
यह इश्क नहीं आसान
नरेन्द्र मोदी -नवाज शरीफ मुलाकात से कुछ बदलाव आएगा? कि नवाज शरीफ को निमंत्रण स्वीकार करने में तीन दिन लग गए जिससे पता चलता है कि अपने देश के अंदर ताकतवार भारत विरोधी ताकतों को मनाना उनके लिए कितना कठिन काम रहा होगा। मोदी के शपथ ग्रहण से तीन दिन पहले हेरात में हमारे दूतावास पर हमला करवा पाकिस्तान की आईएसआई ने अपनी ही सरकार को भारत के प्रति अधिक गर्मजोशी दिखाने के खिलाफ चेतावनी दी थी। नवाज शरीफ बारे दो सवाल उठते हैं, (1) क्या वे भारत के साथ वास्तव में संबंध बेहतर करना चाहते हैं? (2) क्या वे ऐसा कर भी सकते हैं?
इस्लामाबाद में भारत के पूर्व राजदूत जी पार्थसारथी का कहना है कि बहुत कम भारतीय नेता नवाज शरीफ से निबटना जानते हैं। मामला कारगिल से संबंधित है। जिस वक्त वाजपेयी संबंध बेहतर करने के लिए लाहौर गए उसी वक्त पाकिस्तान कारगिल पर चढ़ाई की तैयारी कर रहा था। जब बाद में वाजपेयी ने शिकायत की कि मियां साहिब यह क्या हो गया, तो नवाज शरीफ का जवाब था कि मुझे तो अंधेरे में रखा गया जबकि पार्थासारथी का कहना है कि पाकिस्तान के वज़ीरे आज़म को रावलपिंडी तथा स्कारदू में कारगिल के बारे ब्रीफ किया गया था। और भी कई लोग दावा कर चुके है कि कारगिल के बारे नवाज शरीफ ने सच्चाई बयान नहीं की थी उन्हें इसके बारे जानकारी नहीं थी। अपनी किताब ‘अवौयडिंग आरमागैडोन’ में ब्रूस रीडल भी लिखते हैं कि यह अविश्वसनीय है कि मुशर्रफ ने नवाज शरीफ को कुछ नहीं बताया होगा। तो फिर क्या पाकिस्तान के प्रधानमंत्री झूठ बोल रहे हैं? क्या कारगिल में इतने बड़े धोखे में वे भी शामिल थे? तथ्य तो यही बताते हैं। नवाज शरीफ शुद्घ राजनेता हैं जो अपनी चतुरता से पाकिस्तान की गला काट सियासत में कायम हैं। शायद पी.वी. नरसिंहा राव को छोड़ कर भारत का कोई भी नेता नवाज शरीफ की गहराई को नाप नहीं सका। दोनों वाजपेयी तथा मनमोहन सिंह वहां तक पहुंचते पहुंचते थक गए थे।
पाकिस्तान पंजाब के मुख्यमंत्री तथा उनके छोटे भाई शहबाज़ शरीफ पंजाब स्थित आतंकी संगठनों को खुली सहायता दे रहे हैं। हमारे पंजाब में नशे की तस्करी भी पाकिस्तान पंजाब से हो रही हैं। नवाज शरीफ के लिए अपना राजनीतिक तथा शारीरिक बचाव प्राथमिकता रखता है इसलिए उन्होंने कभी भी भारत विरोधी तत्वों के खिलाफ मजबूत कदम नहीं उठाया। आज तक मुंबई पर हुए 26/11 के हमले के दोषियों को सज़ा नहीं दी गई। न ही हमारे खिलाफ आतंकी घटनाएं ही रुकी हैं। इसी के साथ दूसरा मामला भी नत्थी है कि क्या पाकिस्तान की सरकार अपने घर की मालिक भी है? कराची हवाई अड्डे पर हमले के बाद यह सवाल और भी प्रासंगिक हो गया है। पाकिस्तान की मानसिकता अतीत से जकड़ी हुई है वह दक्षिण एशिया की हकीकत को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं। जिया-उल-हक ने जसवंत सिंह को बताया था कि अगर पाकिस्तान उग्र तौर पर इस्लामिक नहीं रहता तो वह एक बार फिर भारत बन जाएगा। पाकिस्तान के साथ रिश्तों में ब्रेकथ्रू की संभावना नहीं है।
अगर पाकिस्तान आतंरिक तौर पर कट्टर इस्लामी देश बनना चाहता है तो आपत्ति नहीं है पर वहां यह समझ लिया गया है कि कट्टर इस्लामी होने का मतलब भारत दुश्मनी है। इसकी कीमत उन्होंने बहुत चुकाई है। तेज़ी से पाकिस्तान अपना क्षेत्र तथा अपनी संस्कृति उस विचारधारा को खो रहा है जो खुद को प्राचीन मुगल विजय से जोड़ती है। इसलिए ‘हिन्दू’ भारत के साथ समझौता नहीं हो सकता। इस बीच भारत में नरेंद्र मोदी की सरकार कायम हो गई है। ब्रूस रीडल का कहना है कि इस्लामाबाद मोदी को सुहावना वातावरण बनाने का समय नहीं देगा। हेरात में दूतावास पर हमला करवा कर इसका संकेत दे ही दिया गया है। कारगिल या मुंबई 26/11 अलग तरीके से दोहराए जा सकते हैं। नए प्रधानमंत्री को संबंध बेहतर करने का प्रयास करना चाहिए पर अगर पाकिस्तान आतंकी तथा विरोधी गतिविधियों से बाज़ नहीं आता तो इसकी उनके द्वारा चुकाई जाने वाली कीमत हमें इतनी बढ़ानी होगी कि वह बर्दाश्त न कर सके। नरेंद्र मोदी ने नवाज शरीफ को बुला कर और नवाज शरीफ ने यहां आकर दिलेरी जरूर दिखाई है, लेकिन पाकिस्तान अतीत के बोझ से दबा हुआ है इसलिए कहना पड़ेगा कि यह इश्क आसान नहीं होगा क्योंकि आग का दरिया पार करने को कोई तैयार नहीं। अभी से नवाज शरीफ की यात्रा की वहां आलोचना हो रही है। एक्सप्रैस ट्रिब्यून ने लताड़ा है कि ‘वे गए तो बधाई देने पर कारण बताओ नोटिस के साथ वापिस लौट आए!’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सितंबर में वाशिंगटन में राष्ट्रपति बराक ओबामा से मिलेंगे। इस नाटकीय घोषणा से एक बार फिर साफ होता है कि नए प्रधानमंत्री अतीत के कैदी नहीं हैं। जिस तरह का सलूक उनके साथ ओबामा की सरकार ने किया उसके बाद आशंका थी कि मोदी अमेरिका की तरफ दोस्ती का हाथ इतनी जल्द नहीं बढ़ाएंगे। टाईम मैग्जिन के एडिटर एट लार्ज फरीद ज़कारिया ने अमेरिका के मोदी के प्रति रवैये को ‘अमरीकी पाखंड’ करार दिया है। अमेरिका को भी इसका अहसास था इसीलिए जब यह तय हो गया कि मोदी प्रधानमंत्री बनने वाले हैं तो अमेरिका की नीति में फटाफटा परिवर्तन कर दिया गया। मोदी भी प्रदर्शित कर रहे हैं कि उनकी विदेश नीति व्यवहारिक होगी और पूर्वाग्रहों पर आधारित नहीं होगी। जार्ज बुश के समय में जो गर्मजोशी देखी गई वह इस वक्त गायब है। बराक ओबामा डा. मनमोहन सिंह की बहुत इज्जत करते हैं लेकिन जिस तरह अपने दूसरे शासनकाल में पूर्व प्रधानमंत्री ने लगाम ढीली छोड़ दी थी उससे भारत के मित्र भी परेशान थे कि इस देश का क्या होगा जो आगे बढ़ने से इंकार कर रहा है? नरेंद्र मोदी के आने से ही भारत की छवि सुधरने लगी है। अमेरिका के प्रमुख अखबार द वॉल स्ट्रीट जरनल में एक लेख का शीर्षक था INDIA IS BACK, अर्थात् भारत की वापिसी हो रही है। दुनिया ताकत को तथा निर्णायक नेतृत्व का सम्मान करती है। अब वाशिंगटन में नरेंद्र मोदी बराक ओबामा से मिलेंगे। दोनों ने ही विपरीत परिस्थितियों पर विजय पाई है। लेकिन दोनों जानते हैं कि पिछले कुछ समय में भारत और अमेरिका के रिश्तों की गर्मजोशी गायब हो गई। इसे कायम करना तथा आपसी अविश्वास खत्म करना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। बाकी सब कुछ खुद ही सही हो जाएगा। अमेरिका और चीन के बीच, तथा चीन तथा जापान के बीच संतुलन कायम करना मोदी सरकार के लिए अलग चुनौती होगी।
अंत में: कटुता समाप्त करते हुए प्रधानमंत्री ने विदेश मंत्रालय सुषमा स्वराज को सौंप दिया है और नाराज़ जसवंत सिंह को भी पत्र लिखा है। दोनों ही बहुत प्रतिभाशाली हैं इनके अनुभव का नई सरकार को लाभ होगा। पुराना किस्सा याद आता है। ब्लिटज़ के संपादक रूसी करंजिया मोरारजीदेसाई के कट्टर विरोधी थे। पत्रकारिता की कोई गाली नहीं जिसका करंजिया ने देसाई के खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया होगा। फिर 1977 में देसाई प्रधानमंत्री बन गए। बहुत हिम्मत जुटा कर एक दिन करंजिया उन्हें मिलने गए पर देसाई बहुत शालीनता से उन्हें मिले। हैरान करंजिया ने पूछा ‘आप मेरे से नाराज़ नहीं? मैंने तो आपका इतना विरोध किया था?’ देसाई का जवाब था, ‘आपने मोरारजीदेसाई का विरोध किया था, आप भारत के प्रधानमंत्री से मिल रहे हैं।’ बहुत संतोष है कि उदारता की परंपरा को दूसरे गुजराती प्रधानमंत्री ने संभाल लिया जो पहले गुजराती प्रधानमंत्री ने कायम की थी। दोनों में समानता यहां तक ही सीमित नहीं। प्रधानमंत्री देसाई ने एमरजैंसी के बाद देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को कायम किया था। प्रधानमंत्री मोदी सोनिया-मनमोहन सिंह के कुशासन के बाद देश का इकबाल कायम कर रहे हैं।
यह इश्क नहीं आसान,