
अमेरिका का राष्ट्रपति दुनिया का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति है। वैसे तो रूस और अब चीन के राष्ट्रपति भी बहुत ताक़त रखते हैं पर अमेरिका के राष्ट्रपति का मुक़ाबला नहीं। अमेरिका के एक राष्ट्रपति हैरी एस.ट्रूमैन ने हिरोशिमा और नागासाकी पर बमबारी का आदेश दिया था जिसमें लाखों मारे गए थे। बताया जाता है कि परमाणु बम के जनक रॉबर्ट ओपेनहाइमर ने ट्र्मैन से पहले राष्ट्रपति रूज़वेल्ट को इसके इस्तेमाल के खिलाफ चेतावनी दी थी कि यह मानवता का विनाश कर सकता है पर उनकी मौत हो गई और विश्व युद्ध समाप्त करने के लिए ट्रूमैन ने जापान पर बमबारी का आदेश दे दिया। जब शक्ति पर कोई नियंत्रण न रहे तो यही होता है, वह क्रूर और असंवेदनशील बन जाती है। बेसुध बन जाती है। लापरवाह बन जाती है, जैसे बंदर के हाथ में उस्तरा हो। चाणक्य ने भी बताया है कि ‘राजा का अपने पर नियंत्रण होना चाहिए। आत्म अनुशासन, आत्म नियंत्रण और बुद्धिमत्ता एक राजा के लिए ज़रूरी योग्यता है’। उन्होंने कहा है कि जिस राजा के पास यह योग्यता नहीं है वह ‘बिन अंकुश के निरंकुश हाथी’ जैसा है।
अमेरिका के नए राष्ट्रपति डानल्ड ट्रम्प के टैरिफ़ को लेकर फ़रमान और उनके राष्ट्रपति बनने के चार महीने को अंदर अंदर दुनिया भर में जो अफ़रातफ़री फैली हुई है उससे लगता है कि अमेरिका के लोगों ने भी उन्हें उस्तरा पकड़ा दिया है। दुनिया शॉक में है। मार्केट में हाहाकार मचा है। विशेषज्ञ कह रहें हैं कि स्टाक मार्केट में ‘खून-स्नान’ हो रहा है, संहार हो रहा है, मार्केट पिघल रहे हैं। टैरिफ़ लगाते समय ट्रम्प ने नहीं देखा कि दोस्त है या दुष्मन। इंग्लैंड, साऊदी अरब, सिंगापुर, ब्राज़ील, तुर्की, आस्ट्रेलिया और यूएई आदि पर कुछ मेहरबानी की गई है और केवल10 प्रतिशत टैरिफ़ लगाया गया है। हम पर 26 प्रतिशत है। यूरोपियन यूनियन को नहीं छोड़ा गया जो बराबर जवाब देने की तैयारी कर रहा है। ट्रम्प तो यह प्रभाव दे रहें हैं कि जैसे दुनिया चल रही थी उसे वह बदलना चाहते है। क्योंकि आजकल सब कुछ जुड़ा हुआ है, उनके कदम से दुनिया में अराजकता फैल रही है। विशेषज्ञ ‘भारी विनाश’ की चेतावनी दे रहें हैं। नियमों पर आधारित विश्व व्यवस्था जिसने द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद दुनिया, अमेरिका समेत, को स्थिरता और विकास दिया को उखाड़ दिया गया है।
अमेरिका में सरकारी नौकरी से हज़ारों को रातोंरात निकाल दिया गया है। सभी 50 प्रांतों में प्रदर्शन हो रहें हैं। उनका अपना बाज़ार धराशायी हो गया है। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय कम्पनी जेपी मॉरगन के अनुसार अमेरिका अब मंदी की हालत के नज़दीक पहुँच गया है। अभी से महंगाई बढ़नी शुरू हो रही है। ट्रम्प का अनुमान है कि नए टैरिफ़ से अमेरिका को 600 बिलियन(अरब) डालर का फ़ायदा होगा पर इस वक़्त तो उनके निवेशक 5 ट्रिलियन डालर खोने के कारण तड़प रहें हैं। अमेरिक में कारों और फ़्लैट स्क्रीन टीवी से लेकर ग्रोसरी महँगी होनी शुरू हो गई है। रिसर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराज राजन का मानना है कि अमेरिका ने ‘सेल्फ़ गोल’ किया है। विश्व बैंक के पूर्व चीफ़ इकोनॉमिस्ट कौशिक बसु का कहना है कि कुछ समय के लिए डानल्ड ट्रम्प की नीतियाँ दुनिया भर में आर्थिक कठनाई का कारण बनेगी पर लम्बे समय में सबसे अधिक नुक़सान अमेरिका का हो सकता है।
अमेरिका के राष्ट्रपति का कहना है कि दुनिया ने अमेरिका का इस्तेमाल किया है जिस कारण उस पर भारी क़र्ज़ा चढ़ गया है। वह आयात पर टैरिफ़ लगा कर स्थिति बराबर करना चाहते हैं। पर ज़रूरी नहीं कि ऐसा हो। अमेरिका के साथ दुनिया का व्यापार घटेगा। चीन जैसी आर्थिक महाशक्ति झुकने को तैयार नहीं। चीन ने अमेरिका पर जवाबी 34 प्रतिशत टैरिफ़ लगा दिया है, जबकि अमेरिका ने चीन पर कुल 54 प्रतिशत टैरिफ़ लगाया था। ट्रम्प ने धमकी दी है कि अगर चीन यह वृद्धि वापिस नहीं लेता तो वह चीन पर अतिरिक्त 50 प्रतिशत टैरिफ़ लगाएँगे। इससे दोनों में तीखा ट्रेड युद्ध शुरू हो सकता है। सीएनएन के फैज़ल इस्लाम ने लिखा है कि अगर अमेरिका लापरवाह हो गया तो दूसरों को दबोचने के लिए चीन तैयार बैठा है। ट्रम्प के कदम से दुनिया को भारी चोट पहुँची है। अब तक 10 ट्रिलियन डॉलर का नुक़सान हो चुका है। आगे अनिश्चितता है, कोई नहीं कह सकता कि क्या होगा। अमेरिका को दुनिया का लीडर समझा जाता रहा पर अब यह बदल रहा है, इसका बहुत नुक़सान होगा। दूसरे देश, भारत समेत, विकल्प ढूँढ रहे है। हमारा ईयू के साथ ट्रेड समझौता काफ़ी आगे तक बढ़ चुका है।
चीन अगर आज हम से मीठी मीठी दोस्ती की बातें कर रहा है तो अकारण नहीं। अमेरिका के दबाव से परेशान वह नए बाज़ार की तालाश कर रहें है। ट्रम्प टैरिफ़ को हथियार की तरह इस्तेमाल करना चाहतें हैं पर ऐसा तो दूसरे भी कर सकते हैं। सही कहा गया है कि ‘ट्रेड-वॉर को जीतना मुश्किल है, हारना आसान’। भारत पर लगाए टैरिफ़ से यहाँ भी खलबली मची हुई है। बैंकिंग एंड मार्केट एक्सपर्ट अजय बग्गा का कहना है कि भारत को घरेलू अर्थव्यवस्था को ‘ग्लोबल आर्थिक शीतकाल’ से बचाने के लिए कदम उठाने पड़ेंगे। अभी से निवेशक के लाखों करोड़ रुपये उड़ चुकें हैं। विशेषज्ञ कम्पनी गोल्डमैन सॉक के अनुसार हमारे निर्यात 15 बिलियन डालर जो 127000 करोड़ रूपए बनतें हैं, कम हो सकते है। हमारी सरकार अमेरिका से ट्रेड को लेकर बातचीत कर रही है इसलिए आशा थी कि ट्रम्प हमारे प्रति कुछ नरम रहेंगे पर उन्होंने कोई नरमी नहीं दिखाई जबकि कई देशों पर केवल 10 प्रतिशत टैरिफ़ ही लगाया गया है। यह सही है कि एशिया में हमारे जो प्रतिस्पर्धी देश हैं उन पर अधिक टैरिफ़ लगाया गया है। चीन (54%),कम्बोडिया (49%), वियतनाम (46%), बांग्लादेश (37%), इंडोनेशिया (32%), श्रीलंका (44%)। कई खुश हैं कि हमारा वह हाल नहीं बनाया गया। यह तो कहने के समान है कि मुझे तो चोट पहुँची है, पर कोई बात नहीं उन्हें अधिक पहुँची है।
यह भी ‘गुड न्यूज़’ दी जा रही है कि इससे हमारे उत्पाद, कपड़ा, फुटवेयर, गारमेन्ट्स आदि निर्यात के लिए इन देशों से बेहतर रहेंगे। वियतनाम और चीन पर अधिक टैरिफ़ लगने से हमारा खिलौना उद्योग बेहतर स्थिति में होगा। हम अंतराष्ट्रीय मैनुफ़ैक्चरिंग हब्ब बन सकतें हैं। यह सब्ज बाग तब भी दिखाया गया जब अमेरिका ने चीन के खिलाफ कदम उठाने शुरू किए थे। हमने सोचा था कि चीन से निकल रही कम्पनियाँ हमारे यहाँ आएँगी पर अधिकतर वियतनाम, मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे देशों में चले गईं। हमे यह भी समझना चाहिए कि अंतरराष्ट्रीय सम्बन्धों में व्यक्तिगत रिश्तों की सीमित भूमिका होती है। कोई स्थाई ‘गुड फ्रैंड’ नहीं होता। यह सबक़ पहले चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने और अब अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प ने समझा दिया कि अंतरराष्ट्रीय सम्बंधों में स्थाई दोस्त नहीं होते, केवल स्थाई हित होतें हैं। अमेरिका हमारे स्टूडेंट्स के वीज़ा भी रद्द किए जा रहा हैं। जिनके पास ग्रीन कार्ड है वह भी अनिश्चित भविष्य की तरफ़ देख रहें हैं।
ट्रम्प के कदम के कारण अर्थ शास्त्री आने वाली मंदी की चेतावनी दे रहें हैं। भारत भी अछूता नहीं रहेगा। हमारे निर्यात महँगे होंगे। ज्यूलरी निर्यात जैसे क्षेत्र बहुत प्रभावित होंगे। बेरोज़गारी और बढ़ सकती है। अमेरिका हमारे कृषि क्षेत्र में घुसपैंठ करने के लिए बेचैन है। अमेरिका के वाणिज्य मंत्री ने तो सवाल किया है कि ‘भारत अमेरिका से एक किलो मकई भी क्यों नहीं ख़रीदता?” आशा है हमारी सरकार दबाव में नहीं आएगी क्योंकि हमें अपनी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बचा कर रखने की ज़रूरत है। अमेरिका के मार्केट में प्रवेश रुकने के बाद चीन दूसरे देशों में अपना सस्ता माल धकेलने की कोशिश करेगा। यहाँ भी हमें सावधान रहना है क्योंकि पहले ही संतुलन चीन की तरफ़ झुका हुआ है। पिछले साल यह 85 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया था। लेकिन इस वक़्त तो समस्या अमेरिका के असंतुलित राष्ट्रपति हैं।
दुनिया का दुर्भाग्य है कि इस नाज़ुक मोड़ पर सबसे शक्तिशाली देश की बागडोर ऐसे व्यक्ति के हाथ में है। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं में विश्वास डोल गया है जिसकी अलग क़ीमत चुकानी पड़ेगी। अभी तक वह ईरान को बमों से तबाह करने की, कनाडा को अमेरिका का 51वां प्रांत बनाने की, ग्रीन लैंड को हथियाने की, रूस पर अतिरिक्त टैरिफ़ लगाने की, पनामा नहर पर ज़बरदस्ती क़ब्ज़ा करने की, गाजा पट्टी से लोगों को निकाल कर इसे फ़्रेंच रिवेरा की तरह रईसों की मौज मस्ती की जगह बनाने की, धमकी दे चुकें है। और अब इस टैरिफ़ बम ने दुनिया को झुलस दिया है। पर ट्रम्प बेपरवाह है। दुनिया को संकट में डाल कर वह गाल्फ खेलने निकल गए थे! वह अमेरिका को ‘ग्रेट’ बनना चाहते हैं पर केवल पैसे के बल पर कोई देश ग्रेट नहीं बनता। अमेरिका को असली ग्रेट उसकी साफ्ट पावर ने बनाया था। लोग अमेरिका जाने के सपने देखते थे। अमेरिका को एक उदारवादी देश और समाज समझा जाता था जहां एक अश्वेत बराक ओबामा दो बार राष्ट्रपति चुने गए थे।
न्यूयार्क बंदरगाह के पास स्थित स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी (आज़ादी की प्रतिमा) के नीचे लिखा है, ‘मुझे अपने थके हारे, अपने गरीब, अपने भीड़ में फँसे लोग दे दो जो आज़ादी की साँस लेना चाहतें हैं… इन बेघर, तूफ़ान के थपेड़े खा रहें को मेरे पास भेज दो। मैं सुनहरे दरवाज़े के पास अपना दीपक लेकर खड़ी हूँ’। पर अमेरिका बदल रहा है। थके और गरीब जो आजादी की साँस लेने वहाँ गए थे, को अब वह हथकड़ी लगा कर सैनिक विमानों में भर भर कर वापिस भेज रहा है।