हवा का रुख
पांच विधानसभाओं के चुनाव राजनीति की भावी तस्वीर काफी हद तक साफ कर देंगे। इनमें से चार, मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ तथा दिल्ली में भाजपा तथा कांग्रेस में सीधी टक्कर है। अगर भाजपा इनमें से तीन भी ले जाने में सफल हो गई तो यूपीए II में बेचैनी बढ़ेगी। अगर भाजपा इन चारों को अच्छी तरह से जीतने में सफल रहती है तो फिर तो इस सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी। नरेंद्र मोदी का पार्टी में बचा खुचा विरोध भी खत्म हो जाएगा। दूसरी तरफ अगर कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा रहता है तो केंद्रीय सरकार को स्थायित्व मिलेगा और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर सवालिया निशान लगेगा। पार्टी के अंदर उनके लाल कृष्ण आडवाणी जैसे विरोधी कह सकेंगे कि हमने सही कहा था कि मोदी को लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित मत करो। कांग्रेस के बेहतर प्रदर्शन की स्थिति में राहुल गांधी की जयजयकार सुनने के लिए भी तैयार रहिए। पार्टी में दरबारिए राहुल का गुणगान करने के लिए एक दूसरे को पछाड़ने का प्रयास करेंगे। पर हां, अगर कांग्रेस को यहां धक्का मिलता है तो इसका ठीकरा स्थानीय नेताओं के सर फोड़ा जाएगा कि शीला दीक्षित तथा अशोक गहलोत सही सरकार नहीं दे सके, राहुलजी का कोई कसूर नहीं।
ये चुनाव हवा का रुख बताएंगे, और इसे तय भी करेंगे। जिस पार्टी का खराब प्रदर्शन होगा लोकसभा चुनाव में उसकी संभावना पर बुरा असर पड़ेगा। यूपीए तथा कांग्रेस के लिए मुश्किल स्थिति नजर आती है। देश में इनके शासन के विरोध में हवा चल रही है। महंगाई तथा भ्रष्टाचार के कारण सरकार तथा पार्टी बदनाम है। ऊपर से अध्यादेश को लेकर राहुल गांधी ने जिस तरह मनमोहन सिंह सरकार की अवमानना की है उससे यह सरकार लड़खड़ाती नजर आ रही है। इस सबका असर पड़ेगा। चाहे विधानसभा के चुनाव अधिकतर स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाते हैं, फिर भी केंद सरकार की बदनामी तथा नाकामी अतिरिक्त बोझ होगा जो कांग्रेस के स्थानीय नेताओं को उठाना पड़ेगा। कांग्रेस के लिए यह भी समस्या है कि भाजपा की मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ सरकारों का प्रदर्शन अच्छा रहा है। उनके खिलाफ शासन विरोधी भावना नजर नहीं आती। शिवराज सिंह चौहान सरकार का प्रदर्शन विशेषतौर पर बढिय़ा रहा है। मध्यप्रदेश अब ‘बीमारू’ नहीं रहा। छत्तीसगढ़ में रमन सिंह के लिए मई में नक्सलवादी हमले में कांग्रेस के नेतृत्व का खात्मा बड़ी समस्या है पर वहां कांग्रेस अभी भी एक विभाजित घर हैं। अजीत जोगी नेता उभरने का प्रयास तो कर रहे हैं लेकिन उनकी टांग खींचने वाले भी बहुत हैं। राजस्थान की सरकार ने कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू की हैं लेकिन मंत्रियों की बदनामी तथा भ्रष्टाचार ने सरकार की छवि खराब कर दी है। भाजपा की पूर्व मुख्यमंत्री विजयाराजे सिंधिया जबरदस्त टक्कर दे रही हैं।
कांग्रेस के लिए सबसे अच्छी खबर दिल्ली से है जहां शीला दीक्षित अप्रत्याशित चौथी बार जनादेश मांग रही है। यहां आम आदमी पार्टी (आप) के कारण मुकाबला दिलचस्प बन गया है। नरेंद्र मोदी की विशाल रैली के बावजूद भाजपा अभी भी पीछे नजर आ रही है क्योंकि उनके पास यहां शीला दीक्षित या शिवराज सिंह चौहान, रमन सिंह या विजयाराजे सिंधिया जैसा कोई दमदार चेहरा नहीं हैं। विजय गोयल किसी को उत्साहित नहीं करते। वह शीला दीक्षित का मुकाबला नहीं कर सकते। लोग केवल पार्टी ही नहीं, चेहरा देख कर भी वोट देते हैं। ऊपर से पार्टी बुरी तरह से विभाजित है। हैरानी है कि सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी जो अगली बार सरकार बनाने का दावा कर रही है, के पास देश की राजधानी में एक भी ऐसा नेता नहीं जिसे लोग दिल से चाहते हों। सब सत्ता के सौदागर नजर आते हैं। अरविंद केजरीवाल लगातार ताकत हासिल करते जा रहे है। उनकी कांग्रेस तथा भाजपा को बराबर चुनौती है लेकिन नुकसान अधिक भाजपा का होगा क्योंकि वे शासन विरोधी वोट को काट रहे हैं। अगर राष्ट्रमंडल घोटाले, राजधानी में सामूहिक बलात्कार, महंगाई, डेंगू, असुरक्षा की भावना के बावजूद शीला दीक्षित चौथी बार चुनाव जीत जाती है तो इसके लिए भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व जिम्मेवार है जो आकर्षक विकल्प खड़ा नहीं कर सका। बहुत कुछ अब नरेंद्र मोदी की लहर पर निर्भर करता है लेकिन मोदी ने दिल्ली का मुख्यमंत्री तो बनना नहीं और मानना पड़ेगा कि शीला दीक्षित का अपना योगदान है। उनके 15 वर्षों में दिल्ली की हालत सुधरी है।
दागी नेताओं को बचाने के अनाड़ी सरकारी प्रयास के असफल होने के बाद यह पहले चुनाव होंगे। देखना है कि राजनीतिक दल इस प्रकरण से सही सबक लेते हैं या नहीं और अपराधियों को राजनीतिक मैदान से दूर रखते हैं या नहीं? उन्हें भी समझ लेना चाहिए कि लोग अब सब देख रहे हैं और जो जनता के मूड के खिलाफ जाएगा उसे जनता सजा देने को भी तैयार है। इस चुनाव में मतदाताओं को सभी उम्मीदवारों को नकारने का भी अधिकार मिल जाएगा। अगर किसी चुनाव में इस बटन को दबाने वालों की संख्या मतदान करने वालों से अधिक हो गई तो नए सवाल खड़े होंगे।
बहरहाल दिलचस्प समय आ रहा है। कांग्रेस पार्टी के लिए बड़ी समस्या नजर आती है क्योंकि केंद्र की सरकार के खिलाफ जनभावना साफ नजर आ रही है। सरकार ‘आ बैल मुझे मार’ सिद्धांत का प्रयोग करते हुए आंध्र प्रदेश में तेलंगाना के मुद्दे को लेकर भी बुरी तरह फंस गई है। ऊपर से अगर यह विधानसभा चुनाव परिणाम भी उलटे रहे तो कई सहयोगी बिदक सकते हैं। पूरी अवधि तक सरकार चलाना मुश्किल हो जाएगा।
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