
किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने पानी पीकर अपना ‘अनिश्चितकालीन अनशन’ समाप्त कर दिया है। ऐसा पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है। वह 26 नवम्बर से किसानों की माँगों को लेकर अनशन पर थे। चाहे कुछ किसान नेताओं का कहना है कि डल्लेवाल ने अनशन समाप्त नहीं किया पर उनके पानी पीने से सरकार को राहत मिलेगी। इस बीच 13 महीनों के बाद सरकार ने ज़बरदस्ती शंभु और खनौरी बॉर्डर से किसानों का धरना हटा दिया है। इससे राष्ट्रीय राजमार्ग पर आवाजाही शुरू हो गई है। जो किसान गिरफ़्तार किए गए उन्हें भी रिहा कर दिया गया है। बार्डर खुलने से राजपुरा और अम्बाला के आसपास के गाँवों और क़स्बों में रहने वाले लोगों को तो राहत मिली ही है कारोबारी और जो इस रास्ते पर सफ़र करते हैं उन्हें भी बहुत राहत मिली है। पंजाब और हरियाणा के बीच का बॉर्डर तो भारत-पाक बॉर्डर बना हुआ था। )
लम्बे चले इस आन्दोलन का बड़ा दुष्परिणाम यह हुआ कि यह प्रभाव फैल गया कि पंजाब में बिसनेस का माहौल नहीं है। जहां 13 महीनों से नैशनल हाईवे बंद हो वहाँ कौन निवेश करेगा ? किसान नेताओं ने लम्बे समय से सड़कें रोक कर पंजाब का भारी अहित किया है। उनकी माँगे है, पर इनका सम्बंध केन्द्र सरकार से है। किसान को अपनी फसल का उचित मूल्य मिलना चाहिए। कृषि को उसके संकट से उभारने की ज़रूरत है। पर आंदोलन से अपने ही प्रदेश के लोगों को परेशान करना कितना जायज़ है? लीगल एमएसपी केन्द्र ने देनी है पंजाब के लोगों ने नहीं, फिर इन माँगों को लेकर पंजाब में सड़कें और रेलें क्यों बंद होती रहती है? पंजाब के लोगों को किस बात की सजा दी गई है? प्रदेश पहले ही बहुत आर्थिक, समाजिक और राजनीतिक चुनौतियों का सामना कर रहा है, किसान उन्हें बढ़ाने में क्यों लगे हैं? अपनी माँगों को लेकर प्रदर्शन करने का अधिकार संविधान देता है पर दूसरे की आज़ादी को छीनने का अधिकार किसी को नहीं है। आंदोलन का हक़ है, लम्बे समय तक राष्ट्रीय राजमार्ग बंद करने का नही। अगर कोई राजपुरा और अम्बाला के बीच सड़क पर सफ़र करना चाहे तो उसे क्यों रोका जाए? उसे ज़ीरकपुर या लालड़ू की तरफ़ से लम्बे रास्ते पर क्यों जाने के लिए मजबूर किया जाए?
किसान आन्दोलन से पंजाब को कितना नुक़सान हुआ है इसका कोई सही अंदाज़ा नहीं है। लुधियाना के कारोबारियों का कहना है कि उनका 300 करोड़ रूपए का नुक़सान हुआ है। रोज़ाना 4-5 करोड़ का साइकिल उद्योग का माल ही दिल्ली और अन्य राज्यों में भेजा जाता है। बॉर्डर बंद होने के कारण खर्चा 10 से 15 हज़ार रूपए प्रति ट्रक बढ़ गया। समय की बर्बादी अलग। पंजाब में कच्चा माल नहीं होता। यह बाहर से मँगवाना पड़ता है और माल तैयार कर इसे दूसरे राज्यों या विदेश में भेजा जाता है। बॉर्डर बंद होने से बहुत नुक़सान हुआ। बाहर से व्यापारियों ने आना कम कर दिया। अमृतसर का होटल और पर्यटन उद्योग भी बुरा प्रभावित हुआ क्योंकि पंजाब में अनिश्चितता के कारण बाहर वाले आने से डरने लगे हैं। ट्रेड और इंडस्ट्री परेशान थे लेकिन सबसे बड़ा नुक़सान प्रदेश की छवि का हुआ कि यह प्रदेश बाहरी का स्वागत नहीं करता और यहां सरकार कमजोर है। जहां बाक़ी प्रदेशों में निवेश को लेकर मारधाड़ चल रही है, पंजाब यह प्रभाव दे रहा था कि वह बेपरवाह है, उसे कुछ नहीं चाहिए।
इस समय पंजाब सरकार ने यह सख़्त कदम क्यों उठाया ? लम्बे चले प्रदर्शनों से लोगों का सरकार में विश्वास डोल रहा था। इसे बहाल करना ज़रूरी हो गया था। दिल्ली विधानसभा चुनाव में पराजय के बाद आप के पास केवल पंजाब रह गया है लेकिन ढुलमुल प्रशासन के कारण समर्थन कम हो रहा था। 2022 के विधानसभा चुनाव में जिस पार्टी को 41 प्रतिशत वोट मिले थे उसे 2024 के चुनाव में केवल 27 प्रतिशत वोट ही मिले थे। नगर निगम के चुनावों में भी उसे निर्णायक मत नहीं मिले चाहे जोड़ तोड़ से पाँच में से चार जगह वह अपने मेयर बनाने में सफल रहे। 2027 के चुनाव से पहले छवि सही करने की मजबूरी थी। दिल्ली में पराजित होने के बाद नेतृत्व का सारा ध्यान पंजाब पर है। यह भी समझ आगई की लम्बे चले किसान आंदोलन और सरकार की कमजोरी से शहरी क्षेत्र में बहुत ग़लत छवि जा रही है। 39 प्रतिशत हिन्दू वोट जो अधिकतर शहरी है, भी खिसकता नज़र आ रहा था जो भाजपा के वोट में भारी वृद्धि से पता चलता है। बिसनेस समुदाय ने अपनी नाराज़गी भगवंत मान और अरविंद केजरीवाल को स्पष्ट कर दी थी। आगे लुधियाना वेस्ट का उपचुनाव है। यह आप के लिए जीतना ज़रूरी है क्योंकि यहाँ से वह राज्य सभा सांसद संजीव अरोड़ा को लडाना चाहतें हैं और अगर वह जीत जातें हैं तो ख़ाली हुई राज्य सभा सीट से खुद केजरीवाल लड़ने के इच्छुक हैं।
आम आदमीं पार्टी को लोगों ने बड़ा बहुमत इसलिए दिया था कि वह अच्छी सरकार दे सकें। बिजली मुफ़्त करने जैसे वायदे पूरे कर लिए गए पर कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण महिलाओं को 1000 रूपए मासिक देने जैसे वायदे पूरे नहीं हो सके। नशा ख़त्म करने का वायदा भी पूरा नहीं हुआ। इसीलिए प्रशासनिक बहाव के प्रभाव को ख़त्म करना ज़रूरी था। योगी आदित्य नाथ की तर्ज़ पर कई नशा अपराधियों के घरों पर बुलडोज़र चलाए जा रहें है जिसकी आलोचना भी हो रही है। देखना है कि ‘युद्ध नशेयां विरूद्ध’ का कितना असर होता है क्योंकि पाकिस्तान से ड्रोन के ज़रिए ड्रग्स आने बंद नहीं हुए। यह भी देखना बाक़ी है कि सरकार बड़े मगरमच्छों पर हाथ डालती है या नहीं? अगर वह ऐसी हिम्मत दिखाती है तो सरकार की बल्ले बल्ले हो जाएगी।
लोग लम्बे चले किसान आंदोलन से थक गए थे। जिन्होंने 2020-2021 के आंदोलन में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था उनमें से भी बहुत इस बार घर बैठ गए थे। किसानों को बॉर्डर से हटाए जाने के बाद पंजाब में अधिक प्रतिक्रिया न होना भी बताता है कि वह लोगों की सहानुभूति खो बैठे हैं। विपक्ष ज़रूर शोर मचा रहा है पर लोगों ने सुख की साँस ली है। पंजाब सरकार ने भी सख़्ती करनी शुरू कर दी है। ड्रग तस्करों और भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों पर कार्यवाही हो रही है। चाणक्य ने बताया था, “जो राजा अन्याय देख कर चुप रहता है, राजधर्म नहीं निभाता, दंड की नीति नहीं बनाता,वह राजा शीघ्र अपने राज्य को पतन की तरफ़ ले जाने वाला होता है”। संतोष की बात है कि तीन साल की हिचकिचाहट छोड़ पर पंजाब सरकार ने राजधर्म निभाना शुरू कर दिया है। सरकार का दबदबा हर हालत में कायम होना चाहिए नहीं तो लोग क़ानून को हाथ में लेने लग पड़ते हैं और अराजकता फैल जाती है।
बार बार प्रदर्शन और रास्ता रोकने से न केवल लोगों को तकलीफ़ हो रही थी बल्कि सरकार की छवि भी पिचक रही थी। मुख्यमंत्री मान की अपनी छवि भी कमजोर बन रही थी कि दिल्ली वालों के दबाव मे वह सही निर्णय नहीं ले रहे। यह प्रभाव अब मिटेगा। इससे किसान समर्थन कम होगा पर सरकार चलाने के लिए कई बार कड़वे कदम उठाने पड़ते है। आगे बड़ी चुनौती आर्थिक है। पंजाब देश का दूसरा सबसे अधिक क़र्ज़ में डूबा प्रदेश है। नीति आयोग के ‘फिसकल हैल्थ इंडेक्स’ के अनुसार 18 बड़े प्रदेशों में पंजाब आख़िरी है। मार्च के आख़िर में पंजाब पर 378453 करोड़ रूपए का क़र्ज़ा था। आप को तीन सालों में यह 95000 करोड़ रूपए बढ़ा है। प्रदेश जो क़र्ज़ा लेता है उसका 75 प्रतिशत क़र्ज़ पर ब्याज में निकल जाता है परिणाम है कि प्रदेश के पास विकास के लिए बहुत कम पैसा बचता है। यही रफ़्तार चलती रही तो अगले साल क़र्ज़ा 400000 करोड़ रुपये से अधिक हो जाएगा। प्रदेश के क़र्ज़ के जाल में फँसने की सम्भावना बन रही है। इस स्थिति को बहुत गम्भीरता से लेना होगा। फ्रीबीज की नीति को त्यागना पड़ेगा और प्रदेश की आर्थिक स्थिति को सही करने के लिए अप्रिय कदम उठाने पड़ेंगे। यह भी कड़वी हक़ीक़त है कि केन्द्र सरकार की इस तरफ़ नज़र -ए -इनायत नहीं है। परेशान नहीं किया जा रहा, पर अधिक सहयोग भी नहीं किया जा रहा।
पंजाब के सामने पहाड़ जैसी समस्याएँ हैं। स्थिति का फ़ायदा केवल विपक्षी पार्टियाँ ही नही, उग्रवादी तत्व भी उठाने को तैयार रहते हैं। लोकसभा चुनाव में अमृतपाल सिंह और सरबजीत सिंह की भारी जीत बताती है कि पंजाब किस तरफ़ जा सकता है। सिख राजनीति में भारी उथल-पुथल स्थिति को और उलझा सकती है। पंजाब में रेडिकल राय फिर उभर रही है। बेरोज़गार युवक नियंत्रण से बाहर हो सकतें हैं। मलेरकोटला में मुख्यमंत्री भगवंत मान ने सीधी घोषणा की है कि, “नफ़रत के बीज पंजाब में फूटने नहीं देंगे”। यह सही सोच है क्योंकि देश में साम्प्रदायिक तनाव बढ़ता जा रहा है। पंजाब बचा हुआ है। पर पंजाब के सामने जो चुनौती है उस से निपटने के लिए न केवल सही सोच बल्कि दृढ़ संकल्प की भी ज़रूरत है। तीन साल कमजोरी नज़र आई पर अब बॉर्डर पर दिखाई सख़्ती और ड्रग माफिया तथा भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ जो शिकंजा कसा जा रहा है उससे आशा जगी है कि सरकार अपनी ज़िम्मेवारी निभाने को तैयार है, क्योंकि राजधर्म निभाने का कोई विकल्प नहीं है ।