भाजपा बच गई, चौटाला फंस गए!
भाजपा बच गई! नितिन गडकरी को हटवा कर वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने पार्टी को अनैतिक चक्रव्यूह में फंसने से बचा लिया। भाजपा में अब स्थायित्व और स्पष्टता आएगी। जिस तरह गडकरी आयकर अधिकारियों को धमकियां देते वापिस गए उससे पता चलता है कि वह इस बड़े पद के सर्वथा अनुपयुक्त थे। संघ को भी अपनी लक्ष्मण रेखा समझनी चाहिए। गलत लोगों को भाजपा पर लादने का गलत अंजाम निकलेगा। भाजपा वयस्क हो गई है इसे माईक्रो मैनेज करने का प्रयास नहीं होना चाहिए। आडवाणी जी को अब भाजपा का अगला प्रधानमंत्री तैयार करना चाहिए। सभी सर्वेक्षण और जनता की आवाज बता रही हैं कि यह नरेंद्र मोदी ही हो सकते हैं। शिक्षक भर्ती घोटाले में दोषी ओमप्रकाश चौटाला तथा अजय चौटाला को 10-10 साल की कठोर कैद सुनाई गई है जिससे उनके राजनीतिक जीवन पर सवालिया निशान लग गया है। अगर हाईकोर्ट से राहत नहीं मिलती तो उनकी पार्टी मटियामेट हो सकती है। चौटाला एक दबंग किसम के इंसान हैं। अपनी सेहत तथा विकलांगता के बावजूद वे अति सक्रिय रहे हैं। सारा दिन घूम सकते हैं। उन्होंने अपने पिता देवीलाल की लोकसम्पर्क की परंपरा जारी रखी है, पर जब सत्ता चंद लोगों के हाथ में आ जाए तो ऐसी भयंकर गल्तियां होती ही हैं जिनकी आगे चल कर कई बार बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। विशेष तौर पर एक परिवार पर आधारित राजनीति और प्रशासन, जैसा पंजाब सहित कई प्रदेशों में भी है, चलाने वालों को सावधान हो जाना चाहिए। अब क्योंकि चौटाला परिवार फंस गया है इसलिए पार्टी भी फंस गई है। सम्पत सिंह जैसे दूसरे जो नेता थे, वे सब धीरे-धीरे बाहर निकाल दिए गए हैं। अब सामने शून्य नजर आता है।
इनैलो के लिए यह घटनाक्रम बहुत बुरे समय आया है। अगले साल न केवल लोकसभा चुनाव हैं बल्कि विधानसभा के चुनाव भी हैं। पार्टी का समर्थन बढ़ रहा था कि यह धक्का लग गया। इस अदालती निर्णय से हरियाणा की राजनीति बदल जाएगी क्योंकि विपक्ष नेतृत्व विहीन हो गया है। भाजपा तथा कुलदीप बिश्नोई मिल कर कांग्रेस का विकल्प नहीं बन सकते। सबसे अधिक फायदा कांग्रेस तथा मुख्यमंत्री भूपिन्द्र सिंह हुड्डा को होगा। प्रदेश में इस वक्त उनके मुकाबले की कोई शख्सियत नहीं रही।
इस देश में परंपरा पड़ गई है कि बड़े लोग बड़े घपले करते हैं पर उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं होती। अब सवाल उठेगा कि और कौन-कौन नेता लाईन में हैं? सीबीआई की विश्वसनीयता भी शंका के घेरे में हैं क्योंकि मायावती या मुलायम सिंह यादव जैसे लोगों के खिलाफ यह कार्रवाई करने में नाकाम रही हैं। इस शिक्षक भर्ती घोटाले में दो आईएएस अफसर समेत 55 लोग दोषी पाए गए। कि आईएएस अफसर भी अनुचित करते रहे से पता चलता है कि हमारे प्रशासन की कितनी शोचनीय स्थिति है। लगभग हर प्रदेश से यह शिकायत है कि भर्ती तथा ठेकें देने के मामले में घोटाला किया जाता है। रिश्वत लेकर नौकरियां तथा ठेके दिए जाते हैं। इस मामले में पैसे का तो कोई जिक्र नहीं आया पर भर्ती की सूची भी क्यों बदली जाए? जिन्होंने मैरिट पर प्रवेश पाया था उनके साथ अन्याय क्यों हो? भर्ती में धांधली के कारण ही सरकारी सेवाओं का स्तर गिरा है। कि एक महिला आईएएस अफसर ने इस घोटाले का पर्दाफाश किया और इसे अदालत तक लेकर गई से आशा जगती है कि अभी भी ऐसे अधिकारी हैं जो भारी दबाव के बावजूद अपने कर्तव्य से समझौता करने को तैयार नहीं। वैसे तो हमारी राजनीति में कुछ भी निश्चित कहना संभव नहीं, आखिर लालू प्रसाद यादव, जयललिता तथा करुणानिधि जैसे लोग वापिस सत्ता में आ गए हैं। कुछ देर के बाद लोग भी भूल जाते हैं और माफ कर देते हैं पर इस वक्त तो चौटाला परिवार को गहरा सदमा लगा है।
कमल शर्मा पंजाब भाजपा के नए अध्यक्ष बन गए हैं। पंजाब की राजनीतिक तस्वीर ने धीरे-धीरे पंजाब भाजपा को अप्रासंगिक बना दिया है। अकाली दल को अपनी सरकार चलाने के लिए भाजपा की जरूरत नहीं रही। उनके पास अपने 58 विधायक हैं और अगर मोगा उपचुनाव वे जीत जाते हैं तो अकाली दल को पंजाब में पूर्ण बहुमत मिल जाएगा और भाजपा उनके लिए फिजूल बन जाएगी। पहले ही भाजपा मंत्रियों के विभागों में मंत्री की जानकारी के बिना अकाली नेताओं के काम हो रहे हैं। ठीक है अकाली दल संबंध नहीं तोड़ेगा। कम से कम जब तक प्रकाश सिंह बादल मुख्यमंत्री है या उनकी चलती है, वे भाजपा को साथ रखेंगे पर भाजपा को हरियाणा की ही तरह पंजाब में भी तमाम करने की सुखबीर बादल की नीति भी चलती रहेगी। झंडी वाली कार रहेगी, दफ्तर-कोठी सब रहेगा लेकिन प्रशासनिक दबदबा धीरे-धीरे खत्म हो जाएंगे।
कमल शर्मा का कहना है कि उनकी पार्टी मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व में सहज है पर उन्हें भी मालूम होगा कि पंजाब में सत्ता का बाप से बेटे की तरफ स्थानातंरण हो रहा है। अगर भाजपा नेताओं को उचित महत्त्व नहीं मिल रहा तो इसका कारण भी है कि बादल साहिब ने सत्ता की बागडोर सुखबीर को सौंप दी है। माघी मेले पर उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि ‘समय आ गया है कि मैं उन्हें जिम्मेवारी सौंप दूं और खुद काम से मुक्त हो जाऊं।’ देर सवेर यह होने वाला है। पंजाब विधानसभा में वह दुर्भाग्यपूर्ण दृश्य देखा गया जब अकाली-कांग्रेस टकराव को शांत करने के लिए उठ रहे मुख्यमंत्री बादल को उनके पुत्र ने बांह पकड़ कर बैठा दिया। अर्थात् इस वक्त मुख्यमंत्री बादल बेबस नजर आते हैं इसलिए भाजपा के नेतृत्व को सोचना चाहिए कि वे उन पर कितना निर्भर रह सकते हैं? पार्टी तेजी से जनसमर्थन खो रही है क्योंकि वे अपने वोट बैंक के हित का बचाव नहीं कर सके। जिस तरह भाजपा के विरोध के बावजूद शहरों पर जायदाद टैक्स ठोंक दिया गया उससे पता चलता है कि अकाली दल के युवा नेतृत्व को उनकी आपत्तियों की तनिक भी परवाह नहीं और भाजपा के नेताओं की हालत इतनी दयनीय बन गई है कि वे उस जयदाद टैक्स को ‘शहरी के हित में’ बता रहे हैं जो पंजाब में उनका सफाया कर जाएगा।
पहले ही पंजाब में प्रशासन का राजनीतिककरण हो चुका है। पश्चिम बंगाल में पहले मार्कसी पार्टी तथा अब तृणमूल कांग्रेस की तर्ज पर पंजाब में भी प्रशासन स्थानीय अकाली नेताओं के हवाले कर दिया गया है। यह ‘हल्का इंचार्ज’ अब हर विधानसभा क्षेत्र में राजनीतिक और प्रशासनिक केंद्र बिंदू बन गए हैं। पुलिस अफसर इनकी सिफारिशों पर लगाए जा रहे हैं। थाना, तहसील आदि सब उनके नीचे आते हैं। हाल ही में पंजाब में जो असुखद घटनाएं घटी हैं वे भी इस कारण ही घटी हैं क्योंकि राजनीति ने प्रशासन को विकलांग बना दिया है।
भाजपा का हाईकमान भी प्रदेश की परवाह नहीं कर रहा। चाहे बलवंत सिंह राजुआणा का मामला हो या स्वर्णमंदिर में ‘स्मारक’ बनाने की बात हो, भाजपा की आपत्ति की अकाली दल को कोई चिंता नहीं। जबकि लोग समझते हैं कि चंद कुर्सियों के लिए भाजपाईयों ने खुद को अकाली दल को बेच दिया है। कमल शर्मा का कहना तो है कि पार्टी का मान सम्मान निश्चित करवाना उनकी पहली प्राथमिकता होगी, पर यह होगा कैसे? अगर वे अकाली नेतृत्व का चमचा बन कर चलते रहे तो यह निश्चित तौर पर नहीं होगा। हां, अगर प्रदेश भाजपा अपना अलग पहचान कायम करने की कोशिश करे तो शायद कुछ सुधार हो सके पर इस समय तो आगे एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई नजर आती है।
-चन्द्रमोहन