दिल्ली में हनुमान जयंती पर निकाली गई शोभायात्रा में तलवारें लहराई गई। दूसरी तरफ़ से पथराव किया गया। दर्जन से अधिक लोग घायल हो गए। जहांगीरपुरी में तनाव बरकरार है। यह बहुत चिन्ता की बात है कि साम्प्रदायिक टकराव की ऐसी घटनाएँ देश में लगातार बढ़ती जा रही है यहाँ तक कि राजधानी दिल्ली भी साम्प्रदायिक बारूद के ढेर पर बैठी लगती है। राम नवमी के पवित्र त्यौहार के दिन कई जगह दंगे हुए। मर्यादा पुरुषोत्तम के जन्मदिवस पर मर्यादा तार तार कर दी गई। जिस रविवार को रामनवमी थी उसी रविवार को रमज़ान का आठवाँ रोज़ा था। इन्हें धार्मिक सौहार्द और उत्साह के साथ मनाने की जगह कई जगह शोभा यात्रा पर पथराव हुआ। कई जगह यात्रा को मस्जिद के सामने से गुज़ारा गया और चिढ़ाने के लिए उत्तेजक नारे लगाए गए।
इन सब मामलों में एक और समानता है, प्रशासन और पुलिस दंगाईयों को नियंत्रण करने में निष्क्रिय और कमजोर रहते हैं। ऐसा न केवल भाजपा शासित प्रदेशों में हो रहा है बल्कि पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, झारखंड में जेएमएम,राजस्थान में कांग्रेस की सरकारें भी साम्प्रदायिक हिंसा का सामना करने में निक्कमी और डरपोक साबित हुई है। हर सरकार का धर्म है कि वह अपने प्रदेश में शांति रखें पर अब देखा जा रहा है कि ऐसे मामलों का सामना करने से सरकारें भागती हैं। जे.एन.यू. में रामनवमी पर नॉनवेज खाने और पूजा को लेकर दो गुट भिड़ गए। छ: छात्र घायल हो गए। पूजा स्थल के नज़दीक ही छात्रावास में मांस पकाया गया। सामान्य माहौल होता तो जगह या समय में बदलाव कर लिया जाता पर माहौल इतना ज़हरीला होगया है कि कोई पीछे हटने को तैयार नहीं। क्या हम इतने गिर गए हैं कि एक दूसरे के उत्सव सौहार्द से नहीं मना सकते? पहले एक दूसरे कि ख़ुशी में सब शामिल होते थे अब एक दूसरे के धर्म स्थल के बाहर भद्दा नाच हो रहा है, भड़काऊ नारे लगाए जा रहे हैं, और फिर दंगा हो रहा है। भीड़ का सामना भीड़ से हो रहा है। क्या अब हर त्यौहार पर दंगे होते रहेंगे?
यह सही है कि जिस तरह देश का विभाजन हुआ पहले भी यहाँ दंगे होते रहें है। कांग्रेस और यूपीए के शासन भी होते रहे पर इस तरह सारे देश से दंगों का समाचार पहले नहीं मिला। अब तो महाराष्ट्र और गुजरात से भी झड़पों के समाचार मिल रहें हैं। मुम्बई में भी झड़प हो कर हटी है। पर कभी तो हमें इस हिन्दू-मुस्लिम के चक्कर से निकलना है। हम कब परिपक्व होंगे और अतीत की ज़्यादतियों का बदला वर्तमान से लेने का प्रयास बंद करेंगे? हमारे बीच असुरक्षा कि अनावश्यक भावना है कि ‘दूसरे’ से इस प्राचीन धर्म और परम्परा को ख़तरा है। यह फ़िज़ूल बात है। जिसे विदेशी हमलावर नहीं मिटा सके उसे मिटाने की आज क़िस में ताक़त है? बहुत युवा हैं जो बेरोज़गार है, जिन्हें जिंदगी से कोई आशा नहीं। वह क्षणिक लीडरी और अपनी तरफ़ ध्यान आकर्षित करने के लिए झट क़ानून को अपने हाथ में ले लेते हैं। दोनों प्रमुख समुदायों में ऐसे युवा हैं।
संविधान हमारी ‘मिश्रित संस्कृति’ की बात कहता है। हमारे घर्म ग्रंथ हमें सहिष्णुता सिखाते हैं। कोई भी बाँटने वाली प्रवृत्ति का समर्थन नहीं करता। लेकिन हमारा समाज विकृत होता जारहा है जिसे रोकने की तत्काल ज़रूरत है। और यह नहीं कि यह दंगे नियंत्रण में नहीं किए जा सकते। योगी आदित्यनाथ का कहना है कि ‘उत्तर प्रदेश में 800 जगह राम नवमी की शोभा यात्रा निकाली गई। उस समय रमज़ान का महीना चल रहा था तो रोज़ा इफ़्तार के कार्यक्रम भी हो रहे थे पर कहीं तूं तूं मैं मैं नहीं हुई, दंगे फ़साद की तो बात ही दूर’। योगी आदित्यनाथ के सख़्त प्रशासन की सराहना होनी चाहिए क्योंकि यह वही उत्तर प्रदेश है जो बड़े बड़े दंगों के लिए कुख्यात हैं। एक सही प्रशासक का धर्म भी यही है कि सबको बराबर का न्याय और सुरक्षा दे जो मध्य प्रदेश के सी एम नहीं दे पा रहे। उनकी सरकार ने तो उत्तर प्रदेश की नक़ल करते हुए खरगौन में एक मुस्लिम परिवार जिसे प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान मिला था, पर बुलडोज़र चला दिया क्योंकि ‘बुलडोज़र बाबा’ की तरह वह ‘बुलडोज़र मामा’ बनना चाहते है। कहा जा रहा है कि अवैध इमारतों पर बुलडोज़र चलाया जा रहा है, पर क्या केवल मुसलमानों की ही अवैध इमारतें हैं? और यह भी नहीं कि दंगाई केवल एक समुदाय से हैं। वैसे भी देश क़ानून से चलना चाहिए, बुलडोज़र से नहीं।
बुलडोज़र चलाने से कहीं अधिक ज़रूरी है कि उन लोगों पर कार्यवाही की जाए जो ज़हर उगल कर ज़हरीला वातावरण बनाते हैं जिसके कारण सारे देश में साम्प्रदायिक तनाव फैल गया है, जो बार बार विस्फोट कर रहा है। एक शायर ने सही कहा है,
जो हेट स्पीच देते हैं उनके ख़िलाफ़ या तो कार्यवाही नहीं होती या बहुत देर से नरम कार्यवाही की जाती है। हरिद्वार में धर्म संसद के दौरान उतेजनात्मक भाषण दिए गए। जिन्होंने दिए वह बाहर स्वच्छंद घूम रहे हैं। सबसे आपत्तिजनक सीतापुर की घटना है जहां एक कथित मुनी ने मुस्लिम महिलाओं को सार्वजनिक तौर पर बाहर घसीट कर उनसे स्वंय बलात्कार की धमकी दी है। इस देश में ऐसे बकवास की हिम्मत कैसे हो गई? अगर यही बात किसी मौलवी ने कही होती तो कितना तूफ़ान मचता ?उसे गिरफ़्तार करने में उत्तर प्रदेश की सरकार को 11 दिन लग गए। एक और कथित धर्म गुरू का भाषण सुन रहा था जो हिन्दुओं को हथियार उठाने का आह्वान कर रहा था। मुझे तो यह बात समझ नहीं आती कि यह क्यों बार बार कहा जाता है कि हिन्दू खतरें में हैं ? अगर वास्तव में अपने देश में हिन्दू असुरक्षित हैं तो यह सरकार किस मर्ज़ की दवा है?
मेरे आशियाँ का तो ग़म न कर कि वह जलता है तो जला करे
लेकिन इन हवाओं को रोकिए ये सवाल चमन का है
ऐसा आभास है कि बहुत लोग बेलगाम फिर रहें हैं जो चाहते हैं कि दंगा फ़साद हो और तबाही हो। राजस्थान जहां कांग्रेस की सरकार है के करौली शहर में जिन मुसलमानों की दुकानों में तोड़फोड़ की गई उनके अधिकतर मकान मालिक हिन्दू है। नेमीचंद के मकान की दुकान में ज़फ़र और हबीब की चूड़ियों की दुकान थी। इस दुकान को आग लगाने से नेमीचंद का तीन मंज़िला मकान भी तबाह हो गया। सबसे बुरी हालत कर्नाटक की बन रही है जहां अब फिर हुबली में एक भीड़ ने थाने पर हमला कर दिया। किसी ने मुसलमानों के खिलाफ सोशल मीडिया में कुछ डाल दिया और इतनी सी बात पर दंगा हो गया। पहले ही वहाँ हिजाब और हलाल मीट को लेकर तनाव है। वहाँ अगले साल चुनाव है इसलिए असुरक्षित बोम्मई सरकार ने साम्प्रदायिकता को नियंत्रण में लेने का कोई गम्भीर प्रयास नहीं किया जबकि विपक्ष का आरोप है कि वह हिंसा को उकसा रहें हैं। मंदिरों के बाहर मुस्लिम दुकानों में तोड़फोड़ की गई। मामला इतना बिगड़ गया कि इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, चिन्तित भाजपा के हाईकमान ने मुख्यमंत्री को आदेश दिया कि वह स्थिति को नियंत्रण करें। पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने भी मुसलमानों के ख़िलाफ अभियान की आलोचना की है। उनका कहना है कि ‘ मुसलमानों को सम्मान से जीने दो’। पर ऐसे कहने की ज़रूरत भी क्यों पड़े ?
कर्नाटक और बैंगलुरु देश के आई टी हब है। अरबों डालर देश के लिए कमाते है। यहां से नकारात्मक खबरें सामान्य बाहर आ रहीं हैं। अगर यहाँ दंगा फ़साद आम हो गए तो यह उद्योग बाहर निकल जाएगा। मामला इतना बिगड़ गया कि प्रमुख कम्पनी बायोकॉन की प्रमुख किरण मजूमदार शाह को अपील करनी पड़ी की आई टी और बायोटैक सेक्टर के हित में इस टकराव को शांत करें। चिन्ता एक और है। विदेश में बहुत लोग हैं जो यह प्रचार कर रहें हैं कि भारत में खाने पीने, पहनने और धंधा करने की आज़ादी को दक्षिणपंथी कटटरवाद से ख़तरा है। इन्हें हमारे ख़िलाफ़ प्रचार करने का और मौक़ा मिल गया है। और यह भी याद रखने की बात है कि हमारे अपने लाखों लोग मुस्लिम देशों में काम करते है। अगर वहां यह प्रभाव फ़ैल गया कि भारत में मुसलमानों को परेशान किया जा रहा है यहाँ तक कि धंधा नहीं करने दिया जा रहा, तो प्रतिक्रिया हो सकती है। अल्पकालिक राजनीतिक लाभ की दीर्घकालिक आर्थिक क़ीमत चुकानी पड़ सकती है। इसलिए बैठ कर सोचने की बात है कि यह नफ़रत और हिंसा देश को किधर ले जाएगी?
धर्म निजी मामला है जबकि सरकार का पहला धर्म है कि सबसे बराबरी का बर्ताव करे। अगर आपने बुलडोज़र से ही सरकार चलानी है तो जो भी अपराधी है उस पर बुलडोज़र चलना चाहिए, धर्म जाति कुछ भी हो। पर जो लोग चिँगारी लगाते हैं उन पर कठोर कार्यवाही ज़रूर होनी चाहिए चाहे वह ख़ुद को कितना भी बड़ा समझते हों। भाजपा शासित प्रदेशों की अधिक ज़िम्मेदारी बनती है क्योंकि केन्द्र में भी उनकी सरकार है। यह संतोषजनक समाचार है कि दिल्ली में बिना अनुमति के शोभायात्रा निकालने पर विहिप और बजरंग दल के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है और एक व्यक्ति को गिरफतार भी किया गया है। इससे सही संदेश जाएगा नहीं तो कई लोग तो समझ बैठे थे कि ‘सैयां भए कोतवाल अब डर काहे का’। अफ़सोस है कि कार्यवाही देर से हो रही है। मैं तो समझता हूँ कि जब तक भाजपा के पास नरेन्द्र मोदी हैं उन्हें ध्रुवीकरण की ज़रूरत नहीं है। उल्टा देश में जो विषैला वातावरण बन रहा है उससे सरकार की उपलब्धियों को ग्रहण लग रहा है।
मस्जिदों को अज़ान के समय लाउडस्पीकर की ज़रूरत नहीं, जिस तरह शोभा यात्रा में डीजे और तलवारों की ज़रूरत नहीं। जहां कई लोग लड़ाने में लगे हुए हैं वहाँ संतोष है कि बहुत हैं जो अपना विवेक नहीं खो रहे। गुजरात में अनूठी मिसाल क़ायम करते हुए रोज़ा इफ़्तार के लिए 1200 वर्ष पुराने वरंदा वीर महाराज मंदिर ने अपने किवाड़ मुसलमानों को लिए खोल दिए और इफ़्तार की दावत का आयोजन किया और 100 मुसलमानों को उपवास तोड़ने का न्यौता दिया। अफ़सोस, ऐसा मेरा भारत सिकुंड़ता क्यों जा रहा है?