
टोपी में क्या रखा है?
शेक्सपीयर ने कहा था कि नाम में क्या रखा है पर अगर वे आज के भारत को देखते तो जरूर पूछते है कि टोपी में क्या रखा है? मामला अभिनेता रजा मुराद की टिप्पणी से भड़क गया जब ईद के मौके पर भोपाल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जिन्होंने मुस्लिम टोपी पहनी हुई थी की मौजूदगी में रजा मुराद ने नसीहत दे डाली कि शिवराज सिंह चौहान टोपी डालते हैं और दूसरे मुख्यमंत्रियों को इनसे सीख लेनी चाहिए। रजा मुराद का यह भी कहना था कि अगर टॉप पर रहना है तो टोपी पहननी पड़ेगी। ‘जो लोग खुद को प्रधानमंत्री पद का दावेदार समझते हैं उन्हें शिवराज से सीख लेनी चाहिए।’
निशाना कहाँ है सब जानते हैं। आमतौर पर रजा मुराद के कहे को महत्त्व नहीं मिलना चाहिए पर क्योंकि इस पर टीवी पर गर्मागर्म बहस हुई जो किसी न किसी शक्ल में आज भी जारी है, इसलिए चर्चा कर रहा हूं। सितंबर 2011 में अहमदाबाद में सद्भावना उपवास के दौरान नरेंद्र मोदी ने एक इमाम के द्वारा उन्हें पेश की गई टोपी डालने से इंकार कर दिया था। उन्होंने इमाम से कहा कि वह उन्हें शाल दे दें। इमाम में उन्हें शाल दे दी जिसे मोदी ने नम्रता से स्वीकार भी कर लिया लेकिन उनका टोपी न पहनना कई लोगों को खटकता रहा जो रजा मुराद की टिप्पणी से भी पता चलता है। ईद के मुबारिक मौके पर वह ऐसी टिप्पणी न करते तो बेहतर होता पर आजकल कई राजनेता टोपी डाले नजर आते हैं। ईद पर शिवराज सिंह चौहान के अतिरिक्त अखिलेश यादव और नीतीश कुमार सभी सफेद मुस्लिम टोपी में नजर आए। यह उनकी व्यक्तिगत इच्छा का मामला है। वह ईद के मौके पर टोपी डालना चाहते थे जिस पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए इसी तरह अगर मोदी यह नहीं डालना चाहते तो यह भी तो इनकी व्यक्तिगत आजादी का मामला है। फिर उसे बड़ा मुद्दा क्यों बनाया जाए? अगर वे टोपी डालते तो भी सही था, अगर नहीं डाली तो भी सही है। क्या प्रधानमंत्री बनने के लिए यह टोपी डालना जरूरी है? टोपी डालना या न डालना भी तो राहुल गांधी की भाषा में, स्टेट ऑफ माईंड का मामला है। पंडित जवाहरलाल नेहरू के सैक्यूलरिज्म पर तो कोई सवाल नहीं कर सकता पर उन्होंने तो कभी यह टोपी नहीं डाली। जवाहरलाल जी टोपी डालते थे पर दूसरी। वह कभी ईद पर बधाई देने भी नहीं पहुंचे। किसी ने धर्मनिरपेक्षता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर सवाल नहीं किया। यह भी दिलचस्प है कि जवाहरलालजी जैसे उदार तथा पश्चिम से प्रभावित व्यक्ति ने कभी अपनी सवर्ण हिन्दू पहचान छिपाने की कोशिश नहीं की। वह अंत तक ‘पंडितजी’ रहे। न ही गांधी जी ने ही कभी अपनी हिन्दू पहचान छिपाई। लेकिन आज के भारत में तो ‘हिन्दू राष्ट्रवादी’ होना गुनाह हो गया। हमारी सस्ती लीडरशिप ने मजहब को तमाशा बना दिया है। अगर आप इफ्तार पार्टी करते और टोपी डालते हो तो आप सैक्यूलर हो नहीं तो आप सैक्यूलर हो ही नहीं सकते। आपको मुसलमानों से चिढ़ है। नरेंद्र मोदी की टिप्पणी कि सैक्यूलर बुर्के के पीछे छिप जाते हैं पर कांग्रेस की प्रवक्ता का कहना था कि उन्होंने साड़ी के पीछे छिपने की बात क्यों नहीं कही? अर्थात् अगर साड़ी के पीछे छिपना कहा होता तो मोदी सैक्यूलर हो जाते पर अब क्योंकि बुर्के के पीछे छिपने की बात कही है इसलिए वह कम्यूनल है?
इस टोपी प्रकरण पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी नरेंद्र मोदी का मजाक उड़ा चुके हैं। आप कैसा भी प्रशासन दें, चाहे आपके प्रशासन के नीचे मिड डे मील खा कर गरीब बच्चे मर जाएं और आपके पास उनके परिवारजनों के लिए समय न हो, न ही आपके पास सीमा पर मारे गए बिहारी जवानों के परिवारों को मिलने का समय हो, पर अगर आप ईद के दिन टोपी डाल कर घूमते फिरते रहो तो सब गुनाह माफ हैं। चाहे आपके प्रशासन की नालायकी के कारण एक और अल्पसंख्यकों के अति पूजनीय स्थल, बौद्ध गया, पर हमला हो जाए पर आपके सब गुनाह माफ क्योंकि आपने टोपी डाली है। इसी कथित धर्मनिरपेक्षता की दौड़ में हज यात्रा पर अरबों रुपए सबसिडी दी जाती है। दुनिया के किसी भी देश में ऐसा नहीं, मुस्लिम देशों में भी नहीं। भारत में किसी भी और मजहब के लोगों को यह सुविधा नहीं दी गई। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार भी हज सबसिडी बढ़ा गई थी क्योंकि सब बड़े सैक्यूलरिस्ट बनने की दौड़ में थे। यह अलग बात है कि जहां जहां कथित सैक्यूलर सरकारें हैं वहां वहां मुसलमान पिछड़े हैं। सबसे बुरी हालत पश्चिम बंगाल में है अच्छी स्थिति उनकी नरेंद्र मोदी के गुजरात में है। यह बात सच्चर आयोग की रिपोर्ट भी साफ कर गई है। लेकिन नहीं, नरेंद्र मोदी तो सही हो ही नहीं सकते। आखिर उन्होंने सफेद टोपी डालने से इंकार कर दिया। वास्तव में यह जितने सैक्यूलरिज्म के ध्वजारोही है उन्होंने इतनी बुरी सरकारें दी है कि इन्होंने सैक्यूलरिज्म को बुरा नाम दे दिया है। सैक्यूलरिज्म हर प्रकार के घपले या अक्षमता पर पर्दा डालने का तरीका बन गया है। सबसे अधिक दंगे ‘सैक्यूलर’ अखिलेश यादव के उत्तर प्रदेश में हो रहें है। कोई मनमोहन सिंह के सैक्यूलरिज्म पर सवाल नहीं करता पर उन्होंने देश के इतिहास के साथ भ्रष्ट सरकार की अध्यक्षता की है। फिर इस सैक्यूलरिज्म का किसे क्या कैसा फायदा?
मैं रजा मुराद की बात से सहमत हूं कि टोपी डालने से किसी का धर्म नहीं बदलता लेकिन पूछना चाहूंगा कि कितने मुस्लिम नेता तिलक लगा कर जनेऊ डालने को तैयार होंगे? कितने मुस्लिम नेता गले में क्रास लटकाने या हाथ में कड़ा डालने को तैयार होंगे? अफसोस की बात है कि हमारे देश में धर्म निरपेक्षता की बहस तमाशों पर आकर रुक गई है। अवैध खनन रोक रही दुर्गा शक्ति नागपाल को धर्म निरपेक्षता की आड़ लेकर अखिलेश यादव की सरकार ने निलंबित कर दिया। आरोप है कि उन्होंने एक मस्जिद की दीवार गिरा दी जबकि डीएम की रिपोर्ट कहती है कि ऐसा खुद गांववासियों ने किया। पर हमारे देश में धर्म निरपेक्षता की अवधारणा का इस प्रकार का घोर दुरुपयोग माफ है क्योंकि ईद के दिन अखिलेश यादव ने भी टोपी डाली थी!
आज कहना चाहूंगा कि और भी गम हैं जमाने में सैक्यूलरिज्म-कम्यूलनिज्म के सिवाए! इस वक्त हमारी अर्थ व्यवस्था डोल रही है। आर्थिक दर और रुपया दोनों लगातार गिर रहे हैं। महंगाई तथा बेरोजगारी दोनों बढ़ेंगे। कोयला घोटाले की महत्त्वपूर्ण फाइले गुम हैं। सबसे बड़ा नुकसान है कि देश का इकबाल तथा उसकी साख खत्म हो रही है। एक अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ ने हमें एशिया का बीमार आदमी कहा है। इसका दुष्परिणाम केवल अर्थव्यवस्था पर ही नजर नहीं आता। हम से तो अब पाकिस्तान भी संभाला नहीं जा रहा। चीन लगातार आंखें दिखा रहा है और अमेरिका हमारी परवाह नहीं कर रहा। हमें अपना इकबाल कायम करने का यत्न करना चाहिए लेकिन यहां महत्त्व इस बात को दिया जा रहा है कि किसने टोपी डाली, किसने नहीं? कौन फासिस्ट है और कौन फासिस्ट नहीं!
टोपी में क्या रखा है?,
Sir itna umda likhte hai ap ki mere pass sabd nhi hai tarif k jo aam admi sochta hai wo keval ap hi likhte hai baki sab to kitabi word ही
भारत इतना कमज़ोर दिखाई देता है जैसे उमीद ख़तम सी नज़र आती है हमारे नेताओं से| ज़रा सी बात पे राजनीती ले आते है | पर भगवन के घर देर है पर अंधेर नहीं | लेकिन इस अंदर नगरी मैं सब चोपट रजा हे लगते है |