
हिमाचल प्रदेश के खूबसूरत शहर पालमपुर जहां से धौलाधार पर्वत ऋंखला का सुन्दर नजारा देखने को मिलता है और जो अपने चाय बाग़ान के लिए मशहूर है, से एक बदसूरत विवाद खड़ा हुआ है। मामला कुछ ऐसा है। वहाँ प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का एक बुत दशकों से लगा था जिसकी हालत ख़राब हो गई थी। भाजपा के वरिष्ठ नेता शांता कुमार जो हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री दोनों रह चुकें है, को बुत की जर्जर हालत पसंद नहीं आई और उन्होंने अपनी तरफ़ से 1 लाख रूपए का चैक भेज कर एसडीएम से इसे बनवाने का अनुरोध किया। जब नेहरूजी का नया आदमकद बुत बन गया तो पालमपुर के युवा कांग्रेस नेता आशीष बुटेल ने शांताजी से अनुरोध किया कि वह इसका अनावरण करें जो बात शांता कुमार ने स्वीकार कर ली। शांताकुमार जो पहले भी कई बार पार्टी की लाईन से हट कर बेबाक़ बोल चुकें हैं, ने समारोह में नेहरू की भूरी भूरी प्रशंसा की। जहां भाजपा के नेता नेहरू की आलोचना करते रहतें है और देश की समस्याओं के लिए उन्हें ज़िम्मेवार ठहरातें रहतें है,वहाँ शांता कुमार ने कहा कि पंडित नेहरू ने आज के भारत की नींव रखी थी।
बस, उनका इतना कहना और नेहरू के बुत का अनावरण करने से उनकी आलोचना शुरू हो गई। कुछ ने कहा कि अब शांता कुमार को कांग्रेस में शामिल हो जाना चाहिए। अधिकतर शिकायत थी कि वह भाजपा की नीति से हट कर कांग्रेस के कार्यक्रम में गए थे। आख़िर में जो व्यक्ति 1952 से भारतीय जनसंघ और फिर भारतीय जनता पार्टी से जुड़ा हुआ है को प्रेस विज्ञप्ति जारी कर स्पष्टीकरण देना पड़ा। उनका कहना था, “भाजपा सभी राष्ट्रीय नेताओं का सम्मान करती है। नीतियों में मतभेद के कारण सम्मान में कमी नहीं होनी चाहिए। पंडित नेहरू की बहुत सी नीतियों के कारण मेरा उनसे मतभेद रहा है…परन्तु भारत की आज़ादी के लिए बलिदान देने वाले प्रथम प्रधानमंत्री के प्रति मेरे मन में पूरा सम्मान है”। इस पर किसी को आपत्ति क्यों हो? वास्तव में देश को शांता कुमार जैसे और नेता चाहिए जो राजनीति से उपर उठ कर सही बात करने की हिम्मत दिखाएं। पर अफ़सोस है कि जैसे खुद शांताजी ने भी लिखा है, हमारी राजनीति के अवमूल्यन के कारण ही नेहरू के प्रति सम्मान व्यक्त करने कि लिए उनकी आलोचना हो रही है।
नेहरू का देश के प्रति क्या योगदान था इसके बारे बहुत कुछ लिखा जा चुका है मैं दोहराने का प्रयास नहीं करूँगा केवल यह कहना चाहूँगा कि अगर भारत पाकिस्तान वाली दिशा में नहीं गया तो यह प्रथम प्रधानमंत्री की सही सोच और सही निगरानी के कारण हुआ है। उनसे मतभेद हो सकते हैं पर उनके योगदान को नकारा नहीं जा सकता, न ही जाना चाहिए। खुद नेहरू ने कहा था कि आप दीवार पर लगी तस्वीरों को पलटा कर इतिहास का प्रवाह बदल नही सकते। केवल नेहरू ही नहीं पटेल, सुभाष, भगत सिंह जैसे नेता जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई में बड़ा हिस्सा डाला था उन सबका सम्मान होना चाहिए। गांधी तो वैसे ही महात्मा थे और सब के मार्गदर्शक थे। यह उल्लेखनीय है कि संसद के पुराने भवन में विदाई समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज़ादी की पूर्व संध्या पर जवाहरलाल नेहरु के दिए प्रसिद्ध भाषण The Tryst With Destiny अर्थात् ‘नियति से भेंट’, का वर्णन किया और कहा कि यह हमें प्रेरणा देता रहेगा।
प्रधानमंत्री मोदी ने उदारता दिखाई पर हमारी राजनीति घटिया और नफ़रत से भरी हो गई है।1958 में एक राजनीतिक उपन्यास छपा था The Ugly American, अर्थात् ‘बदसूरत अमरीकी’ जिसमें अमरीकनो के फूहड़पन, घमंड और असभ्यता पर कटाक्ष किया गया था। अफसोस है कि हम बदसूरत और असभ्य भारतीय के उदय को भी देख रहें हैं। यह वह लोग हैं जो शांताकुमार की भी आलोचना करते हैं और मुहम्मद शमी को पाकिस्तान के साथ टी-20 मैच के बाद देश द्रोही तक कह चुकें हैं। अब तो प्रधानमंत्री को भी नहीं बख्शा जा रहा। फ़ाइनल में हार के बाद प्रधानमंत्री मोदी मुरझाए अपने खिलाड़ियों से मिलने और ढाढ़स बांधने उनके ड्रैसिंग रूम में गए थे। यह बहुत बढ़िया कदम था पर इसका भी मज़ाक़ उड़ाया जा रहा है। प्रधानमंत्री ने ‘डीपफेक’ के खिलाफ सावधान किया है पर इससे ख़तरनाक यह ट्रोल आर्मी है जो अब सब पार्टियों के पास है। यह बहुत घातक है और समाज में ज़हर घोल रहे हैं।
जवाहरलाल नेहरू और अटल बिहारी वाजपेयी के रिश्ते बताते हैं कि राजनीति में मतभेद के बावजूद सभ्य कैसे रहा जाता है। जब वाजपेयी संसद में पहंचे तो नेहरू अपने शिखर पर थे। सैद्धांतिक मतभेद तीखे थे इसके बावजूद नेहरू युवा वाजपेयी को प्रोत्साहित करते रहे। एक बार वाजपेयी ने संसद में नेहरू को ज़बरदस्त रगड़ा लगाया कि चीन के बारे नेहरू ‘अजब विभाजित व्यक्तित्व दिखा रहें है, वह चर्चिल की तरह आक्रामक भी है और चेम्बरलेन की तरह कमजोर भी हैं’।शाम के वकत किसी भोज में वाजपेयी का नेहरू से सामना हो गया तो अटलजी के अपने शब्दों में “नेहरू ने उन्हें बधाई दी। कहा आज तो ग़ज़ब का भाषण दिया है और मुस्कुराते वहाँ से निकल गए”। न केवल बधाई दी बल्कि अगले महीने अपने सबसे बड़े आलोचक को संयुक्त राष्ट्र जनरल एसैम्बली के अधिवेशन में जाने वाले भारतीय प्रतिनिधि मंडल में शामिल कर लिया। ऐसी उदारता आज क्यों ग़ायब है? आलोचना को दुष्मनी क्यों समझा जाता है?
अभिषेक चौधरी जिन्होंने वाजपेयी की जीवनी लिखी है, ने बताया है कि चाहे सार्वजनिक जीवन में वाजपेयी की छवि उस आलोचक की थी जो सदैव नेहरू पर प्रहार करता रहता है पर असल में ‘वाजपेयी के मन में नेहरू के प्रति उच्च श्रद्धा है”। यह बात महाराज कृष्ण रसगोत्रा जो संयुक्त राष्ट्र में तैनात थे और बाद में विदेश सचिव भी बने, ने कही थी। दोनों में ऐसा ख़ामोश रिश्ता बन गया था कि आचार्य कृपलानी ने एक बार अटल बिहारी वाजपेयी को ‘नेहरूवादी’ करार दिया था। वाजपेयी जब प्रधानमंत्री बने तो देखा कि उनके कार्यालय की तरफ़ जाते गलियारे से वहाँ लगा नेहरू का चित्र हटवा दिया गया। वाजपेयी इस पर बहुत बिगड़े और तुरंत वह चित्र वापिस लगवाने का आदेश दे दिया, जो लगा भी दिया। यह बात खुद वाजपेयी ने बताई थी। राजनैतिक मतभेदों के उपर सभ्य संवाद का सेतु होना चाहिए। अफ़सोस है कि शांता कुमार जैसे सच कहने वाले अब अल्पमत में चले गए हैं।
पुरानी बात है। मोरारजी देसाई तब बोम्बे स्टेट (आज का महाराष्ट्र) के मुख्यमंत्री थे। ब्लिटस पत्रिका के सम्पादक रूसी करंजिया उनके तीखे आलोचक थे। बाद में मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बन गए। एक दिन करंजिया उनसे मिलने दिल्ली आए। देसाई बहुत अच्छी तरह से उनसे मिले तो हैरान करंजिया ने कहा कि मैं तो आप का कट्टर आलोचक रहा हूँ आप मेरे से नाराज़ भी रहते थे, पर आज आप तो बड़ी अच्छी तरह से मिले है। तो देसाई ने उतर दिया, “तब मैं एक प्रांत का मुख्यमंत्री था, आज मैं पूरे देश का प्रधानमंत्री हूँ”। पी वी नरसिम्हा राव और अटल बिहारी वाजपेयी अलग पार्टी से ही नहीं अलग विचारधारा से थे। राव परमाणु परीक्षण करना चाहते थे जिसकी तैयारी भी कर ली गई थी यहाँ तक कि प्रधानमंत्री के घर में स्थित उनके कार्यालय में अधिकारियों की बैठकें होती रहीं पर अमरीकी दबाव में राव वह कर नही सके। पर वह अपने उत्तराधिकारी अटल बिहारी वाजपेयी को बता गए कि यह यह तैयारी हो चुकी है और तुम इसे क्रियान्वित करो। मई 1966 में जब वाजपेयी 13 दिन के लिए प्रधानमंत्री बने तो वह कर नहीं पाए पर अगली बार जब वह प्रधानमंत्री बने तो मई 1998 में पोखरन में विस्फोट कर लिया गया। अर्थात् दोनों ने राष्ट्रीय हित में सहयोग किया। राव ने यह नहीं सोचा कि मैं तो कर नहीं पाया, वाजपेयी को इसका श्रेय क्यों जाए?
पी.वी.नरसिम्हा राव और अटल बिहारी वाजपेयी के रिश्ते के बारे वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी अपनी किताब, How Prime Ministers Decide, अर्थात् प्रधानमंत्री कैसे निर्णय लेते हैं, में बतातीं हैं कि “चाहे वह अलग पार्टियों से थे और अलग विचारधारा के अनुयायी थे, दोनों एक दूसरे का सम्मान करते थे। यह विश्वास उन्हें अपनी पार्टी के साथियों से नहीं मिलता था…कई इसमें ब्राह्मण मेल देखते थे”। राव ने तो अटलजी के कविता संग्रह का विमोचन करते समय यहाँ तक कहा था कि, “अटलजी मेरे गुरू रहें हैं”। आजकल कौन किसे गुरू मानता है, सब खुद सर्वगुण सम्पन्न हैं! दोनों में सहयोग और आपसी विश्वास तब देखने को मिला जब जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के सामने जम्मू कश्मीर का मुद्दा उठाया गया। पाकिस्तान ने भारत की निन्दा का प्रस्ताव पेश किया था। प्रधानमंत्री राव ने विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को भारतीय प्रतिनिधि मंडल का नेता बना कर वहां भेज दिया। प्रतिनिधि मंडल में फारूक अब्दुल्ला भी शामिल थे। इसके द्वारा हमारी राजनीति के वास्तविक चाणक्य, नरसिम्हा राव, ने दुनिया को संदेश दे दिया कि जम्मू कश्मीर के मामले में देश एकजुट है। वाजपेयी भी मान गए जबकि उस समय इस बात की सम्भावना थी कि हम वहाँ हार भी सकते थे। लेकिन हम जीत कर लौटे और प्रधानमंत्री ने जीत का श्रेय विपक्षी नेता को दिया। ऐसी उदारता अब क्यों ग़ायब हो गई है? राजनीतिक रंजिश हद पार क्यों कर रही है? भाजपा का कोई नेता नेहरू के बुत के लिए पैसे दे कर उसका अनावरण क्यों नहीं कर सकता?
भारत विश्व कप जीत नहीं सका। 140 करोड़ दिल टूट गए पर जिस तरह से हमारी टीम खेली उस पर गर्व है। हार जीत होती रहती है पर आख़िरी मैच को छोड़ कर हम टूर्नामेंट पर हावी रहे। पर अफ़सोस है कि इस मैच में कपिल देव को नहीं बुलाया गया जबकि 1983 में पहला विश्वकप उन्होंने दिलाया था। कपिल ने तो शिकायत भी की है कि निमंत्रण नहीं मिला और वह तो 1983 की पूरी टीम के साथ मैच देखना चाहते थे। 2011 की विश्व कप जीतने वाली टीम के कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी भी नज़र नहीं आए। पता नहीं कि उन्हें बुलाया गया कि नही। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। जैसे राजनीति में तुच्छ खेल नहीं होना चाहिए वैसे खेल में तुच्छ राजनीति भी नहीं होनी चाहिए।