मिस्टर वाड्रा के लिए मकान (A House for Mr. Vadra)

प्रधानमंत्री मोदी का कहना है कि उन्होंने लोगों की ‘मिठाई खाना’ बंद कर दिया है। यह मानना पड़ेगा कि केन्द्रीय सरकार पर इन दो वर्षों में एक भी आरोप नहीं लगा। लेकिन सवाल दूसरा है। क्या सरकार भ्रष्टाचार के जो दूसरे बड़े मामले हैं उन्हें तार्किक अंत तक पहुंचाने के प्रति गंभीर है या दिलचस्पी केवल उनका राजनीतिक लाभ उठाने में ही है? मामला राबर्ट वाड्रा से भी जुड़ा है।
चुनाव अभियान के दौरान भाजपा ने राबर्ट वाड्रा के जमीन घोटालों को बड़ा मुद्दा बनाया था। अब दो वर्ष हो गए। हमें बताया जा रहा है कि मामले की जांच हो रही है। कितनी जांच होनी है? जमीन हरियाणा तथा राजस्थान में खरीदी गई। अगर घपला हुआ है तो यहां ही हुआ है। दोनों ही प्रदेश सरकारें भाजपा की हैं फिर इतनी देर क्यों लग रही है? सारा रिकार्ड आपके पास है। विदेशों से जानकारी मांगने का मामला नहीं है पर यहां तो जमीन का घोटाला कई सालों से लटक रहा है जिससे कांग्रेस के प्रवक्ताओं को कहने का मौका मिल गया है कि मामला राजनीतिक है नहीं तो सरकारी जांच किसी निष्कर्ष पर क्यों नहीं पहुंची?
अब एक टीवी चैनल ने खुलासा किया है कि लंदन में वाड्रा का एक बेनामी घर था जिसे 19 करोड़ रुपए में अक्तूबर 2009 में खरीदा गया और जून 2010 में बेच दिया गया। कुछ ई. मेल का हवाला देकर बताया गया है कि हथियारों के एक विवादित सौदेबाज ने यह बेनामी घर राबर्ट वाड्रा को खरीद कर दिया था। राबर्ट वाड्रा तथा उसके सहयोगी मनोज अरोड़ा के कई ई. मेल का हवाला दिया गया जिसमें मकान के लेन-देन तथा साज-सज्जा को लेकर बातें की गईं। यह सब जानते भी हैं कि आजकल सबसे अधिक भ्रष्टाचार रक्षा सौदों में होता है क्योंकि एक सौदे में ही करोड़ों रुपए कमाए जा सकते हैं। अगर सचमुच किसी हथियारों के सौदागर ने राबर्ट वाड्रा को लंदन में एक बेनामी मकान की रिश्वत दी थी तो मामला और भी गंभीर बन जाता है। लेकिन पेंच यह है कि सबूत प्रस्तुत नहीं किए गए। वाड्रा के वकील ने इस चैनल को ई. मेल भेज साफ इन्कार किया है कि उसके मुवक्किल का इस मामले में कुछ लेना देना है।
अब जिम्मेवारी सरकार की है कि वह इस आरोप को प्रमाणित करे। विजय माल्या को यहां वापिस लाना तो मुश्किल हो सकता है पर यह तो लंदन से पता चल सकता है कि यह मकान किस के नाम पर था और किसे बेचा गया और किस के खाते में पैसे जमा किए गए? सरकार अब मामले को लटकता नहीं छोड़ सकती। अगर वह ऐसा करती है तो यह आरोप चिपक जाएगा कि वह केवल मामले का राजनीतिक लाभ उठाना चाहती है। अब क्योंकि एक बार फिर प्रियंका गांधी का नाम उछाला जा रहा है कि उन्हें बड़ी राजनीतिक भूमिका दी जाएगी इसलिए क्या यह मामला निकाल कर उन्हें चेतावनी दी जा रही है?
इस मामले में मोदी सरकार की विश्वसनीयता दांव पर है। अभी तक वह एक भी मामले में किसी दोषी को सजा नहीं दिलवा सकी। काला धन नहीं आया और विजय माल्या यहां से भाग गया। अगस्ता वैस्टलैंड में शोर मचाने के बाद और ‘इतालवी कनैक्शन’ का इशारा करने के बाद फिर सरकार सो गई लगती है। पनामा पेपर्स का क्या हुआ? यह बताया गया कि जिनके नाम सामने आए उन्हें नोटिस निकाले गए। उसके बाद? एक नाम अमिताभ बच्चन का भी है जो सरकार के दो वर्ष पूरे होने पर कार्यक्रम में प्रतिष्ठित मेहमान थे। ललित मोदी भी विदेशों में डटा हुआ है। अर्थात् किसी भी हाई प्रोफाइल मामले को अंत तक नहीं पहुंचाया गया।
यह समाचार छपा है कि विनसम डायमंड के जतिन मेहता तथा उनकी पत्नी जो बैंकों के 6800 करोड़ के डिफाल्टर हैं, ने सेंट कीटस एंड नेविस की नागरिकता ग्रहण कर ली है जिस देश के साथ प्रत्यर्पण की हमारी संधि नहीं है। ऐसे और कितने मामले हैं जहां प्रभावशाली रईस अपराधी हमारे कानून को धत्ता बता कर बाहर भाग गए हैं? क्या सरकार गांधी परिवार को हाथ लगाने से घबराती है? सोच यह है कि कहीं उन्हें सहानुभूति न मिल जाए? या मामला कुछ और है? क्या हाईप्रोफाइल मामलों में दोनों बड़ी पार्टियां एक दूसरे को संरक्षण दे रही हैं जिस तरह बीसीसीआई को भाजपा तथा कांग्रेस तथा कुछ और पार्टियां मिल कर चलाती हैं उसी तरह दिल्ली को भी चलाया जा रहा है?
यूपीए ने भाजपा के नेताओं को परेशान नहीं किया था तो क्या अब ‘क्विड प्रो क्यू’ अर्थात् मुआवजा दिया जा रहा है? टीवी की एक बहस में भाजपा के सम्पत पात्रा कह रहे थे कि अगर हम राबर्ट वाड्रा के खिलाफ तेज़ी से कार्रवाई करते हैं तो हम पर ‘वैनडेटा’ अर्थात् प्रतिशोध का आरोप कांग्रेस लगाएगी। पर महाराज, मामला केवल आपका और कांग्रेस के बीच का ही नहीं, हम जो तुछ प्राणी हैं जिन्हें भारत की जनता कहा जाता है, को भी जानने का अधिकार है कि वाड्रा के जमीनी मामलों की सच्चाई क्या है? क्या हम तमाशे ही देखते रहेंगे या कभी पूर्ण सच्चाई बाहर आएगी?
अपने दामाद राबर्ट वाड्रा के बचाव में शेरनीजी पहली बार खुल कर सामने आई हैं। उनका कहना था कि उनके परिवार को बदनाम करने की साजिश हो रही है। राबर्ट वाड्रा पर हमले को कांग्रेस के खिलाफ ‘षड्यंत्र’ का हिस्सा बताया गया है। अभी तक यह सब राबर्ट को एक गैर राजनीतिक व्यक्ति करार देते रहे। अब कांग्रेस कह रही है कि राबर्ट वाड्रा आम आदमी नहीं, कांग्रेस का विशेष हिस्सा है। उल्लेखनीय है कि अभी तक खुद राबर्ट वाड्रा ने अपने बचाव में कुछ नहीं कहा। वैसे इस रणनीति की आशंका उसी वक्त हो गई थी जब कांग्रेस की ‘लोकतंत्र बचाओ’ रैली में सोनिया तथा राहुल के बीच राबर्ट वाड्रा का भी चित्र लगाया गया था। तब ही नज़र आ गया था कि कांग्रेस ने राबर्ट का बीमा करवा लिया। अगर भविष्य में राबर्ट वाड्रा के खिलाफ कोई कार्रवाई होगी तो पार्टी कह सकेगी कि राजनीतिक दुर्भावना से सब हो रहा है। ‘दामादश्री’ की लड़ाई कांग्रेस पार्टी अब खुद लड़ेगी चाहे उनके साथ वह खुद भी खत्म हो जाए।
लेकिन सोनिया ने एक बात और कही जिससे असहमत नहीं हुआ जा सकता। उनका कहना था कि निष्पक्ष जांच करवा लो ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए। यहां सरकार जवाबदेह है क्योंकि मामला चैनल से तो निकलवा दिया गया है पर अभी तक खुद वाड्रा को एक नोटिस नहीं भेजा गया। सरकार के पास बहुत सी एजेंसियां हैं, बहुत साधन हैं। वह क्यों नहीं मामले की फटाफट जांच करवा दूध का दूध और पानी का पानी करती? अभी तक तो यही बताया गया कि यहां दूध तथा पानी का घालमेल है लेकिन लोगों की दिलचस्पी इशारों में नहीं, सच्चाई में है।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.