जो मौज़ों से बढ़ बढ़ कर खेले

जो मौज़ों से बढ़ बढ़ कर खेले

ठीक है भाजपा को महाराष्ट्र में बहुमत नहीं मिला पर यह नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व तथा अमित शाह की जोड़ी नम्बर I की राजनीतिक क्षमता का कमाल है कि पहली बार महाराष्ट्र तथा हरियाणा में भाजपा के मुख्यमंत्री बनेंगे। ऐसी कामयाबी तो अटलजी को भी नहीं मिली थी। यह परिणाम फिर साबित कर गए कि जब नरेन्द्र मोदी निकल पड़े तो कोई उनकी बराबरी नहीं कर सकता। मोदी ने जोखिम उठाया और आगे आकर नेतृत्व दिया। अगर पार्टी हार जाती तो राष्ट्रीय स्तर पर नरेन्द्र मोदी की प्रतिष्ठा को धक्का पहुंचता लेकिन जैसे कहा गया है,
मिले हैं साहिल तो उन्हें ही मिले हैं,
सफीने जो मौज़ों से बढ़-बढ़ कर खेले।
हुड्डा को ‘दामादजी’ डुबो गए तो महाराष्ट्र में पृथ्वीराज चव्हाण ने स्वीकार किया कि उन्होंने गठबंधन के कारण भ्रष्टाचार को बर्दाश्त किया। यह कैसा बचाव है? लेकिन असली कहानी भाजपा के नेतृत्व की जीत की है। कई बार एहसास होता है कि नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री तो मई 2014 में बने थे लेकिन उन्होंने इस जिम्मेवारी के लिए तैयारी बहुत पहले शुरू कर दी थी। उन्होंने देश के मूड को भांप लिया था कि लोग मनमोहन सिंह सरकार द्वारा पैदा की गई बेबसी, थकावट तथा उदासी की भावना को हटाना चाहते हैं। चाहे मेक इन इंडिया हो या स्वच्छ भारत हो या श्रमेय जयते हो या स्मार्ट सिटी हो या बुलेट ट्रेन हो, नए विचार आगे लाए जा रहे हैं ताकि लोग उत्साहित हो सकें। विकास तथा गवर्नेंस पर जोर दिया जा रहा है। मोदी तो एक-एक कर कांग्रेस से उसके आदर्श छीनते जा रहे हैं। महात्मा गांधी का सब आदर करते हैं लेकिन मोदी पहले भाजपा नेता हैं जिन्होंने जवाहर लाल नेहरू तथा इंदिरा गांधी की तारीफ की है। केवल एक जगह इस सरकार ने निराश किया है यह विदेशों में जमा काले धन के बारे है। चुनाव अभियान के दौरान कांग्रेस पर इस मुद्दे को लेकर ताबड़तोड़ हमले करने के बाद भाजपा सरकार पीछे हटती नज़र आ रही है।
यह आभास भी मिलता है कि प्रधानमंत्री मोदी के ज़हन में ‘आइडिया आफ इंडिया’ बहुत स्पष्ट है। उन्हें मालूम है कि वह क्या चाहते हैं और देश को उन्हें किधर ले जाना है। देश में स्थिति मोदी बनाम बाकी बनती जा रही है जिसमें मोदी इक्कीस रह रहे हैं। देश तेज़ी से युवा हो रहा है। युवा की अपनी आकांक्षाएं हैं। मोदी उन्हें परिवर्तन का सपना दिखा रहे जबकि कांग्रेस तथा सहयोगियों के पास मोदी पर हमला करने के सिवाय कुछ नहीं है। भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने के लिए जातिवाद, नकली सैक्युलरवाद तथा क्षेत्रवाद का सहारा लिया गया। प्रादेशिक सूबेदारों की तुगलकी मनमानी के दिन भी खत्म हो रहे हैं। लेकिन यह जनादेश केवल कांग्रेस के खिलाफ ही नहीं है, यह सकारात्मक जनादेश भी है कि लोग सही सरकार तथा विकास के लिए वोट डाल रहे हैं। वह फिर अपने देश के बारे उत्साहित होना चाहते हैं। चीन के दबाव में न झुक कर तथा पाकिस्तान की फायरिंग का माकूल जवाब देकर मोदी ने अपनी प्रतिष्ठा तथा अपने प्रति भरोसा और बढ़ाया है।
शरद पवार ने भाजपा को महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए समर्थन देने की घोषणा की है। एक बार फिर पवार यह सिद्ध कर गए कि उन्हें भारत की राजनीति का ‘मौसम का मुर्गा’ अनावश्यक नहीं कहा जाता। 2017 में मुम्बई निगम के चुनाव हैं। भाजपा इसे हथियाने की कोशिश करेगी आखिर इसका 30,000 करोड़ रुपए का बजट है। लेकिन इससे भी जरूरी पार्टी ने महाराष्ट्र तथा मुम्बई में सुशासन देना है जिसका वायदा प्रधानमंत्री मोदी ने देश और विदेश में किया है। महाराष्ट्र को लूटा गया है जिसके लिए पवार की एनसीपी सबसे अधिक जिम्मेदार है। अजीत पवार तो भ्रष्टाचार के पर्यायवाची बन गए हैं। उद्धव ठाकरे अपने अहंकार तथा सीएम बनने की महत्वाकांक्षा में मारे गए। चुनाव अभियान के दौरान भी अव्वल दर्जे की बदतमीजी की गई। प्रधानमंत्री के पिता का नाम लेकर बकवास किया गया। क्या अब राजनीतिक हमले मां-बाप को लेकर होंगे? देश के प्रधानमंत्री को ‘चायवाला’ कहा गया। भाजपा के नेतृत्व की अफजल खान तथा उसकी सेना के साथ तुलना की गई। भूतपूर्व कार्टूनिस्ट का यह परिवार शिवाजी का वारिस कहां से हो गया? राजनीति में कभी भी इस हद तक नहीं जाना चाहिए कि बाद में इकट्ठा आना मुश्किल हो जाए।
हरियाणा में चौटाला परिवार भी घाटे में रहा। भाजपा के पास वहां कोई लीडर नहीं था, न ही संगठन था लेकिन मोदी लहर में वह अपनी सीटें 4 से बढ़ा कर 47 करने में सफल रही।  दुष्यंत चौटाला की हार में भी यह संदेश छिपा है कि जो पार्टियां केवल एक परिवार पर निर्भर रहती हैं लोग उनसे ऊब चुके हैं। उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव परिवार तथा पंजाब में बादल परिवार को दीवार पर लिखा पढ़ लेना चाहिए। ओमप्रकाश चौटाला को भी अपने दो पुत्रों, पौत्र, पुत्रवधु से बाहर कुछ नज़र नहीं आता। हर चुनौती का सामना करने के लिए परिवारजनों को आगे नहीं किया जा सकता। खुद चौटाला ने यह कह कर कि वह तिहाड़ जेल से शपथ लेंगे देश की व्यवस्था का मज़ाक उड़ाया था।
लेकिन सबसे बुरी गत कांग्रेस पार्टी की बन रही है जो अपने बारे कह सकते हैं,
एक वह है जिन्हें तस्वीर बना आती है
एक हम है कि लिए अपनी ही सूरत को बिगाड़!
पुत्रमोह में सोनिया गांधी ने पार्टी की ही कुर्बानी दे दी। राहुल में न दम है, न ही दिलचस्पी लगती है। जिम्मेवारी जबरदस्ती गले में डाली जा रही है। आज कांग्रेस का संकट 1977 से भी बड़ा है। उस वक्त इंदिरा गांधी थीं जो पार्टी में जान फूंक सकने की क्षमता रखती थीं आज कोई नहीं। पुत्र से चिपके रहने के कारण सोनिया खुद मोदी के ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ के आह्वान को बल दे रही हैं और धीरे-धीरे यही हो रहा है। अगर सोनिया पुत्रमोह नहीं छोड़ती तो कांग्रेस एक प्रादेशिक पार्टी जैसी बन जाएगी। शशि थरूर जैसे होशियार लोग अनावश्यक नरेन्द्र मोदी की तारीफ नहीं कर रहे। अगले साल के शुरू में जम्मू कश्मीर में होने वाले चुनाव भी निर्णायक होंगे। जैसे मैंने पहले भी लिखा है कि अगर भाजपा यहां अपनी सरकार बनाने में सफल रहती है और वहां पहली बार हिन्दू मुख्यमंत्री बनता है तो यह देश पर उपकार होगा। अब दिल्ली के चुनाव करवा लिए जाने चाहिए यह लटकती स्थिति दिल्ली वासियों के साथ अन्याय है। 2017 में पंजाब में चुनाव होंगे। अकाली नेतृत्व को चिंतित होना चाहिए। वास्तव में बहुत चिंतित होना चाहिए।
आखिर में यह नरेन्द्र मोदी तथा उनके सहयोगी अमित शाह की विजयगाथा है। नरेन्द्र मोदी का स्वच्छ भारत अभियान कांग्रेस की ही सफाई कर गया। प्रधानमंत्री के करिश्माई व्यक्तित्व तथा भाजपा अध्यक्ष के राजनीतिक कौशल ने भाजपा को ऐसी सेना बना दिया है जो कोई भी लड़ाई जीत सकने की क्षमता दिखा रही है। दीवाली मुबारिक!

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.