न इनकी दोस्ती अच्छी, न इनकी दुष्मनी अच्छी, India And China :Uncertain Tango , China, India,

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इस सप्ताह के अंत में चीन यात्रा से पहले चीन बहुत मीठी मीठी प्यार भरी बातें कर रहा है। भारत और चीन के बीच रिश्ते क़ायम होने की 75वीं वर्षगाँठ पर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने दोनों देशों की ‘पार्टनरशिप’ की बात कही है और दोनों के हितों को “ड्रैगन -हाथी टैंगो (संयुक्त नाच) कहा है। ट्रम्प द्वारा भारत पर लगाए अनुचित टैरिफ़ के बाद शी जिनपिंग ने भारत के साथ रिश्तों को अहम बताते हुए उन्हें और मज़बूत करने पर ज़ोर दिया है। चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने हाल ही की भारत यात्रा के दौरान कहा है कि “भारत और चीन को प्रतिद्वंद्वी की तरह नहीं सांझेदार की तरह देखा जाना चाहिए”।उन्होंने हमारे विदेश मंत्री जयशंकर से कहा है कि “मतभेद विवाद नहीं बनने चाहिए”। चीन के सरकारी अख़बार ग्लोबल टाईम्स जो सदा भारत का विरोधी रहा है और यहाँ तक कह चुका है कि भारत उनके बराबर देश नहीं है, ने प्रधानमंत्री की यात्रा पर टिप्पणी की है कि “इसकी उत्सुकता से इंतज़ार है… अगर दूसरा पक्ष दुष्मन बन जाए तो न चीन का न ही भारत का इसमें हित होगा”।

भारत सरकार की प्रतिक्रिया बहुत सावधानीपूर्वक है क्योंकि मसला केवल ‘मतभेद’ का ही नही। चीन अतीत में दुष्मनी निभाता रहा है जिसकी एक झलक हम आपरेशन सिंदूर को दौरान भी देख कर हटें है। जार्ज फ़र्नांडीज़ ने रक्षा मंत्री रहते चीन को दुष्मन नम्बर1 कहा था। 2021 में चीफ़ ऑफ डिफ़ेंस स्टाफ़ जनरल बिपिन रावत ने चीन को ‘सबसे बड़ा दुश्मन’ कहा था। वांग यी को जयशंकर ने बता दिया था कि, “भारत और चीन के बीच रिश्ता मुश्किल दौर से गुजर चुका है”। उन्होंने दोनों देशों के बीच, “परस्पर आदर”, परस्पर संवेदनशीलता और परस्पर हितों” का मंत्र दिया है। अर्थात् भारत सरकार चीन के साथ सुधर रहे रिश्तों पर गद्गद नहीं हो रही। फूंक फूंक कर कदम उठाए जा रहें हैं। यह तो अमेरिका के राष्ट्रपति की मूर्खता है कि दोनों देश नज़दीक आ रहें है नहीं तो चीन भारत को परेशान करने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ रहा था। तनाव के कारण कई हैं:-

  1. हाल ही के आपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान और चीन के बीच जो मिलीभगत देखने को मिली वह पहली लड़ाईयों में देखने को नहीं मिली थी। पाकिस्तान सामने आकर लड़ रहा था तो चीन पीछे रह कर। विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी ने लिखा है, “चीन इस टकराव में तीसरा अनदेखा पक्ष था”। आर्मी के डिप्टी चीफ़ ऑफ स्टाफ़ ले.जनरल राहुल आर.सिंह ने कहा है कि आपरेशन सिंदूर के दौरान, “चीन भी एक वैरी था जिससे हम लड़ रहे थे”। चीन ने रेडार और सैटेलाइट से प्राप्त जानकारी पाकिस्तान को उपलब्ध करवाई थी। चीन ने पाकिस्तान को न केवल J-10C विमान, PL-15 एयर टू एयर मिसाइल और ड्रोन ही दिए बल्कि हमारी सैनिक गतिविधियों के बारे सूचना भी देते रहे। चीन में  हमारे पूर्व राजदूत अशोक के.कांथा, जिनका कहना है कि हमें चीन के साथ सामान्य रिश्ते करनें में जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए, ने भी कहा है कि पहलगाम हमले के बाद चीन ने पाकिस्तान को न केवल कूटनीतिक समर्थन दिया बल्कि “लड़ाई के मैदान में अभूतपूर्व स्तर की सांझेदारी नज़र आई”।
  2. चीन सीमा विवाद को हल करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहा। अब फिर कोई ‘एक्सपर्ट कमेटी’ का गठन किया गया है जो मामले को देखेगी। यह बाबुओं का पुराना करतब है कि जब किसी समस्या का कोई हल न करना हो तो कमेटी में डाल देतें हैं।  2017 का डोकलम टकराव और 2020 में पूर्व लद्दाख में गलवान में टकराव भारत को रक्षात्मक करने और हमारे उभार को रोकने के लिए किए गए। पूर्व कोर कमांडर ले. जनरल सईद अटा हसनैन का कहना है कि चीन का मक़सद, “भारत की गति को रोकना,उसके आत्म विश्वास को कम करना और उसकी सेना को ऊँची सीमा पर गतिरोध में उलझाए रखना था”। चाहे भारत और चीन की सेनाएँ आमने -सामने से पीछे हट गईं हैं पर 50000 से 60000 सैनिक अभी भी वहाँ तैनात है क्योंकि चीन अप्रैल 2020 वाली स्थिति पर वापिस लौटने के तैयार नहीं। न ही चीन उन जगहों से पीछे हटा है जो उसने पूर्वी लद्दाख में क़ब्ज़ा कर लिया था। पहले भारत ने यह शर्त रखी थी कि रिश्ते पूरी तरह सामान्य करने के लिए 2020 अप्रैल से पहले की स्थिति बहाल की जाए पर मोदी की यात्रा से यह संकेत मिलता है कि भारत ने यह शर्तें हटा ली है। चीन हमें सदा असुरक्षित रखना चाहता है। अरूणाचल प्रदेश जिसे वह ‘दक्षिण तिब्बत’ कहते हैं, पर दावा भी इसी नीति का परिणाम है। बार बार चीनी नाम देकर वह हमें उत्तेजित करता रहता है। लगभग दो दर्जन बैठकों को बाद भी सीमा विवाद का कोई हल नहीं निकला क्योंकि चीन की दिलचस्पी नहीं है।

3. नवीनतम उत्तेजना हमारी सीमा से 30 किलोमीटर की दूरी पर चीन द्वारा दुनिया का सबसे विशाल डैम बनाना है। यह डैम वर्तमान किसी डैम से तीन गुना बड़ा होग। यहाँ से ब्रह्मपुत्र नदी भारत में दाखिल होती है। इसके हमारे लिए बहुत गम्भीर नतीजे निकल सकतें हैं क्योंकि जहां निर्माण होना है वह बहुत अस्थिर जगह है और भूचाल की बहुत सम्भावना रहती है। बरसात में बाढ़ की सम्भावना भी बनी रहती है। अगर कभी चीन शरारत करना चाहे तो भारी मात्रा में पानी छोड़ कर नीचे के क्षेत्र को तबाह कर सकता है। भारत इसके निर्माण से प्रभावित होगा पर हम से कोई बात नहीं की गई। एक प्रकार से हमें और बांग्लादेश को बता दिया गया है कि आपके गले पर हमारा अंगूठा होगा। दोनों के बीच नदी पानी को लेकर संवाद का प्रावधान है पर 2023 के बाद कोई बैठक नहीं हुई। अब जबकि चीन से कई स्तर की वार्ता शुरू हो चुकी है आशा है कि ब्रह्मपुत्र, जिसे चीन ‘यारलंग ज़गबो’ कहता है, पर प्रस्तावित महा डैम पर भी बात होगी और हमारी चिन्ता से उन्हें अवगत करवाया जाएगा।  

4.दबाव बढ़ाने के लिए चीन लगातार आर्थिक हथियार का इस्तेमाल कर रहा है। रेयर अर्थ (दुर्लभ खनिज) जो इलैक्ट्रिक वहिकल और स्मार्टफ़ोन जैसे उच्च इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं, का भारत को निर्यात रोक दिया गया था। विशेष फरटिलाइज़र और सुरंग खोदने वाली मशीनों का भी निर्यात रोक दिया गया था। इलैक्ट्रिक वहिकल बनाने वाली चीनी कम्पनियों से कहा गया है कि वह भारत को टेक्नॉलजी ट्रांसफ़र न करें। यह मामला विदेशी मंत्री ने चीन के विदेश मंत्री के साथ उठाया था और अब शायद इनकी उपलब्धता शुरू हो जाए पर इससे चीन की मंशा तो स्पष्ट हो जाती है कि वह हमें असुरक्षित और कमजोर रखना चाहता है। वह जानता है कि एशिया में कोई देश अगर उनका मुक़ाबला कर सकता है जो यह भारत ही है। जापान जैसे देश पीछे हट गए हैं। चीन के साथ व्यापार में संतुलन पूरी तरह उनकी तरफ़ झुका हुआ है। हम अपने निर्यात से 100 अरब डालर का अधिक आयात वहाँ से कर रहें है। भारत सरकार के प्रयास के बावजूद यह घाटा कम नहीं हो रहा।

इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा हो रही है। यह भारत के प्रधानमंत्री की सात साल के बाद चीन की यात्रा होगी। अक्तूबर 2024 में प्रधानमंत्री मोदी और शी जिनपिंग के बीच रूस में कज़ान में मुलाक़ात के बाद रिश्ते बेहतर होने शुरू हुए थे पर बीच में आपरेशन सिंदूर आगया जिस दौरान चीन ने हमारे विरूद्ध आक्रामक रवैया अपनाया था। इसके बावजूद मोदी चीन जा रहे हैं क्योंकि डानल्ड ट्रम्प के रवैये  के बाद फिर रिश्तों ने करवट ली है। चीन समझता है कि अमेरिका की मूर्खता के बाद मौक़ा है कि भारत को उनसे दूर किया जाए। सीएनएन ने भी टिप्पणी की है कि, “डानल्ड ट्रम्प के नवीनतम टैरिफ़ युद्ध से वह होता नज़र आता है जिसके बारे सोचा भी नहीं जा सकता था…भारत और चीन को सतर्क आलिंगन की तरफ़ धकेला जा रहा है”। पर चीन का रवैया अस्पष्ट है। वह भारत को कुछ शांत तो करना चाहते हैं पर जो मुद्दे हमें परेशान करतें हैं उन पर कोई रियायत देने को तैयार नहीं। चीन सीमा विवाद स्थाई तौर पर हल करने में रुचि नहीं रखता न ही वह पाकिस्तान की मदद ही बंद करेगा। उद्देश्य केवल अपनी शर्तों पर सीमा विवाद तय करना ही नही, उस विवाद के द्वारा वह भारत पर डंडा भी रखना चाहता है।

चाहे आजकल वह अच्छी बातें कर रहें हैं पर इतिहास बताता है कि चीन कभी भी पलट सकता है। दोनों एशियाई महाशक्तियों के बीच अविश्वास वैसे का वैसा है। दोनो के बीच ताक़त में जो बड़ा फ़ासला है उसे कम करना है। चीन के अहंकार का यह ही मुख्य कारण है। इसके लिए हमें आर्थिक सुधार करने है, सैनिक क्षमता बढानी है और दोनों देशों के बीच जो टैकनालिजी का फ़ासला है उसे पाटना है। आर्थिक निर्भरता कम करनी है। जैसे एम्बेसेडर कांथा ने भी लिखा है, “यह प्रभाव कि भारत चीन की तरफ़ बाहरी दबाव के कारण बढ़ रहा को रद्द करने का ज़रूरत है क्योंकि चीन के साथ कमजोरी की स्थिति, सही या कथित, से बात करना कभी भी ठीक नहीं रहता”। इसलिए इस बदलाव से बहुत आशा नहीं करनी चाहिए। चीन के साथ अधिक से अधिक झगड़े को सम्भाला जा सकता है, स्थाई शान्ति एक भ्रम है। कई दशकों तक भारत के लिए यह चुनौती होगा।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.