शुद्ध देसी दंगा

शुद्ध देसी दंगा

मुजफ्फरनगर में जो कुछ हुआ उस पर साफ ‘मेड इन इंडिया’ का ठप्पा लगा हुआ है। सरकार चुपचाप तमाशा देखती रही। पुलिस अधिकारियों को निष्क्रिय बैठने को कहा गया। सरकारी अक्षमता, लापरवाही तथा राजनीतिक बदमाशी का यह घातक मिश्रण था। जिन अधिकारियों ने अपनी जिम्मेवारी निभाने का प्रयास किया उनके तबादले कर दिए गए। जो ‘प्राईम सस्पैक्ट’ पकड़े गए उन्हें छोडऩे के लिए कहा गया। गलत प्राथमिकी दर्ज करवाई गई। ऐसा केवल भारत में होता है। यह शुद्ध देसी दंगा था जहां वोटों की खातिर आग लगने दी गई, और जो बुझाना चाहते थे उन्हें बदल दिया गया।  इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच ने समाजवादी पार्टी के शासनकाल में हुए दंगों के बारे सरकार से दो सप्ताह में जवाब मांगा है। अदालत का सवाल था कि सपा के शासनकाल में अब तक कितने दंगे हुए हैं? इस मामले में कई आंकड़े हैं जो बड़े-छोटे दंगों की संख्या 40 से लेकर 100 तक बताते हैं। यह तो साफ है कि अखिलेश यादव सरकार सांप्रदायिक सौहार्द को कायम रखने में बिल्कुल निकम्मी रही है। मुजफ्फरनगर के दंगे जिसमें 50 लोग मारे गए और 40,000 के करीब राहत शिविरों में पहुंच गए 1992 में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद की उत्तर प्रदेश में सबसे गंभीर घटना है। 1992 के बाद पहली बार सेना को उतर प्रदेश में बुलाना पड़ा। और यह भी साफ है यह दंगे इस सरकार की पूरी नालायकी तथा कुछ राज नेताओं की मिलिभगत का परिणाम है। आखिर यह अचानक तो भड़के नहीं। पहली घटना जिसमें तीन लड़के मारे गए के पांच छ: दिनों के बाद अचानक आगजनी तथा हत्या का दौर शुरू हो गया। उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ मंत्री आजम खान ने इस असफलता के लिए स्थानीय प्रशासन को जिम्मेवार ठहराया है जबकि एक स्टिंग आप्रेशन में एक पुलिस अधिकारी का कहना था कि आज़म खान ने फोन कर उसे कहा था कि जो हो रहा है उसे होने दो। आज़म खान इसका प्रतिवाद करते हैं। केवल आज़म खान के मामले में ही नहीं बल्कि कई और पुलिस अधिकारियों ने भी माना कि शुरू में इन दंगों तथा पुलिस की निष्क्रियता के पीछे राजनीतिक कारण थे।

ये ही प्रभाव उत्तर प्रदेश के लोगों के बीच हैं। इसी कारण  मुस्लिम टोपी डाल कर जब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव प्रभावित इलाकों में गए तो उन्हें काले झंडे दिखाए गए। वे दंगो के लिए अपनी विरोधी पार्टियों, भाजपा, बसपा तथा कांग्रेस को जिम्मेवार ठहरा रहे हैं लेकिन असली जिम्मेवारी तो प्रशासन की है। अगर मायावती के पांच वर्ष के शासन में पूर्ण शांति रही थी तो अब क्या हो गया कि इतना भयानक दंगा हुआ है? इसका जवाब यही है कि सरकार सबसे बड़े  ‘सैक्यूलर’ नेता  मुलायम सिंह यादव के हाथ आ गई जो प्रदेश की शांति तबाह कर गए। सपा सरकार ने इन लपटों को शांत करने का प्रयास नहीं किया ताकि वहां ध्रुवीकरण हो सके और मुस्लिम वोट उनके पाले में और पक्का हो जाए। लेकिन यह योजना ‘मिसफायर’ कर गई और अब हालत है कि प्रमुख मुस्लिम संगठन ही सपा सरकार की बर्खास्तगी की मांग कर रहे हैं। अब पोल खुल गई है। हमारे कथित सैक्यूलर नेताओं का विश्वास केवल तमाशों में है। अगर आपने टोपी डाल ली तो आप सैक्यूलर हो गए अगर नरेंद्र मोदी की तरह डालने से इंकार कर दिया तो आप घोर सांप्रदायिक व्यक्ति हो चाहे आपके शासन में पिछले ग्यारह वर्ष में एक भी दंगा न हुआ हो। ममता बनर्जी जब मुस्लिम समुदाय के किसी कार्यक्रम में जाती है तो हिज़ब डाल लेती है। वह वहां नमाज भी अदा करती है। अपने धर्मनिरपेक्ष सर्टिफिकेट को पक्का करने के लिए ममता ने कोलकाता में कालीघाट में अपने निवास के बाहर हिज़ब में अपनी बड़ी फोटो टांग रखी है। यह उनकी व्यक्तिगत इच्छा का मामला है मुझे आपत्ति नहीं है पर क्या कारण है कि उनके तथा उनसे पहले सैक्यूलर कामरेडों के शासन के बावजूद पश्चिम बंगाल के मुसलमान सबसे पिछड़े हैं? जवाहरलालजी जो वास्तव में धर्म निरपेक्ष थे, को कभी नमाज़ अदा करने की जरूरत नहीं पड़ी। कभी इफ्तार पार्टी नहीं दी। कभी मुस्लिम टोपी नहीं डाली। खुद को ‘पंडितजी’ कहलाने में कोई हिचक नहीं थी। आज ऐसे सैक्यूलर नेता आगे आ गए हैं जो केवल दिखावे में विश्वास रखते हैं। तुष्टिकरण को कला में परिवर्तित कर दिया है पर वे न मुसलमानों की हिफाज़त कर सके न उनका सही विकास ही कर सके। केवल लहू लगा कर शहीद बनने का प्रयास किया जा रहा है। दंगा पीडि़तों के बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का कहना था कि आरोपियों को सख्त सज़ा दिलवाई जाएगी। लेकिन क्या इस देश में कोई इस प्रधानमंत्री के कथन पर विश्वास कर सकता है? कहने को तो वह कुछ भी कह सकते हैं चाहे महंगाई कम करने का वायदा हो या कोयला मंत्रालय की गुम फाईलों का मामला हो।

विकास न होने के मामले में यह समुदाय खुद भी दोषी है क्योंकि कट्टरवादियों ने उनके ईद-गिर्द जो रेखा खींची है उससे वह बाहर नहीं निकल रहे। उत्तर प्रदेश तथा बिहार के मुसलमान देश में सबसे पिछड़े हैं। फिर उन सैक्यूलरिस्टो का समर्थन करने का क्या फायदा हुआ जो बातें तो अच्छी करते हैं पर उनके कल्याण के लिए कुछ ठोस करने को तैयार नहीं? शिक्षा के क्षेत्र में भी मुसलमान पिछड़े हैं। वीडियो न लो, तस्वीर न खींचों, जैसे फिज़ूल फतवे भी मुसलमानों को मुख्यधारा में शामिल होने से रोकते हैं जबकि उनका कल्याण केवल मुख्यधारा में शामिल होने में है। कथित सैक्यूलरिस्ट उन्हें अलग डिब्बे में बंद कर रहे हैं ताकि चुनाव के समय इनका इस्तेमाल किया जा सके। अब भी नरेंद्र मोदी का हौवा दिखा कर वोट इकट्ठे करने का प्रयास कर रहे हैं। मुसलमानों की बढ़ती जनसंख्या भी उनकी समस्या है। 2012 में आईआईएम अहमदाबाद के एक सर्वेक्षण के अनुसार खुश करने के प्रयासों के बावजूद मुसलमानों को ठोस आर्थिक फायदा नहीं हुआ। वे अभी भी पिछड़े हैं।

देश में दंगे नहीं होने चाहिए। अब यह ‘मेड इन इंडिया’ दंगे बंद होने चाहिए। किसी की हत्या नहीं होनी चाहिए। किसी का घर जलाया नहीं जाना चाहिए। आपस में लड़ाई नहीं होनी चाहिए। हमने सोचा था कि अब देश आगे बढ़ गया है अब कोई गुलशन नहीं उजड़ेगा। मुजफ्फरनगर की घटनाएं एक बड़ा धक्का है। हमारे नेता बदलने के लिए तैयार नहीं। अपनी तुच्छ राजनीति के कारण वे आग भी लगवा सकते है और बुझाने वालों को अपने काम करने से भी रोक सकते हैं। आईबी की रिपोर्ट कह रही है कि दंगे रुक सकते थे पर सरकार ने पुलिस प्रशासन के हाथ बांध दिए। एक बात और। प्रधानमंत्री, सोनिया गांधी तथा राहुल गांधी मुस्लिम पीडि़तों से मिल कर लौट गए लेकिन उन्होंने उन जाटों से मिलना मुनासिब नहीं समझा जो भी दंगा पीडि़त है। मरहम लगाने का काम एक पक्षीय नहीं होना चाहिए। न ही कोई किश्तवाड़ा में पीड़ितों का हाल पूछने ही गया इसलिए क्योंकि वहां नुकसान हिन्दू समुदाय का हुआ है? पर याद रखना चाहिए दंगा दंगा है, चाहे यह मुजफ्फरनगर में हो या किश्तवाड़ में।

chander_m@ hotmail.com

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.

2 Comments

  1. दंगो का बहुत ठीक विश्लेषण किया है आपने. काश हमारे तथाकथित सेक्युलर नेता अपनी वोट बैंक की राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रीयता का परिचय देते. समय आएगा जब देश मुलायमसिंह और ममता बनर्जी जैसे नेताओं को उनकी मानसिकता के अनुसार सही पाठ पढ़ाएगा.

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  2. you have analyzed the problem of communal clashes very well. The nation will teach a right lesson to the so called secularists like Mulayam Singh and Mamta Banerjee who leave no opportunity to blindly favour a particular community in the name of secularism.

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