
9 नवम्बर का दिन ऐतिहासिक होगा जब सात दशकों की इंतजार के बाद पाकिस्तान में स्थित गुरुद्वारा करतारपुर साहिब जहां गुरु नानक देव ने अपने अंतिम दिन गुजारे थे, के दर्शन के लिए गलियारा खोल दिया जाएगा। इसे लेकर संगतों में भारी उत्साह है आखिर बहुत पुरानी हसरत पूरी हो रही है पर इस गलियारे के उद्घाटन समागम को लेकर पंजाब में कुछ दुर्भाग्यपूर्ण विवाद रहा है कि कौन मंच लगाएगा, कौन नहीं? कितनी शर्मनाक बात है कि ऐसे ऐतिहासिक दिन को भी सब नेता मिल कर मनाने को तैयार नहीं जबकि सब खुद को गुरु नानक देव जी के अनुयायी कहते हैं जिन्होंने सदा भाईचारे, सादगी तथा बराबरी का संदेश दिया था। क्या एक दिन के लिए हम राजनीति को एक तरफ नहीं रख सकते और सच्चे श्रद्धालु की तरफ बर्ताव नहीं कर सकते?
एक लेख जिसका शीर्षक है ‘शुरुआत की तरफ सफर’ में पंजाब के मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह ने लिखा है, “यह गलियारा लोगों को भविष्य के प्रति आशावान करता है… मैं यह समझता हूं कि इस गलियारे में भारत-पाकिस्तान के बीच बेहतर कल तथा शांति तथा आशा के ऐतिहासिक प्रतीक बनने की संभावना है… हम अतीत को दफनाने के नए रास्ते ढूंढ सकते हैं…।”
कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के भावुक शब्दों से असहमत होना मुश्किल है। सब उम्मीद करते हैं कि यह भरोसे का सेतु बनेगा पर जमीनी हकीकत तो इसके बिल्कुल उलट है। पाकिस्तान का अतीत तथा वर्तमान तो यह बताता है कि वह बंदा बनने को तैयार नहीं इसलिए यह आशा करना कि इस गलियारे से दोनों देशों के बीच नई शुरुआत होगी खुद को गलतफहमी में रखना है। यह समझौता पर हस्ताक्षर भी दोनों देशों के बीच ज़ीरो लाईन पर हुए हैं जिससे पता चलता है कि दोनों देशों के बीच कितना अविश्वास है। अगर पाकिस्तान की व्यवस्था जिसकी कठपुतली इमरान खान है, भारत के साथ नई शुरुआत चाहती तो ड्रोन के द्वारा पंजाब में हथियार न फेंकवाती और न ही कश्मीर में आतंकवादियों की घुसपैठ करवाती। खुद अमरेन्द्र सिंह ने भी इस लेख में लिखा है कि “शांति के गलियारे में आतंकवाद और हिंसा की कोई जगह नहीं होनी चाहिए ” लेकिन क्या पाकिस्तान अकल की बात सुनने को भी तैयार है? उलट चिंता है कि जिसे हम शांति, श्रद्धा तथा भाईचारे का गलियारा चाहते हैं पाकिस्तान उसका गलत इस्तेमाल कर सकता है और पंजाब में फिर खालिस्तान और कट्टरवाद की मुहिम को हवा देने का प्रयास कर सकता है। हमारी एजेंसियां पाकिस्तान की कुख्यात आईएसआई की साजिशों से अच्छी तरह से वाकिफ है। केन्द्र तथा पंजाब सरकार दोनों को इसके प्रति आगाह किया जा चुका है।
आशंका है कि पाकिस्तान के अंदर तथा बाहर खालिस्तानी तत्व तीर्थयात्रियों को अपने साथ जोडऩे का प्रयास कर सकते हैं। अब तो फोन करने या मैसेज भेजने की भी जरूरत नहीं रहेगी, निजी सम्पर्क आसान हो जाएगा। भारत विरोधी संगठन अपना अलगाववादी एजेंडा आगे बढ़ाने के लिए इस गलियारे का इस्तेमाल कर सकते हैं। अभी से खबर है कि पाकिस्तान ने अमेरिका, कैनेडा तथा योरुप स्थित खालिस्तान समर्थक तत्वों को 550वें प्रकाश पर्व का न्यौता भेजा है। जिस दिन भारत तथा पाकिस्तान ने करतारपुर गलियारे पर समझौता किया था उसके अगले ही दिन पाकिस्तान में स्थित सिख उग्रवादी नेताओं ने भारत विरोधी प्रदर्शन में हिस्सा लिया। पाकिस्तान के कई गुरुद्वारों में खालिस्तान के लिए प्रचार हो रहा है और “सिख रिफरैंडम 2020” के पर्चे बंट चुके हैं। यह अभियान कथित सिख फॉर जस्टिस संगठन जो अलग खालिस्तान की मांग कर रहा है, ने चलाया हुआ है चाहे इसे पंजाब में कोई समर्थन नहीं।
पूर्व डिप्टी चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ लै. जनरल एनपीएस हीरा ने एक लेख लिख कर पाकिस्तान की कुख्यात आईएसआई तथा उसकी ‘कपट योजना’ के बारे सावधान किया है। जनरल हीरा लिखते हैं, “ऐसे बहुत से समाचार है कि पाकिस्तान पंजाब में फिर मिलिटैंसी को जीवित करने की कोशिश कर रहा है… पाकिस्तान लगातार ‘हजार जख्मों के द्वारा भारत की मौत’ की नीति पर चल रहा है… करतारपुर गलियारे द्वारा साजिश के प्रति सावधान रहना होगा। वीसा की जरूरत हटाने के पीछे पाकिस्तान की गूढ़ मंशा है…।” जनरल हीरा लिखते हैं कि खालिस्तान का अभियान जनरल जिया उल हक का ‘मास्टर स्ट्रोक’ था जिन्होंने पाकिस्तान को इसका केन्द्र बना दिया था। जिया समझता था कि पंजाब को अस्थिर रखना एक अतिरिक्त सेना डिवीजन के बराबर है जबकि इसकी पाकिस्तान को कोई कीमत नहीं चुकानी पड़ेगी। इसी के साथ नकली मुद्रा, ड्रग्स तथा हथियारों और आतंकियों की घुसपैंठ बताती है कि जिया द्वारा शुरू की गई K-2 अर्थात कश्मीर तथा खालिस्तान, की साजिश लगातार जारी है।
पाकिस्तान इस वक्त आहत है। धारा 370 हटा दी गई है। अब वह शोर मचाने के सिवाए कुछ नहीं कर सकते लेकिन बदला लेने की उनमें भावना और प्रबल हुई है। करतारपुर गलियारा इसका साधन न बन जाए इसके लिए हमारी एजेंसियों को बहुत सावधान रहना होगा। अमरेन्द्र सिंह अब बार-बार कह रहें हैं कि पाकिस्तान की ‘गुप्ता मंशा’ पर उन्हें शक है। वह पंजाब के मुख्यमंत्री हैं इसलिए चिंतित हैं। गलियारा खोलना आईएसआई का एजेंडा हो सकता है। इसका उद्देश्य रेफरेंडम-2020 के लिए हो सकता हैं ताकि सिख भाईचारे को गुमराह किया जा सके। पंजाब के मुख्यमंत्री ने चौकस किया है कि पाकिस्तान में गुरु नानक देव जी के नाम पर विश्वविद्यालय खोलने के पीछे कोई छिपा एजेंडा हो सकता है। अगर सिखों तथा मुस्लमानों के बीच हिंसक इतिहास को देखा जाए तो हैरानी है कि उस देश के मुस्लिम नेताओं में सिखों के प्रति आज इतनी तड़प नज़र आनी शुरू हो गई है और 70 साल बाद अचानक गलियारे की मांग स्वीकार कर ली गई। इस गलियारे को लेकर वह हिन्दुओं तथा सिखों के बीच भेदभाव कर रहे हैं। पहले कहा कि सिख ही दर्शन के लिए आ सकते हैं जबकि पंजाब तथा देश के दूसरे हिस्सों में बहुत लोग हैं जो गुरु नानक में श्रद्धा रखते हैं। आज भी आप अमृतसर में श्री हरिमंदिर साहिब जाएं तो वहां अधिक संख्या गैर सिखों की होगी। पाकिस्तान फिर शरारत कर रहा है और इस मामले को साम्प्रदायिक बना रहा है कि केवल सिखों को पासपोर्ट लाने तथा अग्रिम पंजीकरण करवाने की जरूरत नहीं है। अर्थात इमरान खान सिखों तथा गुरु साहिबान के हिन्दू श्रद्धालुओं के बीच अंतर कर रहें हैं और उन्होंने यह कैसे सोच लिया कि कोई भारतीय मुसलमान या ईसाई दर्शन के लिए करतारपुर साहिब नहीं जाना चाहेगा? उन्हें बराबर सुविधा क्यों न मिले?
इस गलियारे को लेकर पाकिस्तान के हाथ पहल आ गई है। वह जानते हैं कि सिख संगत के लिए यह भावनात्मक मुद्दा है इसलिए भारत सरकार बहुत आपत्ति नहीं कर सकती लेकिन जिस तरह इमरान खान इसे साम्प्रदायिक बनाना चाहते हैं इससे भारत सरकार को डटना चाहिए नहीं तो आगे चल कर समस्या पैदा हो सकती है। बेहतर होगा अगर डॉ. मनमोहन सिंह तथा अमरेन्द्र सिंह जैसे बड़े नेता वहां जाने से इंकार कर दें जब तक सबके लिए बराबर सुविधाएं शुरू नहीं होती। एक पाकिस्तानी पत्रकार तायब बुखारी ने लिखा है, “यह पाकिस्तान तथा पाकिस्तानियों द्वारा समूचे सिख समुदाय को मोहब्बत भरा बहुमूल्य उपहार है।” हैरानी है कि आज पाकिस्तान के मुसलमानों में सिखों के प्रति मोहब्बत उमड़ रही है।
गुरु नानक ने तो लिखा था, ‘नानक शाह फकीर, हिन्दू का गुुरु मुसलमान का पीर’ पर यह लोग तो इस गलियारे को भी साम्प्रदायिक रंगत दे रहें हैं। भविष्य के लिए यह शुभ संकेत नहीं। अगर इस गलियारे से दोनों देशों के बीच संबंध बेहतर होते हैं तो यह बहुत खुशी की बात होगी लेकिन पाकिस्तान का अतीत तथा वर्तमान कुछ और संकेत दे रहा है। पाकिस्तान का कपट इसे भरोसे का सेतु बनने नहीं देगा। हमें बहुत चौकस रहना है।
शुरुआत की तरफ सफर या तनाव की तरफ वापिसी? (Will Kartarpur Corridor be a Bridge of Peace ?),