
2 अप्रैल को एयर इंडिया की फ़्लाइट मुम्बई से राहत सामग्री तथा भारत में फँसे युरोपीय नागरिकों के साथ जर्मनी के शहर फ़्रैंकफ़र्ट जा रही थी। जब जहाज़ ने पाकिस्तान के आसमान में प्रवेश किया तो पायलट के लिए बहुत सुखद अनुभव हुआजब कराची के एटीसी ने उनसे कहा, “असलामुलेकम… हमें आप पर गर्व है कि आप इस आफ़त में भी जहाज़ उड़ा रहे हो। गुड लक”। इंदौर में जाँच कर रही मैडिकल टीम पर कुछ लोगों ने हमला कर दिया और उन्हें भाग कर जान बचाना पड़ी। इस ख़ौफ़नाक अनुभव के बावजूद डा. जाकिया सईद दो दिन के बाद वहाँ फिर जाँच के लिए लौट गई। उनका कहना था “हम फ़्रंट लाईन वर्कर हैँ। हम ही अगर डर गए तो काम कौन करेगा? ” छत्तीसगढ़ की स्वास्थ्य सचिव नीहारिका बारिक एक महीने से घर नहीं गईं क्योंकि वहाँ वृद्ध माता पिता हैं और बच्ची है। ऐसे लाखों सरकारी कर्मचारी, पुलिस वाले, मेडिकल स्टाफ़, स्वयं सेवी, एयर लाईन स्टाफ़ और आम लोग है जो इस संकट की घड़ी में अपनी परवाह किए बिना अपना अपना राष्ट्रीय धर्म निभा रहें हैं। यह राष्ट्र के नायक है।
दूसरी तरह तबलीगी जमात तथा उसके प्रमुख मौलाना साद है जिनकी बेवकूफी तथा आपराधिक ग़ैर ज़िम्मेवारी के कारण देश का कोरोना संकट और गहरा गया है। इनके कारण चीनी वायरस का संक्रमण कश्मीर से अंडेमन निकोबार तक फैल गया है। 25000 लोग कवारनटीन में है और देश के कुल केसों का एक तिहाई इस जमात की नालायकी से जुड़ा है। हज़ारों ज़िन्दगियाँ ख़तरे में डाल दी गईं हैऔर सरकार का काम और जटिल कर दिया है। यहाँ से गए जमाती डेढ़ दर्जन प्रदेशों में फैल गए है और संक्रमण को फैला रहे है। यह खलनायक ही नही देश के गुनहगार भी हैं।
दक्षिण-पूर्व एशिया में चीनी वायरस फैलाने वाला सबसे बड़ा स्रोत यह तबलीगी जमात है। फ़रवरी में मलेशिया में इनके समागम में 16000 लोग इकट्ठा हुए थे। इनके द्वारा संक्रमण मलेशिया, भारत, पाकिस्तान , थाईलैंड आदि देशों में पहुंच गया। पाकिस्तान ने पिछले महीने इनकी सभा को रद्द कर दिया था और अब तो वहां रायविंड शहर जहाँ जमात का मुख्यालय है, को लॉक डाउन करना पड़ा क्योंकि तबलीगी के दर्जनों लोग वायरस से पीड़ित पाए गए।
दिल्ली में निज़ामुद्दीन में इनके मुख्यालय में मार्च के मध्य में 4000 लोग मौजूद थे जबकि देश भर में पाबन्दियाँ लगी हुई थी। आख़िर में उस जगह से 2500 लोगों को निकाला गया तब तक कई संक्रमित हो चुके थे और कुछ की मौत हो गई। यह भी बहुत चिन्ता की बात है कि कई अभी तक छिपे हुए है और उनकी तलाश करनी पड़ रही है।
30 जनवरी को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे वैश्विक एमरजैंसी घोषित किया था। फ़रवरी तक ख़बरें मिलनी शुरू हो गई थी कि यह वायरस दक्षिण तथा पूर्व एशिया में फैल रहा है लेकिन इस के बावजूद जमात ने अपना समागम रद्द नही किया। 20 मार्च को साउदी अरब सरकार ने मक्का और मदीना में इकट्ठा नमाज़ पढ़ने पर पाबन्दी लगा दी। हज रोक दिया गया है और अब तो मक्का और मदीना में कर्फ़्यू लगा है। वैटिकन बंद हैं। हमारे अपने देश में कई धार्मिक स्थल जिन में मंदिर, गुरुद्वारे, चर्च और मस्जिद शामिल है बंद कर दिए गए पर निज़ामुद्दीन मुख्यालय में मौलाना साद कह रहे थे कि अगर कोई मस्जिद बंद करने को कहे तो उसकी बात मत मानो। मरने के लिए मस्जिद से बेहतर जगह नही है और बीमारी से कुछ नही बिगड़ेगा।
ख़ैर अब तो मौलाना साहिब का अपना सुर बदला हुआ है। बड़ी संख्या में उनके अनुयायियों के संक्रमित होने तथा कुछ पर रासुका लगाए जाने के बाद वह ख़ुद छिपे हुए हैं। उन पर एफआईआर दर्ज है इसलिए अचानक मौलाना ज़िम्मेदार नागरिक बन गए है और अपने समर्थकों से अपील कर रहे है कि वह सरकारी आदेश का पालन करे, भीड़ इकट्ठा मत करें और घर में नमाज अदा करे और मस्जिद न जाएँ। अब तो यह सलाह भी दे रहे है कि डाक्टर के पास जा कर अपनी अपनी जाँच करवाएँ।
एक मौलाना की निहायत आपराधिक लापरवाही के कारण देश में वायरस का संकट और गहरा गया है। एक तरफ़ वह लोग हैं जो अपनी परवाह किए बिना ड्यूटी निभा रहे हैं और दूसरी तरफ़ इन लोगों ने अपनी जहालत से नई मुसीबत खड़ी कर दी है। हमारे देश में धार्मिक आयोजनो के प्रति बहुत उदार रवैया रखा जाता है। जब वह कई बार क़ानून की लक्ष्मण रेखा लाँघते भी है तब भी प्रशासन दूसरी तरफ़ मुँह कर लेता है। विशेष तौर पर अगर मामला किसी अल्प संख्यक समुदाय से जुड़ा हो तो प्रशासन और भी अधिक उदार रहता है। लेकिन इनकी भी तो ज़िम्मेदारी है वह बेलगाम नही हो सकते। सिख साहिबान ने वैशाखी पर कार्यक्रम रद्द कर दिया। अयोध्या में राम नवमी पर आयोजन रद्द कर दिए पर हुबली में सामूहिक तौर पर नमाज़ पढ़ने से रोकने पर पुलिस पर भारी पथराव किया गया कई। अलीगढ़ से भी ऐसी ख़बर है लेकिन सबसे शर्मनाक ग़ाज़ियाबाद का समाचार है जहाँ तबलीगी के कुछ लोगों ने अस्पताल के स्टाफ़ के साथ अभद्र व्यवहार किया यहाँ तक कि नर्सो के सामने कपड़े उतार दिए। योगी आदित्य नाथ की सरकार के बारे यह शिकायत रहती है कि वहअधिक सख़्ती करती है पर ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ रासुका में मामला दर्ज करना बिलकुल जायज़ है। जमात के ऐसे ज़ाहिल समर्थक हज़ारों को ख़तरे में डाल रहे है। कितनी शर्मनाक बात है कि जहाँ जहाँ तबलीगी के लोग है वहाँ वहाँ उन्हें सम्भालने या ढूँढने के लिए फ़ोर्स की ज़रूरत पड़ रही है।
यह चिन्ता की बात है कि मज़हब के कई ऐसे ठेकेदार हैं जो अपने लोगों को सदियों पीछे ले जानें का प्रयास कर रहे हैं। अपने समुदाय का मुख्यधारा में शामिल होना इनके लिए किसी द्:स्वप्न से कम नही जबकि कल्याण इसी में है कि वह मुख्यधारा में शामिल हो जाए ताकि बाक़ियों की तरह यह भी तरक़्क़ी कर सकें। पाकिस्तान में तो पोलियो की बूँदे देने वालों को कट्टरवादी गोलियों से उड़ा चुकें है। यह सब लिखने के बाद मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूँ कि जो तबलीगी जमात ने किया उसके लिए सारे मुस्लिम समाज पर दोष मढ़ना या उन्हें ज़िम्मेवार ठहराना सही नही। विद्वान मुसलमान मौलाना साद तथा उनके समर्थकों की हरकतों से उतना ही परेशान है जितना आप और मैं। पत्रकार सबबा नकवी जिन्हें मोदी समर्थक बिलकुल पसन्द नही करते ने ट्वीट किया है, “तबलीगी जमात को शर्म आनी चाहिए। आशा है कि लोग जानते है कि हम सब इसमें इकट्ठे हैं और सारा मुस्लिम समुदाय लज्जित और परेशान है “। जावेद अख़तर की टिप्पणी है कि सभी मस्जिदों को बंद कर देना चाहिए। ऐ आर रहमान ने कहा है कि यह अराजकता फैलाने का समय नही है। जावेद आनन्द का मानना है कि जमात को “इस बीमारी के प्रसार में अपनी जहालत भरी भूमिका के लिए जवाब देना चाहिए”। पत्रकार जावेद एम अंसारी ने तबलीगी प्रमुखकी “विवेकहीन लापरवाही.. की घोर निन्दा की है। लेकिन सबसे स्पष्ट बात दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग ने कही है,” तबलीगी जमात कई लोगों की मौत तथा कोरोंना वायरस फैलाने के लिए एकदम ज़िम्मेदार है….यह बिलकुल साफ़ है कि मदरसा शिक्षा का सिस्टम पुराना हो गया है ….बड़ी समस्या है कि समुदाय पर मौलवियों तथा मुल्लाओं का दबदबा है जो मस्जिदों तथा मदरसों में बैठ कर फ़तवे जारी करते रहते है….आज का भारतीय मुसलमान दिमाग़ी लक़वे से ग्रस्त है”।
जो लोग सारे समुदाय को तबलीगी जमात की शर्मनाक हरकत के लिए ज़िम्मेदार ठहराते है उन्हें इन मुस्लिम सियानो के विचार भी पढ़ने चाहिए। जिन्होंने देश को संकट में डाला है वह इंसानियत के बैरी है। मज़हब की तंग व्याख्या ने उन्हें अंधे कर दिया। क़ानून को उन पर पूरी सख़्ती करनी चाहिएकोई लेकिन यह मामला साम्प्रदायिक नही है और न बनना चाहिए। बहुत ग़ैर मुसलमान भी है जो विदेशों से आ कर यहाँ ग़ायब हो गए हैं। पंजाब तो फँसा ही इस कारण है।
अंत में एक कड़वा सवाल भी उठता है कि इस सारे शर्मनाक प्रकरण में दिल्ली प्रशासन और दिल्ली पुलिस, जिसका थाना तबलीगी मुख्यालय के साथ सटा हुआ है, क्या करते रहे? समय रहते जमात की गतिविधियों पर रोक क्यों नही लगाई? जगह को ख़ाली क्यों नही करवाया गया ? प्रधानमंत्री ने सावधान किया, लॉकडाउन का आदेश दिया, दिल्ली सरकार ने लोगों के इकट्ठा होने पर प्रतिबंध लगा दिए पर दिल्ली पुलिस तमाशा देखती रही और तब हरकत में आई जब बहुत देर हो चुकी थी। जमात को वायरस फैलाने के लिए 18 दिन दे दिए गए। विदेशी बेधड़क वहाँ शामिल होते रहे। इस नाज़ुक घड़ी में इस निष्क्रियता की बहुत बड़ी क़ीमत चुकाई गई है।पिछले कुछ महीनों में राजधानी को बहुत झटके लगे है। जिनका वहाँ प्रशासन पर नियंत्रण है उन पर भी इस भारी चूक का बराबर दोष लगता है। अंतिम सवाल, एलजी साहिब भी किस मर्ज़ की दवा हैं?
देश के गुनहगार (Crime of Tabligi Jamat),