उस साज़िश को मिल कर नाकाम करना है, Together We Have To Defeat This Conspiracy.

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने आख़िर स्वीकार कर लिया कि कनाडा में खालिस्तान समर्थक वहाँ सारे सिख समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं करते। पर यहाँ भी ट्रूडो शरारत से बाज़ नहीं आए और साथ जोड़ दिया कि वहाँ रहने वाले बहुत हिन्दू भी नरेन्द्र मोदी के समर्थक नहीं है। किसी ने यह दावा नहीं किया कि सभी हिन्दू मोदी समर्थक हैं, फिर ट्रूडो इसे बीच में कैसे ले आए? जवाब है कि वह कनाडा में भारतीय समुदाय को हिन्दू -सिख में बाँटने की कोशिश कर रहें हैं। ट्रूडो का बयान ब्रैम्पटन के हिन्दू सभा मंदिर पर हमले के बाद आया है जिसके बाद वहाँ खालिस्तानियों और भारतीय-कनेडियन के बीच बहुत तनाव बढ़ गया है। पहली बार कुछ ऐसे लोगों को भी गिरफ़्तार किया गया है जो भारत में मोस्ट- वांटेड हैं।

ट्रूडो के रवैये में परिवर्तन, चाहे बहुत बड़ा नहीं है, का कारण क्या है? ब्रिटिश कोलम्बिया के पूर्व प्रीमियर उज्जल दोसांझ का कहना है कि “क्योंकि सब कह रहें हैं कि वह खालिस्तानियों के क्राइम में सहभागी है शायद उससे वह परेशान है”। दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि खालिस्तानी वहाँ जो उपद्रव और हिंसा कर रहें हैं उससे कनाडा के लोग नाराज़ है और ट्रूडो सरकार को इन्हें संरक्षण देने के लिए ज़िम्मेदार ठहरा रहें हैं। कनाडा की बदनामी भी हो रही है कि यहाँ धार्मिक स्थल सुरक्षित नहीं हैं। अब तो एक वीडियो निकला है जिसमें एक खालिस्तानी कह रहा है कि कनाडा हमारा है और वहां के गोरे योरूप और इंग्लैंड वापिस लौट जाएँ। वहाँ बढ़ रही हिंसा, गन, ड्रग्स और गैंगस्टर कलचर से स्थानीय लोगों को ख़तरा है और वह इसका विरोध कर रहें हैं। ग्रीन पार्टी की नेता इलिजाबेथ मे का कहना है कि “खालिस्तान समर्थक उग्रवादी कनाडा पर कलंक है और हमने उग्रवाद को वहाँ पनपने दिया है”। विपक्ष के नेता पियरे पोलिवरे ने बताया है कि ट्रूडो के कार्यकाल में हेट -क्राइम 250 प्रतिशत बढ़ गईं हैं। तीसरा कारण ट्रम्प के अमरीकी राष्ट्रपति चुने जाने के बाद विश्व राजनीति में आया परिवर्तन है। बाइडेन सरकार कनाडा को भारत विरोधी गतिविधियों के लिए खामोशी से उकसाती रही है पर ट्रम्प  को इसमें रुचि नहीं। वह ट्रूडो को ‘ल्युनैटिक’ अर्थात् पागल मनुष्य कह चुकें है। गुरपतवंत सिंह पन्नू के मामले से सम्बंधित सरकारी वकील को ट्रम्प ने बदलने की घोषणा की है जबकि बाइडेन हमें दबाव में रखते थे।

ट्रूडो के कारण खालिस्तानियों को वहाँ खुली छूट मिली हुई थी। अगर ऐसी ही हरकतें यहूदियों के खिलाफ होती तो क्या वह इसी तरह बर्दाश्त करते? न केवल हिन्दू और उनकी संस्थाओं बल्कि उन सिखों से भी इन उग्रवादियों का झगड़ा है जो इनकी भारत विरोधी हरकतों को पसंद नहीं करते। पिछले महीने एबट्सफोर्ड के एक  सिख परिवार को बहुत गालियाँ निकाली गईं क्योंकि वह तिरंगे के अपमान से रोक रहें थे। हिन्दू मंदिरों पर हमले सामान्य हैं। कभी तोड़फोड़ की गई तो कभी पत्थर फेंके गए तो कभी दीवारों पर गालियाँ लिखीं गईं। इस साल लगभग दर्जन भर मंदिरों पर हमले हो चुकें हैं। पुलिस ठोस कार्रवाई नही करती। कनाडा में आतंकी संगठन ‘सिख फ़ॉर जस्टिस’ को पूरी छूट है। कोशिश साम्प्रदायिक विभाजन की है। पन्नू वहाँ रह रहे हिन्दुओं को वहाँ से निकलने की धमकी दे चुका है। फिर कोई कार्रवाई नहीं हुई।

ब्रैम्पटन के हिन्दू सभा मंदिर पर हमला कर और वहाँ मारपीट कर यह खालिस्तानी सभ्य समाज की सभी लक्ष्मण रेखाएँ पार कर गए हैं और उसी कारण ट्रूडो को मुँह खोलना पड़ा है। कनाडा के सांसद चन्द्र आर्य के अनुसार “वह रैड- लाइन को पार कर गए हैं”। पत्रकार डैनियल बोर्डमैन लिखतें हैं, “हाल का हमला भयावह है…वह नई लाइनें लांघ गए हैं…यह दिन दहाड़े हिन्दू मंदिर पर पहला हमला है। पुलिस की प्रतिक्रिया घृणित थी”। उस दिन खालिस्तानियों ने मंदिर परिसर में दाखिल हो कर लोगों को डंडों से पीटा और वहाँ दूतावास द्वारा लगाए गए कैम्प को भंग करवा दिया।

कई राजनेता वहाँ इसे हिन्दू और सिखों के बीच भिड़ंत बता रहें हैं। पहली बात तो यह है कि यह हिन्दू- सिख मसला है ही नहीं। दूसरा यह ‘भिड़ंत’ नहीं, हमला था। जब कोई किसी के घर जा कर उपद्रव करता हैं और घरवाले रोकते है तो यह भिड़ंत नही सैल्फ- डिफैंस यानि आत्म रक्षा होता है। जो अपने घर को बचाता है वह दोषी नहीं कहा जा सकता। आख़िर यह खालिस्तानी वहाँ करने क्या गए थे? भजन सुनने तो वह गए नहीं होंगे। सरी के लक्ष्मी नारायण मंदिर में भी महिलाओं और बच्चों के साथ मारपीट हो चुकी है।  यहाँ भी पुलिस मूक दर्शक रही। हमारे देश के अंदर भी भी कुछ लोग इसे भिड़ंत बताने की कोशिश कर रहें है। लेकिन यह संतोष की बात है कि इस घटना की सिख क्षेत्रों में व्यापक स्तर पर निन्दा की गई है। अजीत अख़बार के सम्पादक बरजिनदर सिंह हमदर्द लिखतें हैं, “वह बेहद निन्दनीय है…कनाडा में सिख भाईचारे के अधिकतर लोग इस तरह के प्रदर्शनों और नारेबाज़ी के विरूद्ध हैं.. ट्रूडो सरकार की शह के कारण यह लोग अधिक हौंसले में आगए हैं… यदि भविष्य में ऐसा कुछ घटित होता है तो सिख भाईचारे का भारी नुक़सान होगा”। 

कनाडा में ब्रिटिश कोलम्बिया की 40 संस्थाएँ जिन में मंदिर और गुरुद्वारे शामिल हैं, खालिस्तानियों के उत्पात के खिलाफ संयुक्त मोर्चा बनाने की सोच रहें हैं। ब्रैम्पटन से बिसनेस मैन जसबीर सिंह ढिलों मंदिर पर हमले पर लिखतें हैं, “यह वह नहीं जो हमारा समुदाय चाहता है। हम यहाँ सब भाईचारे से रहतें हैं।  हमारी सांझी समृद्ध संस्कृति है…हमें मिल कर ऐसी हिंसा की निन्दा करनी चाहिए”। ओंटारियो सिख्स एंड गुरुद्वारा कौंसिल जो कई गुरुद्वारों की संयुक्त संस्था है, ने बहुत कड़े शब्दों में मंदिर पर हमले की निन्दा की है। ब्रैम्पटन वेस्ट से सांसद कमल खेरा ने लिखा है कि वह हिन्दू सभा के मंदिर के बाहर हुई हिंसा से बहुत परेशान है।ऐसी घटनाओं का दुष्परिणाम है कि कनाडा में लोग समझने लगे हैं कि हमारे लोग क्लेश फैलाते हैं। यह कहा जाना शुरू हो चुका है कि दक्षिण एशिया के लोग ‘न्यूसैंस’ है और कनाडा की जीवन शैली को नष्ट कर रहें हैं। कनाडा को कभी प्रवासियों के लिए मैत्रीपूर्ण देश समझा जाता था पर इन खालिस्तानियों के द्वारा पैदा किए गए तनाव के कारण हमारे लोगो पर नसली हमले बढ़ रहे हैं।

जिन लोगों ने वहाँ मिलटन के गुरूदवारे के सामने जवाबी प्रदर्शन किया था उनकी भी बराबर निन्दा होनी चाहिए। यह भी उल्लेखनीय है कि बाहर कितना भी शोर मचाएँ, पंजाब में खालिस्तान का कोई समर्थन नहीं है। जो कुछ लोग करतें है वह राजनीतिक या आर्थिक हित के लिए करते है। ज़मीन पर कुछ नहीं है। गुरुद्वारे भी हमारें है जिस तरह मंदिर भी हमारे है। सबकी बराबर इज़्ज़त होनी चाहिए। किसी गुरुद्वारे की अवमानना भी उसी तरह न क़ाबिले बर्दाश्त है जैसे किसी मंदिर की अवमानना। बाहर कुछ लोग बाँटने की साज़िश में लगे हैं, इसे मिल कर नाकाम करना है। यह काम केवल सरकार नहीं कर सकती। पूरे समाज और उच्च धार्मिक संस्थाओं को आगे आना चाहिए। पंथक संस्थाओं और उनके प्रतिनिधियों ने भी इसे ‘साज़िश’ करार देते हुए हिन्दुओं और सिखों दोनों को आगाह किया है कि वह सतर्क रहें। श्री पटना साहिब के जत्थेदार ज्ञानी जगजीत सिंह ने पन्नू के बयानों की निन्दा करते हुए कहा है कि कोई सिख पन्नू के साथ नही है। श्री अकाल तख़्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी रघुबीर सिंह ने मंदिर पर हमले की कड़े शब्दों में निन्दा की है। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने भी इसे साज़िश बताते हुए कहा है कि सिख भाईचारे को बदनाम करने की कोशिश हो रही है। उनका कहना है कि सिख किसी के धर्म स्थल पर हमला नहीं करते।

उनकी बात से मैं सहमत हूँ। सिखों का चरित्र रक्षक का है मंदिर पर हमला करने वालों का नही। लेकिन पूरे अदब से मैं जत्थेदार साहिब से पूछना चाहता हूँ कि अगर इन हरकतों से सिखों की छवि ख़राब हो रही है तो आप ख़ामोश क्यों है? आप ऐसे तत्वों पर कार्रवाई क्यों नहीं करते जो इतनी घिनौनी साजिश में संलिप्त हैं?  श्री पटना साहिब के जत्थेदार साहिब ने पन्नू का मामला उठाया है। अब पन्नू ने अयोध्या में राम मंदिर पर हमले की धमकी दी है। पंजाब में इस बंदे को कोई घास नहीं डालता, पर बाक़ी देश में तो चर्चा हो रही है कि राम मंदिर को भी धमकी दी गई है। इस से बदनामी होती है और छवि ख़राब होती है। अकाल तख़्त के जत्थेदार कई बड़े लोगों को तन्खाईया करार चुकें है पर बाहर जो खालिस्तानी देश विरोधी गतिविधियों में लगे रहते हैं उनके खिलाफ ऐसी सक्रियता क्यों नही दिखाई जाती? पन्नू जैसे तत्वों को तन्खाईया क्यों करार नही दिया जाता ?

 अगर पन्नू जैसे व्यक्ति को तन्खाईया करार दिया जाए तो सब ख़ामोश हो जाएगे। उल्टा जब भी ऐसा कुछ घटता है तो इसे एजेंसियों की साज़िश कहा जाता है, या औचित्य बताने के लिए ‘सिखों से धक्का’ या सिखों से किए गए कथित वायदों की बात उठा ली जाती है। जिसे ‘विक्टिम कार्ड’ कहा जाता है, उसे हर वकत आगे रख कर लोगों को गुमराह किया जाता है और सिखों में असंतोष क़ायम रखने की कोशिश की जाती है। यह बंद होना चाहिए। अनुभव है कि जिसे वह ‘सरकारी एजेंट’ कहते हैं बाद में उसे ही अपना लेते है। कई बार तो बाद में शहीद घोषित कर उसकी तस्वीर टांग देते है। ऐसी अस्पष्टता अविश्वास पैदा करती है और देश विरोधी तत्व इसका फायदा उठाने की कोशिश करतें हैं।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.