हम करोड़पति हो गए ! कोरोना के हमारे केस एक करोड़ को पार कर गए। हमारा नम्बर अमेरिका के बाद दूसरा है। लगभग डेढ़ लाख लोगों की मौत हो चुकी है, औसतन 400 मौतें रोज़ाना। लगभग 135 करोड़ की जनसंख्या (अमेरिका की 33 करोड़ ) को देखा जाए तो हमारा प्रदर्शन बुरा नही है। यहाँ मौत की 1.45 प्रतिशत की दर दुनिया में कम दरों में गिनी जाएगी।अगर हम अमेरिका तथा योरूप से तुलना करें तो बड़े देशों में हमारी कोरोना यात्रा सब से अच्छी रही है। अनिश्चितता, कमज़ोर नेतृत्व, और निजी आज़ादी पर ज़रूरत से अधिक ज़ोर देने के कारण पश्चिम के देश जो मानव जाति का पाँचवा हिस्सा है, ने लगभग आधे केस पैदा किए हैं। अब तो अमेरिका तथा ब्रिटेन में टीकाकरण शुरू हो गया है पर जिस दिन अमेरिका में टीकाकरण शुरू हुआ मरने वालों की संख्या 320000 को पार कर गई थी और रोज़ाना 3000 मौतें हो रही हैं।
भारत की स्थिति बेहतर क्यों रही? सितम्बर में हम लगभग 100000 केस दैनिक पर थे जो गिर गिर कर 25000 तक पहुँच गए हैं। हमारी रिकवरी का 95.51 प्रतिशत रेट बहुत संतोषजनक है। स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन का कहना है कि सबसे ख़राब समय गुज़र चुका है। क्या वास्तव में भारत में कोरोना के ख़ात्मे की शुरूआत है? कोरोना मुक्त भारत ? हमारे कुछ ज्योतिषियों ने ‘नवम्बर के बाद विदाई’ की बात कही थी, क्या वह सही निकल रहें हैं? वैसे तो इस वायरस की अस्थिरता के कारण अधिकतर ज्योतिषी ग़लत निकलें हैं पर क्या हम दूसरी लहर जैसी हम अमेरिका और इंग्लैंड में देख रहें हैं, से बच गए है? इंग्लैंड में तो गम्भीर स्थिति बनती जा रही है क्योंकि कोरोना की नई क़िस्म शुरू हो गई है जो अधिक तेज़ है। उनकी सरकार ख़ुद कह रही है कि स्थिति नियंत्रण से बाहर है। 2021 के गणतन्त्र दिवस परेड के मुख्य अतिथि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री होंगे पर वहाँ बेक़ाबू स्थिति को देखते हुए क्या श्रीमान बोरिस जॉनसन से यह गुज़ारिश न की जाऐ कि वह इस बार रहने दें और 2022 के गणतन्त्र दिवस की शोभा बढ़ाने के लिए पधारें?
लेकिन अभी तक कोई प्रमाण नही कि कोरोना का नया और तेज़ अवतार भारत धरती पर पहुँच चुका है। आईसीएमआर के विशेषज्ञ डा.समीरन पांडा के अनुसार यहाँ कोरोना के सैम्पल में अभी ब्रिटेन वाली नई क़िस्म नही मिली। सरकार भी यही कह रही है। ब्रिटेन के मुख्य चिकित्सा अधिकारी प्रो. क्रिस विट्टी और जो बाइडेन द्वारा नियुक्त अमेरिका के सर्जन जनरल डा. विवेक मूर्ति दोनों का कहना है कि कोई प्रमाण नही कि यह नई क़िस्म अधिक घातक है। पर ख़तरा तो है। छ: देशों में यह निकल चुका है। आस्ट्रेलिया के शहर सिडनी ने तो बाहरी लोगों से कह दिया है कि ‘हमारे यहाँ मत आओ’। हमने ब्रिटेन से उड़ाने बंद कर दी है पर हम आश्वस्त नही रह सकते कि यह स्ट्रेन पहले अन्दर घुस नही चुका क्योंकि अब बताया जारहा है कि यह वहाँ पहले सितम्बर में उत्पन्न हुआ था।
विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यू एच ओ के विशेष दूत डा.डेविड नबारो का कहना है कि भारत संतोष नही कर सकता कि यहाँ उतनी बुरी हालत नही होगी जितनी अमेरिका या योरूप में है। उनसे अनुसार भारत में भी वायरस का वही स्ट्रेन है जो योरूप में है इसलिए 2021 में यहां नई लहर ज़रूर आएगी। हमारे अपने लोग भी कह रहें हैं कि चाहे हम वैश्विक लहर से बेहतर हैं पर दूसरे देशों में जो हो रहा है वह हमे सावधान करता है कि अगर नियंत्रण नही रखते तो बहुत जल्द संख्या फिर उपर जानी शुरू हो जाएगी। हमारे पास बड़ी जनसंख्या उन लोगों की है जो कमज़ोर और असुरक्षित हैं। हक़ीक़त यह है कि किसी को भी मालूम नही कि भविष्य में इस वायरस का आचरण क्या होगा? जब हम इसकी विदाई की तैयारी कर रहे थे तो अब इस नई क़िस्म ने बखेड़ा खड़ा कर दिया है। पर फिर भी यहाँ विशेषज्ञों को अमेरिका या योरूप की तरह दूसरी लहर आती नज़र नही आरही। एक विशेषज्ञ समूह जिसने गणित के मॉडल के आधार पर अपना निष्कर्ष बनाया है का मानना है कि फ़रवरी 2021 तक वायरस का काफ़ी हद तक ख़ात्मा हो जाएगा। आईसीएमआर के पूर्व महामारी विशेषज्ञ डा. रमन गंगाखेड़कर के अनुसार भारत की स्थिति बाक़ी देशों से बिलकुल अलग है। शुरू होने वाले टीकाकरण और देश की एक चौथाई जनसंख्या में एंटीबॉडी पैदा हो जाने से ‘दूसरी लहर यहॉं आना मुश्किल है’। यहाँ इम्यूनिटी अर्थात प्रतिरोधक क्षमता अधिक होने के कारण भी भारत बचा हुआ है। हम अतीत में कई संक्रमण का सामना कर चुकें हैं और हो सकता है कि बचपन में बीसीजी का जो टीका हम सब को लगा है उससे वायरस का असर नही हो रहा या उसकी उग्रता कम है।
भारत में इस वायरस का पथ कई दिलचस्प सवाल पैदा कर गया है क्योंकि ऐसा भी नही कि यहाँ हर कोई मास्क पहनता है या सोशल डिसटेनसिंग रखता है। बिहार के चुनाव और किसान आन्दोलन में यह लापरवाही सामने है। देश के किसी भी बाज़ार को देख लीजिए वहां अधिकतर खुले चेहरे ही मिलेंगे। पर दीवाली और दुर्गा पूजा से भी हालत ख़राब नही हुए, जिसकी बहुत घबराहट थी। अफ़्रीका जो पिछड़ा हुआ है में भी संक्रमित की संख्या कम रही है। इसका कारण उनकी युवा जनसंख्या और पहले संक्रमण वाली बीमारियों सेसामना करना बताया जाता है। बिहार और उत्तर प्रदेश में संतोषजनक हालत का भी यह एक कारण हो सकता है कि वहाँ की अधिकतर जनसंख्या युवा है। 2011 में दोनों की औसत आयु 21 वर्ष थी जो आज केन्या की है। लेकिन इस मामले में और अधिक अध्ययन की ज़रूरत है कि हम तुलनात्मक बेहतर क्यों हैं? टीके के प्रतिकूल प्रभाव के बारे भी चेताया जा रहा है। ब्रिटेन में टीके के बाद कुछ लोगों में गम्भीर एलर्जी की शिकायत मिली है। कोरोना से ठीक हुए रोगियों में थकावट की शिकायत है और कईयों के हार्ट, किडनी,फेंफड़े और मस्तिष्क पर ग़लत असर पड़ा है। अर्थात हमारे लिए भी मस्त होने का समय नही है। अब सबकी नज़रें टीकाकरण अभियान पर है जो ख़ुद ही बड़ी क़वायद है। हमारी जैसी व्यवस्था में धाँधली, घपला, भ्रष्टाचार और जमाख़ोरी की सम्भावना को भी रद्द नही किया जा सकता। यहाँ विशेष सख़्ती और निगरानी की ज़रूरत है।
यह लगभग तय है कि कोरोना के टीके का कोई न कोई रिएक्शन होगा, किसी में कम तो किसी में अधिक। वाशिंगटन पोस्ट के एक लेख के अनुसार, ‘कोरोना की वैक्सीन सामान्य फलू की वैक्सीन से अधिक अप्रिय रहेगी’। पर यह सोच कर चलना चाहिए कि अगर इस महामारी से निजात पाना है तो टीका ही एकमात्र विकल्प है और दूसरा, टीके का कुछ दिन कष्ट रहेगा। दुनिया में बहुत लोग है जो कहते हैं कि वह टीका नही लगवांऐगे। मुस्लिम देशों में कुछ लोग कह रहें है कि टीका इस्लाम के विरूद्ध है। अमेरिका में 29 प्रतिशत लोग कह रहें हैं कि वह टीका नही लगवाऐंगे। वह समझते हैं कि हर्ड इम्यून्टी के कारण वह बच जाएँगे और टीके की ज़रूरत नही पड़ेगी। कई सोच रहें है कि टीका लगवाने से बेहतर संक्रमित होना है क्योंकि फिर एंटी बॉडी तो बन ही जाएगी। यह लोग भूलते हैं कि संक्रमित होने के बाद जरूरी नही कि वह बच जाएँगे क्योंकि कई जवान जाने भी जा चुकीं हैं। हर संक्रमित में एक जैसी प्रतिरोधक क्षमता नही हो सकती। यहाँ उलटा हिसाब है कि अधिक इम्यूनिटी उनकी बनती है जो अधिक बीमार पडतें हैं जबकि जो हल्का बीमार पडतें हैं जिसे ऐसिम्पटोमैटिक कहा जाता है,में इम्यूनिटी कुछ महीने के बाद कमज़ोर पड़ जाती है। वैक्सीन स्थाई नही तो लम्बी इम्यूनिटी देती है। विशेषज्ञ और डाक्टर भी बताते हैं कि वैक्सीन से मिलने वाली प्रतिशोधक क्षमता प्राकृतिक क्षमता से बेहतर रक्षा करती है। ब्रिटेन में निकले नए स्ट्रेन ने सावधान कर दिया है कि यह वायरस काफ़ी चंचल है और टीका ही इसका प्रसार रोक सकता है। उस वक़्त जब यह मालूम नही कि महामारी जा रही है या नए स्वरूप में वापिस आरही है, टीका ही बचाव है।
इसी के साथ यह सवाल भी खड़ा होता है कि सबसे पहले टीका किसे दिया जाए? इस बात पर कोई विवाद नही कि सबसे पहले हैल्थ वर्कर और वह सरकारी कर्मचारियों को टीका लगना चाहिए जो कोरोना के ख़िलाफ़ प्रथम पंक्ति में लड़ रहें है। इनके अतिरिक्त वरिष्ठ नागरिकों को मिलना चाहिए जबकि एक राय यह भी है कि पहले युवाओं को टीका लगे क्योंकि वह प्रतिकूल प्रतिक्रिया को बेहतर झेल सकते हैं। लेकिन इससे आम आदमी में टीके के प्रति जो अविश्वास है वह ख़त्म नही होगा। इसे ख़त्म करने के लिए जरूरी है कि एक महत्वपूर्ण वर्ग टीका लगवाने के लिए आगे आए ताकि लोगों में यह विश्वास पैदा हो कि टीका सेफ़ है। अमेरिका मे उपराष्ट्रपति और स्पीकर टीका लगवा चुकें हैं। निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेनने टीवी के सामने बैठ टीका लगवाया है ‘ताकि अमेरिका के लोगों में यह भरोसा आए की यह सुरक्षित है’। इसराइल के प्रधानमंत्री टीका लगवा चुकें हैं। भारत में हरियाणा के मंत्री अनिल विज ने टीका लगवाया था पर जबसे वह गम्भीर बीमार पड़े हैं किसी और राजनेता ने हिम्मत नही दिखाई। क्या यहाँ लोगों में भरोसा पैदा करने के लिए बड़े राजनेता, मुख्यमंत्री, नौकरशाह, विपक्ष के नेता आदि जो सब विशेषाधिकार सम्पन्न ज़िन्दगी व्यतीत कर रहें हैं, आगे आ कर टीका लगवाऐंगे ताकि लोगों में इसके प्रति डर और शंकाएँ दूर हो सकें? टीकाकरण की शुरूआत निश्चित तौर पर लुटियंस की दिल्ली से शुरू होनी चाहिए।