
मैं साम्प्रदायिक सवाल खड़ा नही कर रहा। यह राजनीतिक, समाजिक और व्यवहारिक सवाल है कि पंजाब में कोई हिन्दू मुख्यमंत्री क्यों नही हो सकता? यहाँ अंतिम हिन्दू जो मुख्यमंत्री रहे वह कामरेड रामकृष्ण थे जिन्होंने जुलाई 1966 में इस्तीफ़ा दे दिया था। अर्थात पाँच दशक से अधिक समय से यहां कोई हिन्दू सीएम नही बन सका जबकि पंजाब में हिन्दुओं की जनसंख्या संतोषजनक 38.49 प्रतिशत है। आगे लिखने से पहले बता दूँ कि मुझे तनिक भी आपति नही अगर कोई सिख या दलित या कोई और सीएम बन जाए पर किसी हिन्दू के बनने पर एतराज़ क्यों हो? अच्छी बात है कि पहली बार एक दलित चरणजीत सिंह चन्नी सीएम बने है और सभी रिपोर्ट कह रहीं है कि वह अच्छा काम कर रहें हैं। विनम्र है, मिलनसार है और अगर नवजोत सिंह सिद्धू उन्हे सीधा चलने दे तो अच्छा सीएम साबित भी हो सकतें है। पर सवाल तो दूसरा है कि किसी हिन्दू के सीएम बनने पर आपत्ति क्यों हो?
यह विवाद तब शुरू हुआ जब अमरेन्द्र सिंह का विकल्प ढूँढने का समय आया था। उस वक़्त कांग्रेस के विधायकों का बहुमत सुनील जाखड़ के पक्ष में था। आख़िर वह वरिष्ठ और अनुभवी है और उस परिवार से सम्बन्धित है जिसने कांग्रेस की बड़ी सेवा की है। उनका नाम लगभग तय हो गया था कि कांग्रेस की जड़हीन नेता अम्बिका सोनी ने उनका रास्ता रोक दिया कि कोई सिख ही पंजाब का मुख्यमंत्री हो सकता है। यही आपत्ति नवजोत सिंह सिद्धू ने भी की पर उनकी बात तो समझ आती है क्योंकि उन्हे अपने सिवाय कोई और नज़र नही आ रहा। वह भी मुहावरे के अनुसार ‘नहाते धोते रह गए’, पर सवाल तो है कि कांग्रेस के हाईकमान ने एक हिन्दू को मुख्यमंत्री बनने से क्यों रोक दिया जबकि हर बार कांग्रेस हिन्दू समर्थन के कारण ही सत्ता में आती है। आहत सुनील जाखड़ ने जायज़ सवाल खड़ा किया कि अगर मात्र 2 प्रतिशत जनसंख्या वाले सिख समुदाय से डा.मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बन सकतें हैं तो पंजाब में हिन्दू मुख्यमंत्री क्यों नही बन सकता?
पंजाब की 117 सीटों में से 45 सीटें ऐसी हैं जहाँ हिन्दू बहुमत में हैं। 37 सीटें ऐसी हैं जहाँ हिन्दू मतदाता गेमचेंजर की भूमिका में हैं। इस वक़्त इन में से 31 पर कृतघ्न कांग्रेस का क़ब्ज़ा है। कांग्रेस ने कभी भी हिन्दुओं को सत्ता में बराबरी नही दी। 13 लोकसभा सांसदों में से केवल 2 हिन्दू हैं। 117 विधायकों में से केवल 30 हिन्दू है। अमरेन्द्र सिंह अपने राष्ट्रवादी विचारों के लिए हिन्दू समुदाय में लोकप्रिय रहें है पर उन्होने भी जट सिख प्रशासन चलाया था। शहर जहां हिन्दू आबादी रहती है, पूरी तरह से उपेक्षित रहें है। यह स्थिति तब है जब कि कांग्रेस पार्टी का शहरी वोट 2012 के 43.5 प्रतिशत से बढ़ कर 2017 में 49 प्रतिशत हो गया और कांग्रेस के सता मे आने का बड़ा कारण बना। अब ज़रूर कुछ समझ आगई कि नाराज़गी है इसलिए मनाने की कोशिश हो रही है। मुख्यमंत्री चन्नी ने घोषणा की है कि रामायण, महाभारत और गीता पर शोध केन्द्र खोला जाएगा। पंजाबी विश्व विद्यालय में भगवान परशुराम पीठ स्थापित की जाएगी, लुधियाना की श्रीकृष्ण बलराम यात्रा को स्टेट फ़ेस्टिवल घोषित किया गया है।
यह राजनेता क्यों समझते है कि लोग बेवक़ूफ़ है और उनकी इन अर्थहीन घोषणाओं पर मर मिट जाऐंगे? क्या रामायण और महाभारत या गीता पर अब शोध होगा? हिनदुओ को सत्ता में बराबर का हिस्सा नही दिया जाएगा पर तमाशों से पेट भरने की कोशिश की जाएगी। आजकल हर पार्टी का नेता मंदिर मंदिर भटक रहा है, तू डाल डाल मैं पात पात ! अगर चन्नी दर्शन के लिए केदारनाथ पहुँच गए तो नवरात्री के दौरान सुखबीर बादल ने चिंतपूर्णी मंदिर में माथा टेका तो ‘हनुमान भक्त’ अरविंद केजरीवाल ने जालंधर के देवी तालाब मंदिर के दर्शन किए। नेताओं का यह मंदिर-टूरिज़म सचमुच दिलचस्प हैं। सुखबीर बादल तो राजस्थान के सालासर मंदिर तक पहुँच चुकें हैं। केजरीवाल अयोध्या नें रामलल्ला के दर्शन कर चुकें है और चरणजीत सिंह चन्नी ज्वालाजी भी दर्शन के लिए पंहुच चुकें हैं। और अभी यह मंदिर-टूरिज़म रुका नही। जैसे जैसे चुनाव नज़दीक आऐंगे घबराहट बढ़ेगी। सुखबीर बादल को तिलक लगाए और कलावा बाँधे देखा गया है। मैंने भाजपा नेताओं की बात नही कही क्योंकि वह तो पहले से ही धर्म की राजनीति पर अपना पेटेंट समझते हैं। यह लोग सब कुछ करेंगे पर हिन्दू समुदाय को उसका जायज़ राजनीतिक हक़ नही देंगें। केजरीवाल घोषणा कर चुकें हैं कि ‘आप’ पंजाब को बढ़िया ‘सिख-फेस’ देगा। यह अलग बात है कि अभी तक यह ख़ूबसूरत सिख चेहरा उन्हे मिला नही।आख़िरी समाचार था कि महत्वकांक्षी किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल के साथ ‘गल- बात’ चल रही है पर शायद टिकटों को लेकर बात नही बनी। लेकिन सवाल तो यह है कि अरविंद केजरीवाल जैसा कथित सैकयूलर नेता धर्म की राजनीति क्यों कर रहा है? वह यह घोषणा क्यों नही कर सके कि वह सीएम के लिए ‘पंजाबी फेस’ देंगे? अब हिन्दू समुदाय को भरमाने के लिए मंदिर मंदिर भटक रहें हैं। अकाली दल तो वैसे ही बादल परिवार के क़ब्ज़े में हैं पर भाजपा भी नही कह रही कि सत्ता में आने की स्थिति में वह किसी हिन्दू को सीएम बनाऐंगे। वह भी कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की कप्तानी में लड़ना चाहते हैं।
पंजाब का हिन्दू समुदाय वह है जिसने कभी देश के लिए कोई सरदर्द खड़ी नही की। विभाजन की त्रासदी सही और आतंकवाद का दिलेरी से सामना किया। उन्हे न मुफ़्त बिजली चाहिए,न किसी और फ्रीबी की उन्हे ज़रूरत है। उन्हे तो केवल शांतमय वातावरण में काम करने की सुविधा चाहिए, सुरक्षा चाहिए और राजनीति में अपना बनता हिस्सा चाहिए। उसका संदेश तो है,
यह और बात है कि आँधी हमारे बस में नही
मगर चराग जलाने का इख़्तियार तो है
नाराज़गी तब उठती है जब इस इख़्तियार से उन्हे वंचित रखा जाता है। हिन्दू समुदाय अधिकतर व्यापारी, छोटा उद्योगपति और नौकरीपेशा है। पर वह देख रहा है कि पंजाब में उद्योग या व्यापार की कोई मदद नही की जा रही सारा ध्यान खेती पर है। सारी रियायतें भी वहीं दी जा रही है परिणाम है कि पंजाब में उद्योग और व्यापार लगातार पलायन कर रहें हैं। सबसे अधिक टैक्स भी यही समुदाय देता है पर न सुविधा मिलती है न समस्या हल होती है। अमरेन्द्र सिंह के समय भी हिन्दू मंत्री बनाए गए पर वह अधिकतर दर्शनी ही थे। शहरों और शहरी वर्ग के लिए वह कुछ नही कर सके। इस वक़्त ओ.पी.सोनी उपमुख्यमंत्री हैं पर प्रभावी नही है। मुख्यमंत्री ने भी शोध शुरू करने या पीठ बनाने की घोषणा करने या मंदिरों में धारावाहिक माथा टेकने के अतिरिक्त इस समुदाय को कुछ नही दिया। न ही मिलिटैंसी के दौरान प्रभावित परिवारों को ही उचित मुआवज़ा दिया गया है। और इस छोटे से समुदाय का देश के प्रति विशाल योगदान है। आज़ादी की लड़ाई में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। भगतसिंह के साथ फाँसी पर चढ़ने वाले सुखदेव थापर का जन्म लुधियाना का है। एक उपराष्ट्रपति (कृष्ण कांत), एक प्रधानमंत्री (इन्द्र कुमार गुजराल) , आजाद भारत के पहले मुख्य न्यायाधीश (मेहर चन्द महाजन), से लेकर असंख्य सेनाध्यक्ष, अफ़सर, बुद्धिजीवी, वैज्ञानिक, पत्रकार, सैनिक, इस समुदाय ने दिए है। उद्योग के क्षेत्र में मुंजाल,महेन्द्रा,थापर, लिस्ट लम्बी है। पृथ्वीराज कपूर और केएल सहगल से लेकर आयुष्मान खुजाना और विक्की कौशल तक बालीवुड को प्रतिभाशाली बनाया है। शिक्षा के क्षेत्र में सारे उत्तर भारत को डीएवी जैसी संस्थाओं ने शिक्षा प्रदान की। इस समुदाय का समाजिक क्षेत्र में कितना बड़ा योगदान है यह इस बात से पता चलता है कि जालंधर का कन्या महाविद्यालय उत्तर भारत का पहला स्त्री शिक्षा संस्थान है। उस वक़्त लड़कियों को शिक्षा शुरू की गई जब लोग पत्थर मारते थे। सरकार तो अब ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ’ कह रही है, यहाँ तो 1886 से यह हो रहा है।
सबसे अधिक शिकायत कांग्रेस पार्टी के प्रति है क्योंकि हिन्दुओं ने सदा कांग्रेस का समर्थन किया जिसने अपना उल्लू सीधा करने के लिए इस समुदाय का भावनात्मक शोषण किया। कांग्रेस ने ही बार बार उग्रवाद को खड़ा किया। अब फिर विवादास्पद पंजाबी सिंगर सिद्धू मूसेवाला को प्रवेश दे दिया गया है और उसे शायद मानसा से चुनाव लड़ाया जाएगा। इस सिंगर के गाने हिंसा से भरे हुए हैं। वह गन-कलचर और उग्रवाद को बढ़ावा देता रहा है जिसे लेकर उस पर केस भी है। पिछले साल उसके एक गाने में जरनैल सिंह भिंडरावाले की स्तुति की गई थी पर इसी सिंगर को कांग्रेस पार्टी एक ‘पराईज़ कैच’ और ‘यूथ आइकॉन’ बता रही है। इसे इतनी बडी उपलब्धि समझा गया कि जो राहुल गांधी आम नेताओं को समय नही देते, से भी मिलाया गया। निश्चित तौर पर कांग्रेस की विचारधारा गड़बड़ा गई है। भूल गए लगते हैं कि पिछली बार उग्रवाद को दूध पिलाने की देश, पंजाब और ख़ुद गांधी परिवार ने कितनी बड़ी कीमत चुकाई थी। हिन्दू समुदाय पहले ही पार्टी अध्यक्ष सिद्धू की पाकिस्तान के जनरल बाजवा के साथ जप्फी डालने की तस्वीरों से परेशान हैं। सिदधू द्वारा आक्रामक तौर पर पंथक एजेंडा अपनाने से भी हिन्दू समुदाय कांग्रेस से दूर जा रहे है। अकाली दल आजकल बैकफ़ुट पर है पर अकाली-भाजपा गठबंधन को यह श्रेय तो जाता है कि उन्होने समझदार नीतियाँ अपनाई थी और वह पंजाब को उग्रवाद के चक्कर से बाहर निकाल गए थे। अकाली दल द्वारा यदाकदा पंथक मुद्दे उठाए जाते है पर दिशा सही है। उन्होने किसी मूसावाला को नही उठाया।
बहरहाल इस वक़्त सभी दल हिन्दू वोटर को बहकाने और फुसलाने में लगे हुए है पर हक और बराबरी देने के लिए कोई तैयार नही इसीलिए यह समुदाय ख़ामोश है और किसी को भी पसंद नही कर रहा। पर सबके लिए जिगर मुरादाबादी का यह संदेश ज़रूर है,
कभी शाख़ ओ सब्ज़ा ओ बर्ग पर कभी ग़ुंचा ओ गुल ओ ख़ार पर
मैं चमन में चाहे जहाँ रहूँ मेरा हक़ है फ़सल-ए-बहार पर !