाकिस्तान साम्प्रदायिक तनाव पैदा करना चाहता है’। यह भी हो सकता है कि जम्मू कश्मीर में हुए शांतिमय चुनाव उन्हें चुभ गए हैं और वह यह जतलाना चाहते हैं कि सब कुछ सामान्य नहीं है।
पाकिस्तान आधुनिक दुनिया से कट चुका है। अर्थ व्यवस्था तबाह हो चुकी है केवल चीन उन्हें उठाए फिर रहा है। बलूचिस्तान में भारी विद्रोह का सामना है। हताशा है। वह लोगों का ध्यान हटाने की कोशिश कर रहें है। और हमें भी अपने साथ नीचे घसीटने की कोशिश करते रहते है। ‘हम तो डूबे हैं सनम तुमे भी ले डूबेंगे’। हमें यह प्रयास सफल नहीं होने देना इसलिए सरकार को देश की साम्प्रदायिक स्थिति पर पूरी नज़र रखनी चाहिए। यह हमला तब हुआ जब अमेरिका के उपराष्ट्रपति भारत की यात्रा पर हैं और भारत के प्रधानमंत्री साऊदी अरब की यात्रा पर थे। इस समय हमला करवा पाकिस्तान को मिलेगा क्या? पाकिस्तान के बारे कभी भी तर्क काम नहीं आता। इतने वर्षों से वह हमारे विरूद्ध आतंकी हमले करवा रहें हैं पर भारत तेज़ी से तरक़्क़ी कर रहा है जबकि पाकिस्तानी भीख का कटोरा लेकर दुनिया की राजधानियों का चक्कर लगाते रहतें है। यह बात इमरान खान ने भी कही है। नवीनतम हमला बताता है कि कुछ नहीं बदला, वह सभ्य देश बन ही नहीं सकते। पहले हमले वादी में होते थे, फिर जम्मू में शुरू हो गए। अब फिर वादी में लौट आऐ हैं।हमें भी समझ लेना चाहिए कि जब तक पाकिस्तान सीधा नही होता तब तक जम्मू कश्मीर में सामान्यता की आशा करना भूल होगी। कई बार लगा कि हालत नियंत्रण में आ रहें हैं, पर यह नकली सुबह ही निकली।
डानल्ड ट्रम्प से लेकर पुतिन ने हमले की निन्दा की है। और भी देशों ने निन्दा की है पर पाकिस्तान पर कोई असर नहीं होगा। अगर वैश्विक प्रतिक्रिया की चिन्ता होती तो ऐसी हिमाक़त न करते। 2008 के मुम्बई हमले के बाद अमेरिका की विदेश मंत्री रहीं मैडलिन एलब्राइट ने पाकिस्तान को सही वह देश कहा था जो ‘अंतरराष्ट्रीय माइग्रेन (सर दर्द) देने की क्षमता रखता है’। अब सवाल है कि हमारी प्रतिक्रिया क्या हो?जनरल हुड्डा ने सैनिक प्रतिक्रिया की बात कही है, पर फ़ैसला सरकार पर छोड़ दिया है। हमारी पाकिस्तान के प्रति नीति निरंतर रहनी चाहिए। यह सोचना छोड़ देना चाहिए कि वह सुधर जाऐंगे। वह हमें ‘हज़ारों ज़ख़्म’ देने की नीति, जो सबसे पहले ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने घोषित की थी और जिसे कश्मीर और पंजाब में लागू जिया उल हक़ ने किया था, पर चल रहें हैं। पहलगाम पर हमला अक्षम्य है, जैसे पुलवामा का हमला अक्षम्य था। इसकी क़ीमत उनसे क्या वसूल की जाए इसका फ़ैसला भारत सरकार ने करना है, पर यह हमला दंडित किए बिना नहीं रहना चाहिए। जो खून बहाया गया इसकी जवाबदेही तय होनी चाहिए।