शशि थरूर: इधर या उधर, Whither Shashi Tharoor

आपरेशन सिंदूर अभी निलम्बित किया गया है पर उसे लेकर एक साइड स्टोरी शुरू हो गई है। अपना पक्ष रखने  के लिए जो प्रतिनिधि मंडल विदेश भेजे गए हैं उनको लेकर राजनीतिक तू तू मैं मैं शुरू हो गई है। विशेष तौर पर कांग्रेस के नेता शशि थरूर को एक महत्वपूर्ण डैलिगेशन का लीडर बनाए जाने पर कांग्रेस पार्टी सरकार और थरूर दोनों से खूब नाराज़ है। 1994 में पी. वी.नरसिम्हा राव ने जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र के मनावाधिकार सम्मेलन में भारत का पक्ष रखने के लिए विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल भेजा था ताकि यह संदेश जा सके कि सारा देश एकजुट है। इस बार वह समन्वय नहीं है। पर यह बहुत ज़रूरी है क्योंकि दुनिया हमें और पाकिस्तान को बराबर रख रही है। विदेशों में लिबरल वर्ग, सरकारों में, मीडिया में, थिंक टैंक में, उच्च शिक्षा संसथानों में, जो कभी हमारे पक्ष में था, वह अब हमारा विरोधी हो गया है क्योंकि हमें अब अनुदार लोकतंत्र समझा जा रहा है। कुछ भाजपा नेताओं के बिगड़े बोल ने भी देश का भारी अहित किया है। उपर से डानल्ड ट्रम्प का अजब नकारात्मक रवैये परेशानी खड़ी कर रहा है।

जहां तक प्रतिनिधि मंडल का सवाल है, सरकार ने कांग्रेस पार्टी को तीन चार नामों का सुझाव दिया था। मंत्री किरण रीजीजू ने राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे से बात की थी पर कांग्रेस ने अपने चार अलग नाम भेज दिए। अगर वह दुनिया को संदेश देना चाहती थी कि इस नाज़ुक घड़ी में सभी दल इकट्ठे हैं तो सरकार को  कांग्रेस के नाम स्वीकार कर लेने चाहिए था। पर सरकार ने केवल आनंद शर्मा का नाम स्वीकार किया और अपनी तरफ़ से शशि थरूर, सलमान ख़ुर्शीद, मनीष तिवारी और अमर सिंह को शामिल कर लिया। यह सभी कांग्रेस के नेता अनुभवी है और सही चुनाव है पर बेहतर होता कि पार्टी की अनुमति ली जाती। सरकार ने गलती की पर कांग्रेस को इस समय ख़ामोश रहना चाहिए था। वह श्रेय ले सकती थी कि अनुभवी और प्रतिभाशाली लोग उसी के पास हैं जबकि भाजपा में कमी है। आख़िर विदेश में जिन नेताओं ने अच्छी तरह से पक्ष रखा वह सब विपक्ष से हैं। पर जिस समय यह प्रतिनिधि मंडल विदेशी धरती पर थे कांग्रेस ने अपने ही लोगों पर गोलीबारी शुरू कर दी। कांग्रेस कुछ समय के लिए ख़ामोश रह सकती थी। पर राहुल गांधी की कांग्रेस तो बेधड़क आगे बढ़ जाती है। इतनी पुरानी पार्टी में परिपक्वता नहीं रही। इस बार नाराज़गी विशेष तौर पर एक नाम को लेकर अधिक लगती है, शशि थरूर।

देश में गांधी परिवार को छोड़ कर शशि थरूर कांग्रेस का सबसे अधिक जाना पहचाना नाम है। इन प्रतिनिधि मंडल को भेजने का कोई फ़ायदा हुआ भी या नहीं यह अलग बात है क्योंकि किसी को भी कहीं कोई वरिष्ठ नेता नहीं मिला, पर यह मानना पड़ेगा कि आपरेशन सिंदूर पर देश का पक्ष शशि थरूर ने किसी भी भाजपा प्रवक्ता से बेहतर रखा। उनके सामने विदेश मंत्री एस.जयशंकर एक सख़्त स्कूल टीचर नज़र आते है। और यही थरूर की समस्या है, उनका व्यक्तित्व। वह पढ़े लिखें है, शायद अधिक पढ़े लिखें है। अंग्रेज़ी पर उनकी विशेष महारत है, जो चर्चा का विषय रहता है। उनकी शैली बहुत नफ़ीस है, वह चार्मिंग है। अगर देखा जाए कि वह चार बार सांसद चुने जा चुकें हैं तो उन्हें केवल कॉकटेल सर्कल का प्रतिनिधि नहीं कहा जा सकता। अपनी बात कहने की वह खूब क्षमता रखते है। कई किताबें लिख चुकें हैं। युवाओं में लोकप्रिय है। उन्हें लेडीज़ मैन भी कहा जाता है पर इस में उनका भी क़सूर नहीं अगर दूसरों को वह आकर्षक लगते है! महिलाओं से घिरे उनकी तस्वीरें अक्सर प्रकाशित होती रहती हैं क्योंकि व्यक्तित्व आकर्षक है। आख़िर जीन्स का मामला है !

पर आज की राजनीति में ज़्यादा प्रतिभा कमजोरी भी हो सकती है क्योंकि कई लोग आपको अपने लिए ख़तरा समझने लगतें हैं। यह बीमारी हर पार्टी में हैं। कांग्रेस पार्टी के साथ शशि थरूर की दूरी का कारण भी यही है। वह अत्यधिक प्रतिभाशाली हैं। उनकी लोकप्रियता अपनी पार्टी के कारण नहीं है। देश में उनकी अलग जगह है। कांग्रेस पर सत्तारूढ़ लोगों के साथ उनका झगड़ा तब शुरू हुआ जब अक्तूबर 2022 में उन्होंने हाईकमान के नुमाइंदे मल्लिकार्जुन खड़गे के खिलाफ प्रधान पद का चुनाव लड़ा। खड़गे अच्छी तरह 7800 वोट लेकर जीत गए पर शशि थरूर को मिले 1000 वोट से हाईकमान चौकन्ना हो गया कि इस शक्स में चुनौती देने का दम  है। उन्हें एक तरफ़ तो नहीं किया जा सकता था क्योंकि तिरूवनंतपुर से लोकसभा चुनाव जीतना था पर शशि थरूर को उनके स्तर के बराबर भाव नहीं दिया गया। वह शिकायत करते हैं कि राहुल गांधी उनसे मिलते नही। यह शिकायत करने वाले वह अकेले नहीं हैं। असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वास ने बताया था कि जब वह कांग्रेस में थे तो एक दिन राहुल गांधी को मिलने गए। उनसे बात करने की जगह राहुल अपने कुते को बिस्कुट खिलाते रहे। नाराज़ बिसवास कांग्रेस छोड़ भाजपा शामिल हो गए और अब उतर पूर्व में कांग्रेस की नाक में दम किया हुआ है। क्या शशि थरूर का भी रूख उधर की तरफ़ है?

विदेश की धरती पर शशि थरूर का बयान कि आपरेशन सिंदूर के दौरान मोदी सरकार नियंत्रण रेखा और अंतराष्ट्रीय सीमा भी लांघ गई ‘जो पहले कभी नहीं हुआ था”, विवाद का विषय रहा है। यह अनावश्यक टिप्पणी थी। मोदी सरकार को श्रेय देने के लिए पिछली सरकारों को लपेटने की कोई ज़रूरत नहीं थी। यह तथ्यात्मक भी ग़लत है। यह सही है कि मोदी सरकार वहाँ तक गई जहां पहले कोई सरकार नहीं गई थी पर यह ग़लत है कि पहली सरकारों ने नियंत्रण रेखा या अंतराष्ट्रीय सीमा पार नहीं की।रिटायर्ड लै. जनरल डी.एस.हुड्डा  ने स्पष्ट कर दिया है कि कम-से कम छ: बार पहले पाकिस्तान के अंदर तक स्ट्राइक हो चुकी है। विशेषज्ञ अजय साहनी ने कहा है कि, “क्रास बार्डर पहले भी हुए हैं। कई बार हुए हैं।जब भी उस तरफ़ से हमला होता तो सेना टार्गेट हमला कर जवाब देती। केवल इसका प्रचार नहीं किया गया”। सैनिक अभियान का राजनीतिककरण नहीं होना चाहिए। हैरानी है कि थरूर जैसा समझदार व्यक्ति ग़लत बह गया। जयराम रमेश की टिप्पणी, ‘कांग्रेस में होने और कांग्रेस का होने में ज़मीन आसमान का अंतर है’,बता गई कि पार्टी के नेतृत्व की उनके बारे राय क्या है?

क्या शशि थरूर चाहते हैं कि पार्टी ही उन्हें निकाल दे ताकि विश्वासघात या अकृतज्ञता का आरोप न लगे? यह तो लगता ही है कि शशि थरूर ने कांग्रेस पार्टी के साथ अपनी सारी किश्तियाँ जला दी हैं। विदेश में मोदी सरकार की नीति का समर्थन और पिछली सरकारों, जिनमें वह खुद भी मंत्री रहें है, की परोक्ष निन्दा तो लक्ष्मण रेखा पार करने के बराबर है। आख़िर वह 69 वर्ष के हैं और कांग्रेस से उन्हें कुछ मिलने की कोई सम्भावना नहीं। तो क्या वह भी अगले ज्योतिरादित्य सिंधिया बनने जा रहे हैं ? अगले साल केरल विधानसभा के चुनाव है। शशि थरूर मुख्य मंत्री बनना चाहेंगे पर इसकी कोई सम्भावना नहीं कि कांग्रेस उन्हें मुख्यमंत्री बनाएगी। भाजपा का वहाँ सता में आने का सवाल ही नहीं और थरूर लैफट के साथ नहीं जाएँगे। अर्थात् उनके विकल्प भी सीमित है पर कांग्रेस के लिए भी समस्या है। वह केरल में सता में आना चाहती है पर अगर शशि थरूर छोड़ जाते हैं तो बड़ा धक्का लगेगा। यह प्रभाव भी फैलेगा कि कांग्रेस प्रतिभाशाली लोगों को सम्भाल नहीं सकती क्योंकि वह राहुल गांधी को चुनौती दे सकते हैं।

 शशि थरूर का अतीत भाजपा और संघ विरोधी रहा है। वह कट्टर उदारवादी हैं और भाजपा तथा संघ की तीखी निन्दा कर चुकें। अगर कांग्रेस में स्वतन्त्र सोच की इजाज़त नहीं तो भाजपा में तो यह और भी कम है। अगर कांग्रेस उनके व्यक्तित्व को बर्दाश्त नहीं कर सकी तो भाजपा द्वारा तो बर्दाश्त किए जाने की और भी कम सम्भावना है। दिलचस्प है कि अपनी किताब द पैराडाकसिकल प्राइम मिनिस्टर में वह लिखतें है, “ 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक का शर्मनाक दोहन…जो कांग्रेस ने कभी नहीं किया जबकि ऐसी कई स्ट्राइक पहले कर चुकें हैं”। यही थरूर अब कह रहें हैं कि पहले ऐसी स्ट्राइक नहीं हुई। शशि थरूर का भाजपा विरोध केवल राजनीतिक ही नहीं वैचारिक और सैद्धांतिक भी रहा है। अपनी किताब वाई आई एम ए हिंदू में वह अपनी विचारधारा स्पष्ट करते हैं कि वह हिन्दुत्व के विरोधी क्यों हैं ? वह लिखते हैं, “जिसे स्वामी विवेकानंद हिन्दू धर्म की शक्ति देखते थे, इसकी असाधारण विविधता… इसे ही आरएसएस के विचारक कमजोरी समझते हैं… राजनीतिक ज़रूरत के लिए हिन्दुत्व का लक्ष्य समाजिक और सांस्कृतिक भिन्नता पैदा करना है…इसलिए हिन्दुत्व मेरे हिन्दू धर्म के सिद्धांतों से बेमेल है…मेरा हिन्दू धर्म नेहरूवादी भारतीयता की अवधारणा से मेल खाता है… हिन्दुत्व की संकीर्ण विचारधारा हिन्दू धर्म जो वास्तव में है, का उपहास है”। इस अध्याय जिसका शीर्षक उन्होंने हिन्दू धर्म एंड पोलिटिकस ऑफ हिन्दुत्व, दिया है का अंत वह इस पंक्ति से करतें हैं, “संघ मेरे जैसे हिन्दुओं का प्रवक्ता नहीं है”।

जिसके ऐसे विचार हों, जो ‘नेहरूवादी भारतीयता’ का समर्थक हो, उसे मैं ‘उधर’ जाते नहीं देखता। पर यह राजनीति है। और कहा जाता है कि यहाँ कुछ भी असम्भव नहीं है।



VN:F [1.9.22_1171]
Rating: 0.0/10 (0 votes cast)
VN:F [1.9.22_1171]
Rating: 0 (from 0 votes)
About Chander Mohan 767 Articles
Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.