कोविड काल में जब देश में ऑमिक्रॉन का विस्फोट हो रहा है चुनाव आयोग ने पाँच विधानसभाएँ के चुनाव की घोषणा की है। जायज़ चिन्ता है कि क्या इससे संक्रमण का विस्फोट तो नही होगा? उत्तर प्रदेश और पंजाब उन प्रदेशों में से है जहाँ कम टीका लगा है। मुख्य चुनाव आयुक्त का कहना है कि अधिक केस महाराष्ट्र और दिल्ली में हैं जहाँ चुनाव नही हो रहे। यह तर्क सही नही क्योंकि कोई यक़ीन से नही कह सकता कि जब तक चुनाव होंगे उत्तर प्रदेश और पंजाब की वह हालत नही होगी जो आज मुम्बई या दिल्ली की है। पन्द्रह जनवरी तक रैलियाँ बंद रखी गईं है पर उसके बाद क्या कोरोना खत्म हो जाएगा? इसके बावजूद मैं चुनाव करवाने के निर्णय से बिलकुल सहमत हूँ। मेरा नाम जोकर में राजकपूर ने सही कहा था, ‘शो मस्ट गो ऑन’ अर्थात शो जारी रहना चाहिए हालात कैसे भी हों। यही लोकतन्त्र पर भी लागू होता है कि परिस्थिति कितनी भी चुनौतीपूर्ण क्यों न हो, शो मस्ट गो ऑन ! अगर इस परिस्थिति में सही चुनाव हो जाते है तो यह एक बार फिर हमारे लोकतन्त्र और चुनावी प्रक्रिया की मज़बूती की तसदीक़ होगी। जब तक कोई बड़ी राष्ट्रीय एमरजैंसी न हो चुनाव नही रूकने चाहिए।
सारी ज़िम्मेवारी चुनाव आयोग पर है। अतीत में देखा गया है कि वह गर्जते अधिक है पर बरसते नही। यह अनुभव रहा है कि अगर उल्लंघन करने वाले बड़े नेता या बड़ी पार्टी हो तो आयोग एकाध नोटिस दे कर मामला दाख़िल दफ़्तर कर देता है। इस बार तो चुनौती केवल अनुशासनहीन नेताओं से ही नही है, सोशल मीडिया बहुत ख़तरनाक बन गया है। हाल ही में हम देख कर हटें हैं कि किस तरह कुछ युवाओं ने मिल कर एक एप्प बना कर कुछ मुस्लिम महिलाओं को सोशल मीडिया पर ‘नीलाम कर दिया’। जो पकड़े गए– विशाल कुमार 21 साल, श्वेता सिंह 18 वर्ष, मयंक रावत 21 साल और मास्टर माईंड नीरज बिशनोई 20 साल। इस छोटी आयु में वह इतने बहक गए कि अपनी माँ-बहन की आयु की महिलाओं का सोशल मीडिया पर बाज़ार लगा दिया? ऐसे कितने और हैं जो नफरत और हिंसा बढ़ाते रहतें हैं? चुनाव आयोग का कहना तो है कि वह सोशल मीडिया पर तीखी नजर रखेंगे और नफरत फैलाने वालों को चेतावनी दी गई है, पर चुनाव आयोग का पिछला रिकार्ड बहुत शंका पैदा करता है। कर्नाटक के कांग्रेस नेता तो अभी से रैली कर रहें हैं। ऐसे लोगों पर लगाम लगाना बहुत बड़ी चुनौती है।
इस साल पंजाब, उत्तर प्रदेश, उतराखंड, गोवा और मणिपुर के अतिरिक्त हिमाचल प्रदेश और गुजरात के चुनाव भी होने है। 2023 में नागालैंड, कर्नाटक, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के चुनाव है और 2024 में आम चुना है। अर्थात यहाँ लगातार चुनाव चलते रहते है जिस कारण प्रधानमंत्री मोदी ने ‘एक देश एक चुनाव’ का सुझाव दिया जिस पर देश में एकराय नही है। प्रधानमंत्री का तर्क है कि अगर सारे देश में एक साथ चुनाव हो जाए तो पैसे, समय और उर्जा की बहुत बचत होगी। देश की आज़ादी के बाद 1951 में संसद और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए थे लेकिन जवाहर लाल नेहरू के बाद सब कुछ बिखरने लग गया था। कई बार केन्द्र ने अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल करते हुए प्रदेश सरकार को बर्खास्त कर दिया तो कई बार वफादारियां बदलने से प्रदेशों में चुनाव करवाने पड़े। अनुच्छेद 356 का 132 बार इस्तेमाल हुआ है और कांग्रेस पार्टी ने 93 बार इसका इस्तेमाल करते हुए प्रदेश सरकारों को बर्खास्त किया है। जनता पार्टी ने दो दिनों में 8 कांग्रेस की प्रदेश सरकारों को बर्खास्त कर दिया था। जब इंदिरा गांधी 1980 में सत्ता में आईं तो बदले में 9 प्रदेश सरकारों को बर्खास्त कर दिया। एक बार चुनाव आचार संहिता लागू हो जाए तो सरकारी कामकाज बिलकुल ठप्प हो जाता है। बार बार चुनाव की यह बहुत बड़ी कीमत हम चुका रहें हैं। सारा विकास रूक जाता है। चुनाव आयोग को इस पर ग़ौर करना चाहिए कि लम्बे चुनाव जैसे पश्चिम बंगाल में 8 चरण में और अब 7 चरण में उत्तर प्रदेश में से बहुत समय की बर्बादी होती है।
क्या हमारे जैसे बड़े देश में जहाँ दलबदल क़ानून के बावजूद जन प्रतिनिधि वफादारियां बदलते रहतें है, एक साथ चुनाव करवाना सम्भव और व्यवहारिक भी है? क्या होगा अगर कोई सरकार बहुमत खो बैठती है? प्रदेश में तो राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है पर केन्द्र में तो यह भी सम्भव नही। अगर किसी कि सरकार नही बनती तो क्या होगा? जिस देश में इतनी विविधता हो एक साथ चुनाव करवाना अभी सम्भव नही लगता। इससे बड़े राजनीतिक दलो को फ़ायदा होगा और प्रादेशिक पार्टियों को नुक़सान। बेहतर होगा कि इस पर विभिन्न मंचों पर खुली बहस की जाए। अगर एकराय नही बनती तो वर्तमान प्रणाली को बेहतर करने पर ही जोर देना चाहिए। क्या सब कुछ वर्चुअल किया जा सकता है यह देखते हुए कि लगभग हर हाथ में मोबाइल है? इससे बहुत पैसा बचेगा। लोग अब तक जान गए हैं कि पाँच साल की कारगुज़ारी कैसी है या किस पार्टी की नीतियाँ क्या हैं। प्रधानमंत्री का सुझाव अच्छा है पर व्यवहारिक नही। चुनाव प्रणाली को सही करने की ज़िम्मेवारी चुनाव आयोग की है। विशेष तौर पर मनी-पावर को रोकने में उनकी नाकामयाबी देश का बहुत अहित कर रही है। जो आचार संहिता की घोर उल्लंघना करते है उन्हे चुनाव लड़ने के अयोग्य करार देने की हिम्मत एक दिन आयोग को दिखानी होगी।
योगी आदित्यनाथ का कहना है कि उत्तर प्रदेश के चुनाव 80 प्रतिशत बनाम 20 प्रतिशत होंगे। यह देखते हुए कि वहां मुस्लिम जनसंख्या 20 प्रतिशत के क़रीब है साफ़ है कि कई महीनों से विकास के बड़े बड़े विज्ञापन देने के बावजूद योगीजी फिर ध्रुवीकरण का सहारा ले रहे हैं। जहाँ तक पंजाब के ‘शो’ का सवाल है यहां एक और ‘शो’ चल रहा है। कांग्रेस का सीएम कौन होगा? हाईकमान इस वक़्त चरणजीत सिंह चन्नी और नवजोत सिंह सिद्धू दोनों को लटकाए हुए है। अगर चन्नी को हटातें है तो दलित नाराज़ होते है और अगर सिदधू को एकतरफ़ करते हैं तो जट सिख दूर हो जाऐंगे। और मालूम नही कि जख्मी सिद्धू क्या नुक़सान कर जाएँ। पर इससे भी बड़ा मुद्दा प्रधानमंत्री मोदी की सुरक्षा में गम्भीर चूक का है। निश्चित तौर पर घोर लापरवाही हुई है और देश के प्रधानमंत्री सीमा से कुछ ही दूर फ़्लाइओवर पर 20 मिनट फँसे रहे। यह उस पंजाब में हुआ है जहाँ पाकिस्तान से ड्रोन अकसर नजर आते हैं, टिफ़िन बम मिल चुके हैं, लुधियाना के कोर्ट में बम तैयार करता हुआ व्यक्ति मारा जा चुका है। ऐसे समय में प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक अक्षम्य है। जब वह फ़्लाइओवर पर थे तो उनकी कार को सही तरीक़े से घेरा भी नही गया था। दूर से साफ़ प्रधानमंत्री कार में बैठे नजर आ रहे थे। 20 मिनट वह वहां रुके रहे, उन्हे पहले क्यों नही हटाया गया? एसपीजी ने तो उनकी कार को सही तरीक़े से घेरा भी नही था। दूसरी तरफ पंजाब पुलिस वे सारे रूट को सही तरीक़े से सैनेटाइज क्यों नही किया ? यह कोई स्पष्टीकरण नही कि प्रधानमंत्री ने अचानक सड़क के रास्ते से जाने का निर्णय कर लिया। फ़ोर्स को तो किसी भी बदलाव के लिए तैयार रहना चाहिए।
लेकिन इस गम्भीर मुद्दे पर राजनीति नही होनी चाहिए। जिस देश ने दो प्रधानमंत्री खो दिए है वहां ऐसे मामलों में समझदारी चाहिए। यह केन्द्र और पंजाब के बीच टकराव का मामला नही बनना चाहिए। भाजपा के नेता आरोप लगा रहें है कि जैसे पंजाब सरकार और कांग्रेस पार्टी ने प्रधानमंत्री को खतरे में डालने की साजिश रची थी। प्रधानमंत्री ने ख़ुद मुख्यमंत्री पंजाब पर कड़वी टिप्पणी की है। निश्चित तौर पर कहीं कमज़ोरी रह गई जो जाँच से पता चलेगा लेकिन यह संकेत देना कि कहीं जानबूझकर प्रधानमंत्री की हत्या का प्रयास था, अनुचित होगा। पंजाब के नेता जिस तरह घटना का मज़ाक़ बना रहे हैं वह भी सही नही। रैली में ‘ख़ाली कुर्सियाँ’ का मामला बार बार उछाला जा रहा है। प्रधानमंत्री की सुरक्षा पक्षपातपूर्ण राजनीति का फ़ुटबॉल नही बनना चाहिए। मामला केवल नरेन्द्र मोदी की सुरक्षा का ही नही मामला उच्च संवैधानिक संस्था की सुरक्षा का है। न ही यह महामृत्युंजय जाप का है जैसे भाजपा के कुछ नेता कर रहें हैं। वह नम्बर बनाने के लिए अति गम्भीर मामले को तमाशा बना रहे है। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पंजाब संवेदनशील सीमावर्ती प्रदेश जिसे अस्थिर करने के लिए बहुत लोग लगे रहते है।
14 फ़रवरी को पंजाब में चुनाव हो जाऐंगे पर क्या कुछ बदलेगा भी? कहीं ‘मिक्स्ड वैजिटेबल’ तो परोस नही दी जाएगी, अर्थात परिणाम मिश्रित होगे किसी को भी बहुमत नही मिले। अभी तक तो कांग्रेस और आप में टक्कर नजर आ रही है। जिस तरह प्रधानमंत्री की सुरक्षा का मुद्दा हावी हुआ है और जिस तरह उन्होने जवाब दिया उससे फोक्स मुख्यमंत्री चन्नी पर है और कुछ देर के लिए ‘आप’ पीछे हो गई है। किसान संगठन भी मैदान में कूद चुके हैं। वह किसका वोट काटेंगे? कांग्रेस ने अगर देश में प्रासंगिक रहना है तो पंजाब जीतना और बाकी प्रदेशों में संतोषजनक प्रदर्शन बहुत जरूरी है। अगर वह पंजाब हार जाते हैं तो गांधी परिवार की हुकूमत पर जायज़ सवाल खड़े होंगे और ममता बैनर्जी जैसे महत्वकांक्षी लोग और दबंग होंगे। लेकिन इस सब से महत्वपूर्ण उस पंजाब का भविष्य है जिसका युवा वर्ग यहाँ रहना नही चाहता। जो शारीरिक तौर पर विदेश भाग नही गए वह ‘कनाडा’ के सपने लेकर मानसिक पलायन की स्थिति में हैं। यहाँ संकेत अशुभ हैं। दो लोगों बेअदबी के आरोपो में उन गुरूधामों में पीट पीट कर मार दिए गए जो बेसहारो और ग़रीबों का सदा से आसरा रहें हैं और दया और क्षमा के प्रतीक है। हमारे किसान नियमित तौर पर यहाँ रेल और सड़क रास्ता रोकते रहतें है जो पंजाबियों का बड़ा अहित करतें है। हम चिट्टे का केन्द्र बन रहे हैं। इस धरती ने देश और दुनिया को भाईचारा, दानशीलता, सेवा, बहादुरी और हिम्मत से जीवन जीने का पाठ सिखाया है। दुख है कि कभी देश का नम्बर 1 रहा पंजाब पीछे की तरफ फिसल रहा है। वह ‘शो’ कब आएगा जब हमारी हालत बदलेगी?