जिन्होंने ग़ाज़ा में 14000 मरने दिए उन्हें इस घोषित आतंकी की चिन्ता है!, Those Who Allowed 14000 To Be Killed In Gaza Are Worried About One Terrorist

ब्रिटिश अख़बार फाईनैनशल टाईम्स की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका की सरकार ने खालिस्तानी गुरपतवंत सिंह पन्नू जिसे भारत आतंकवादी घोषित कर चुका है, की “हत्या की साज़िश को विफल कर दिया है”, और भारत सरकार को चेतावनी दी है कि चिन्ता है कि “वह इस साज़िश में संलिपत थी”। रिपोर्ट के अनुसार इस मामले में एक अपराधी के खिलाफ न्यूयार्क की ज़िला अदालत में सीलबंद केस दाखिल किया गया है। इस से पहले कैनेडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो अपनी संसद में बयान दे चुकें हैं कि  ‘विश्वसनीय आरोप’ हैं कि खालिस्तानी हरदीप सिंह निज्जर की वहाँ हत्या में भारत की एजेंसियाँ संलिप्त थीं। कैनेडा की सरकार ने अभी तक इसका कोई प्रमाण नहीं दिया जिस पर वहां स्थित हमारे राजदूत ने शिकायत की है कि बिना जाँच के हमें दोषी ठहराया जा रहा है। लेकिन पन्नू वाला मामला अधिक गम्भीर है कि कहीं भारत को बदनाम करने की या दबाव में रखने का साज़िश हो रही है। पाकिस्तान के बाद क्या पश्चिम के देश खालिस्तान के मुद्दे के द्वारा हम पर दबाव बना रहे है? पहले कैनेडा तो अब हमारा ‘सट्रैटिजिक पार्टनर’ अमेरिका ?

फाईनैनशल टाईम्स की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका, कैनेडा और साथी देशों ने यह जानकारी सांझी की है कि निज्जर की हत्या और पन्नू की हत्या के प्रयास से भारत के “व्यवहार के संभावित आकार” के प्रति चिन्ता है। अमेरिका, कैनेडा, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड जिनका ख़ुफ़िया जानकारी के आदान प्रदान का संयुक्त नेटवर्क फ़ाईव आईज़ है, आपस में जानकारी सांझी करते है। अर्थात् भारत को दबाने के लिए सब मिल कर चल रहें लगते हैं। हम चाहे अमेरिका के साथ दोस्ती का दावा करते रहे हैं पर यह पन्नू वाला मामला वेकअप कॉल है। अगर सचमुच दोस्ती होती तो मामला मीडिया को लीक न किया जाता। इन दोनों मामलों का भारत सरकार की सेहत पर असर नहीं पड़ेगा उल्टा मोदी सरकार को घर में बेहतर नम्बर दिए जाऐंगे, पर इससे पश्चिमी देशों की मंशा तो साफ़ होती है। उन्हें हमारी आज़ाद और आक्रामक विदेश नीति अखर रही है इसलिए अमेरिका और कैनेडा में बैठ कर भारत में आतंकी गतिविधियाँ चलाने वाले या टार्गेट किलिंग करवाने वाले लोगों पर कार्यवाही करने की जगह हमें ही कटघरे में खड़े करने का प्रयास हो रहा है। पाकिस्तान गदगद है। इस अख़बार की रिपोर्ट पर टिप्पणी करते हुए पाकिस्तान के प्रवक्ता का कहना है, “भारत का जासूसी और विदेशों में हत्याओं का नेटवर्क अब वैश्विक हो गया है”। 

गुरपतवंत सिंह पन्नू कौन है जिसके वेलफ़ेयर की अमेरिका को इतनी चिन्ता है? वह न्यूयार्क स्थित खालिस्तानी संगठन सिख्स फ़ॉर जस्टिस का संस्थापक है जिसका उद्देश्य पंजाब में ‘खालिस्तान के नाम का  संप्रभु राज्य’ स्थापित करना है। पन्नू को अमेरिका और कैनेडा दोनों की नागरिकता प्राप्त है। वह 2020 में सिखों का जनमत संग्रह करवा चुका है जिसे समर्थन नहीं मिला। पर वह हटा नहीं और लगातार धमकियाँ देता जा रहा है। इस बार तो वह सब हदें पार कर गया जब उसने एक वीडियो जारी कर सिखों से कहा कि वह 19 नवम्बर के बाद एयर इंडिया के विमानों पर सफ़र न करें क्योंकि “आपकी जान ख़तरे में हो सकती है”। इसका मतलब इसके सिवाय और क्या हो सकता है कि एयर इंडिया के किसी विमान को बम से उड़ाने की धमकी दी गई है? 1985 में कैनेडा से उड़े एयर इंडिया के कनिश्क विमान को खालिस्तानी तत्वों ने  बम से उड़ा दिया गया था जिसमें 329 यात्री मारे गए थे। कोई और सरकार होती तो पन्नू को हथकड़ी लगा कर अंदर कर देती पर यहाँ तो पूछताछ तक के लिए बुलाया नहीं गया। उल्टा अपने मीडिया का सहारा लेते हुए मामले का मुँह हमारी तरफ़ मोड़ने का प्रयास हो रहा है कि भारत की राक्षसी सरकार बेचारे पन्नू के पीछे पड़ी है!

कल्पना कीजिए कि जैसी धमकी एयर इंडिया के बारे पन्नू ने दी है वैसी धमकी इसरायल की एयरलाइन एल आल के खिलाफ हमास के किसी आतंकी ने दी होती ? सभी पश्चिमी राजधानियों में भूचाल आ जाता और उस व्यक्ति को उस तहख़ाने में डाल देते जहां सूरज की रोशनी भी नहीं पहुँचती हो। पर पन्नू द्वारा आपराधिक धमकी की जाँच नहीं होगी बल्कि सारा ध्यान ‘प्लॉट टू किल पन्नू’ अर्थात् ‘पन्नू की हत्या की साज़िश’ पर केन्द्रित करने की कोशिश हो रही है। सवाल तो यह है कि उसका माई-बाप कौन है जो उसे बचा रहा है? कौन आर्थिक मदद कर रहा है? भारत में पन्नू को ‘व्यक्तिगत आतंकवादी’ घोषित किया जा चुका है। उसके ख़िलाफ़ राजद्रोह का मामला है। उसकी संस्था सिख्स फ़ॉर जस्टिस जुलाई 2019 में यहाँ बैन हो चुकी है पर बाहर उसे खुली छूट है। यह भी उल्लेखनीय है कि कैनेडा में कथित जनमतसंग्रह के लिए मुख्यालय का नाम पन्नू ने ‘शहीद तलविनदर सिंह परमार’ सैंटर रखा था। यह परमार 1985 में एयर इंडिया के कनिश्क विमान को बम से उड़ाने की साज़िश का मास्टर माइंड था। कैनेडा के पत्रकार टैरी मिलेवस्की जिन्होंने खालिस्तान पर किताब लिखी है, ने लिखा है, “जनमत संग्रह के लिए जो नियम बनाए गए और जो पहचान रखी गई वह हास्यास्पद हैं”। उन्होंने बताया कि उनके एक मित्र ने हॉलीवुड की अभिनेत्री एंजलीना जोली के नाम को रजिस्टर करवा दिया था।

वह हमारे डिप्लोमैटिक स्टाफ़ के खिलाफ हिंसा उकसाने का अपराधी है। नवीनतम मामला नैशनल इंवैसटीगेशन एजेंसी ने दर्ज किया जिसके दो दिन बाद अख़बार में उसे मारने की कथित साज़िश की खबर छपवा दी गई। अब उधर से केवल कथित साज़िश की ही चर्चा है पर जो विमानों को  उड़ाने की आतंकी धमकी की गम्भीर बात है उस पर चर्चा नहीं होती। ऐसे व्यक्ति को तो पकड़ कर भारत के हवाले कर दिया जाना चाहिए था उल्टा उसे हीरो बनाया जा रहा है। वह  हिन्दुओं को धमकी दे चुका है कि वह कैनेडा छोड़ जाएँ। कौन और क्यों इस पर इतना मेहरबान है? ऐसे लोगों को पश्चिम के देश सुरक्षा क्यों देते हैं जो हमारे लोगों के लिए ख़तरा हैं? एकसअखबार में यह समाचार प्रकाशित हो चुका है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत दोभल ने अमेरिका की ख़ुफ़िया एजंसी सीआईए के डायरेक्टर को बताया था कि भारत में यह धारणा है कि गुरपतवंत सिंह पन्नू सीआईए का आदमी है।

 उसे जो अभय दान मिला हुआ है क्या उसका यह कारण है? इसे हमारी अदालतों के हवाले क्यों नहीं किया जाता जबकि एक आतंकी के तौर पर उसके ख़िलाफ़ बहुल मामले हैं? पंजाब में खालिस्तान का आंदोलन मर चुका है पर बाहर, विशेष तौर पर पश्चिम के देशों में, इसे कृत्रिम तौर पर ज़िन्दा रखा जा रहा है। अब लगता है कि इस मामले में अमेरिका की एंट्री हो रही है। निज्जर के मामलों में उन्होंने कैनेडा को जानकारी दी और अब फिर फाईनैनशल टाईम्स में छपवाया गया। यह मानना मुश्किल है कि उन्हें निज्जर की मौत या पन्नू की चिन्ता है। ग़ाज़ा में अब तो युद्ध विराम चल रहा है पर वहाँ 14000 लोग इज़रायली बमबारी में मारे जा चुकें हैं जिनमें 5000 के क़रीब बच्चे हैं। अस्पताल तक तबाह कर दिए गए पर बाइडेन, सुनक,मैक्रों,या शकोल्स पर कोई असर नहीं हुआ। वह तो सब बारी बारी नेतन्याहू को जप्फी डालने इसरायल पहुँच गए थे। वह ख़ामोश रहे तब जब ग़ाज़ा मिट्टी में मिलाया जा रहा था और लाखों परिवार बेघर हो गए थे पर इन्हीं को निज्जर या पन्नू जैसों की चिन्ता है। 15 साल पहले जब मुम्बई पर हमला हुआ था तो हमें संयम बरतने का उपदेश दिया गया पर इसरायल पर आतंकी हमले के बाद उन्हें खुली छूट दे दी गई।  अब ज़रूर युद्ध विराम का दबाव बनाया गया क्योंकि विश्व राय न केवल इसरायल बल्कि अमेरिका के खिलाफ हो गई थी। दक्षिण अफ़्रीका के राष्ट्रपति ने तो बाक़ायदा  इसरायल पर  युद्ध अपराध का आरोप लगाया है और कहा है कि ग़ाज़ा में जो हो रहा है वह ‘नस्ली नरसंहार’ है।

ऐसी आलोचना के बाद पश्चिम के नेता कुछ हरकत में आए हैं पर भारत के खिलाफ जो हिंसा और अलगाववाद का प्रचार करते हैं उनके बारे रहस्यमय निष्क्रियता है। यह सब योजना के अनुसार लगता है क्योंकि वहाँ जो खालिस्तान  की बात करता हैं या हमारे दूतावासो, मंदिरों या राजनयिकों के विरूद्ध हरकत करता हैं उनके प्रति यह देश उदार रहतें हैं। कैनेडा में फिर मिसीसागा में खालिस्तानियों ने मंदिर को घेर कर प्रदर्शन किया और नारेबाज़ी की। हिन्दू – कनेडियन के खिलाफ हेट -क्राइम लगातार चल रही है। नई दिल्ली में तो अमेरिका के राजदूत एरिक गार्सेटी रंगीन कुर्ता पजामा डाल कर दिवाली के दिन ‘छईंया छईयां’ पर थिरक रहे थे, पर  न्यूयार्क के लौंग आइलैंड  के एक गुरुद्वारे में भारतीय राजदूत तरनजीत सिंह संधु के साथ बदसलूकी की गई। हालत यह बन रही है कि कैनेडा, अमेरिका और ब्रिटेन में भारतीय राजनयिकों को अपनी ज़िम्मेवारी निभाने में दिक़्क़त आ रही है। स्पष्ट दोहरा मापदंड है। जो उनके हितों के खिलाफ हिंसा करतें हैं उन पर हथौड़ा चलाया जाता है पर  भारत विरोधी तत्वों को न केवल शरण दी जाती है बल्कि हमारे विरूद्ध गतिविधियों की ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ के बहाने इजाज़त दी जाती  हैं। इनके समर्थन और संरक्षण के कारण ही वहां तथाकथित खालिस्तान आंदोलन ज़िन्दा है नहीं तो कब का रब्ब नू प्यारा हो चुका होता।

 नीति यह लगती है कि चीन को नियंत्रण में रखने के लिए क्वाड जैसे गठबंधनों में भारत को साथ लेते हुए भी, भारत के साथ दोस्ती का दम भरते हुए भी, उन तत्वों को  शरण दी जाएगी जो भारत विरोधी

साज़िशों में लगे हुए है, जिससे शकील बदायूनी  की यह पंक्तियाँ याद आती हैं,

              दुश्मनों के सितम का ख़ौफ़ नहीं, दोस्तों की वफा से डरते है !

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.