यह सुपर रिच माफिया है असली देशद्रोही (This Super Rich Mafia is Real Traitor)

विजय माल्या का पलायन नरेन्द्र मोदी की सरकार पर पहला धब्बा है नहीं तो आज तक इस सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार को लेकर विपक्ष के पास भी कहने को कुछ नहीं था। कोई 2जी जैसा घपला नहीं। नीचे भ्रष्टाचार चाहे कम नहीं हुआ पर ऊपर अवश्य इसमें स्पष्ट कमी नज़र आती है लेकिन यह विजय माल्या प्रकरण छवि खराब करने की क्षमता रखता है।
बैंक, ईडी, सेबी, पीएफ विभाग, कर्मचारी जिन्हें वेतन नहीं मिले थे, सब उसके बारे शिकायत कर रहे थे। अब अटार्नी जनरल ने एक टीवी चैनल को बताया है कि हम उसे रोक नहीं सकते थे क्योंकि किसी भी अदालत ने ऐसा हुकम नहीं दिया था। यही तो सवाल है कि सरकार ने उसके खिलाफ अदालती निर्णय लेने का क्यों प्रयास नहीं किया? किंगफिशर कम्पनी बंद हुए 3 वर्ष हो गए, बैंकों ने भी अपनी रकम वसूल करने के लिए प्रभावी कार्यवाही क्यों नहीं की?
रोजाना हम ऐसे विज्ञापन देखते हैं जहां बैंक अपना कर्जा वसूली के लिए लोगों की गिरवी रखी हुई जायदाद की नीलामी की घोषणा करते हैं। यह रकम करोड़-दो करोड़ रुपए से अधिक नहीं होती, कुछ लाखों में होती है लेकिन जो हजारों करोड़ रुपए के देनदार होते हैं उनके बारे न अखबारों में छपता है न उनकी जायदाद की नीलामी ही होती है। बैंकों के कुल खराब ऋण 3.06 लाख करोड़ रुपए बताए जाते हैं जो बड़े बड़े उद्योगपतियों का है। इनमें से 64,335 करोड़ रुपए उन लोगों ने बैंकों के देने हैं जिन्हें ‘स्वेच्छाचारी चूककर्ता’ कहा जाता है अर्थात् जो पैसे दे सकते हैं लेकिन जानबूझ कर नहीं दे रहे। ऐसी हिमाकत कैसे हो गई? इन सुपर रिच को पकड़ कर अंदर क्यों नहीं किया जाता? 72 कारपोरेट घरानों जिन पर कुल कर्जा 5.53 लाख करोड़ है ने पिछले दो वर्षों में वापिसी की अदायगी नहीं की। जिन बैंक अधिकारियों की लापरवाही/संलिप्तता के कारण ऐसा हुआ उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की गई? इस रकम से देश के सारे किसानों का कर्ज उतारा जा सकता है और उन्हें नई जिन्दगी दी जा सकती है। इससे कितने किसान खुदकशी से बचाए जा सकते थे?
माल्या के सफलतापूर्वक पलायन से देश में बड़ा गलत संदेश गया है कि जिस बेचारे किसान ने 2-3 लाख रुपया कर्जा देना है वह तो हताशा में आत्महत्या कर रहा है पर जिस बड़े उद्योगपति ने 9000 करोड़ रुपया देना था वह जेट एयरवेज की उड़ान से फर्स्ट क्लास में बैठ कर सात भरे सूटकेसों के साथ लंदन भाग जाता है। हाल ही में हमने टीवी पर वह घटना देखी जब चार लाख रुपए के कर्जे में से केवल 60,000 रुपए न देने के मामले में तमिलनाडु के एक किसान को सबके सामने पीटा गया और बैंक ने उसका ट्रैक्टर भी छीन लिया। अब जबकि विजय माल्या लंदन भाग गया है तो उसे वापिस लाने की बात कही जा रही है। कहते हैं कि जब घोड़ा भाग गया तो घुड़साल में ताला लगाने का क्या फायदा?
रिजर्व बैंक ने डिफाल्टर की सूची जो 500 करोड़ रुपए से अधिक देनदार है सुप्रीम कोर्ट को दी तो है लेकिन अनुरोध किया गया कि इस सूची को गोपनीय रखा जाए। पर क्यों? यह जनता का पैसा है जनता को पता चलना चाहिए। सरकार के लिए भी यह समय है कि ‘क्रेनी कैपटलिज़्म’ के कारण यह जो भीमकाय बैंक घपला हुआ है उससे सबक सीखते हुए बैंकिंग क्षेत्र को सख्ती से सही करे। नरेन्द्र मोदी ने काफी गंदगी साफ की है अब स्वच्छ बैंक अभियान चलाने का समय है। अब पनामा पेपर्स बाहर आए हैं। स्पष्ट है कि सुपर रिच माफिया इस देश के संसाधनों को लूट रहा है। ऐसे लोग वास्तव में देशद्रोही हैं।
प्रतिभा छिप नहीं सकती : यह एक असामान्य मौका था। संसद में सत्तापक्ष तथा विपक्ष के बीच लगातार तनातनी की सीमाएं तोड़ कर सभी पार्टियों के नेता इकट्ठे मिल कर एक मंत्री की तारीफ कर रहे थे। विपक्ष के सांसद ही अध्यक्ष से विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की तारीफ के लिए समय मांग रहे थे। कोई सऊदी अरब में फंसे भारतीय नागरिकों को निकालने के लिए उनकी प्रशंसा कर रहा था तो कोई इस बात की कि हमारे दूतावासों का अपने नागरिकों के प्रति घमंडी रवैया अब बदल रहा है तो कोई आप्रेशन राहत की प्रशंसा कर रहा था जब सुषमा स्वराज तथा उनके राज्यमंत्री जनरल वीके सिंह ने यमन के युद्ध क्षेत्र से 4640 भारतीयों तथा 23 और देशों के 960 नागरिकों को निकाला था।
जब सुषमा स्वराज विदेश मंत्री बनीं तो समझा यह गया था कि क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद विदेशी मामलों में गहन दिलचस्पी रखते हैं इसलिए उनका भी वही हश्र होगा जो जवाहरलाल नेहरू के समय विदेश मंत्रियों का हुआ था लेकिन सुषमा स्वराज ने खामोशी पर समझदारी से अपनी भूमिका निभाई। जो विदेश नीति प्रधानमंत्री ने तय की उस पर चुपचाप काम किया और उसे सफल बनवाया। अगर सुषमा स्वराज की तुलना यूपीए के विदेश मंत्रियों से की जाए तो बात स्पष्ट हो जाती है। नटवर सिंह सक्षम थे, विद्वान थे लेकिन अकड़ बहुत थी आखिर ‘कुंवर साहिब’ जो थे। आम आदमी तो उनके नजदीक भी नहीं फटक सकता था। एसएम कृष्णा अक्षम थे। सलमान खुर्शीद नामी वकील हैं लेकिन आम आदमी की जरूरतों से दूर थे। सुषमा स्वराज सक्षम होते हुए भी जमीन से जुड़ी नेता हैं।
करोड़ों भारतीय अब विदेशों में काम करते हैं। कई बहुत मुश्किल परिस्थिति में काम करते हैं विशेषतौर पर जो लेबर क्लास है जिनकी विदेशों में आमदन हमारे विदेशी मुद्रा भंडार को भरपूर रखती है, कई बार बहुत बुरे फंस जाते हैं। वह इराक में भी फंस चुके हैं, सीरिया में भी और यमन में भी। अब सऊदी अरब में संकट आने वाला है। कईयों के पास सही दस्तावेज नहीं होते, कई लालची एजेंटों के चंगुल में फंस जाते हैं तो कई अपने मालिकों के अत्याचार तथा उत्पीड़न का शिकार होते हैं।
पहले हमारे दूतावास इनकी तकलीफों के प्रति लापरवाह थे। इन्हें तुच्छ समझा जाता था लेकिन सुषमा स्वराज के अधीन विदेश मंत्रालय की संस्कृति बदली है। विदेशों में भारतीय समुदाय से सम्बन्धित किसी को भी कैसी भी शिकायत हो वह सीधा सुषमा स्वराज का दरवाजा खटखटाता है। बीजेडी के सांसद जय पांडा ने एक लेख लिखा है कि सुषमा की प्रतिक्रिया उत्कृष्ट है। भगवंत मान का कहना है कि ‘सुषमाजी ने बाहर जिंदगियां बचाई हैं।’
विदेशों में भारतीयों को अब एक रक्षक मिल गया है। सब चुपचाप किया जा रहा है कहीं श्रेय लेने का प्रयास नहीं किया गया। जरूरत भी नहीं है। काम बोलता है। जब विपक्ष ही आपकी तारीफ करने लगे तो खुद को कुछ कहने की जरूरत नहीं रहती। आखिर प्रतिभा छिप नहीं सकती।
अंत में : मुम्बई की स्थानीय ट्रेन में बिना टिकट सफर कर रही प्रेम लता भंसाली ने 260 रुपए का जुर्माना अदा करने से यह कहते हुए इन्कार कर दिया कि पहले विजय माल्या से 9000 करोड़ रुपए लो। वह सात दिन के लिए जेल चली गई लेकिन जुर्माना अदा नहीं किया। अगर सब इसी तरह विजय माल्या की बात कह अपनी सरकारी देनदारी से बचने का प्रयास करें तो अराजक स्थिति पैदा हो जाएगी, पर कहीं न कहीं इस महिला की आपत्ति सोचने पर तो मजबूर करती ही है।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.