राजदूत अद्भुत
भारत को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता मिलेगी, और समय सीमा में मिलेगी? भारत सरकार की कोशिश है कि संयुक्त राष्ट्र के इस 70वें वर्ष में सुरक्षा परिषद में सही विस्तार हो जाए। प्रधानमंत्री मोदी जोर भी बहुत लगा रहे हैं। यह हास्यस्पद है कि भारत बाहर है और ब्रिटेन-फ्रांस-रूस जैसी घटती ताकतें स्थायी सदस्य हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा में सुधार के लिए जो सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित हुआ उससे पता चलता है कि जमीन से आवाज उठ रही है पर अमेरिका, चीन और रूस का रवैया असहयोगपूर्ण है। बराक ओबामा हमारी स्थायी सदस्यता की हिमायत तो कर चुके हैं लेकिन अमेरिका सक्रियता से इस बारे हाथ हिलाने को तैयार नहीं। चीन नहीं चाहेगा कि भारत तथा जापान वीटो सम्पन्न स्थायी सदस्य बनें। अर्थात् सुरक्षा परिषद की डगर बहुत कठिन है लेकिन विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र तथा दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या वाले देश भारत को अधिक देर बाहर नहीं रखा जा सकता। और एक दिन अमेरिका को अपना दोमुहांपन छोड़ना पड़ेगा। पाकिस्तान तथा इटली जैसे देश विस्तार का विरोध कर रहे हैं। इटली का महत्व नहीं रहा और पाकिस्तान सब जानते हैं कि एक अंतरराष्ट्रीय सिरदर्द है।
भारत, जर्मनी, ब्राजील तथा जापान चार देश मिल कर सुरक्षा परिषद में सुधार के लिए प्रयास कर रहे हैं कि अतीत की ताकतों की जगह भविष्य की ताकतें लें। मामला बहुत जटिल है लेकिन अगर सदस्य देशों का भारी समर्थन होगा तो बड़ी ताकतों को भी न चाहते हुए बदलना पड़ेगा। हमारी सभ्यता ने विश्व में बहुत योगदान डाला है। चार बड़े धर्मों की यह भूमि जननी है। विज्ञान से लेकर गणित और दर्शनशास्त्र के क्षेत्र में हमारा बड़ा योगदान है। हमें अब विश्व मंच पर अपनी न्यायोचित जगह चाहिए। अगर संयुक्त राष्ट्र में सुधार नहीं होते तो यह संस्था अप्रासंगिक बन जाएगी जैसे पहले लीग आफ नेशन्स बनी थी।
यह सही है कि भारत जहां तक पहुंचा है उसमें पिछली सरकारों का बराबर योगदान रहा है। दिशा परिवर्तन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के समय शुरू हुआ जिसे अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार और आगे लेकर गई जब दुनिया के बड़े शहरों में जसवंत सिंह तथा स्ट्रॉब टेलबॉट के बीच लगातार बैठकें होती रहीं। डा. मनमोहन सिंह की सरकार ने अमेरिका के साथ परमाणु समझौता कर अंतरराष्ट्रीय संतुलन भारत के पक्ष में बदल दिया लेकिन भारत के बारे दुनिया के नजरिए में असली परिवर्तन नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद आया है। इन संक्षिप्त 15 महीनों में भारत बराबर विश्व शक्ति उभर गया है। विपक्ष उनकी यात्राओं को लेकर जितनी भी मूर्खतापूर्ण आपत्तियांं करे नरेन्द्र मोदी ने विश्व मंच पर अपनी सक्रियता तथा समझ से भारत को मज़बूती से स्थापित कर दिया है। रविवार रात को सिलिकॉन वैली में उनके भाषण, सवाल जवाब, उनकी प्रतिक्रिया सुन कर तो यह आभास मिलता है कि वह बहुत समय से इस भूमिका की तैयारी कर रहे थे। ठीक है कि उनके कई प्रयास अभी भी पूरी तरह से सफल नहीं हुए हैं पर नई सोच तो है, नया ‘विजन’ है। स्वच्छ भारत अभियान का असर हो रहा है, चाहे धीरे-धीरे। डिजिटल इंडिया के अपने सपने पर विस्तार से बता कर कि वह टेक्नोलोजी के द्वारा अपने लोगों को ऊपर उठाना चाहते हैं, नरेन्द्र मोदी ने विशेष तौर पर आईटी की दीवानी नई पीढ़ी को अपने साथ जोड़ लिया है।
अपने नेतृत्व से हताश कांग्रेस प्रधानमंत्री की यात्राओं पर हो रहे खर्च पर सवाल उठा रही है। यह भी पूछा जा रहा है कि इसका कितना फायदा हुआ? नरेन्द्र मोदी को ‘अप्रवासी प्रधानमंत्री’ कह मजाक बनाया जा रहा है। यह सब टिप्पणियां बेवकूफाना हैं। हर प्रधानमंत्री विदेश यात्रा करते हैं, डा. मनमोहन सिंह ने भी की थीं। आजकल जिस तरह दुनिया जुड़ गई है हर नेता को अपनी बात रखने के लिए यात्रा करनी पड़ती है बराक ओबामा को भी। बराक ओबामा के मामले में मोदी को विशेष सफलता मिली है। पिछली सरकारें अपने पड़ोस की उपेक्षा करती रहीं। नरेन्द्र मोदी को श्रीलंका, नेपाल, बांग्लादेश आदि पर भी ध्यान देना पड़ा। दशकों के बाद भारत के किसी प्रधानमंत्री ने संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा की थी। यह हैरानी की बात है कि वहां लाखों भारतीय रहते हैं, रोजगार करते हैं और अरबों डालर अपने देश भेजते हैं लेकिन इसके बावजूद देश के उच्चतम स्तर पर इस क्षेत्र की उपेक्षा होती रही जिसे अब नरेन्द्र मोदी ने खत्म कर दिया है। इन यात्राओं के दौरान जितना निवेश का वायदा किया गया है वह आएगा या नहीं, मैं नहीं कह सकता लेकिन इन यात्राओं को मुनीमजी के लाभ-हानि के बही खाते में तोला नहीं जा सकता क्योंकि इनका फायदा सीधा नज़र नहीं आता पर इन यात्राओं से वह प्रक्रिया शुरू होती है जिसका लम्बे समय में देश को बहुत फायदा मिलता है।
भारत के अमेरिका के साथ सम्बन्ध घनिष्ठ हो रहे हैं। इतने घनिष्ठ हो रहे हैं कि पाकिस्तान के अखबार द नेशन ने दुखी हो कर शिकायत की है कि ‘एशिया में केवल विकल्प भारत है विशेषतौर पर अमेरिका की नजरों में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए…।’ अखबार के अनुसार अमेरिका तथा भारत नई ‘वेगवान जोड़ी है’ जो उस अखबार के मुताबिक ‘खौफनाक गठजोड़’ है। खैर यह उनकी समस्या है। वह जानते हैं कि कश्मीर का फटा ढोल अधिक देर बजाया नहीं जा सकता। अमेरिका बिजनेस जो अधिकतर अपने आजाद फैसले लेती है, भी अपनी सरकार के इशारे समझती है। यही कारण भी है कि इस बार नरेन्द्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान बड़ी संख्या में अमेरिकी सीईओ उन्हें मिल रहे हैं। अभी से कहा जा रहा है कि भारत ‘नया चीन है।’
ठीक है कि यहां जमीन पर बहुत कुछ करना बाकी है जिसकी शिकायत मोदी से मिलने वाले सीईओ ने भी की है। वह जवाबदेही तथा पारदर्शिता चाहते हैं, सरल कानून तथा नियम चाहते हैं। हमारी सरकारी मशीनरी को चुस्त करना आसान नहीं है। 500 रेलवे स्टेशनों पर वाईफाई का प्रबंध तो हो जाएगा पर इनके बीच सफर कब बहेतर होगा? सिलिकोन वैली के कई भारतीय मूल के प्रमुखों ने तो कहा है कि वह भारत शिफ्ट होने के लिए तैयार हैं पर इसके लिए माहौल तैयार करने की जरूरत है। नरेन्द्र मोदी ने भी पूछा है कि गूगल या फेसबुक भारत में शुरू क्यों नहीं हो सकते? हमारे पास प्रतिभा की कमी नहीं है फिर हम आईटी के क्षेत्र में सुपरपावर क्यों नहीं बन सकते? कमजोरी कहां है? हमें तेजी से फैसले लेने होंगे वरना दुनिया इंतज़ार नहीं करेगी।
अगर विदेशों में भारतीय मूल के लोगों द्वारा नरेन्द्र मोदी का रॉक स्टार जैसा स्वागत होता है तो यह अकारण नहीं। मोदी नई दुनिया तथा उसकी जरूरतों को समझते हैं। सिलिकॉन वैली में आईटी के बड़े बड़े ज़ार का जो मेला जुटा था वह तो उनके सामने शिष्य लग रहे थे। प्रधानमंत्री मोदी जब विदेश यात्रा पर जाते हैं तो 125 करोड़ भारतीयों की इज्जत, आकांक्षाएं और दुआएं भी उनके साथ उड़ान भरती हैं क्योंकि अपनी आक्रामकता में, अपनी बेबाकी में, अपनी समझदारी में, अपनी मेहनत में, अपनी दूरदर्शिता में और अब तो कहा जा सकता है कि अपनी भावुकता में, नरेन्द्र मोदी इस देश के राजदूत अद्भुत हैं!
U.N.O is still caught in the post World War II time frame. It needs to realize the realities of the present global village, where India is fast making its presence felt. In an economic scenario, where the West, particularly Europe, has been hit by recession, India has emerged as the most favoured FDI/FII destination. India, with its unflinching commitment to global peace, can emerge as the global leader.
India, to me , seems like a lion who is slowly realizing its immense potential, and rising from its slumber is shaking off its inertia.
Your well written article, Sir, authenticates my belief that India will definitely emerge as the global leader in the coming decades.
The Congress, and the urban naxalites, should not be blinkered by profound hatred directed against the country’s P.M.
They should shed their pusillanimity and acknowledge as the world is doing :
IF THE WORLD IS A STAGE
THEN
MODI IS THE LATEST ROCKSTAR