यह लेख मैं यूएई की राजधानी अबू धाबी जो दुनिया का सबसे रईस शहर भी माना जाता है, से लिख रहा हूँ। यूएई का सबसे प्रसिद्ध शहर दुबई है पर पैसा अबू धाबी में है। दोनों अबू धाबी और दुबई एक प्रकार से जुड़वां शहर है। बीच में केवल घंटा- सवा घंटे का फ़ासला है पर दोनों की संस्कृति कुछ अलग है। अबू धाबी अधिक सियाना बड़ा भाई लगता है। दुबई में हलचल अधिक है। एक पाकिस्तानी टैक्सी ड्राइवर नें अंतर को बहुत अच्छी तरह प्रस्तुत किया कि, ‘दुबई में मस्ती है, अबू धाबी में सकून है’। अबू धाबी अधिक व्यवस्थित है क्योंकि जनसंख्या कम है। दुबई में वाहनों की संख्या इतनी है कि सारा वक़्त ट्रैफ़िक जाम लगा रहता है। दोनों में मूलभूत अंतर है कि अबू धाबी के पास बहुत तेल है जबकि दुबई के पास कम तेल है जिस कारण वह टूरिज़्म, ट्रेड, सर्विसिज़ और फ़ाइनेंस पर निर्भर है। देश के 100 अरब डालर के तेल भंडार का 96 प्रतिशत और गैस का 92 प्रतिशत अबू धाबी के पास है। अबू धाबी 1.7 ट्रिलियन डॉलर(जो शायद डेढ़ लाख करोड़ रूपए बनता है) की अर्थव्यवस्था बन चुका है। लंडन और न्यूयार्क जैसे शहर अब पीछे रह गए क्योंकि उनमें समय के साथ बदलने की वह क्षमता नहीं रही जो अबू धाबी और दुबई जैसे शहरों में है। हमारे अपने भीड़ भरे प्रदूषित शहर तो किसी गिनती में नहीं पर एक रिपोर्ट के अनुसार गुड़गाँव में रियल स्टेट न्यूयार्क से महँगा है। दो साल में यहाँ प्रॉपर्टी की क़ीमतें 76 प्रतिशत बढ़ी हैं। अबू धाबी में भी पिछले कुछ वर्षों से विविधीकरण की बड़ी कोशिश हो रही है ताकि तेल पर निर्भरता कम हो सके। टूरिज़्म, सर्विस सेक्टर और बड़े पैमाने में कंस्ट्रक्शन पर ज़ोर दिया जा रहा है।
2 दिसम्बर को यूएई ने बड़े जोश से अपना 53 वाँ स्थापना दिवस मनाया है। 53 साल पहले इस दिन छ: अमीरात ने इकट्ठा हो कर एक देश बनाया था। फ़रवरी 1972 मे रस अल ख़ैमाह भी साथ जुड़ गया और सातों अमीरात ने मिल कर इसे अपना वर्तमान स्वरूप दे दिया। इन अमीरात की प्रगति की कहानी सचमुच अद्भुत है। उनके पूर्व राजदूत अली अल अहमद ने सही कहा है कि उनकी कहानी ‘मिट्टी के घरों से माडर्न चमत्कारों’ की है। 1950 के दशक में यहाँ तेल की खोज हुई थी। इसके बाद से इन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। आज यहाँ की औसत प्रति व्यक्ति आय 50000 डालर प्रति वर्ष है। ग़रीबी की रेखा के नीचे कोई नहीं है। न ही कोई व्यक्ति ऐसा है जिसका अपना घर नहीं है। यह प्राचीन सभ्यता भी है जिसके बारे कहा जाता है कि यहाँ 8000 साल पुराना मोती मिला है जो दुनिया में सबसे पुराना बताया जाता है। भारत के साथ ईसा से कई शताब्दियों पहले से व्यापार है।
चाहे यह इस्लामी देश है पर दूसरे धर्म रखने और उत्सव मनाने का पूरा अधिकार है जब तक आप किसी नियम का उल्लंघन नहीं करते या सार्वजनिक समस्या खड़ी नहीं करते या किसी की धार्मिक भावना को चोट नहीं पहुँचाते। दुबई में पहला हिन्दू मंदिर 1958 में बना था और अबू धाबी में पहले स्वामीनारायण मंदिर का उद्घाटन पिछले साल जनवरी में प्रधानमंत्री मोदी ने किया था। इसके लिए ज़मीन यूएई की सरकार ने दी है। सारे धर्मों के उत्सव मनाने की पूरी छूट है यहाँ तक कि होली मनाने के लिए विशेष पार्क निर्धारित कर दिए जातें हैं। इसी तरह क्रिसमस मनाई जाती है। नवरात्र के दिनों में गरबा नाइट का आयोजन होता है। यूएई की वर्क फ़ोर्स में 85 प्रतिशत विदेशी हैं जिनमें सबसे बड़ी संख्या भारतीयों की है। जहां पूरी छूट है वहाँ एक
लक्ष्मण रेखा भी है। आप कानून का उल्लंघन नहीं कर सकते और न ही अपने झगड़े यहाँ ला सकते हो। जब शेख़ हसीना बांग्लादेश की प्रधानमंत्री थीं तो कुछ बांग्लादेशियों ने यूएई में अपनी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया था। उन्हें पकड़ कर जेल में डाल दिया गया। बाद में यूएई के राष्ट्रपति ने उन्हें माफ़ी दे दी पर उन्हें डिपोर्ट अर्थात् घर भेज दिया गया। अपने देश में बेरोज़गारी झेल रहे लोगों के लिए यह कम सजा नहीं है।
भारत के हर बड़े शहर से यूएई के लिए कई कई उड़ानें है। एक महीने में कुछ हज़ार उड़ानें भारत और यूएई के बीच उड़ती है। उत्तर भारत से अधिकतर लोग इंग्लैंड अमेरिका और अब कनाडा गए हैं पर अरब देशों या मलेशिया थाईलैण्ड जैसे देशों में दक्षिण भारत से लोग अधिक मौजूद हैं। अमृतसर से दुबई के लिए रोज़ाना तीन फ़्लाइट और शारजाह के लिए दो फ़्लाइट चलती है। सब भरी जाती है। टूरिस्ट भी बहुत जाते हैं क्योंकि अमृतसर से केवल तीन घंटे का सफ़र है। अमृतसर का हवाई अड्डा वैसे भी हम पंजाबियों के लिए बहुत सुविधाजनक है क्योंकि बहुत अधिक भीड़ नहीं होती। हमने नागरिक उड्डयन में बहुत प्रगति की है। नए नए हवाई अड्डे बन रहे है। गोवा जैसी छोटी जगह में ही दो हवाई अड्डे है। पर सब से बुरा दिल्ली का इंदिरा गांधी एयरपोर्ट है क्योंकि अत्यंत भीड़ होती है। मेला लगा होता है। यह दुनिया का दूसरा सबसे व्यस्त एयरपोर्ट बताया जाता है। जब तक नौयडा में नया जेवार एयरपोर्ट बन नही जाता तब तक दिल्ली एयरपोर्ट यात्रियों के लिए दुःस्वप्न से कम नहीं होगा। यहाँ से यात्रा करना तो चैलेंज है।
सबसे बुरे हवाई अड्डों में लंडन का हीथरो हवाई अड्डा है जहां कई बार तो उड़ान पकड़ने में चार घंटे तक लग जातें हैं। पर दुबई और अबू धाबी का नया चमचमाता एयरपोर्ट बताता है कि एयरपोर्ट कार्य कुशल भी हो सकते है। हमारे हवाई अड्डों पर तो समस्या प्रवेश द्वार से ही शुरू हो जाती है। वहाँ टिकट देखा जाता है और उसे आईडी के साथ मैच किया जाता है। बाक़ी दुनिया में प्रवेश द्वार पर चैकिंग नही होती। फिर कई सवाल किए जातें हैं क्यों जा रहे हो, कहाँ रहना है, कब आ रहे हो। दो जगह वीज़ा चैक होता है। दुबई पहुँचने पर हमारा वीज़ा चैक नहीं हुआ। कोई सवाल नहीं पूछा गया। केवल पासपोर्ट देखा गया क्योंकि उनके कम्प्यूटर में पहले से जानकारी थी कि फ़लाँ पासपोर्ट धारी के पास कैसा वीज़ा है। जो यूएई के नागरिक हैं या जिनके पास लम्बा वर्क परमिट है उनकी कैमरे पर केवल फेशियल रैक्गनीशन अर्थात् चेहरे की पहचान होती है। पासपोर्ट पर ठप्पा भी नहीं लगता। इससे बहुत समय बचता है। हमे अपने हवाई अड्डों पर क्रान्तिकारी परिवर्तन लाने का ज़रूरत है। हम कब तक अपने लोगों को अविश्वास से देखते रहेंगे? मिसाल के तौर पर अगर किसी सीनियर सिटिज़न ने पासपोर्ट रिन्यू करवाना होता है तो भी पुलिस की जाँच होती है। क्या ज़रूरत है? अगर कोई पहली बार बनवा रहा है तो पुलिस की जाँच समझ आती है। जिसके पास पहले से पासपोर्ट है उसकी जाँच की दोबारा ज़रूरत क्यों हैं ? अगर हमने मार्डन नेशन बनना है तो यह पुरानी बाबुओं वाली मानसिकता छोड़नी होगी और कदम कदम पर सरकारी दखल बंद करना होगा।
यूएई टूरिज़्म के मामले में बहुत आकर्षक बन चुका है। आप ऑनलाइन टिकट ख़रीद कर टूरिस्ट स्थल पर प्रवेश कर सकते हो। सब कुछ साफ़ सुथरा है। दुबई में दुनिया की सबसे ऊँची इमारत बुर्ज ख़लीफ़ा हो, या 5 करोड़ फूलों वाला मिरेकल गार्डन हो या ग्लोबल विलेज जहां 90 देशों के मंडप है और उनकी संस्कृति और खानपान उपलब्ध है, जहां रोजाना हज़ारों लोग आतें हैं पर कहीं हमारी तरह धक्का मुक्की नहीं होती। कहीं काग़ज़ का एक टुकड़ा गिरा नही मिलता। हर एक दो वर्ष के बाद वहां नया टूरिस्ट आकर्षण तैयार कर दिया जाता है जबकि हम प्राचीन मंदिरों या मुग़ल और अंग्रेज काल के आकर्षणों पर ही केन्द्रित रहते है। आज़ाद भारत ने टूरिस्ट को आकर्षित करने वाला नया कुछ नहीं बनाया। हम तो रोहतांग दर्रे पर भी प्लास्टिक का कचरा फेंक आते है। किसी ने सही कहा है कि जिस दिन भारतीय सड़क पर सही गाड़ी चलाना सीख जांऐंगे और जगह जगह कूड़ा फेंकना बंद कर देंगे, उस दिन भारत विकसित देश बन जाएगा।
यह तो बाद की बात है। यूएई की तरक़्क़ी की कहानी वहाँ रह रहे बड़े भारतीय समुदाय की सफलता की कहानी भी है। यूएई में भारतीय दूतावास के अनुसार भारतवासियों की 2021 में संख्या 35 लाख थी जो अब 47 लाख बताई जाती है। प्रवासियों में सबसे बड़ा 37.96 प्रतिशत भारतीय समुदाय है। वहां की सरकार हमारे लोगों को पाकिस्तानियों पर प्राथमिकता देती है क्योंकि बाहर हम आदर्श नागरिक बन कर रहते हैं। झगड़ा- फ़साद नहीं करते। हमारे लोगों का योगदान भी बहुत है पर यह भी कड़वा सच्च है, केवल यूएई के बारे ही नहीं, कि जो बाहर बस जाता है वह वापस लौटना नहीं चाहता।
इसके बारे अगले लेख में लिखूँगा, पर यह बताते तकलीफ़ हो रही है कि बाहर अब हमारी छवि कुछ ख़राब हो रही है और यह एक असहिष्णु समाज की बन रही है। मैं प्राचीन मस्जिदों के ताज़ा सर्वेक्षण का ज़िक्र कर कहा हूँ। यह तो निर्विवाद है कि हज़ारों मंदिरों को तोड़ा गया था पर जैसे मोहन भागवत ने सही कहा था,“क्या अब हम हर मस्जिद के नीचे शिवलिंग ढूँढते रहेंगे?” खेद है हम उस तरफ़ बढ़ते नज़र आ रहें हैं। अब 1236 में स्थापित सूफ़ी संत ख़्वाजा मोयोद्दीन चिश्ती की अजमेर स्थित दरगाह पर सवाल उठाए जा रहें हैं कि यह कभी शिव मंदिर था। पहले प्रधानमंत्री नेहरू से लेकर अब तक हर प्रधानमंत्री ने यहाँ चढ़ाने के लिए चादर भेजी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 10 साल से चादर चढ़ाने के लिए भेजते आ रहें हैं। क्या यहाँ भी खुदाई होगी? और हम अब यही करते रहेंगे? आगे बढ़ने की जगह अतीत को ही ठीक करते रहेंगे?