असभ्य, अस्वीकार्य और अक्षम्य, Uncivilized, Unacceptable And Unforgiveable

मध्य प्रदेश के मंत्री विजय शाह द्वारा लै.कर्नल सोफिया क़ुरैशी पर जो टिप्पणी की है वह माफ़ करने लायक़ नहीं है। सरकार ने आपरेशन सिंदूर के बारे जानकारी देने के लिए विदेश सचिव विक्रम मिसरी के साथ लै.कर्नल सोफिया क़ुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह को आगे किया था। इस त्रिमूर्ति ने बहुत प्रभावशाली ढंग से भारत का पक्ष रखा। इन दो महिलाओं को आगे कर भारत दुनिया को बताना चाहता था कि यहाँ महिलाऐं देश सेवा में बराबर लगी हुईं हैं और यहाँ साम्प्रदायिक भेदभाव नहीं है। विशेष तौर पर सेना इससे बिल्कुल अछूती है। इस सराहनीय प्रयास पर इस एक बंदे की शर्मनाक टिप्पणी ने पानी फेर दिया। पाकिस्तान का मीडिया प्रचार कर रहा है कि देखा, भारत में मुसलमानों का क्या हाल है कि वरिष्ठ महिला सैनिक अधिकारी को भी बक्शा नहीं गया। मंत्री विजय शाह का शर्मनाक बयान था कि ‘जिन्होंने हमारी बेटियों के सिंदूर उजाड़े उन कटे-पिटे लोगों को मोदी जी ने उनकी ही बहन भेज कर उनकी हालत ख़राब कर दी…उन्होंने कपड़े उतार उतार कर हमारे हिन्दुओं को मारा…मोदी जी कपड़े तो उतार नहीं सकते थे इसलिए उनकी समाज की बहन को भेजा कि … तुम्हारे समाज की बहन आकर तुम्हें नंगा करेगी’।

 इस मंत्री पर कार्रवाई का आदेश देते हुए क्रोधित मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का कहना था कि मंत्री की भाषा “ नफ़रत और अलगाववादी भावना को बढ़ावा देने वाली है। यह देश की संप्रभुत्, एकता और अखंडता के लिए ख़तरा है”। धार्मिक पहचान के कारण किसी को आतंकवाद से जोड़ना न केवल नफ़रत फैलाता है बल्कि संविधान के खिलाफ भी है। सुप्रीम कोर्ट ने भी फटकार लगाते कहा कि विजय शाह का बयान ‘अस्वीकार्य’ और असंवेदनशील है’। भारी दबाव पड़ने पर इस आदमी ने माफ़ी तो माँग ली पर मुस्कुराते हुए उसके चेहरे पर अपनी बदतमीज़ी के पश्चाताप का एक भी निशान नहीं था। बड़ी अदालत ने ऐसी माफ़ी रद्द कर दी।

कर्नल सोफिया क़ुरैशी जैसी अधिकारी न केवल सेना बल्कि देश का गौरव है। वह खुद में एक शक्तिशाली संदेश है कि आज के भारत में महिलाऐं कुछ भी कर सकतीं हैं, कहीं भी पहुँच सकती है। पर यहाँ एक वरिष्ठ और विशिष्ट अधिकारी को ही एक मंत्री आतंकियों की बहन कह रहा था। कर्नल सोफिया क़ुरैशी पहली महिला अफ़सर हैं जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र की शान्ति सेना में भारतीय सैन्य दल का नेतृत्व किया था। वह मिलिटरी संचार और साइबर वारफ़ेयर की विशेषज्ञ है। कई उच्च सैनिक सम्मानों से अलंकृत कर्नल सोफिया क़ुरैशी के परिवार के बारे बताया जाता है कि 1857 के विद्रोह में उनकी परदादी रानी लक्ष्मीबाई की सेना में थीं। उनके पिता और दादा भी सेना में रह चुकें हैं। वह खुद को ‘सेना की बेटी’ कहतीं हैं। बताया गया कि भाजपा के कई स्तरों पर नाखुशी ज़ाहिर की गई यहाँ तक कि अध्यक्ष जे पी नड्डा ने भी फटकार लगाई। प्रदेश अध्यक्ष वे कहा कि “भाजपा नेतृत्व ऐसे मामलों के बारे बहुत संवेदनशील है…किसी को कर्नल सोफिया क़ुरैशी की अवमानना करने का अधिकार नहीं”। पर जनाब, उसे बर्खास्त कर राज धर्म का पालन क्यों नहीं किया गया? वह तो सेना को साम्प्रदायिक आधार पर बाँटने का घिनौना प्रयास कर रहा था। उसे बचाने के लिए एफ़आइआर नरम रखी गई जिस पर हाई कोर्ट को फिर दखल देना पड़ा और इसे ‘कमजोर’ और ‘असंतोषजनक’ करार दिया। विजय शाह भाजपा के लिए महत्व रखता है क्योंकि वह एक प्रभावशाली ट्राइबल नेता है। मध्य प्रदेश में ट्राइबल जनसंख्या बीस फ़ीसदी है।

 पहलगाम हमले का एक मक़सद देश को साम्प्रदायिक तौर पर बाँटना है। हमें इस साज़िश को नाकाम करना है और भावनात्मक एकता को मज़बूत करना है। युदद विराम के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने भी अपने भाषण में कहा है कि ‘देश की एकता और समन्वय को तोड़ने का घृणित प्रयास’ हर नागरिक, हर समुदाय, हर राजनीतिक दल ने असफल कर दिया।  विजय शाह जैसे लोग प्रधानमंत्री के संदेश को नकार रहें हैं। यह सही है कि लोकतंत्र में वोट का बहुत महत्व है पर कभी कभी सही दिशा तय करना और सही संदेश देना भी ज़रूरी हो जाता है। यहाँ भाजपा चूक गई। विजय शाह को बर्खास्त कर बहुत सही संदेश दिया जा सकता था। हमारा देश ऐसा बन गया है कि आप कुछ भी कर लो, कितने भी बहादुर और काबिल हो अगर आपका धर्म और जाति अनुरूप नहीं है तो आप एक वर्ग के निशाने पर आ सकते हो। ऐसे लोगों की लगाम कसने की ज़रूरत है। हाई कोर्ट ने कहा है कि सेना शायद एकमात्र संस्था है जो संकीर्णता से बची है। खेद है कि सरकार और पार्टी ने सख़्त रुख़ नहीं अपनाया। गेंद अदालत के पाले में उछाल कर बैठ गए। कई जगह पूर्व सैनिकों द्वारा कर्नल सोफिया क़ुरैशी के पक्ष में प्रदर्शनों को भी नज़रअंदाज़ कर दिया।

विजय शाह के खिलाफ कार्यवाही केवल इसलिए ही नही होनी चाहिए कि विपक्ष माँग कर रहा है। यह इसलिए होनी चाहिए क्योंकि देश में सही परम्परा क़ायम करने के लिए यह ज़रूरी है। यह इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि सोशल मीडिया में बहुत गंदगी उछाली जा रही है। जो भी सही बात कहता है उसके ख़िलाफ़ हाथ धो कर पड़ जातें हैं। पहलगाम में आतंकियों द्वारा मारे गए अपने पति के शव के साथ बेबस बैठी नव विवाहिता हिमांशी नरवाल का चित्र दुनिया मे वायरल हो चुका है पर उन्हें भी बुरी तरह ट्रोल किया गया क्योंकि उन्होंने कह दिया कि लोगों को कश्मीरियों और मुसलमानों का विरोध नहीं करना चाहिए। उन पर सोशल योद्धाओं का हमला इतना क्रूर था कि उनकी अपने पति के प्रति वफ़ादारी पर संदेह प्रकट किया गया। फिर बारी विदेश सचिव विक्रम मिसरी की थी। वह एक वरिष्ठ और अनुभवी अफ़सर है। कई जगह राजदूत रह चुकें हैं। उन्होंने  बहुत समझदारी के साथ ब्रीफ़िंग की थी। उनका क़सूर था कि उन्होंने ब्रीफ़िंग में घोषणा कर दी कि भारत और पाकिस्तान युद्ध विराम को लिए तैयार हो गए है। यह निर्णय भारत सरकार का था विक्रम मिसरी केवल जानकारी दे रहे थे। पर इसके बाद उन्हें बुरी तरह ट्रोल किया गया यहाँ तक कि उनकी बेटी को नुक़सान पहुँचाने की धमकी दी गई। यह भी अफ़सोस की बात है, जो शिकायत पूर्व विदेश सचिव विवेक काटजू ने भी की है, कि कोई भी राजनेता विक्रम मिसरी के पक्ष में खड़ा नज़र नहीं आया। केवल संसद की विदेशी मामलों की समिति ने उनकी प्रशंसा की और उनके और उनके परिवार के प्रति जो आपत्तिजनक कहा गया उसकी निंदा की।

घृणा हमारे समाज में सीमा को पार कर रही है। स्वर्ण पदक विजेता नीरज चोपड़ा को इसलिए ट्रोल किया गया क्योंकि बैंगलोर में प्रतियोगिता में उन्होंने पाकिस्तानी खिलाड़ी अरशद नदीम को आमंत्रित किया था। यह निमंत्रण पहलगाम की घटना से पहले भेजा गया था। पर उन्हें और उनके परिवारजनों को बर्बरता पूर्वक ट्रोल किया गया।  इस बीच यह अच्छी खबर आई है कि सेना ने उन्हें लै. कर्नल की मानद उपाधि भी दी है। अर्थात् सेना ने अपना संदेश भेज दिया है कि वह कट्टर हरकतों को पसंद नहीं करती। भाजपा के सांसद निशीकांत दूबे तो यहाँ तक कह चुकें हैं कि “सुप्रीम कोर्ट देश को अराजकता की तरफ़ ले जा रहा है” और वह “देश को साम्प्रदायिक गृह युद्ध की तरफ़ धकेल रहा है”।  

मैं नहीं समझता कि भाजपा का नेतृत्व ऐसे अनियंत्रित टिप्पणियों को पसंद करता है पर मजबूरी है कि उन्हें साथ लेकर चलना है। कट्टरवाद के टाइगर से उतरना मुश्किल है। यह हार्ड कोर वोटर हैं। पाकिस्तान के साथ युद्ध विराम से यह वर्ग पहले ही खिन्न है। वह तो ‘अंतिम समाधान’ चाहते थे। यह क्या हो यह उन्हें भी पता नहीं होगा। कम से कम पीओके पर क़ब्ज़े की उन्हें आशा थी, पर सरकार ने सही रणनीति अपनाते हुए सबक़ सिखा कर युद्ध विराम की पाकिस्तान की पेशकश को मान लिया। भाजपा के वरिष्ठ नेता स्वप्न दास गुप्ता ने लिंखा है कि “देश ने यह पसंद नहीं किया”। कुछ और नेताओं ने युद्ध विराम की निंदा करते हुए कहा कि यह पश्चिम के दबाव में लिया कदम है। उनका कहना है कि “हिन्दू समाज जेहादवाद का अंतिम समाधान चाहता है”। यह ‘समाधान’ क्या हो और उस तक कैसे पहुँचना है यह बताया नहीं गया। यह भी दिलचस्प है कि यह जो सज्जन पाकिस्तान के साथ ‘अंतिम समाधान’ की बात कर रहे है वह सब सीमा और युद्ध क्षेत्र से कई सौ मील दूर रहते है। सीमा के नज़दीक रहते किसी भाजपा नेता ने युद्ध विराम की आलोचना नहीं की क्योंकि उन्होंने आकाश में ड्रोन उड़ते देखे हैं। युद्ध दूर से ही आकर्षक लगता है।

अफ़सोस है कि देश में एक असभ्य और मूर्ख सेना तैयार हो गई है जो किसी की भी पगड़ी उछाल सकती है। न सेना के अफ़सर सुरक्षित हैं, न प्रशासनिक अफ़सर और न ही न्यायाधीश। जो आज खुद को सुरक्षित समझते हैं वह कल को इनके निशाने पर आ सकतें हैं। सोशल मीडिया के इन योद्धाओं से देश के सौहार्द को भारी ख़तरा है। भारत एक उभरती शक्ति है। जापान को पछाड़ कर हम 5 ट्रिलियन डालर इकॉनॉमी बनने जा रहें है। हमें पटरी से दुश्मन नही, आंतरिक तनाव उतार सकता है। इसलिए यह हिन्दू – मुसलमान बंद होना चाहिए। इन कथित ‘राष्ट्रवादी’ योद्धाओं को रोकने की ज़रूरत है।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.