पंजाबियों ने वह दर्दनाक वीडियो देखा है जहां अपने पिता की लाश के साथ लेटा आठ साल का जसप्रीत कह रहा है, “पापा उठो मैनु स्कूल छड के आओ।“
लेकिन पापा, तरनतारन के धोतियां गांव का गुरबेज सिंह 36 साल नहीं उठ सकता क्योंकि उसे तो नशा जिसे पंजाब में चिट्टा, कहा जाता है लील गया है। नशे के कारण पत्नी छोड़ गई थी अब बच्चे बेसहारा हैं। गुरबेज की विधवा मां विलाप करती है, “जब से मेरे बेटे ने चिट्टा लेना शुरू किया है तब से मेरी जिंदगी नरक बन गई है। मेरे पास केवल एक एकड़ जमीन थी वह भी उसके इलाज के लिए बेच दी। अब मैं क्या करुंगी।“
ऐसी कहानियां गांव-गांव दोहराई जा रही है। देहात में शायद ही कोई घर होगा जहां नशेड़ी नहीं है। कईयों के तो बर्तन तक बिक चुके हैं। दस-दस, बारह-बारह साल के बच्चे नशा करने लगे हैं क्योंकि यह आसानी से उपलब्ध है। प्रदेश में क्राईम की जो बाढ़ आई हुई है इसका कारण भी नशा है। बताया जाता है कि जिसे हाई-प्रोफाईल नशा कहा जाता है वह 1400 रुपए का एक है। लोअर क्लास औसतन 340 रुपए का है, जबकि निचले स्तर का नशा 200 रुपए रोज के करीब है। इस जरूरत की पूर्ति के लिए अच्छे-भले नौजवान भी अपराध की दुनिया में प्रवेश कर रहें हैं। घरों में जो कलेश है वह अलग है। पैसे के लिए मां-बाप पर हाथ उठाए जा रहे हैं। पत्नी के गहने बेचे जा रहे हैं। पंजाब के शहरों में चेन स्नैचिंग या पर्स स्नैचिंग आम बात है। अखबार ऐसी खबरों से भरे रहतें हैं। पंजाब की नसों में दहशत दौड़ रही है। कई बार तो यह अहसास होता है कि हमारे समाज की नैतिक धुरी ही हिल गई है। पंजाब की पनीरी खराब कर रख दी गई।
पंजाब ने आतंकवाद झेला है। यह आतंकवाद-II है। तबाही उससे भी अधिक हो रही है। पंजाब का दुर्भाग्य है कि उसके पास वह राजनीतिक नेतृत्व नहीं जो आगे आकर स्थिति का सामना करे जैसे आतंकवाद के दौर में मुख्यमंत्री बेअंत सिंह ने किया था। वह शहीद हो गए लेकिन आतंकवाद की कमर तोड़ गए। वर्तमान मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह से बहुत आशा थी। आखिर उन्होंने पावन गुटका साहिब की कसम खाकर वादा किया था कि चार सप्ताह में नशा खत्म कर देंगे लेकिन खत्म क्या करना इस वक्त तो चिट्टे की बाढ़ आ गई लगती है।
ध्यान हटाने के लिए बादल साहिब की सिफारिश मान ली गई कि नेता लोग डोप टेस्ट करवाएं। पहले मुख्यमंत्री ने घोषणा की कि सभी सरकारी मुलाजिम नशे का टैस्ट करवाएं। अगर देखा जाए कि यह संख्या 3.25 लाख है तो समझ आता है कि कितना बड़ा काम है। इस पर एक कर्मचारी नेता ने मांग कर दी कि राजनेता भी अपना-अपना डोप टैस्ट करवाएं। कुछ ने करवा भी लिया लेकिन असली मुद्दा यह नहीं कि कौन नेता नशा करता है, कौन नहीं। असली मुद्दा तो है कि चिट्टे की सप्लाई बंद की जाए और जो सरगना है उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए लेकिन यहां तो मुख्यमंत्री च्सबूतज् मांगते हैं। फिर केन्द्र से मांग कर दी कि नशा सप्लाई करने वालों को मौत की सजा दी जाए। यह भी ध्यान हटाने वाला मुद्दा है। सरकार यह प्रभाव दे रही है कि जैसे वह सख्त है लेकिन (1) पहले ही प्रावधान है कि जो दूसरी बार अपराध करे उसे मौत की सजा दी जाए। (2) जिन्होंने पकडऩा है, जिन्होंने केस तैयार करना है वह तो पहले ही दागी है। अगर व्यवस्था या पुलिस बल सही होती तो हालत इतनी भयानक क्यों बनती? पूर्व न्यायधीश महताब सिंह गिल ने सही कहा है कि “पुलिस की भूमिका शक के घेरे से उपर नहीं है। कई मामलों में वह ईमानदार नहीं पाए गए… सब कुछ पुलिस के हाथ में है… कानून में परिवर्तन सही नहीं, क्योंकि पुलिस फर्जी मामले में किसी को भी फंसा सकती है।“
पंजाब में जून में चिट्टे से 28 मौतें हुई है। कहा जा रहा है क्योंकि हमने सप्लाई चेन रोक दी इसलिए नकली और सस्ते नशे से लोग मर रहे हैं। यह बात सही हो सकती है लेकिन लोग तो नशे से मर रहे हैं चाहे वह असली हो या नकली। यहां पंजाब पुलिस की भूमिका संदिग्ध है। यह वह बल है जिसने आतंकवाद का डट कर मुकाबला किया था पर चिट्टे का मुकाबला करने के लिए वह जज्बा नजर नहीं आता। इसे लेकर तो बड़े अफसर आपस में भिड़ रहे हैं। अगर पंजाब के कोने-कोने में नशा बिक रहा है तो संभव नहीं पुलिस या खुफिया विभाग को पता न हो। रिटायर्ड पूर्व डीजीपी डी.आर. भट्टी ने कहा है कि “बार्डर एरिया में ड्रग्स के जो फाईनैंसर तारबंदी से पहले थे वह आज भी हैं।“ इनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई? कौन रोक रहा है? सरकार और पुलिस ने पंजाब की इस तबाही की इजाजत क्यों दी?
और यह बहुत दुख की बात है कि कई पुलिस अफसरों के बारे शिकायत आ रही है कि वह नशे के तस्करों को संरक्षण दे रहे हैं। सरकार ने एसटीएफ बनाई थी उसकी रिपोर्ट भी बंद पड़ी हैं। कुछ पुलिस अफसरों के खिलाफ अब कार्रवाई की गई है। एक डीएसपी गिरफ्तार किया गया है क्योंकि उसने एक महिला को नशे में डाल दिया था। पुलिस की संलिप्तता की हालत यह है कि मंत्री तृप्त राजिन्द्र सिंह ने मांग की है कि डीएसपी से आईजी स्तर के पुलिस अफसरों के डोप टैस्ट करवाए जाएं। खाकी पर लोगों का विश्वास नहीं रहा। शिकायत की जा रही है कि पैसे के बल पर तस्कर बरी हो रहे हैं। जेलों में नशा आम मिल रहा है। यह भी शिकायतें हैं कि जिन्होंने नशा रोकना है वह ही युवाओं को नशे में धकेल रहे हैं। 130 पुलिस अधिकारियों का तबादला अपनी कहानी कहता है।
सरकार का दावा है कि उसने 19,000 नशा बेचने वाले पकड़े हैं लेकिन नशा तो अब भी बिक रहा है। परिवार अब भी उजड़ रहे हैं। मौतें अब भी हो रही हैं। पंजाब का यह भी दुर्भाग्य है कि धार्मिक, सामाजिक नेतृत्व बिल्कुल प्रभावहीन है। स्कूलों के नजदीक तक नशा बिक रहा है। मां-बाप भी बच्चों पर पूरी निगरानी नहीं रखते। तब जागते हैं जब बहुत देर हो चुकी होती है। लेकिन आखिर में तो जिम्मेवारी मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह, उनकी सरकार तथा उनकी पुलिस की है, उन्होंने बहुत देर लापरवाही की है।
पंजाब में आतंकवाद इसलिए खत्म हुआ था क्योंकि लोग उसके खिलाफ हो गए थे आशा है कि नशे का भी यही हश्र होगा। कुछ लोग नशे के खिलाफ इकट्ठे हो भी रहें हैं। 1 से 7 जुलाई तक काला सप्ताह मनाया गया। आप के लोग विशेष तौर पर सक्रिय हैं। वीडियो चारों तरफ भेजे जा रहे हैं। आतंकवाद को खत्म करने में बेअंत सिंह सरकार तथा केपीएस गिल की पुलिस की बहुत बड़ी भूमिका थी आज ऐसी भूमिका गायब नज़र आ रही है। पंजाब कांग्रेस को भी खबरदार हो जाना चाहिए क्योंकि यही चिट्टे का मामला अकाली दल को खत्म कर गया था। अब यह मुद्दा फिर उठ खड़ा हो गया है और 2019 के चुनाव में प्रभावी बनेगा। अमरेन्द्र सिंह को भी आभास हो गया है कि लोग बहुत नाराज हैं इसलिए ताबड़तोड़ प्रभाव यह दे रहे हैं कि सरकार सक्रिय है लेकिन जब तक च्किंग पिनज् पकड़े नहीं जाते, लोग संतुष्ट नहीं होंगे। लोग कितने दुखी हैं इसका आभास उन्हें उस वक्त मिल गया होगा जब किसी मामले में उनकी उपस्थिति का फायदा उठाते हुए पंजाब तथा हरियाणा हाईकोर्ट की माननीय न्यायाधीश दया चौधरी ने भी टिप्पणी कर दी कि “पंजाब नंबर 1 प्रदेश होता था पर अब दुर्भाग्यपूर्ण है कि नशे के कारण नकारात्मक प्रभाव मिल रहा है।“
अमरेन्द्र सिंह कभी डोप टैस्ट की बात करते हैं तो कभी ‘आखिरी चेतावनी’ देते हैं जबकि पंजाब की जनता उनसे कह रही है,
तू इधर-उधर की न बात कर यह बता कि काफ़िला क्यों लूटा,
हमें रहजनों से गिला नहीं तेरी रहबरी का सवाल है!
यह उनकी सरकार है। वह कह ही चुके हैं कि यह उनका अंतिम चुनाव है। अब उन पर निर्भर करता है कि इतिहास उन्हें कैसे जानेगा? उस नेता के तौर पर जिसने कप्तान की तरह आगे आकर नशे के आतंक से निजात दिलवाई या उस मुख्यमंत्री के तौर पर जिसने पंजाब विरोधी भ्रष्ट ताकतों के आगे समर्पण कर दिया?
इतिहास के आईने में अमरेन्द्र सिंह (Focus on Amarinder Singh),