अनिश्चित, अस्थिर दुनिया में भारत , India In An Unstable World

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रूस, यूक्रेन और अमेरिका की यात्राओं ने एक बार फिर प्रदर्शित कर दिया कि भारत अब बड़ा अंतराष्ट्रीय खिलाड़ी बन गया है। रूस,फ़्रांस और ब्रिटेन के नेताओं ने भारत को सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य बनाने की वकालत की है। अमेरिका पहले ही समर्थन दे चुका है। मामला चीन पर जा कर रूका हुआ है। इंग्लैंड के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर की भविष्यवाणी है कि 2050 तक अमेरिका, चीन और भारत तीन सुपर पावर होंगे। प्रधानमंत्री मोदी की यात्राओं से यहाँ यह चर्चा शुरू हो गई कि भारत यूक्रेन युद्ध में मध्यस्थता कर सकता है। रूस के राष्ट्रपति ने खुलेआम कहा भी है कि वह चाहतें हैं कि भारत, चीन और ब्राज़ील मध्यस्थता करें पर यह तो साफ़ ही है कि नरेन्द्र मोदी मध्यस्थ के तौर पर नहीं गए थे। वह शान्ति का संदेश लेकर गए थे। कोई सुने या न सुने।

भारत जानता है कि मामला इतना उलझा हुआ है कि इस युद्ध को जल्द ख़त्म करने का रास्ता आसानी से नहीं मिलेगा। इसे समाप्त करने की चाबी वाशिंगटन में है जो इस युद्ध के द्वारा रूस और पुतिन को ठिकाने लगाना चाहता है। नवम्बर में अमेरिका का चुनाव है तब तक कोई समाधान निकलने की तो वैसे ही सम्भावना नहीं है। अमेरिका को चिन्ता नहीं कि लम्बा युद्ध यूक्रेन के भी तबाह कर देगा। फ़िल्मी डायलॉग की तरह वह यूक्रेन को न मरने दे रहें हैं, न ही जीने दे रहें हैं। यूक्रेन को वह अस्त्र-शस्त्र नही दिए जा रहे जिससे उन्हें  निर्णायक बढ़त मिल सके और न ही इतना कमजोर ही छोड़ा जा रहा है कि रूस उन्हें रौंद सके। अभी युद्ध ऐसी स्थिति में भी नही पहुँचा कि कोई पक्ष थक कर हथियार फेंकने को तैयार हो।

इस बीच मध्य पूर्व बुरी तरह फूट पड़ा है। बड़े युद्ध की सम्भावना बन रही है। पिछले साल 7 अक्तूबर को हमास ने इज़राइल पर हमला कर 1100 लोगों को मार दिया था। 251 लोगों का अपहरण किया गया। तब से लेकर अब तक इज़राइल प्रतिशोध के घोड़े पर सवार है। पहले हमास को ख़त्म करने के लिए गाजा पर हमला किया गया। वहाँ इतनी तबाही मचाई गई कि लगभग 43000 लोग मारे गए और लाखों बेघर हो गए। अब वह लड़ाई लेबनान ले गए हैं। आतंकवादी संगठन हिज़बुल्ला के चीफ़ हसन नसरल्ला की बेरूत में हवाई हमले में मौत हो गई। नसरल्ला की मौत हिज़बुल्ला और उसके समर्थक ईरान के लिए भारी धक्का है। आतंकी नसरल्ला की मौत पर आंसू नहीं बहाए जाएँगें पर घबराहट है कि हिज़बुल्ला को समाप्त करने के लिए इज़राइल लेबेनान को भी तबाह न कर दे। अभी से हज़ारों लोग वहाँ घर छोड़ने को मजबूर हैं।

इज़राइल को अपनी सुरक्षा का पूरा अंधिकार है। हमास, हिज़बुल मुजाहिद्दीन, अल क़ायदा और हिज़बुल्ला जैसे आतंकी संगठनों का ख़ात्मा होना चाहिए पर घबराहट है कि इज़राइल का हठ मध्य पूर्व को व्यापक युद्ध में न धकेल दे। इज़राइल और ईरान के बीच युद्ध शुरू हो रहा लगता है और ईरान ने मिसाइलें दागना शुरू कर दिया  है। इज़राइल के साथ हमारे घनिष्ठ सम्बंध है। ईरान के साथ पुराने सभ्यतागत सम्बंध है और वह बड़ा तेल उत्पादक है। हम नहीं चाहते कि युद्ध और भड़क जाए पर अब यह रुकता नज़र नहीं आता। हमारी बड़ी चिन्ता है कि मध्य पूर्व में 60 लाख भारतवंशी रहते हैं जो अरबों डालर घर भेजते हैं। इज़राइल हमारा दोस्त है पर नेतन्याहू अब किसी की नहीं सुन रहे। वैश्विक समुदाय बेबसी से इज़राइल के हमलों को देख रहा है। नेतन्याहू बेधड़क है पर उन्हें भी अहसास होगा कि जब से स्थापना हुई है इज़राइल युद्धरत हैं पर अपने दुश्मनों को ख़त्म नहीं कर सका। एक को ख़त्म करते हैं तो दूसरा खड़ा हो जाता है। तेहरान से टिप्पणीकार मोसादेघ मोसादेघपोर हिज़बुल्ला के बारे लिखतें हैं, “ जैसे अतीत में हुआ वह खुद को खड़ा कर लेंगे”। हर युद्ध नए दुश्मन पैदा कर सकता है।

पर इस समय बाहर ही नहीं अपने पड़ोस में भी हमें चुनौती मिल रही है। प्रभाव यह मिलता है कि जैसे हमारा घेराव हो रही है। पड़ोस के हर देश में भारत विरोधी सरकारें स्थापित हो चुकीं है। नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. ओली चीन समर्थक हैं, मालदीव में भारत विरोधी सरकार है जिसके राष्ट्रपति मुहम्मद मुइज्ज़ू ‘आउट इंडिया’ अभियान चला कर सत्तारूढ़ हुए हैं।बांग्लादेश में शेख़ हसीना के पलटे के बाद अंतरिम सरकार तो अपना भारत विरोध छिपा नहीं रही। आश्वासनों के बावजूद मंदिरों और हिन्दुओं पर हमले जारी है। मालूम नहीं कि वहाँ कट्टर सरकार क़ायम होगी, या सैनिक शासन होगा या अराजक तत्व हावी हो जाऐंगे। श्रीलंका में मार्क्सवादी राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिस्सानायके चुने गए हैं। हमारे हितों को ख़तरा हो सकता है। म्यांमार में अलोकप्रिय सैनिक शासन है जो अपनी आधी ज़मीन खो चुका है। पूर्व नौसेना प्रमुख अरुण प्रकाश चीन द्वारा भारत के ‘सामरिक घेराव’ की आशंका और भारत के ‘प्रभाव की हानि’ पर चिन्ता व्यक्त कर चुकें हैं।

लेकिन यहाँ भारत बेबस नही है। इन देशों के साथ हमारे गहरे आर्थिक सम्बंध जुड़ें हैं। पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन ने लिखा है कि, “सघन आर्थिक अंतरनिर्भरता की हक़ीक़त” के द्वारा हम स्थिति सम्भाल सकते है। मालदीव की नीति में परिवर्तन देखने को मिला रहा है। राष्ट्रपति मुइज्जू को समझ आगई है कि भारत से दुष्मनी महँगी पड़ेगी इसलिए उन मंत्रियों को हटा दिया गया है जो भारत को गालियाँ देते थे। रिश्तों की मुरम्मत के लिए वह अगले महीने भारत की राजकीय यात्रा पर आरहे है और अब कहना है कि उन्होंने कभी ‘इंडिया आउट’ नीति का पालन नहीं किया। श्रीलंका की भी हम पर भारी निर्भरता है। दो साल पहले जब वह देश बुरे आर्थिक संकट में फँसा था तो भारत ने 4 अरब डालर देकर उन्हें डूबने से बचाया था जो बात श्रीलंका का बच्चा बच्चा जानता है। कोलम्बो बंदरगाह भारत से ट्रांसशिपमेंट पर निर्भर है जैसे उनका टूरिज़्म उद्योग भारत के टूरिस्ट पर निर्भर है। सम्भावना है कि उनके राष्ट्रपति भारत और चीन के बीच संतुलन बनाकर चलेंगे।

नेपाल को सम्भालना मुश्किल नहीं होगा। बांग्लादेश जटिल हो सकता है क्योंकि नई सरकार अभी तक जोश में हैं। यह भी आशंका है कि वहाँ जमात के कटटरवादी फिर सक्रिय हो जाऐंगे और एक बार फिर पाकिस्तान का प्रभाव बढ़  सकता है जिससे बांग्लादेश के साथ लगते हमारे प्रदेशों में अशांति पैदा हो सकती है। हमने भी गलती की है कि वहाँ के विपक्ष के साथ संवाद नहीं रखा। पर तीन तरफ़ से हमने बांग्लादेश को घेरा हुआ है। भारत ने बांग्लादेश में इंफ़्रास्ट्रक्चर की बहुत योजनाएँ शुरू की है जिनसे उस देश की प्रगति हुई है। आशा है कि एक बार हसीना को हटाने का जोश ठंडा हो गया तो भूगोल और आर्थिक हक़ीक़त उन्हें सीधा रखेगी।

हमारी कूटनीतिक और सामरिक ताक़त इन देशों को सम्भाल लेगी। पाकिस्तान अब अंतराष्ट्रीय भिखारी बन चुका है और सीमित समस्या ही खड़ी कर सकता है। असली सरदर्द चीन है जो भारत के बढ़ते प्रभाव को पचा नहीं रहा। 2020 के हिंसक गलवान टकराव के बाद दोनों के बीच कोर कमांडर स्तर की 21 बैठकें हो चुकीं है पर चीन सीमा पर यथास्थिति बहाल करने को तैयार नही। विदेश मंत्री एस. जयशंकर का कहना है कि 75 प्रतिशत टकराव की जगह से सेनाएँ पीछे हट चुकीं हैं। सवाल बाक़ी 25 प्रतिशत का है। हमारी समस्या है कि हम बहुत सामान के लिए चीन पर निर्भर है। भारत की इलेक्ट्रॉनिक और टेलीकॉम की 56 प्रतिशत ज़रूरतें चीन और हांगकांग पूरा करते हें। एक तरफ़ हम चीन को दुष्मन नम्बर 1 समझते हैं तो दूसरी तरफ़ चीन अमेरिका को पीछे छोड़ हमारा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर भी है। स्थिति कितनी असंतोषजनक है यह उस बात से पता चलता है कि जहां हम चीन से 101 अरब डॉलर का सामान आयात करके है निर्यात मात्र 16 अरब डॉलर है। यह हमारी सरकार की बड़ी असफलता है। ले.जनरल(रिटायर्ड) डीएस हुड्डा लिखतें हैं, “यह तो सब जानते हैं कि विदेश पर निर्भरता रातोंरात ख़त्म नहीं हो सकती,पर इस तरफ़ बढ़ने की कोई नीति भी नज़र नहीं आती”।

चीन के लिए भारत का बाज़ार बहुत आकर्षक है पर वह इसे हासिल करने के लिए सीमा पर कोई रियायत देने को तैयार नही चाहे कुछ नरमी नज़र आ रही है। वह 3488 किलोमीटर लम्बी सीमा पर अपनी सैनिक स्थिति लगातार मज़बूत करते जा रहें है जिससे आभास मिलता है कि वह पुराने ठिकानों पर वापिस जाने के लिए अभी तैयार नही। क्वाड जैसे संगठन में शामिल हो कर भारत भी संदेश दे रहा है कि हमारे पास भी विकल्प हैं। चीन के साथ यह स्पर्धा लम्बी चलेगी। ज़रूरी है कि हम खुद को न केवल सैनिक तौर पर बल्कि टेक्नोलॉजी में भी दुनिया के बराबर लाएँ। चीन बहुत तेज़ी से आगे निकल रहा है। हमें टेक्नोलॉजी में छलांग लगानी है ताकि 2047 तक हम ग़रीबी और जिसे ‘जॉब -लैस ग्रोथ’ कहा जाता है, को ख़त्म कर सकें। हमें शिक्षा और हैल्थ केयर दोनों पर ध्यान देना है जो अभी नहीं दिया जा रहा। इसके साथ ही लाज़मी है कि देश के अंदर साम्प्रदायिक सौहार्द क़ायम रखा जाए। जो खुद को गौ- रक्षक कहते हैं उन्होंने हरियाणा में शंका में बारहवीं के आर्यन मिश्रा की हत्या कर दी। ऐसी घटनाएँ उस देश को बदनाम करती है जो दुनिया को नैतिक पाठ पढ़ाना चाहता है। अगर हमने बड़ी ताक़त बनना है तो जो नफ़रत फैलाने की बिसनेस में हैं उन पर लगाम कसनी चाहिए। देश के बाहर हालात बिगड़ रहें हैं, अन्दर सौहार्द रहना चाहिए।

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About Chander Mohan 750 Articles
Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.