प्रवासी भारतीय और ‘क़्वालिटी ऑफ लाईफ़’, Expats and the ‘Quality of Life’.

यूएई, विशेष तौर पर दुबई, में दुनिया के हर कोने से आए लोग मिलतें हैं। भारतीय भारी संख्या में तो हैं ही,पाकिस्तानी, बांग्लादेशी, नेपाली,फ़िलिपीनो भी बड़ी संख्या में है। क्योंकि अरब दुनिया में बहुत तनाव चल रहा है इसलिए वहाँ से भाग कर बहुत लोग यहाँ बस रहें है। फ़िलिस्तीन, लेबेनॉन, मिस्र आदि से बहुत लोग और बहुत पैसा यहाँ हैं। स्थानीय लोग विदेशियों विशेष तौर पर ग़ैर-अरब से बहुत मिलते जुलते नहीं पर किसी विदेशी को परेशान नही किया जाता। सुबह- शाम विदेशी महिलाऐं, जिन्हें  शाहरुख़ खान ने एक फ़िल्म में ‘छोटों छोटे कपड़े’ कहा था पहने जॉगिंग करती नज़र आएँगी, कोई आपत्ति नहीं करता। सामान्य समझा जाता है। अब बड़ी संख्या में रूस और यूक्रेन के लोग वहाँ आ रहे हैं। कई जायदाद भी ख़रीद रहें हैं। रूसी समुदाय इस बात के लिए कुख्यात है कि वह स्थानीय लोगों से दूरी बना कर रखतें हैं। एशिया के लोग अधिक मिलनसार हैं। यूएई में यह भी सुखद है कि भारतीय और पाकिस्तानी समुदायों के बीच कोई तनाव नहीं है। चाहे वह बड़े प्रोफेशनल हों या लेबर हो सब आपस में मिलते जुलतें है। भाषा भी एक जैसी है। लाहौरी पंजाबी खूब चलती है। पिछले महीने अबू धाबी में दलजीत दोसांझ का कार्यक्रम था। उसके लिए पाकिस्तानियों में भी उतना ही क्रेज़ था जितना हमारे लोगों में। इसी तरह अतीफ आलम या राहत फ़तह अली खान को दोनों देशों के लोग सुनने पहुँचतें हैं। एक पाकिस्तानी टैक्सी ड्राइवर ने बताया कि उसके साथ वाले कमरे में इंडियन रहतें हैं, पर कोई तनाव नहीं है। उल्टा क्योंकि सब विदेश में हैं इसलिए एक दूसरे का ख़्याल रखतें है। अपनी सरकार पर कटाक्ष करते उसका कहना था कि “हमें आपस में लड़ा कर डुबो दिया”।

यूएई में स्थानीय अमीराती लोगों के बाद सबसे प्रभावशाली भारतीय समुदाय है। इस साल दुबई में जायदाद की क़ीमतों में 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। ख़रीदने वाले विदेशियों में सबसे अधिक रूसी और भारतीय हैं। इसके इलावा पाकिस्तान से भ्रष्टाचार का पैसा यहां बहुत है। अनुमान है कि भारतीयों के पास 35 हज़ार जायदाद है। मुकेश अंबानी से लेकर शाहरुख़ खान,शिल्पा शेट्टी सबकी यहां जायदाद है। आशा भोंसले के रेस्टोरेंट ‘आशा’ की कई शाखाएँ हैं। कई लोग अब दस साल का गोल्डन वीज़ा प्राप्त कर रहें है जो बाद में रिन्यू हो जाता है। इसके लिए 20 लाख दिरहम जो साढ़े चार करोड़ रूपए के क़रीब बनते हैं खर्चने पडतें हैं। बड़ी संख्या में हमारे लोग गोल्डन वीज़ा लेने की कोशिश कर रहें हैं। इसके कई कारण बताए जाते है।

यूएई भारत के नज़दीक है। भारत के किसी भी शहर से 3-4 घंटे की उड़ान है। स्थानीय लोग हमारी संस्कृति को समझते है। हमारी भाषा भी कुछ कुछ समझी जाती है। यहाँ आयकर नहीं है। पैसे के बारे कोई सवाल नहीं करता। बिसनेसमैन शिकायत करते हैं कि भारत में एजेंसियों का बहुत दबाव है। ईडी या आयकर जैसे छापे बहुत पड़ते है। टैक्स भी बहुत है। इसलिए कई लोग यूएई, विशेष तौर पर दुबई, को अपना दूसरा ठिकाना बना रहे हैं। यहाँ सब कुछ व्यवस्थित है, पूरा क़ानून का शासन है। अनुशासन है। आप कार खुली छोड़ जाओ कोई उठाएगा नही। महिलाएँ विशेष तौर पर सुरक्षित महसूस करती है। रात को अकेली महिला भी कहीं भी आ-जा सकती है, कोई आँख उठा कर नहीं देखता। हम बहुत गिरते जा रहें हैं। हमारा समाज बीमार हो रहा है। वहाँ  ज़रूरत के अनुसार सब कुछ उपलब्ध है। बने बनाए फ्रोज़न आलू के पराँठे तक मिल जाते है। भारत का हर उत्पाद मिलता है। और प्रदूषण नही है। रात को तारे नज़र आते है। जालंधर में हम बचपन में सप्त-ऋषि देखा करते थे,अब तो आकाश ही धुंधला हो गया कोई तारा नज़र नहीं आता। राजधानी दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक है। प्रवासियों का निष्कर्ष है कि देश के बाहर ‘क्वालिटी ऑफ लाईफ़’ बेहतर है।

 इस्लामी देशों में हमारे जो लोग रह रहें हैं वह चिन्तित है कि अपने देश में साम्प्रदायिक स्थिति ख़राब हो रही है। दुबई में एक व्यक्ति ने मुझ से मुरादाबाद की घटना का ज़िक्र किया जहां एक पॉश कालोनी में मुस्लिम दम्पति को फ़्लैट देने पर पड़ोसी हिन्दू भड़क उठे, ज़िलाधीश तक को शिकायत की गई और उन्हें फ़्लैट छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया। एक महिला जो प्रदर्शन में मुखर थी का कहना था, “हमारी लड़कियाँ असुरक्षित हो जाऐंगी…हम उनका यहाँ रहना बर्दाश्त नहीं कर सकते”। इस घटना पर इस सज्जन ने कहा, “हम भी तो मुस्लिम देश में रहते हैं। कोई नहीं पूछता कि तुम्हारा धर्म क्या है। हमारी बिल्डिंग में भारतीय, पाकिस्तानी, अमीराती, ब्रिटिश,रूसी सब रहते हैं। अगर यह कहने लग पड़े कि हम हिन्दुओं के साथ नहीं रहना चाहते तो हमारा क्या होगा?”

 शिकायतें और भी हैं। “इंडिया एक हिंसक, प्रतिगामी देश बनता जा रहा है। रोज़ के अख़बार देखो।अपराध बढ़ रहा है। इंडिया वह जगह नहीं रही जहां लोग सुरक्षित महसूस करते हों। बहुत गंदगी है। कोई समाजिक ज़िम्मेवारी नहीं समझता। बिसनेस शुरू करना आसान नहीं है। बहुत भ्रष्टाचार है…”। एक और व्यक्ति ने दो घटनाओं का ज़िक्र किया। एक, कोलकाता के आर.जी.कर अस्पताल के डाक्टर की रेप के बाद हत्या और दूसरा, चलती वंदे मातरम ट्रेनों पर पथराव। उसका पूछना था कि कैसे जानवर है जो अस्पताल के अंदर डाक्टर की रेप के बाद हत्या करते हैं या चलती ट्रेन पर पथराव करते हैं ? लेकिन सबसे अधिक शिकायत है कि समाज तनावग्रस्त हो रहा है जबकि इस्लामी देश और उदार होते जा रहे हैं। यूएई के बाद साऊदी अरब भी बदल रहा है। महिला अब अकेली गाड़ी चला सकती हैं। पहले अकेली महिला कहीं नहीं जा सकती थी। यह देश भी तेल पर निर्भरता कम करना चाहता है और टूरिस्ट को आकर्षित करना चाहता है। इसलिंए बदल रहा है। वहाँ एक ही पाबंदी रह गई है। शराब पीने की इजाज़त नही है। साऊदी खुद प्यास बुझाने पास बहरीन जातें हैं पर वहाँ अभी पाबंदी है। यूएई में घर में या होटल में पीने की इजाज़त है। साऊदी अरब में पुरानी पीढ़ी बदलाव का विरोध कर रही है क्योंकि इस देश में सबसे पवित्र इस्लामी स्थल मक्का स्थित है पर क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान अपने देश को बदलने पर स्थिर हैं।

यूएई विशेष तौर पर दुबई में बहुत कुछ चमकदार है। वहाँ की दुबई मॉल दुनिया का दूसरी सबसे बड़ी मॉल है। 3800000 वर्ग फुट में फैली इस माल में 1200 स्टोर हैं और 14000 कारों की पार्किंग की जगह है। कहीं भी मैंने इतने ब्यूटी पार्लर नहीं देखे जितने दुबई में देखें हैं। गोवा में हर कुछ दुकानों के बाद वाइन स्टोर है तो दुबई में हर कुछ दुकानों के बाद ब्यूटी पार्लर है। स्थानीय महिलाएँ काला अबाया डालती है जो उन्हें सर से पैर तक ढकता है पर चेहरा खुला रहता है। कुछ बुर्का भी डालती हैं पर संख्या कम है। पुरूष सफ़ेद रंग का चोग़ा डालतें  है और सर पर सफ़ेद कपड़ा बाँधते हैं। यह ड्रेस उन्हें गर्मी से बचाती है। चाहे एयरपोर्ट हो या दफ़्तर अरब लोग अपनी ड्रेस में ही मिलेंगे। हम तो अपनी ड्रेस को छोड़ चुकें हैं। हाँ, एक बुरी आदत है। सिगरेट और हुक्का बहुत चलता है। पूरी इजाज़त है। हुक्का तो रेस्टोरेंट में आम मिल जाता है। नॉन- स्मोकर के लिए यह तकलीफ़देह है।

अबू धाबी के बाहर अल वथबा रेगिस्तान में सूर्यास्त का दृश्य। वहाँ की कहावत है कि आप रेगिस्तान को अपने पैरों से झाड़ सकते हो पर अपने जीवन से नही। नीचे, दुबई मॉल का दृश्य। यहां 200 के क़रीब अंतराष्ट्रीय रेस्टोरेंट भी हैं।

 यूएई की एक समस्या भी है। यहाँ मिडिल क्लास ख़त्म होता जा रहा है। या रईस हैं या कठिन जीवन व्यतीत करने वाली लेबर क्लास है। किराए इतने महँगे है कि वह ही रह सकते है जिनकी आमदन मोटी है। लेबर क्लास अपने घर पैसा तो भेजती है पर बहुत मुश्किल ज़िन्दगी है। एक एक कमरे में कई कई रहते है। गर्मियों में बुरा हाल होता है। उनकी हालत क्या है,यह एक पाकिस्तानी टैक्सी चालक से बात करने पर पता चला। वह पेशावर के आसपास का रहने वाला है। उसका कहना था, “सर, कौन घर छोड़ कर आना चाहता है। मजबूरी है। आपको पता ही है कि पाकिस्तान का क्या हाल है। कोई नौकरी नहीं, भूखे मर रहें हैं। मैं 2500 दिरहम (जो 57000 रूपए बनता है) कमाता हूँ। 1000 दिरहम घर भेजता हूँ जिससे माँ बाप और चार भाई बहन का गुज़ारा चलता है। हम सात लोग यहाँ एक कमरे में रहते हैं। दो साल का वीज़ा मिलता है जिसे रिन्यु करने पर 8000 दिरहम लगते हैं। मेरे पर 20000 दिरहम का क़र्ज़ा है। बहुत तंग ज़िन्दगी है पर क्या करें कोई चारा नहीं है। पाकिस्तान में कुछ नहीं बचा।सब कुछ नवाज़ शरीफ़ परिवार, ज़रदारी परिवार और आर्मी खा गई। शहबाज़ शरीफ़ को तो अपना नाम भी नहीं लिखना आता। एक ही ईमानदार आदमी है, इमरान खान उसे 200 केसों में जेल डाल दिया गया है”। यह उल्लेखनीय है कि बाहर रह रहा हर पाकिस्तानी इमरान खान का समर्थक है और अब तो सेना को भी खुली गालियाँ दी जारी हैं।

इस ड्राइवर ने एक बात और कही, वहाँ 80 प्रतिशत टैक्सी पाकिस्तानी चलातें हैं और ‘हाई पोस्ट पर इंडियन हैं’। यह बात तो उसकी सही है पर यह भी सही है कि बहुत बड़ी संख्या में ‘हाई पोस्ट’ वाले इंडियन अब वापस देश नहीं आना चाहते। लाखों देश छोड़ रहें हैं। जो भेज सकता है वह अपने बच्चे बाहर भेज रहा है। भाजपा के अपने कई मंत्रियों की संतान बाहर सैटल हैं,या पढ़ रही है। बताया जाता है कि ‘क्वालिटी ऑफ लाइफ़’ बाहर बेहतर है। पर अगर जिन्होंने यहाँ क्वालिटी ऑफ लाईफ़ बेहतर करनी है वह ही अपनी अगली पीढ़ी को बाहर भेज रहें हैं तो देश की कौन सुध लेगा?

      

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.