डानल्ड ट्रम्प को ग़ुस्सा क्यों आता है, Donald Trump Ko Gussa Kyon Aata He

भारत और अमेरिका के रिश्ते लड़खड़ा रहें हैं। अगर जल्द न रोका गया तो ऐसी जगह पहुँच जाएँगे कि मुरम्मत की गुंजाइश नहीं रहेगी और जब तक ट्रम्प व्हाइट हाउस छोड़ेंगे तब तक इन रिश्तों का कुछ नहीं बचेगा। भारत दवारा रूस से तेल ख़रीदने पर अतिरिक्त 25% टैरिफ़ (कुल 50%) लगा दिया गया है जबकि चीन जो हमसे भी अधिक ख़रीदता है पर 30% टैरिफ है। कूटनीतिक शालीनता को एक तरफ़ रख न केवल ट्रम्प बल्कि उनके कई सलाहकार रोज़ाना हमें लताड़ रहें हैं। एक कथित सलाहकार पीटर नावरो का कहना है कि युक्रेन का युद्ध ‘मोदी का युद्ध है’ ! फिर कहना था कि “रूस से तेल ख़रीद से भारत में ब्राह्मण मुनाफ़ा कमा रहे हैं”। भारत अमेरिका विवाद में हमारे ब्राह्मण कहाँ से टपक गए? न जाने यह बंदा क्या खा-पी कर बात करता है ! खुद ट्रम्प भी बहक रहें हैं। वह भारत को ‘डैड इकानिमी’ कह चुकें हैं जबकि पहली तिमाही में हमने 7.8% ग्रोथ दिखाई है। यह भी उस समय जब हम पर टैरिफ़ की तलवार लटक रही थी।

हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी की सफल जापान यात्रा के दौरान जापान ने भारत में निवेश के टार्गेट को दो गुना बढ़ाते हुए 68 अरब डालर कर दिया है। ऐसा करते हुए जापान ने हमारी अर्थव्यवस्था में विश्वास प्रकट कर दिया है। लेकिन ट्रम्प ख़फ़ा है, और बहुत ख़फ़ा हैं,पागलपन की हद तक ख़फ़ा है। भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध रुकवाने का दावा करते हुए ट्रम्प का यह भी कहना था, “मैंने प्रधानमंत्री मोदी से बात की थी। मैंने उनसे कहा कि आपके पास 24 घंटे है। आप लड़ते रहे तो हम आपके साथ व्यापार या कुछ नहीं करेंगे।इसके बाद हम इतने ऊँचे टैरिफ़ लगा देंगे कि आपका सर चकरा जाएगा”। क्या यह किसी मानसिक रूप से स्वस्थ राष्ट्राध्यक्ष की भाषा है? क्या किसी रणनीतिक सांझेदार देश के प्रधानमंत्री को यह धमकी दी जा सकती है कि ‘आपका सर चकरा जाएगा’?

ट्रम्प को रूसी तेल की चिन्ता नहीं। अलास्का में उन्होंने रूस के राष्ट्रपति पुतिन का लाल ग़लीचा बिछा कर स्वागत किया था। हमारे साथ समस्या और है। हमने उनकी ईगो की मालिश करने से इंकार कर दिया। सारा योरूप, जापान, कोरिया सब उनके आगे झुक गया। केवल भारत और ब्राज़ील अड़ गए। भारत ने उन्हें पाकिस्तान के साथ युद्ध विराम का श्रेय देने से इंकार कर दिया जिससे ट्रम्प चिढ़ गए। अमेरिका में हमारी पूर्व राजदूत मीरा शंकर ने अमेरिका के साथ बिगड़े रिश्ते को ट्रम्प की ‘निजी चिढ़’ बताया है। यही शब्द अमरीकी फाइनैनशल सर्विस कम्पनी जैफ़रीज़ ने भी कहें है। उनके अनुसार ट्रम्प की चिढ़ का कारण है कि भारत ने पाकिस्तान के साथ झगड़े में उन्हें मध्यस्थता करने नहीं दिया। न्यूयार्क टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में बताया है, “राष्ट्रपति ट्रम्प ने बार बार दावा किया कि उन्होंने युद्ध ‘हल’ कर दिया…जून 17 को नरेन्द्र मोदी के साथ टेलीफोन वार्ता में ट्रम्प ने यह बात फिर उठाई कि उन्हें कितना गर्व है कि उन्होंने युद्ध रुकवा दिया…उन्होंने यह भी बताया कि पाकिस्तान उन्हें नोबेल सम्मान के लिए मनोनीत करने जा रहा है… उनके कहने का एक प्रकार से अभिप्राय यह था कि मोदी भी ऐसा करें”।

उस 35 मिनट की तल्ख़ कॉल में मोदी ने स्पष्ट कर दिया कि सारे घटनाक्रम के दौरान न तो किसी भी स्तर पर भारत-अमेरिका ट्रेड डील पर बात हुई थी और न ही अमेरिका की तरफ़ से मध्यस्थता का कोई प्रस्ताव ही आया था। इसी में इस बात का जवाब भी है कि डानल्ड ट्रम्प को ग़ुस्सा क्यों आता है ? जैसे कोई बच्चा चाकलेट के लिए ज़िद्द करता है वैसे ही अमेरिका के राष्ट्रपति बार बार खुद को नोबेल के सच्चे दावेदार कह रहें हैं। अगर हम तेल पर समझौता कर लेते तो फिर माँग यह होती कि हम रूस से हथियार लेना बंद कर दें क्योंकि ‘इस पैसे से रूस युक्रेन में युद्ध चला रहा है’। यह भी माँग हो सकती थी कि हम ब्रिक्स छोड़ दें और दूसरे देशों के साथ डालर के सिवाय दूसरी किसी मुद्रा में व्यापार करना बंद कर दें।

अगर हम झुकते तो झुकते चले जाते। ईयू और जापान जैसे देशों ने रियायते दी हैं पर हमने स्पष्ट कर दिया कि कृषि, डेयरी और छोटे उद्योग जैसे क्षेत्र किसी के लिए खुलें नहीं है। भारत में इंग्लैंड के पूर्व हाई कमिश्नर डॉमिनिक एसक्विथ का सही कहना है कि, “कोई प्रमाण नहीं है कि डानल्ड ट्रम्प के पास संगत माँग है …या समझौते का कोई रास्ता है”। इसका कारण यही है कि मामला ट्रेड का इतना नहीं जितना अमेरिका के राष्ट्रपति की ईगो का है। उनके लिए मानना मुश्किल है कि भारत झुकने को तैयार नहीं। मैक्सिको के बारे ट्रम्प ने डींग मारी है कि ‘वह करते हैं जो हम कहतें हैं’। भारत मैक्सिको नहीं है। हम अमेरिका के साथ अच्छे सम्बंधों की अहमियत को समझतें हैं पर हम निर्देश लेने को तैयार नहीं। एक साम्राज्यवादी ताक़त को हटा कर दूसरी को अपने उपर लादने के लिए हम तैयार नहीं है। अमेरिका के अतिरिक्त टैरिफ़ से कुछ सेक्टरों को धक्का ज़रूर पहुँचेगा पर हमारी अर्थव्यवस्था निर्यात पर ही निर्भर नहीं है। वियतनाम की अर्थव्यवस्था का लगभग 90% निर्यात पर निर्भर है जबकि भारत की अर्थव्यवस्था का यह केवल 21-22% ही है।

अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प अपने भक्तों को यह प्रभाव देना चाहते थे कि दुनिया के बड़े नेता उनके आगे नतमस्तक हो रहें हैं। जैसे पहले बादशाह को नज़राना चढ़ाया जाता था वैसा ट्रम्प अपने लिए चाहते हैं कि सब व्हाइट हाउस के दरबार में सलाम बजाए। पर ज़बरदस्त दबाव के बावजूद युक्रेन युद्ध को लेकर पुतिन एक इंच नहीं हिले। चीन ने भी आँखें दिखाई तो ट्रम्प पीछे हट गए। सारी भड़ास हम पर निकाली जा रही है जो उलटी पड़ गई है। ऐसी ही स्थिति हमने बांग्लादेश युद्ध के समय देखी थी जब इंदिरा गांधी ने निक्सन के आगे झुकने से इंकार कर दिया था। 1998 में परमाणु परीक्षण के समय अमेरिका ने प्रतिबंध लगा दिए थे पर भारत झेल गया। उसी नीति पर अब प्रधानमंत्री मोदी चल रहें हैं। हमने ट्रम्प को बता दिया कि हम तुम्हारी धुन पर नाचने के लिए तैयार नहीं है। सीएनएन पर एक विश्लेषक ने कहा है, “अमेरिका ने भारत को खो दिया। इसका नतीजा बहुत बुरा होगा”। 

इस बीच चीन के तिआनजिन शहर में एससीओ की बैठक में 20 देशों के नेता मौजूद रहे। चीन दुनिया में खुद को वैकल्पिक लीडर पेश करने की कोशिश कर रहा है। अमेरिका की बेवक़ूफ़ी ने चीन को और भी बड़ी ताक़त बना दिया है। पहलगाम के हमले के चार महीने के बाद ही मोदी की चीन यात्रा असामान्य है। शी जिनपिंग ने ज़रूर कहा कि ‘हम पार्टनर हैं विरोधी नहीं’, पर उनकी बात पर भारत में शायद ही कोई विश्वास करेगा। प्रधानमंत्री मोदी ने सीमा पार से आतंकवाद का वर्णन किया और घोषणा पत्र में पहलगाम हमले की निन्दा की गई है। यह हमारी कूटनीतिक विजय है क्योंकि अभी तक चीन पहलगाम का नाम लेने से कतरा रहा था। इस सम्मेलन से बड़ा संदेश यह है कि वर्ल्ड आडर हिल रहा है। प्रक्रिया तो पहले से शुरू है पर ट्रम्प की विचित्र नीतियों के कारण इसमें तेज़ी आ गई है।  उन्हीं की नीतियों के कारण भारत और चीन कुछ नज़दीक आ रहें है। पर गर्मजोशी नहीं है। गलवान का टकराव भूलना मुश्किल है। पर कूटनीति एक जगह ठहर नहीं सकती। समय के साथ उसे बदलना है। भारत ने भी बता दिया है कि उसके पास भी विकल्प हैं। हमने रूस से तेल लेना बंद करने से भी इंकार कर दिया है।

भारत की नीति का प्रभाव नज़र आने लगा है। अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रूबियों, जो ट्रम्प की गुर्राने वाली टीम के प्रमुख सदस्य है, ने मोदी-पुतिन वार्ता से कुछ मिनट पहले सुर बदलते हुए कहा है कि भारत और अमेरिका का रिश्ता ‘नई ऊँचाइयों पर पहुँच रहा है’। और यह रिश्ता 21वीं सदी को परिभाषित करेगा। हमारे लोगों को ज़ंजीरों में वापिस भेजने के बाद रूबियो ने “हमारे दो लोगों के बीच चिरस्थायी दोस्ती” की बात कही है। अमेरिका के वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने कहा है कि “भारत के मूल्य चीन से कहीं ज़्यादा हमारे साथ मेल खातें हैं”। यह बात अब क्यों समझ आरही है? दुनिया में दो खेमें हैं, अमेरिका-पश्चिम तो दूसरी तरफ़ चीन-रूस। पलड़ा उसका भारी रहेगा जिस तरफ़ भारत जाएगा। इसीलिए अनर्गल बयानबाज़ी से रिश्ते को जो नुक़सान हुआ है उसकी भरपाई की जा रही है। पर भारत का इतिहास है कि हम ख़ेमा-बाज़ी से उपर है। हम अमेरिका को छोड़ नहीं रहे, न ही छोड़ सकते हैं। उनके साथ कई स्तर पर मज़बूत रिश्ता है। रक्षा समबंध तगड़े है। वह हमारी सबसे बड़ी निर्यात मार्केट है। और जो आज ड्रैगन और हाथी के टैंगो का बात कर रहें हैं उन्हें समझ  चाहिए कि कम से कम अमेरिका हमारी सीमा पर तो नहीं बैठा।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस नाज़ुक समय में अमेरिका की बागडोर डानल्ड ट्रम्प जैसे अस्थिर आदमी के हाथ है इसीलिए यह संदेश भेजना ज़रूरी था कि हम मैक्सिको या पाकिस्तान नहीं है। हम किसी के भी आधीन नहीं रहने वाले। चीन के खेमें में जाने का सवाल ही नही। रूस के साथ पुरानी दोस्ती चलेगी। पर हाल का घटनाक्रम यह ज़रूर बता गया है कि डानल्ड ट्रम्प की अजीबोग़रीब नीतियों और हरकतों के कारण अमेरिका की ताक़त और प्रभाव का तेज़ी से ह्रास हो रहा है।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.