सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों का मिड-टर्म एग्ज़ाम, Midterm Exam of Ruling Party and Opposition

पाँच प्रदेशों की 690 सीटों पर चुनाव देश की भावी राजनीतिक दिशा तय करेंगे। सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम भाजपा, नरेन्द्र मोदी, योगी आदित्यनाथ के लिए बहुत महत्व रखतें हैं।  साथ ही यह भटक रही कांग्रेस पार्टी और उसके हाईकमान तथा प्रादेशिक शक्तियों की भी भावी दिशा तय करेंगे। अगर भाजपा आसानी से जीत जाती है तो योगी आदित्यनाथ इतिहास बनाऐगे क्योंकि गोबिन्द बल्लभ पंत के बाद एक अवधि पूरा करने के बाद किसी मुख्यमंत्री को दूसरी बार वहां चुना जाएगा।  इसी के साथ मोदी के बाद की भाजपा में वह ताकतवार उत्तराधिकारी बन उभरेंगे और भाजपा देश भर में अपना ऐजेडा जोरशोर से लागू करने में सफल रहेगी। विपक्ष और निरुत्साहित होगा और आपसी टकराव बढ़ेगा। अगर भाजपा बहुमत तक पहुँचते हांप जाती है या बहुमत नही मिलता तो पार्टी का दबदबा कमजोर होगा और 2024 की चुनौती बढ़ेगी। विपक्ष में जान पड़ जाऐंगी और वर्षांत तक होने वाले गुजरात चुनाव और मुश्किल हो जाऐंगे।  यूपी के चुनाव तय करेंगे कि मोदी की लोकप्रियता कहां खड़ी  है, क्या भाजपा के ख़िलाफ़ लोगों की नाराज़गी है या नही, और विपक्ष भी कितने पानी में है ? जरूरी नही कि यह चुनाव तय करें कि 2024 में क्या होगा पर यह हवा का रूख ज़रूर बता देंगे। यह सबके लिए मिड-टर्म एग्ज़ाम होगा।

इसी अहमियत को समझते हुए नरेन्द्र मोदी ख़ुद उत्तर प्रदेश में इतना प्रचार कर रहें हैं। आदित्यनाथ सरकार के प्रति  काफ़ी कुछ  नकारात्मक है इसलिए भी मोदी ख़ुद प्रचार का ज़िम्मा सम्भाले हुए हैं।  इस समय पार्टी को छवि की गम्भीर समस्या है। विशेष तौर पर प्रभावशाली ओबीसी मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य और उनके साथियों द्वारा पार्टी छोड़ने और सपा में शामिल होने से वहां राजनीति में ज़लज़ला सा आगया है। संदेश है कि ओबीसी जिन्होंने भाजपा को वोट दिया, अब वहां बेचैन है।राजनेता कभी जीतने वाले घोड़े से नही उतरते इसलिए प्रभाव मिल रहा है कि इन दलबदलुओं के लिए  भाजपा जीतने वाली पार्टी नही रही।यह भी शिकायत है कि आदित्यनाथ ‘ठाकुरवाद’ को बढ़ावा दे रहे है और उनका प्रशासन उच्च जाति की सरकार है। ‘दलित भाई’  के घर भोजन जैसे प्रयासों से यह प्रभाव कम नही होगा।  वैसे भी तस्वीर में योगी और ‘दलित भाई’ दोनों ही  असहज लग रहे थे। बड़े ग़ैर यादव ओबीसी नेताओं के शामिल होने से अखिलेश यादव कह सकेंगे कि सपा सबकी पार्टी है केवल मुस्लिम-यादव पार्टी ही नही है।  आदित्यनाथ का कहना है कि चुनाव 80प्रतिशत बनाम 20 प्रतिशत होंगे। अर्थात वह हिन्दू मुस्लिम ध्रुवीकरण की तरफ इशारा कर रहें हैं इसका जवाब अखिलेश ने यह दिया है कि नही, चुनाव 85 प्रतिशत बनाम 15 प्रतिशत होंगा। वह इसे पिछड़े बनाम अगड़े बनाना चाहते हैं।

कोविड काल के दौरान जो जाने गई और रोजगार की जो तबाही हुई है उसके कारण यूपी सरकार को शासन विरोधी भावना ‘एंटी इनकमबंसी’ परेशान कर रही लगती है। करोड़ों का रोजगार छिन गया। जब गंगा में लाशें बहने लगी तो देश दंग रह गया। कोविड के दौरान लापरवाही और ठाकुरवाद के कारण लोगों में नाराज़गी है। अब जवाबदेही होगी। उपर से लम्बे चले किसान आन्दोलन और विशेष तौर पर लखीमपुर खीरी की घटना के कारण किसान विशेष तौर पर जाट किसान, नाराज़ है। पिछले चुनाव में भाजपा ने पश्चिम उत्तर प्रदेश की 135 में से 100 सीटें जीती थी, और जाट प्रभुत्व वाली 71 सीटों में से 51 जीती थी। इनमें से कई खतरें में होंगी। सपा और राष्ट्रीय लोकदल का गठबन्धन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बहुत तकलीफ़ देगा। ओबीसी बग़ावत से भाजपा को बहुत धक्का पहुंचा है। मुसलमान तो पहले ही दूर है अब अगर जाट-ओबीसी-मुसलमान गठबंधन बन जाता है तो बड़ी चुनौती खड़ी हो जाएगी। मौर्य का पलायन और जाट विमुखता का एक और बड़ा मतलब है कि जाति की दरारों पर  हिन्दुत्व का पलस्तर काम नही कर रहा। अयोध्या में मंदिर बन रहा है, वाराणसी में भव्य गलियारे का ख़ुद प्रधानमंत्री ने लोकार्पण किया है, योगी आदित्यनाथ 19 बार मथुरा का दौरा कर चुकें है।  इन आयोजनो को जनसमर्थन तो है पर यह सरकार के ख़िलाफ़ असंतोष, रोजगार छिन जाने का ग़ुस्सा, बढ़ती मंहगाई पर रोष, को कम नही कर सके। हरिद्वार के कथित धर्म संसद से फिर ध्रुवीकरण का प्रयास किया गया था तो यह सफल नही हुआ केवल विदेशों में बदनामी अर्जित की गई है। यह नफरत उगलने वाले कथित संत हमारी संस्कृति, हमारे दर्शन और हमारा प्रतिनिधित्व नही करते। योगी सरकार ने बड़े बड़े विज्ञापनों पर करोड़ों रूपए ख़र्च किए है पर लगता है विकास पर अधिक  भरोसा नही है। अयोध्या में योगी ने कहा था की ‘अगली कार सेवा पर गोली नही चलाई जाएगी,राम भक्तों और कृष्ण भक्तों पर पुष्प वर्षा होगी’। दुनिया आगे बढ़ गई पर योगीजी 1992 में  जी रहें हैं! बड़ी संख्या में लोगो के आगे अस्तीत्व का संकट है उन्हे फ़र्क़ नही पड़ेगा कि उपर से फूल बरसाए जातें हैं या नही। वैसे भी जैसे प्रशांत किशोर ने बताया है, ‘हिन्दुत्व राजनीति की सीमा है। 50-55 प्रतिशत से अधिक किसी समुदाय का ध्रुवीकरण नही हो सकता। डेटा बताता है कि अगर एक हिन्दू ने भाजपा  को वोट दिया है तो एक और ने नही दिया’। और इतिहास गवाह है कि रूष्ट भारत साम्प्रदायिक आधार पर नही सोचता।शोक और संकट में लोग  एकजुट हो जाते हैं। 

अखिलेश यादव को भी पहली बार नींद में कृष्ण जी के सपने  आ रहे है। उनके अनुसार कृष्ण जी उन्हे रामराज्य कायम करने के लिए कह रहें है और इसका रास्ता भी उन्होने बताया है। अखिलेश के अनुसार ‘राम राज्य का रास्ता समाजवाद के द्वारा है। जिस दिन समाजवाद स्थापित हो जाएगा राम राज ख़ुद ही स्थापित हो जाएगा’। नेता लोगों को बेवक़ूफ़ क्यों समझते है? पिछली बार जब अखिलेश सता में थे तो रामराज तो दूर की बात काम  का राज भी नही दिया गया। उन्होने पहले परिवार राज और दूसरे नम्बर पर यादव राज दिया था। यही कारण था कि लोगों ने 403 में से 312 सीटें देकर भाजपा की सरकार बना दी थी जबकि सपा को 47 सीटें मिली थी। इस बार अखिलेश अधिक गम्भीरता और परिपक्वता  दिखा रहें हैं। मायावती और कांग्रेस से तौबा करते हुए उन्होने छोटे छोटे दलों को साथ लिया है। जिस तरह भाजपा के बाग़ी नेता उनकी तरफ दौड़ रहे हैं उससे पता चलता है कि अखिलेश और सपा भाजपा का विकल्प बन कर उभर रहें हैं। अगर बाकी पार्टियाँ कमजोर पड़ जाती है तो सीधी टक्कर में सपा को फ़ायदा होगा। पर फ़ासला बहुत तय करना बाकी है। पिछले चुनाव में भाजपा को 39.7 प्रतिशत, बसपा को 22.21 प्रतिशत और सपा को 21.8 प्रतिशत वोट  था। अर्थात भाजपा तक पहुँचने के लिए बहुत बड़ी छलाँग लगानी पड़ेगी या भाजपा के ग्राफ़ में बड़ी गिरावट आनी चाहिए। जिन्हें घर मिलें हैं या जिन्हें नियमित राशन मिल रहा वह जल्दी में भाजपा का साथ नही छोड़ेंगे। अखिलेश की कोशिश होगी कि वह यूपी के ममता बैनर्जी बन जाए पर ममता का मुक़ाबला करना आसान नही।  वह पूरी तरह से ईमानदार और सादगी पसंद नेता है।  न ही कभी उनकी घर की दीवारें तोड़ने की नौबत आई है !

उत्तर प्रदेश में कभी बसपा का बड़ा वजूद था। मायावती  ख़ुद भी चार बार सीएम रह चुकीं है पर अब वह किन्हीं कारणों से पृष्ठभूमि  में चली गईं है। पंजाब जहाँ दलित जनसंख्या देश में सबसे अधिक है वहां भी बसपा लावरिस लगती है चाहे इस बार अकाली दल का सहारा है। कांग्रेस विशेषतौर पर प्रियंका गांधी की सक्रियता दिखा रहीं है, लेकिन उत्तर प्रदेश के साथ गांधी परिवार का लव-अफ़ेयर एकतरफ़ा लगता है। पिछले तीन चुनाव में पार्टी को क़रीब 6 प्रतिशत वोट मिले थे। बड़ी संख्या में महिलाओं को टिकट दे कर प्रियंका ने न केवल वादा निभाया है बल्कि समाजिक परिवर्तन की शुरूआत भी की है। देखना है कि ‘मेरे पास बहन है’ अभियान का  राजनीतिक फ़ायदा कितना मिलता है?  पर 40 प्रतिशत महिलाओं को टिकट देने का फ़ार्मूला बाकी प्रदेशों में कांग्रेस ने क्यों नही  अपनाया? यह भी देखने की बात है कि कांग्रेस किस का अधिक नुक़सान करती है? वह भाजपा का सवर्ण वोट काटती है या सपा के भाजपा विरोधी वोट? उतराखंड में भाजपा ने अस्थिर सरकार दी है। तीन मुख्यमंत्री बदले गए। पहले मुक़ाबला सीधा भाजपा और कांग्रेस के बीच था पर यहां भी पंजाब और गोवा की तरह आप ने मुक़ाबला रोचक बना दिया है।  गोवा में एक अनार चार बीमार वाली स्थिति है, भाजपा, कांग्रेस, आप और टीएमसी। ममता बैनर्जी यहाँ अपनी लोकप्रियता अजमाना चाहती है पर निराशा मिलेगी। भाजपा विरोधी वोट के बँट जाने का सतारूढ पार्टी को फ़ायदा होगा।

लेकिन असली बैटल तो यूपी की है जहाँ जीत या हार राजनीति की दिशा बदल सकती है। अगर कोई स्पष्ट फ़्रंट रन्नर निकल जाए, जैसे बंगाल में ममता बैनर्जी, तो भाजपा के लिए समस्या हो सकती है। इस वक़्त लोगों की शिकायतों का कोई अंत नही। अगर अखिलेश यादव लोगों को यह यक़ीन दिलवाने में कामयाब हो गए कि वह बदले है और यह पुरानी सपा नही है, तो उन्हे फ़ायदा होगा। भाजपा डबल इंजन की बात कर रही है पर अगर धक्का पहुँचा तो यह केवल लखनऊ वाले इंजन को ही नही, दिल्ली वाले को भी मिलेगा। अगर पार्टी का प्रदर्शन सही नही रहता है तो बाकी प्रदेशों पर असर पड़ेगा, और अगर भाजपा जीतती है तो इसे 2024 का ट्रेलर समझा जाएगा। अगर कांग्रेस का प्रदर्शन निम्न रहता है और विशेष तौर पर पंजाब हाथ से निकल गया तो उसका विपक्ष का केन्द्र होने का दावा और कमजोर पड़ जाएगा और राहुल गांधी को बग़ावत का सामना करना पड़ सकता है। पंजाब में कुर्सी के लिए पाँच जट उम्मीदवारों, अमरेन्द्र सिंह-भगवंत मान-सुखबीर बादल-नवजोत सिंह सिदधू तथा किसान मोर्चे के नेता, के सामने चरणजीत सिंह चन्नी दलित उम्मीदवार हैं। मामला दिलचस्प है।

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About Chander Mohan 735 Articles
Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.