जस्टिन ट्रूडो कुछ पिघले हैं। भारत और कैनेडा के रिश्ते को इल्ज़ाम बम से तबाह करने के बाद अब उनका कहना है कि भारत के साथ घनिष्ठ रिश्ते को लेकर वह गम्भीर हैं क्योंकि “वह देश उभर रही आर्थिक शक्ति है और महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक खिलाड़ी है”। पर जब हमें दुनिया भर में बदनाम किया गया था तब उन्हें भारत के महत्व के बारे जानकारी नहीं थी क्या? उस समय किस नशे में थे जनाब ? अब भी कहना है कि “हम यह बताना चाहते हैं कि भारत को कैनेडा के साथ मिल कर यह निश्चित करना होगा कि हम मामले की तह तक पहुँच सके”। विदेश मंत्री डा.जयशंकर बार बार कह चुकें हैं कि अगर कैनेडा कोई सबूत देगा तो हम ज़रूर उस पर कार्रवाई करेंगे, पर कोई सबूत नहीं दिया गया। घटना 18 जून की है पर अभी तक एक भी गिरफ़्तारी नहीं की गई। उल्टा हमसे कहा जा रहा है कि हम ने अपना काम कर दिया और इल्ज़ाम लगा दिया, अब आप अपना काम करो और हमें वह सबूत दो जिससे हमारा इल्ज़ाम सही साबित हो सके ! बहुत सुविधाजनक स्थिति है, पर ट्रूडो साहिब भूल गए कि परिस्थिति बहुत बदल चुकी है। यह पुराना भारत नहीं है। जयशंकर ने अमेरिका में कहा हैं कि, “क्षेत्रिय अखंडता के प्रति सम्मान और दूसरे के अंदरूनी मामलों में दखल मर्ज़ी के मुताबिक़ नहीं होना चाहिए। वह दिन गुज़र गए जब कुछ देश दूसरों की ओर से सोचते थे”। उन्हें आयना दिखा दिया गया कि वह दिन लद गए जब पश्चिम के देश हमें लेक्चर दे सकते थे। जैसे लंडन स्थित प्रो.हर्ष वी.पंत ने भी लिखा है, “भारत में ट्रूडो के खिलाफ राय इतनी प्रबल है कि इसने बुरी तरह से विभाजित राजनीति को इकट्ठा कर दिया है। भारत में खालिस्तान की कोई गूंज नहीं है। भारत उभर रहे वैश्विक सत्ता के संतुलन के केन्द्र मे स्थापित है। यह केन्द्र पश्चिम से हट रहा है। अब भारत कैनेडा का वैसा जवाब दे सकता है जैसे पहले वह नहीं दे सकता था”।
भारत के संदर्भ में एक बात याद रखनी चाहिए कि यह एक धधकता लोकतंत्र है जहां लोगों की राय का बहुत महत्व है। यह राय जस्टिन ट्रूडो को माफ़ करने को तैयार नही। न ही वह पश्चिमी पाखंडियों से अनावश्यक नैतिकता का पाठ ही सुनने को तैयार हैं। ट्रूडो ने इस समय यह इल्ज़ाम क्यों लगाया जिसका उनके पास कोई सबूत नहीं है? मई में तो दोनों देशों के बीच व्यापार वार्ता अच्छी चल हो थी फिर अचानक चार महीने के बाद वह बहक क्यों गए ? एक कारण तो निजी है। ट्रूडो को भारत से व्यक्तिगत चिढ़ है। 2018 में उनकी भारत यात्रा बुरी रही थी क्योंकि भारत सरकार ने वहाँ पनाह दिए गए आतंकवादियों के प्रति उदार रूख पर आपत्ति की थी। तब अपनी असफल यात्रा पर ट्रूडो ने कहा था कि “यह यात्रा भावी यात्राओं को समाप्त करने वाली है”। जी- 20 के दौरान भी उनकी यात्रा ठंडी रही। प्रधानमंत्री मोदी ने सख़्ती से वहाँ रह रहे आतंकवादियों और उग्रवादियों का मामला उठाया। तल्ख़ी इतनी थी कि ट्रूडो राष्ट्रपति के भोज में शामिल नहीं हुए। एक कारण और यह भी है कि वह वहाँ रह रहे उग्रवादी सिख वोट को अपने साथ रखना चाहते हैं। इस वोट का 8 संसद सीटों पर सीधा और 16 और पर परोक्ष प्रभाव है। ट्रूडो वोट बैंक राजनीति के शिकार हैं।
पश्चिम के देशों के लिए बड़ी समस्या है जिस का वह फ़ैसला नहीं कर पा रहे कि भारत के उभार को किस नज़रिए से देखें ? भारत उनके लिए ज़रूरी है पर भारत केवल उनके मुताबिक़ चलने को तैयार नही जैसे अमेरिका की पूँछ बन कर कैनेडा या इंग्लैंड या आस्ट्रेलिया चलते हैं। उन्हें शिकायत है कि भारत की विदेश नीति अधिक आज़ाद और आक्रामक हो रही है। इस पर कुछ अंकुश लगाने की कोशिश हो रही है। यह सारा बखेड़ा खड़ा कर हमें बताया जा रहा है कि आप वह नहीं कर सकते जो हम करते रहें हैं। एक शिकायत युक्रेन युद्ध को लेकर है कि हम उनके साथ कदम से कदम मिला कर क्यों नहीं चल रहे? इस बीच भारत ने जी-20 का सफल आयोजन कर दिखाया है और अफ़्रीकन यूनियन को सदस्य बनवा दिया है। कहीं यह भी उन्हें चुभ रहा है। वाशिंगटन के एक थिंक टैंक की विशेषज्ञ लीज़ा करटिस के अनुसार “वह (पश्चिम) सफल जी-20 के बाद मोदी को मिली चमक को बुझाने में लगे है”। जी-20 के तत्काल बाद निज्जर का मामला उठाए जाना बताता है कि कहीं तकलीफ़ पहुँची हैं। क्या हमें वारनिंग शॉट दिया गया है?
इस सारे मामले में अमेरिका और वहाँ के मीडिया की भूमिका शंका उत्पन्न करती है। यह प्रतीत होता है कि ट्रूडो अकेले यह खेल नहीं खेल रहे थे। उनके पीछे जिसे ‘फाइव आईज़’- (पाँच आँखें) अमेरिका, इंग्लैंड, कैनेडा, आस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड, की ख़ुफ़िया एजंसियां मिल कर चल रही थीं। अमेरिका का कैनेडा पर बहुत प्रभाव है। वह कैनेडा को रोक सकते थे पर कैनेडा को हमारी अवमानना की इजाज़त दी गई। न केवल इजाज़त ही दी गई बल्कि मदद की गई। उनके अपने अख़बार कह रहें हैं कि कैनेडा को सूचना अमेरिका ने पहुँचाई है। अमेरिका के विदेश मंत्री बलिंकन ने सार्वजनिक कहा है कि ‘कैनेडा के आरोपो को लेकर अमेरिका बहुत चिन्तित है’ और चाहता है कि निज्जर मामले में जवाबदेही तय की जाए। कैनेडा में अमेरिका के राजदूत ने इस बात की पुष्टि की है कि ‘फ़ाइव -आई पार्टनर’ ने आपस में जानकारी सांझी की थी। न्यूयार्क टाइम्स ने भी एक रिपोर्ट में बताया है कि अमेरिका ने कैनेडा को निज्जर की हत्या के बारे ख़ुफ़िया जानकारी दी थी। इससे पहले हमें झाड़ते हुए अमेरिका के प्रवक्ता का कहना था कि ‘किसी भी देश को विशेष छूट नहीं दी जा सकती’। अर्थात् हमें संदेश है कि आप चाहें खुद को महत्वपूर्ण समझो पर हम आपका बिगाड़ने की क्षमता रखते हैं।
हम लाख शोर मचाए कि अलगाववादियों और आतंकवादियों को पश्चिम के कुछ देश पनाह दे रहें है, अमेरिका हमारी शिकायत की अनदेखी कर रहा है। भारत ने 10 खालिस्तानियों की सूची जारी की है जिन्होंने सैन फ़्रांसिस्को में हमारे दूतावास में आगज़नी की है। कोई कार्रवाई नहीं की गई। गुरपतवंत सिंह पन्नू जो आजकल खालिस्तानियों का चेहरा बना हुआ है और हाल ही में हिन्दुओं को कैनेडा से निकल जाने की धमकी दे कर हटा है, अमेरिका का नागरिक है। उसके उकसावे पर हमारे दूतावास पर हमले हो चुकें हैं पर न उसे भारत को सौंपा जाता है और न ही उस पर लगाम कसी जाती है। विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी ने इस मामले में अमेरिका की ‘ग़ज़ब के पाखंड’ की शिकायत की है।सारी दुनिया पर सिद्धांत लादने वाला अमेरिका अपनी बारी में सचमुच ग़ज़ब की निष्क्रियता धारण कर लेता है। विदेश मंत्री जयशंकर ने अमेरिका की अपनी यात्रा के दौरान रिश्तों के प्रति उत्साह दिखाने की कोशिश की है। उन्होंने इन रिश्तों के बारे कहा है कि यह ‘ऑल टाइम हाई’ हैं। जयशंकर डिप्लोमैट रहे है और अमेरिका के साथ रिश्ते मज़बूत करने में उन्होंने बहुत मेहनत की है। वह अपनी तरफ़ से डैमेज कंट्रोल की कोशिश कर रहें हैं। पर हमें यह तो बताया जाए कि जो हुआ वह क्यों हुआ और अमेरिका की भूमिका उकसाने वाले की क्यों थी? और पश्चिम के देश विशेष तौर पर अमेरिका, कैनेडा और इंग्लैंड, भारत विरोधी तत्वों के स्वैच्छिक मेज़बान क्यों बन जातें हैं?
कैनेडा के प्रेस के मुताबिक़ भारतीय राजनयिकों के बीच वार्तालाप निज्जर मामले में सबूत है। एक तरफ़ हम अमेरिका के साथ क्वाड में साथी है और दूसरी तरफ़ बताया यह जा रहा है कि कि अमेरिका ने हमारी जासूसी कर अपने पुराने ‘फ़ाइव आईज़’ सदस्य कैनेडा को हमारे ख़िलाफ़ जानकारी दी है। अगर यह सच है तो क्वाड का भी बहुत भविष्य नहीं है क्योंकि अभी से अविश्वास पैदा हो गया है। हमें बता दिया गया है कि अमेरिका के लिए हम कैनेडा या इंग्लैंड या आस्ट्रेलिया या न्यूज़ीलैंड जैसे गोरे देश की श्रेणी में नहीं आते। हमारा उपयोग चीन के खिलाफ किया जाएगा जैसे युक्रेन का इस्तेमाल रूस के खिलाफ किया जा रहा है। उस सीमित लक्ष्य के लिए मदद की जाएगी। उससे अधिक अगर भारत छलांग लगाना चाहेगा तो रूकावटें खड़ी की जाएगी जिसका छोटा सा ट्रेलर हम देख कर हटें हैं।
अंत में: इंग्लैंड में ग्लासगो के गुरुद्वारा के प्रबंधकों ने सख़्त शब्दों में उन तीन कथित खालिस्तानियों की निन्दा की है जिन्होंने वहां आमंत्रित भारतीय हाई कमिश्नर विक्रम दोरवायस्वामी को गुरुद्वारे में प्रवेश नहीं करने दिया था। प्रबंधकों का कहना है कि बाहर के लोगों ने शांतिमय सिख गुरुद्वारे की गतिविधि में विघ्न डाला है। इस बयान का स्वागत है क्योंकि गुरूघर के दरवाज़े तो सबके लिए 24 घंटे खुले रहते हैं। जो उनका प्रयोग हिंसक देश विरोधी गतिविधियों के लिए कर रहे हैं वह सिख धर्म की उच्च परम्पराओं के विपरीत जा रहें हैं। आशा है कि इसी तरह और विवेकशील आवाज़ें भी उठेगी ताकि विदेश में जो थोड़े देश विरोधी लोग उपद्रव मचा रहें हैं वह अपनी नापाक गतिविधियाँ बंद करने के लिँए मजबूर हो जाएँ। पर यह घटना फिर हमारी शिकायत की पुष्टि करती है वहाँ अलगाववादी बिना किसी रोक के खुले घूम रहे हैं और उपद्रव मचा रहें हैं। इन सरकारों को समझना चाहिए कि ऐसे लोगों की हरकतें देशों के बीच अविश्वास बढ़ाने की क्षमता रखती है। और अब भारत भी बहुत माफ़ करने को तैयार नही है।