भाजपा ‘सेफ़’ है, और कांग्रेस…?. BJP is ‘Safe’, But Congress…?

महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव परिणाम सब सियानों को ग़लत साबित कर गए। ऐसा हरियाणा चुनाव में भी हुआ था। महाराष्ट्र के बारे लोकसभा चुनाव परिणाम को मापदंड रखा गया जहां महाविकास अघाड़ी को 48 में से 30 सीटें मिली थी और भाजपा के नेतृत्व में महायुति को 17 से ही संतुष्ट होना पड़ा था। कि भाजपा का नेतृत्व छ: महीने के अंदर अंदर बाज़ी पलट देगा यह सोचा भी नहीं गया। सब ‘काँटे की टक्कर’ की रट लगाते रहे। चुनाव से पहले भविष्यवाणी करना अब ख़तरे से ख़ाली नहीं क्योंकि लोग अपना मन नहीं बताते और पिछले आँकड़ों पर आधारित आँकलन ग़लत निकल रहें हैं। महाराष्ट्र में न केवल महायुति का प्रदर्शन बढ़िया रहा है, भाजपा वहाँ सब पर हावी पार्टी है। महायुति को मिली 232 सीटों में से132 भाजपा की है। भाजपा का स्ट्राइक रेट चौंकाने वाला 89 प्रतिशत है। लोकसभा चुनाव में यहाँ भाजपा केवल 79 विधानसभा क्षेत्रों में आगे थी जिसका मतलब है कि उन्होंने 53 सीटें जोड़ी हैं। दूसरी तरफ़ कांग्रेस जो 63 सीटों पर लोकसभा चुनाव में आगे थी केवल 16 सीटें ही जीत सकी है जो उसका आजतक का सबसे बुरा प्रदर्शन है। शरद पवार और उद्धव ठाकरे भी बार बार ‘ग़द्दारी’ का शोर मचाते रहे पर लोगों ने ध्यान नहीं दिया। जो सहानुभूति- फ़ैक्टर झारखंड में हेमंत सोरेन के लिए चला उसने महाराष्ट्र में शरद पवार और उद्धव ठाकरे के लिए चलने से इंकार कर दिया। शायद लोकसभा चुनाव में वह खर्च हो चुका था। एमवीए की तीनों पार्टियों में आपसी भाईचारा और एकता ग़ायब थी। यह सोचते हुए कि सत्ता आने वाली है लगभग तीन दर्जन सीटों पर एक दूसरे के खिलाफ बाग़ी खड़े किए गए।

महाराष्ट्र में जीत का महत्व और भी है क्योंकि यहाँ मुम्बई की महानगरी है जो सॉफ़्ट पावर और हार्ड कैश का केन्द्र है। यह भारत की बिसनेस कैपिटल है। मुंबई शहर के निगम का 60000 करोड़ रुपये का बजट ही कुछ छोटे प्रदेशों के बजट से बड़ा है। महाराष्ट्र में ऐसा परिवर्तन क्यों आया? एक कारण तो शिंदे सरकार द्वारा शुरू की गई ‘लाडकी बहिन’ योजना है जिसके अंतर्गत हर 18-60 साल की महिला को प्रति माह 1500 रूपए दिए जाएँगे। ऐसी ही योजना मध्यप्रदेश में गेमचेंजर साबित हो चुकी है। महाराष्ट्र में चुनाव से पहले महिलाओं को एक साथ 7500 रूपए भेज दिए गए- 6000 रूपए चार किश्तों के और 1500 रूपए दिवाली बोनस। यह भी वायदा है कि इसे 2000 रूपए मासिक कर दिया जाएगा। अर्थशास्त्री ऐसी योजनाओं को लेकर सर पीट रहें है क्योंकि इससे प्रदेश बजट बुरी तरह से प्रभावित होगा पर जिन महिलाओं के हाथ में यह पैसा आगया वह तो भक्त बन गईं। झारखंड में भी ‘मईया सम्मान’ योजना बहुत सफल रही है जहां महिलाओं को 1000 रूपए मासिक कैश दिया जाता है। एक समय प्रधानमंत्री मोदी ऐसी ‘फ़्रीबीज़’ के बहुत खिलाफ थे। मज़ाक़ में रेवड़ी बाँटना कहा था, पर अब बदलना पड़ रहा है क्योंकि गरीब और महिलाएँ अपने हाथ में कुछ ठोस चाहते हैं। विधान सभा चुनाव में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भी सक्रियता से भाजपा की मदद की है जबकि लोकसभा चुनाव में वह उदासीन रहे थे। वह महाराष्ट्र खोना नहीं चाहते थे जहां नागपुर में उनका मुख्यालय है।

महाराष्ट्र में लाडकी बहन योजना पर विशाल 63000 करोड़ रूपए खर्च होंगे। आगे चल कर प्रदेश को तंगी का सामना करना पड़ेगा। जीत का और कारण है कि लोगों ने मज़बूत सरकार के लिए वोट दिया है जो कैश भी दे और विकास भी। महाविकास अघाड़ी तो एक बेस्वाद खिचड़ी लग रही थी। पहले से ही झगड़ा चल रहा था कि सीएम कौन बनेगा। बड़ी असफलता कांग्रेस नेतृत्व की है जो न नेतृत्व दे सका और न दूसरों को साथ ही लेकर चलने में सफल रहा। कांग्रेस पाँच प्रदेश, पंजाब,मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा और महाराष्ट्र हार चुकी है जहां उसकी सम्भावना अच्छी थी। लोकसभा चुनाव में जो बढ़त मिली थी वह उन्होंने पहले हरियाणा और फिर अब महाराष्ट्र में खो दी है। स्पष्ट तौर पर भाजपा और कांग्रेस के नेतृत्व की तैयारी और प्लानिंग में बहुत अंतर था। ज़रूरत से अधिक आत्मविश्वास भी मार गया। एक पत्रकार की रिपोर्ट के अनुसार बराबरी की स्थिति की आशा में अपने विधायकों को सुरक्षित रखने के लिए कांग्रेस ने बैंगलुरु में तीन होटल बुक करवाए थे। चार्टरड फ़्लाइट तक बुक करवाई गई। आख़िर में सब कैंसल करने पड़े क्योंकि सब गड़बड़ हो गया।

भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश के उपचुनाव भी अच्छे रहें हैं जहां योगी आदित्यनाथ लोकसभा चुनाव में बुरे प्रदर्शन को धोने में सफल रहे है। भाजपा 9 में से 6 सीटें जीत गई है और एक सीट सहयोगी आरएलडी ने जीती है। वह सपा से तीन सीटें खींचने में सफल रहे है। लोकसभा चुनाव में अच्छे प्रदर्शन के बाद सपा के लिए यह धक्का है। योगी आदित्यनाथ का नारा ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ चल गया लगता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि इससे प्रदेश में साम्प्रदायिक तनाव पैदा हो रहा है। सँभल में पुरानी मस्जिद के अदालत के आदेश पर सर्वेक्षण के बाद हो रही हिंसा इसका लक्षण है। बिहार और राजस्थान में भी भाजपा का प्रदर्शन बढ़िया रहा है। वैसे तो हर चुनाव अलग होता है पर इन परिणामों का असर दिल्ली और बिहार के आने वाले चुनावों पर पड़ेगा।

लेकिन भाजपा के लिए भी कुछ उलटी खबरें भी हैं। महाराष्ट्र की जीत में झारखंड का परिणाम कुछ छिप गया, पर भाजपा को बड़े ट्राइबल प्रदेश ने रिजैक्ट कर दिया। देश के एक मात्र आदिवासी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जेल में डालना उल्टा पड़ा लगता है। वह सहानुभूति की लहर पर सवार हो कर भाजपा को पराजित करने में सफल रहे। भ्रष्टाचार के मामले में पिक एंड चूस कई बार उल्टा पड़ जाता है। वहाँ असम के मुख्यमंत्री को भेज ‘घुसपैंठियों’ का मुद्दा उठाने का प्रयास किया गया जबकि प्रदेश की सीमा बांग्लादेश के साथ नहीं लगती। न ही ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ का नारा ही यहाँ चला है।

दुखी उद्धव ठाकरे का कहना है कि देश एक पार्टी शासन की तरफ़ बढ़ रहा है। यह सही नहीं है। उपचुनाव परिणाम ही बताते हैं कि ऐसा नहीं हो रहा। पश्चिम बंगाल की सभी छ: सीटों जहां उपचुनाव हुए हैं पर तृणमूल कांग्रेस की जीत हुई है। पंजाब में तीन पर आप और एक पर कांग्रेस जीती हैं जबकि तीन जगह भाजपा के उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हुई है।कर्नाटक की तीनों सीटों पर कांग्रेस विजयी रही है। कांग्रेस केरल में वायनाड और महाराष्ट्र में नांदेड़ लोकसभा उपचुनाव जीत गई है। प्रियंका गांधी को चार लाख से उपर बम्पर जीत मिली है। केरल के दो विधानसभा उपचुनाव में से एक कांग्रेस और एक सीपीआई(एम) को मिली हैं। दक्षिण भारत अभी भी भाजपा की पकड़ से बाहर है जैसे कश्मीर और पंजाब भी हैं। पर उत्तर, मध्य और पश्चिम भारत के सब बड़े प्रदेश भाजपा के पास हैं। असम और बिहार के उपचुनाव में सभी सीटें एनडीए को मिली हैं।

 पंजाब में अकाली दल के मैदान से हटने के बाद यहाँ आप और कांग्रेस में सीधी टक्कर थी। भगवंत मान सरकार को कुछ शासन विरोधी भावना का भी सामना करना पड़ रहा है पर फिर भी वह कांग्रेस से तीन सीटें छीनने मे सफल रहे हैं। कांग्रेस का वोट आप से 13 प्रतिशत कम रहा है। अब कांग्रेस के नेता अकाली दल को अपनी हार के लिए ज़िम्मेवार ठहरा रहें है। उनका तर्क है कि अकाली दल का वोट आप को पड़ गया। यह हो सकता है पर क्या कारण है कि अकाली वोट ने आपको आकर्षक नही समझा? मुझे हार का बड़ा कारण और लगता है। जैसे हरियाणा में भी हुआ, पंजाब कांग्रेस ने समय के साथ बदलने की कोशिश नहीं की। कुछ परिवारों के भरोसे वह डूब गए। दो बड़े नेताओं ने अपनी पत्नियों को उम्मीदवार बना लिया। दूसरी तरफ़ आम आदमीं पार्टी नए नए लोगों को आगे कर रही हैं। क्या कांग्रेस को इन दो नेताओं की पत्नियों को सिवाय वहां कोई पढ़े लिखे नौजवान चेहरे नज़र नहीं आए? गिद्दड़बाहा से मनप्रीत सिंह बादल की ज़मानत ज़ब्त भी बताती है कि लोग पुराने चेहरों से उब चुकें है। आप ने अमन अरोड़ा को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है ताकि हिन्दू वोट को आकर्षित कर सकें।दूसरी तरफ़ कांग्रेस के पास एक भी प्रमुख हिन्दू चेहरा नहीं बचा। कांग्रेस पंजाब में  हिन्दुओं के बल पर सत्ता में आती रही है पर अब पार्टी की बेरुख़ी के कारण सारा हिन्दू वोट भाजपा की तरफ़ शिफ़्ट हो रहा है।

कांग्रेस नेतृत्व के लिए आत्ममंथन का समय है कि वह एक कदम आगे और दो कदम पीछे क्यों ले रहें हैं?  राहुल गांधी की समस्या है कि उनकी सुई एक जगह आकर अटक जाती है। ‘संविधान खतरें में है’ एक बार लोकसभा में चल गया पर अब नहीं चल रहा। पर राहुल गांधी अभी भी जगह जगह संविधान की लाल कापी लहराते रहते हैं। यह ज़िद महँगी साबित हो रही है। इसी प्रकार लोगों ने जाति जनगणना के पक्ष में वोट नहीं दिया। अगर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का अच्छा प्रदर्शन राहुल गांधी के नेतृत्व और मेहनत का परिणाम था तो हरियाणा और महाराष्ट्र की असफलता भी उनकी है। वह भाजपा के चुस्त नेतृत्व का मुक़ाबला नहीं कर सके। कांग्रेस इस वक़्त ‘अनसेफ’ नज़र आती है। भाजपा नेतृत्व ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ और ‘एक हैं तो सेफ़ हैं’ के नारे दे कर रोज़मर्रा की समस्याओं से ध्यान पलटने में सफल रहा हैं। उनके वैचारिक मुद्दे फिर हावी हो गए जबकि कांग्रेस के पास कोई नया नारा नहीं है। भाजपा ने पहल छीन ली है जबकि कांग्रेस की हालत नीरज के लिखे और मोहम्मद रफ़ी के गाए पुराने गाने की तरह बन गई, कारवाँ गुज़र गया ग़ुबार देखते रहे !

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About Chander Mohan 739 Articles
Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.