
ग्रामीण पृष्ठभूमि के एक 23 वर्ष के नौजवान ने देश को वह आयना दिखा दिया जिसकी हमे बहुत ज़रूरत थी। उसने यह भी बता दिया कि शहरों की मानसिक गंदगी और प्रदूषण से दूर गाँव की सोच अभी भी सही है। मेरा अभिप्राय नीरज चोपड़ा से है। इस नौजवान ने बता दिया कि वह केवल गोल्ड मैडल विजेता ही नही, उसका दिल भी गोल्ड से बना है। मामला टोक्यो ओलम्पिक में जैवलिन थ्रो के फाईनल से जुड़ा है। नीरज ने एक इंटरव्यू मे बताया कि थ्रो से ठीक पहले उसे अपना जैवलिन नही मिल रहा था फिर उसने देखा कि वह पाकिस्तान के खिलाड़ी अरशद नदीम के हाथ में है। उसने नदीम से कहा कि, ‘भाई, यह मेरा जैवलिन है मुझे दे दो’। नदीम ने दे दिया और जल्दी में नीरज ने अपना पहला थ्रो कर दिया। पर नीरज के इतना कहने की देर थी कि हमारे सोशल मीडिया पर नदीम के ख़िलाफ़ नफ़रत की बाढ़ सी आ गई। जिनका काम बाँटना है उन्हे मौक़ा मिल गया। किसी ने कहा कि ‘पाकिस्तान ने नीरज का जैवलिन चोरी कर लिया था कि वह गोल्ड न जीत सके’। किसी ने कहा कि यह ‘पाकिस्तानी साजिश थी’ तो अशोक पंडित ने लिखा कि ‘खेल के मैदान में भी पाकिस्तानी अपनी आतंकवादी हरकत से बाज़ नही आए’। किसी ने लिखा कि जैवलिन से ‘टैम्परिंग’ अर्थात छेड़छाड़ की कोशिश की गई। अर्थात मामला भारत बनाम पाकिस्तान बना दिया गया।
तब नीरज चोपड़ा को दखल देना पड़ा और उसने नफ़रत के ग़ुब्बारे की हवा निकाल दी। जहाँ दूसरे खिलाड़ी ऐसे मामलों मे चुप रहतें हैं कि ‘मैं पंगा क्यों लूँ’, नीरज ने स्पष्ट कर दिया कि जो नदीम ने किया वह कोई साजिश नही थी बल्कि सामान्य है कि खिलाड़ी एक दूसरे का जैवलिन इस्तेमाल करते रहते हैं। उसके बाद इस नौजवान ने सोशल मीडिया पर जो डाला उससे तो नफ़रत- ब्रिगेड की बोलती बंद हो गई। नीरज लिखता है,“मेरी आप सब से बिनती है कि मेरे कमैंट को अपने गंदे एजेंडे को आगे बढ़ाने का माध्यम न बनाए। खेल हम सब को एकजुट हो कर साथ रहना सिखाता है”। नीरज चोपड़ा के इस कमैंट के बाद वह सब ख़ामोश हो गए जो उस घटना को लेकर अपने ‘गंदे एजेंडे’ को बढ़ाना चाहते थे। इन लोगों को मालूम नही कि नीरज और नदीम अच्छे दोस्त हैं। टोक्यो में फाईनल के लिए भी दोनों बस में साथ बैठ कर गए थे। कई लोगों की समझ से बाहर है कि कोई हिन्दोस्तानी और पाकिस्तानी दोस्त कैसे हो सकतें है? लेकिन ऐसा होता है। भारत और पाकिस्तान के रिश्ते तनाव पूर्ण है। हम कई युद्ध लड़ चुकें है। खेलों, विशेष तौर पर क्रिकेट, में खूब भिड़ंत होती है लेकिन व्यक्तिगत तौर पर खिलाड़ियो के बीच रिश्ता अच्छा रहता है। दोनों देशों के पूर्व कप्तान सौरभ गांगुली और इंज़माम उल हक़ अच्छे दोस्त हैं। 2015 में जब एक विज्ञापन की शूटिंग के लिए इंज़माम कोलकाता आए तो वह ठहरा तो होटल में, पर खाना गांगुली के घर से आता था।
ऐसे बहुत से उदाहरण हैं। सचिन तेंदुलकर और वसीम अकरम अच्छे दोस्त हैं। जब तक वह खिलाड़ी रहे इमरान खान का भी सबसे पसंदीदा शहर मुम्बई था। मुहम्मद कैफ़ ने लिखा है “खेल के मैदान में प्रतिद्वंद्वी आप का दोस्त भी हो सकता है, उसकी नागरिकता मायने नही रखती”। जब हमारे खिलाड़ी पाकिस्तान जाते थे तो उनका बराबर स्वागत होता था। विशेष तौर पर विदेशी माहौल में भारत और पाकिस्तान के खिलाड़ी दोस्त बन जातें है क्योंकि बोली और खान पीन एक जैसा है। टेनिस खिलाड़ी रोहन बोपन्ना और पाकिस्तान के खिलाड़ी क़ुरैशी की जोड़ी बहुत मैच जीत चुकी है। पाकिस्तान के क्रिकेट खिलाड़ी सरफराज अहमद ने भारत-पाकिस्तान के खिलाड़ियों की दोस्ती का ज़िक्र करते हुए बताया है कि ‘हम इकटठे खातें हैं’। अरशद नदीम भी ट्वीट कर चुका है कि ‘नीरज मेरा आइडल है’। बाद मे वहां जिनका ‘ गंदा एजेंडा’ है उनके दबाव में उसने यह ट्वीट डिलीट कर दिया पर कल्पना कीजिए कि अगर यही प्रशंसा यहाँ नीरज ने नदीम की की होती तो यहाँ भी क्या तूफ़ान उठता? ओलम्पिक मैडलिस्ट बजरंग पुनिया ने कहा है, “अरशद नदीम के मामले में नीरज को विवादों में घसीटा जा रहा है…हम मैदान मे विरोधी है पर बाहर भाई हैं। खेल हमे द्वेष रखना नही सिखाता”। बाक्सर और ओलम्पिक मैडलिस्ट विजयेन्द्र सिंह ने भी नीरज चोपड़ा का समर्थन करते हुए कहा है, ‘तुमें और ताकत मिले’।नीरज चोपड़ा और बजरंग पुनिया की देश में और इज़्ज़त बढ़ी है। आज के माहौल में सच बोलने और अकल की बात करने की हिम्मत कितनों में हैं?
यह उन लोगों के मुँह पर बड़ा तमाचा है जिन्हें सिर्फ़ नफ़रत ही नजर आती है। उन्हे भी समझ जाना चाहिए कि उनकी हरकतों पर प्रतिक्रिया हो रही है। हर मामला हिन्दू- मुस्लिम, भारत-पाक का नही होता। किसी से ज़बरदस्ती ‘जय श्रीराम’ के नारे क्यों लगवाऐ जाऐं? जो ग़रीब मुसलमानों की पिटाई कर रहें हैं वह धर्मकी क्या सेवा कर रहें हैं? पाकिस्तान के साथ रिश्ते अच्छे नही। युद्ध हो चुकें है। चाहे सीमा शांत है पर अभी भी वह आतंकवाद निर्यात कर रहें है। हम सर्जिकल स्ट्राइक कर माक़ूल जवाब भी दे चुकें हैं। भविष्य में भी जरूरी होगा तो जवाब मिल जाएगा पर यह काम सरकार का है। इस मामले में देश आश्वस्त है। घर बैठ कर जो उत्तेजना देते रहते है वह समाज का भारी अहित करतें हैं। इनमें से अधिकतर के परिवार के किसी भी सदस्य ने आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा नही लिया था न ही वह अपनी संतान को पाकिस्तान के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए बार्डर पर भेजने को तैयार होंगे पर घर बैठ कर सोशल मीडिया के द्वारा नफ़रत के शाब्दिक गोले दागते रहतें हैं। यह देश की कोई सेवा नही कर रहे न ही किसी ने इन्हें देश, समाज या धर्म का ठेकेदार ही बनाया है।
नीरज चोपड़ा का खेल कैरियर नाज़ुक मोड़ पर है। 2021 का उसका सीज़न कुछ बीमारी तो कुछ अत्याधिक कार्यक्रम के कारण समाप्त हो गया है। आगे विभिन्न गेम्स के इलावा 2024 में पेरिस, 2028 में लॉस एंजलस और 2032 में ब्रिसबन ओलम्पिक हैं। उसके बाद वह आराम कर सकता है पर तब तक उसे इस 130-140 करोड़ के देश की आशाओं का बोझ अपने मज़बूत कंधों पर उठाना है। निश्चित तौर पर कभी कभी निराशा भी मिलेगी जैसा क्रिकेट में हो रहा है। हर वक़्त जीत नही मिलती, जैसे टैनिस के वर्ल्ड चैंपियन जोकोविच ने भी कहा है। इस लिए उसे अपनी तैयारी के लिए छोड़ देना चाहिए। टोक्यो में वह 87.58 मीटर की थ्रो से गोल्ड मैडल जीत गया लेकिन अगर स्थाई चैम्पियन बनना है तो 90 मीटर का लक्ष्य पार करना होगा। इसके लिए पसीना ही नही बहाना उसे मानसिक शान्ति भी चाहिए ताकि वह खेल पर केन्द्रित रह सके। जैवलिन का खेल है भी अलग क़िस्म का। क्रिकेट, हाकी आदि में साथी खिलाड़ी होतें हैं पर यहाँ आप अकेले दुनिया से भिड़ रहे हो। बहुत मानसिक बल और एकाग्रता चाहिए। इसे भारत -पाक के तनाव पूर्ण रिश्तों का क़ैदी नही बनाया जाना चाहिए। फ़ुटबॉल के प्रसिद्ध खिलाड़ी क्रिस्टियानो रोनाल्डो के अनुसार सफलता के लिए सबसे अधिक ‘पैशन’ अर्थात जुनून चाहिए। नीरज चोपड़ा में यह भरा हुआ है। यह युवक राष्ट्रीय ख़ज़ाना है। इसे समभाल कर रखना है किसी गंदे एजेंडे की कीचड़ में लपेटने की कोशिश नही होनी चाहिए। कितनी संतोष की बात है कि यह शांत, सरल,विनम्र और समझदार नौजवान हमे भाईचारा, सहिष्णुता और मानवता का पाठ पढ़ा गया। सही कहा गया है कि असली सभ्य भारत गाँवं में बसता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने घोषणा की है कि देश के विभाजन के दौरान अपने लोगों की क़ुर्बानी और संघर्ष को याद करने के लिए हर वर्ष 14 अगस्त का दिन ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के तौर पर मनाया जाएगा। उनका कहना है कि विभाजन की त्रासदी को कभी भुलाया नही जा सकता। यह बात तो सही है पर पुरानी कड़वी यादों को ताज़ा कर मिलेगा क्या? विभाजन से सबक़ यह नही कि वह कितना भयंकर समय था पर कि ऐसे हालत फिर कभी पैदा नही होने चाहिए। देश का विभाजन बहुत पीड़ादायक था। लाखों मारे गए करोड़ों बेघर हो गए। मेरा अपना परिवार लाहौर से उजड़ कर आया था। वहां बंगला, मोटर कार, दफ़्तर सब कुछ था। यहाँ आकर जब पिताजी वीरेन्द्रजी ने पहली साईकिल ख़रीदी तो बहुत बड़ी उपलब्धि समझी गई। धीरे धीरे मेहनत से एक एक ईंट जोड़ कर ज़िन्दगी की नई ईमारत खड़ी की गई। पर कभी विलाप मैंने नही सुना। यह नही सुना कि हाय! यह क्या हो गया! उस वक़्त की सरकार ने भी रिफयूजियों की मदद की। विभाजन के समय मैं तो एक वर्ष का था पर माँ-बाप के मुँह से कड़वाहट का एक शब्द नही सुना। कभी बदला लेने की भावना या मुसलमानों के प्रति नफरत प्रकट नही की। विभाजन की त्रासदी सबसे अधिक पंजाब और बंगाल ने सही थी। यहाँ के किसी प्रभावित परिवार ने यह माँग नही रखी कि उस विभीषिका की स्मृति में दिवस मनाया जाए। उलटा पंजाब के कुछ परिवारों ने तो कहा है कि हम वापिस उस दौर में नही लौटना चाहते। आशा है सरकार इस पर पुनर्विचार करेगी। हम बहुत आगे आ चुके है। आजाद भारत में साँस लेते हुए हमें 75 साल होने वाले है। पिछले ज़ख़्म भर चुके हैं इन्हें कुरेदने की ज़रूरत नही। हमे आगे की तरफ देखना है, पीछे की तरफ नही। ख़ून खराबा, क़त्लेआम, हिंसा, नफ़रत, पागलपन को अब याद कर मिलेगा क्या?