दिल्ली के पालम हवाई अड्डे के टैक्निकल क्षेत्र में पुलवामा में शहीद हुए 40 जवानों के शव रखे हुए थे। उस वक्त एक चैनल ने लता मंगेशकर का मशहूर गाना लगा दिया,”ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आंख में भर लो पानी।“ बहुत भावुक क्षण था। विपक्ष भी पूरा सहयोग दे रहा था। पुलवामा के बाद देश बदल गया था। शोक में हम इकट्ठे थे और खून सबका खौल रहा था इसलिए मेरा मानना है कि लताजी के इस आइकानिक गाने में अब संशोधन करने की जरूरत है। आज आंख में पानी नहीं आग भरने की जरूरत है। यह 1962 का भारत नहीं जिसे चीन रौंद सका था। वह पराजय एक टूटे, कमज़ोर, बेतैयार और घबराए हुए देश की पराजय थी इसीलिए उस वक्त प्रधानमंत्री नेहरू के साथ सारे देश ने आंसू बहाए थे। आज वह भारत नहीं है। हम बड़ी सैनिक और आर्थिक ताकत हैं फिर भी पड़ोसी की अगर हमें ललकारने की जुर्रत हुई तो इस का माकूल जवाब दिया जाना चाहिए। हमारे 40 कसबों या गांवों में चिताएं जलीं हैं। न हमें यह भूलना चाहिए न माफ करना चाहिए। यह राष्ट्रीय विलाप का समय नहीं है।
पाकिस्तान चाहे इंकार कर रहा है लेकिन इस हमले में उनकी संलिप्तता साफ है। उरी पर हुए हमले के बाद किसी ने इसकी जिम्मेवारी नहीं ली थी पर पुलवामा के हमले के बाद जैश-ए-मुहम्मद ने वीडियो जारी कर इसे कबूल किया है। खुले आम कहा है कि हमने किया है। पाकिस्तानी पत्रकार खालिद अहमद लिखते हैं, “जिसका डर था वही हुआ। भारत इस हमले को आदिल अहमद डार तथा जैश-ए-मुहम्मद के साथ जोड़ेगा। यह वह आतंकी संगठन है जिसे पाकिस्तान ने बेवकूफी से दक्षिण पंजाब में भावलपुर में जीवित रखा है…।“
कंधार में भारत से रिहा होने के बाद मसूद अजहर ने वहां जैश-ए-मुहम्मद की स्थापना की थी। कई साल खामोश रहने के बाद 2014 में बाहर निकल कर मसूद अजहर ने भारत के खिलाफ जेहाद का आह्वान किया था। न ही पुलवामा का हमला दो-तीन लोगों की कार्रवाई है। यह साधारण हमला नहीं था। हमला आईईडी ब्लास्ट से हुआ था। विशेषज्ञ बताते हैं कि ऐसे हमले के लिए बहुत तैयारी की जरूरत है। विस्फोटक इकठ्ठा करना तथा उसे कार में फिट करने में काफी समय लगता है। आदिल डार जो ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ाई छोड़ गया था और केवल 11 महीने से ही आतंकवादियों में शामिल हुआ था, इतनी जल्दी 200 किलो विस्फोटक इकट्ठा कर कार में फिट करना सीख नहीं सकता था। किसी ने इतना विस्फोटक इकट्ठा किया। विस्फोट करने के लिए ट्रिगर के साथ उसे जोड़ा और फिर कार में रख दिया। कई लोग इसमें संलिप्त थे जिसमें विस्फोटक से काम करने वाले विशेषज्ञ भी थे। यह लडक़ा तो मात्र ड्राईवर था।
हमारी असफलता स्पष्ट है। इतनी बड़ी साजिश और हमारी गुप्तचर एजेंसियों को पता नहीं चला? जब सीआरपीएफ का काफिला निकल रहा था तो आसपास के क्षेत्र में पूरी तरह से सैनीटाईज नहीं किया गया। इससे बड़ी असफलता है कि न हमारी कश्मीर की नीति है न पाकिस्तान की। अब हुर्रियत नेताओं की सुरक्षा वापिस ले ली गई पर यह काम पहले क्यों नहीं किया गया जबकि मालूम था कि वह देश विरोधी हरकतों मेें शामिल हैं? कश्मीर के अंदर उग्रवादियों को जो पैसा हवाला या दूसरे रास्तों से आता है उस पर अभी तक रोक क्यों नहीं लगी? पत्थरबाजों को कौन पैसा देता है? उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर के 22 जिलों में से केवल 5, श्रीनगर, आनंतनाग, कुलगाम, बारामुल्ला तथा पुलवामा है जहां सुन्नी मुसलमानों का भारी बहुमत है। वहां ही आतंकवाद की अधिकतर वारदातें हो रही हैं। हमने कश्मीर की सारी व्यवस्था इन लोगों को संभाल दी है। न कश्मीरी पंडितों का पुनर्वास हुआ न वहां विभाजन के बाद रह रहे शरणार्थियों को ही नागरिकता दी गई। दुनिया भी इस पांच जिलों को जम्मू-कश्मीर समझती है। पीडीपी-भाजपा गठबंधन विनाशक सिद्ध हुआ है। हालात पहले से बदत्तर हुए हैं।
न ही हमारी कोई स्थाई पाकिस्तान नीति है। कभी हम गर्म होते हैं कभी सर्द। सारी नीति झटके खाती है। 13 दिसम्बर, 2001 को भारत के संसद पर हमला हुआ। अटलजी की सरकार ने 5 लाख सैनिकों को सीमा पर तैनात कर दिया पर दूसरे देशों ने दखल दे दिया और एक साल के बाद और तीन अरब डॉलर खर्चने के बाद हमने सेनाएं वापिस बुला ली। मुशर्रफ से केवल यह आश्वासन मिला कि पाकिस्तान की भूमि हमारे खिलाफ आतंकी घटनाओं के लिए इस्तेमाल नहीं होगी। 2008 नवम्बर में मुंबई पर हमला हो गया मनमोहन सिंह सरकार ने कोई ठोस प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। सैनिक विकल्प के बारे सोचा भी नहीं गया। केवल अमेरिका ने यह आश्वासन दिया कि हमले के सूत्रधारों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी पर हाफिज सईद आज भी हमें धमकियां देता खुला घूम रहा है।
भारत के खिलाफ पाकिस्तान में जो आतंकी ढांचा है वह जस का तस है। पाकिस्तान अब और भी दुसाहसी बन गया है क्योंकि चीन का न केवल आशिष है बल्कि वरदान भी उसे मिला हुआ है। चीन बार-बार संयुक्त राष्ट्र में मसूद अजहर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकी करार दिए जाने का विरोध कर रहा है। सामरिक विशेष ब्रह्म चैलानी का लिखना है कि, “एक प्रकार से सीआरपीएफ के जवानों की मौत की जिम्मेवारी चीन के दरवाज़े पर रखी जा सकती है क्योंकि वह पाकिस्तान तथा जैश-ए-मुहम्मद के प्रमुख को बचा रहा है।“
चीन की पुरानी नीति है कि वह पाकिस्तान के जरिए भारत को दबाव में रखता है इसमें कोई परिवर्तन नहीं हो रहा। ‘वुहान स्पिरिट’ कोई लाभ नहीं हुआ। न पाकिस्तान और न ही चीन चाहता है कि चुनाव के बाद भारत में एक मजबूत सरकार कायम हो इसलिए आने वाले चुनाव में और गड़बड़ी की संभावना को रद्द नहीं किया जा सकता। न ही हम पाकिस्तान को अलग-थलग ही कर सकते हैं, चीन उनके साथ हैं। दिवालिया होने से उन्हें सऊदी अरब बचा रहा है। अमेरिका ने अवश्य कहा है कि ‘आत्म रक्षा’ में भारत कार्रवाई कर सकता है लेकिन उनका रवैया दोमुंहा है। वह पाकिस्तान को पसंद नहीं करते लेकिन वह अफगानिस्तान से निकलना चाहते हैं इसलिए पाकिस्तान के सहयोग की जरूरत है। पाकिस्तान आश्वस्त है कि अमेरिका के अफगानिस्तान से प्रस्थान के बाद वहां तालिबान का कब्ज़ा हो जाएगा और वह वहां तैनात अपने सामरिक साधनों को भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर सकेगा।
पाकिस्तान यह भी समझता है कि क्योंकि वह परमाणु सम्पन्न देश है इसलिए भारत प्रतिकार नहीं करेगा। इमरान खान सबूत मांग रहे हैं। 26/11 के बाद जो सबूत दिए उनका क्या हुआ? हमारी नीति भी प्रतिक्रियाशील रही है। पहल सदैव उनके हाथ में रही। अब भी एक चैनल पर राम माधव कह रहे थे कि “दुनिया को पाकिस्तान को आतंकी देश घोषित करना चाहिए।“ दुनिया तो बाद में करेगी, पहले आप तो करो! क्या भारत पाकिस्तान को आतंकी देश घोषित करने के लिए तैयार है? इसका पाकिस्तान पर बहुत बुरा असर पड़ेगा क्योंकि एफ.ए.टी.एफ जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट कर सकती हैं पर राम माधव का कहना था कि आखिर में हमें पाकिस्तान को अच्छा बर्ताव करने के लिए तैयार करना है। अभी तक तो पिछली सारी सरकारें ऐसा करते हुए अपने हाथ जला चुकी हैं अब इस सरकार की बारी लगती है।
मैं नहीं समझता कि अगर यह सरकार दोबारा सत्ता में आना चाहती है तो सामने कोई नरम विकल्प मौजूद है। कूटनीतिक या आर्थिक कदमों से जनता संतुष्ट नहीं होगी। पुलवामा युद्ध जैसी कार्रवाई थी और जिसने करवाया वह पाकिस्तान में खुला घूम रहा है। खतरनाक यह है कि कश्मीरी लड़के अब अधिक संख्या में आतंकियों में शामिल हो रहे हैं। भारी संख्या में आतंकी मारे भी गए हैं पर 2018 में हमने भी उतनी शहादतें दी हैं जितनी पहले नहीं दी।
उतरी कमान को पूर्व मुखिया लै. जनरल दीपेन्द्र सिंह हुड्डा जिन्होंने उरी के हमले के 11 दिन के बाद सफल सार्जिकल स्ट्राईक की योजना बनाई थी का पुलवामा के बाद कहना है कि “इसे जवाब दिए बिना नहीं छोड़ा जा सकता… मैं नहीं कहता कि जल्द या देरी से लेकिन यह बहुत देरी के बाद नहीं होनी चाहिए।“ सारा देश जनरल हुड्डा के कथन से सहमत है। यह प्रभाव खत्म करने का समय है कि हम एक सॉफ्ट स्टेट हैं। अगर उनकी आतंकी मानसिकता बदलनी है तो आतंकवाद का समर्थन करने की ऐसी सज़ा दी जानी चाहिए जो उनके लिए बर्दाश्त करना मुश्किल हो।
आंख में पानी नहीं आग भरो (It Can't Be Left Unanswered),