हमने प्रयास किया। बार-बार ईमानदार प्रयास किया। अटल जी बस में लाहौर गए तो कारगिल मिला। नरेन्द्र मोदी नवाज शरीफ के पारिवारिक समारोह में शामिल होने के लिए पहुंचे तो तत्काल पठानकोट और उरी हो गया। जब उधर से हमारे प्रयास का जवाब आतंकी हमले से मिलता है तो हम नाराज़ हो जाते हैं। दुनिया के मंचों से उन्हें लताडऩे लगते हैं जैसे अब न्यूयार्क में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने किया। सुषमा जी का संयुक्त राष्ट्र में दिया भाषण अच्छा था। अटल जी के बाद वह हिन्दी में सबसे अच्छी सार्वजनिक वक्ता हैं लेकिन यह भाषण किस मकसद से है? उन्होंने पाकिस्तान को आतंकियों का पनाहगार कहा। कहा कि इस माहौल में जब वह आतंकियों का महिमामंडन कर रहे हैं बातचीत कैसे हो?
यहां मीडिया वालों ने सुर्खियां बनाई, ‘सुषमा का करारा हमला’, ‘सुषमा की लताड़’ आदि। एक टीवी चैनल ने कह दिया ‘पाकिस्तान बौखला गया है।‘ पर यह तो लगातार होता आ रहा है। उलटा पाकिस्तान को हमारी बराबरी का मौका मिल गया। उनके विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने भी सख्त जवाब दिया। पेशावर स्कूल पर हमले जिसमें 150 बच्चे मारे गए और जिस पर हमारी संसद ने शोक प्रस्ताव भी पारित किया था में हमें अप्रत्यक्ष तौर पर घसीट लिया। उनकी ‘रिपलाई’ का जवाब हमने दिया और फिर इसी का जवाब उन्होंने ‘रिपलाई’ में दिया। तब तक योगी आदित्यनाथ और आरएसएस सब घसीटे जा चुके थे।
और दुनिया यह अशोभनीय तमाशा देख रही थी। मुझे नहीं लगता कि भारत और पाकिस्तान के प्रतिनिधिमंडलों के सिवाय संयुक्त राष्ट्र के किसी भी देश के प्रतिनिधिमंडल को हमारी तू-तू, मैं-मैं में दिलचस्पी थी। इस मामले में मेरी सबसे बड़ी आपत्ति है कि हमने लगभग कंगाल, दुनिया में अलग-थलग देश पाकिस्तान जिसे सब आतंकी देश मानते हैं, को अपने समानांतर खड़ा कर लिया है। बहस तो समकक्ष के साथ की जाती है। उनकी हालत तो यह है कि केवल 30 दिन का दाना-पानी है। उनके साथ बहस का हम उन्हें लगातार मान्यता में रहे हैं, जबकि हम खुद को एक भावी सुपर पॉवर समझते हैं। हमारी दुनिया में छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। अगले साल पांचवीं हो जाएगी लेकिन हम फटेहाल पाकिस्तान से अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सींग फंसा रहे हैं। कभी संयुक्त राष्ट्र तथा दूसरे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर हमारी आवाज का महत्व था। अब मज़बूत होती अर्थव्यवस्था और सैनिक ताकत के बावजूद हमारी आवाज का महत्व नहीं रहा। सब समझते हैं कि हम पाकिस्तान के साथ उलझने में ही व्यस्त हैं। पाकिस्तान की इतनी सनक सवार है कि हमारी राजनीति में पाकिस्तान एक महत्वपूर्ण फैक्टर है। प्रधानमंत्री मोदी खुद इसका इस्तेमाल करना नहीं भूलते।
भारत सरकार ने न्यूयार्क में सुषमा स्वराज तथा शाह महमूद कुरैशी की मुलाकात की घोषणा के एक दिन बाद उसे रद्द कर दिया। ऐसा प्रतीत होता है कि सोच-समझ कर कदम नहीं उठाए जाते। जब इमरान खान ने बातचीत की पेशकश की तो हमने इसे लपक लिया। उससे एक दिन पहले बीएसएफ के जवान नरेन्द्र सिंह की बर्बरतापूर्ण हत्या हो चुकी थी। लोग बेहद गुस्से में थे इसलिए सरकार पीछे हट गई लेकिन न्यौता स्वीकार करते वक्त क्या यह बर्बरतापूर्ण कार्रवाई मालूम नहीं थी? एक और कारण शोपियां में तीन पुलिस जवानों की हत्या बताया गया लेकिन इस साल 37 कश्मीरी पुलिस जवान इस तरह शहीद हो चुके हैं जबकि बीएसएफ के 13 जवान सीमा पर शहीद हुए हैं। पहली 50 शहीदियों के बावजूद हम वार्ता के लिए तैयार हो गए थे पर अब इन तीन नई शहादतों के कारण हम 24 घंटों में पीछे हट गए।
एक और कारण सरकार ने बताया कि पाकिस्तान ने मारे गए कश्मीरी आतंकियों के 20 डाक टिकट जारी किए हैं। विशेष तौर पर बुरहान वानी को खूब गौरवान्वित किया गया। निश्चित तौर पर यह डाक टिकट घिनावने और उत्तेजना देने वाले हैं पर यह जारी तो जुलाई में हुए थे। हमने तब तो आपत्ति नहीं की। उस वक्त इमरान खान सत्ता में भी नहीं थे। अब बैठक रद्द करते वक्त इस मामले को भी उठा लिया। क्या पाकिस्तान स्थित हमारा दूतावास सो रहा था? अगर उन्हें मालूम था तो यहां अधिकारियों को बताया क्यों नहीं गया? कहां गफलत हुई?
सामरिक विशेषज्ञ मारुफ रज़ा की शिकायत है कि भारत की पाकिस्तान नीति “निरन्तरता के अभाव को दिखाती है।“ यह बात बिलकुल सही है। कभी हम एक दम नरम पड़ जाते हैं कभी एक दम गर्म। क्या हमें मालूम नहीं था कि इमरान खान को पाकिस्तान की सेना ने खड़ा किया है और वह आजाद विदेशनीति के लिए आजाद नहीं है? फिर वहां स्थित हमारे राजदूत इमरान खान को भारतीय क्रिकेट टीम के हस्ताक्षर वाला बैट देने क्यों पहुंच गए जबकि अभी अपने देश में या पाकिस्तान में हम उनके साथ क्रिकेट खेलने के लिए तैयार नहीं? भारतीय हाई कमिश्नर अजय बिसारिया ने घोषणा कर दी कि इमरान खान के सत्तारुढ़ होने के बाद ‘नई राजनीतिक खिडक़ी’ खुल गई है और हम ‘सावधानीपूर्ण आशावादी’ हैं। अब वार्ता रद्द करने के बाद हम ‘पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री इमरान खान के सच्चे चेहरे’ तथा पाकिस्तान के ‘दुष्ट एजंडे’ की बात कर रहे हैं।
इमरान खान का जवाब भी बदतमीज़ था। उन्होंने ट्वीट में ‘छोटे लोग’ जो ‘बड़े पदों’ पर बैठे हैं कह सीधा प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना लगाया है पर सवाल पाकिस्तान का नहीं। सवाल हमारी कूटनीति का है। कभी हम इमरान खान की बेवजह तारीफ करते हैं तो कभी उनके ‘सच्चे चेहरे’ की बात करते हैं। निरन्तरता है कहां? यह कैसी कूटनीति जिसने देश के नेता के लिए इमरान खान से इतनी घटिया टिप्पणी आमंत्रित कर ली? यह नहीं कि इमरान खान को कुछ फायदा हुआ है। वहां उनकी आलोचना हो रही है कि ऐसी भद्दी टिप्पणी कर उन्होंने भारत के साथ रिश्ते बेहतर करने के रास्ते को बंद कर लिया है जबकि पाकिस्तान को डूबने से बचाने के लिए भारत के साथ व्यापार चाहिए। इस वक्त दोनों देशों के बीच 5 अरब डॉलर का व्यापार है जबकि भारतीय हाई कमिश्नर के अनुसार 30 अरब डॉलर के व्यापार की संभावना बन सकती है।
पाकिस्तान के साथ रिश्ते सदैव ही चुनौतीपूर्ण रहे हैं। नरेन्द्र मोदी और उनसे पहले हर प्रधानमंत्री ने बेहतर संबंधों का प्रयास किया लेकिन सबके हाथ झुलस गए। आतंक का सहारा लेकर पाकिस्तान कश्मीर का मुद्दा जीवित रखना चाहता है। भारत के साथ टकराव पाकिस्तान की सेना के लिए भी अस्तित्व का सवाल है। अगर न्यूयार्क में बैठक हो भी जाती तब भी कुछ नहीं बदलना था। हम आतंक का मुद्दा उठाते रहते और पाकिस्तान कश्मीर का और इमरान खान दुनिया को जतलाने में सफल हो जाते कि वह एक समझदार नेता है जो भारत के साथ अच्छा रिश्ता चाहते हैं। हैरानी है कि हमारे विदेश विभाग को यह समझने में इतना समय लगा। हमारे लिए कोई ‘नया पाकिस्तान’ उगने वाला नहीं।
इस वक्त चीन को छोड़ कर पाकिस्तान बिलकुल अलग-थलग पड़ चुका है। चीन के साथ भी बीआरआई को लेकर पैसों पर विवाद शुरू हो गया है। इमरान खान सारे कर्जों पर पुनर्विचार चाहते हैं। दोस्ती का पहला जोश ठंडा हो रहा है। डॉनल्ड ट्रम्प पाकिस्तान का नाम सुनने को तैयार नहीं। पाकिस्तान के पूर्व संरक्षक अमेरिका, साऊदी अरब तथा यूएई भारत के सामरिक साथी बन चुके हैं। इमरान साहिब तो प्रधानमंत्री निवास की भैंसें तथा कारें तक बेच रहे हैं! डैम बनाने के लिए लोगों से चंदा मांगा जा रहा है क्योंकि सरकार के पास पैसे नहीं हैं और कोई अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्था पाकिस्तान की मदद करने को तैयार नहीं।
हमारी कूटनीति तथा विदेश नीति को हमें बड़े देशों के बराबर खड़ा करना चाहिए। हमें ‘हाई टेबल’ पर होना चाहिए पर उलटा हम इस फटीचर देश को हर मंच पर अपने बराबर ला खड़ा करते हैं। कूटनीति के बारे किसी ने कहा है कि ‘असली कूटनीतिज्ञ वह होता है जो अपने पड़ोसी का गाल भी काट ले और पड़ोसी को पता भी नहीं चले।‘ लेकिन यहां तो हम लगातार दुनिया में चीख रहे हैं कि, पड़ोसी हमारा गला काट रहा है! पड़ोसी हमारा गला काट रहा है!
झटके खाती हमारी कूटनीति (The Failure of Diplomacy),