विवेक की आवाज़, A Voice Of Sanity

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत यदा कदा अपने विचार देश के सामने रखते रहें है। आप उनसे सहमत हैं या नहीं, यह तो मानना पड़ेगा कि वह जो भी कहते हैं वह बिना सोच विचार के नहीं कहते। हाल ही में पुणे में उन्होंने जो कहा उसके लिए उनका धन्यवाद करना चाहिए कि कोई तो कोशिश कर रहा है कि देश रास्ते से भटके न ।‘भारत विश्व गुरू’ विषय पर बोलते हुए मोहन भागवत ने स्पष्ट कर दिया कि रोज़ाना उठने वाले मंदिर-मस्जिद के विवाद देश का बहुत नुक़सान कर रहे हैं। मराठी में बोलते हुए उनका कहना था, “अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ लोगों को ऐसा लगा कि ऐसे मुद्दों को उठा कर वह हिन्दुओं के नेता बन सकतें हैं, यह स्वीकार्य नहीं”। भागवत का कहना था कि राम मंदिर का निर्माण होना चाहिए था क्योंकि यह हिन्दुओं की आस्था का मामला है पर हर रोज़ एक नया विवाद उठाया जा रहा है जिसकी अनुमति नहीं दी जा सकती। इस से घृणा और दुश्मनी फैलती है।

भागवत का कहना था कि, “ कौन अल्पसंख्यक है और कौन बहुसंख्यक? सब समान है”। बंटेंगे-तो- कटेंगे के इस युग में मोहन भागवत ने बताने की कोशिश की है कि देश में भाईचारे की बहुत ज़रूरत है। पिछले कुछ समय में बहुत कुछ ग़लत हुआ है। सम्भल में पुरानी मस्जिद की खुदाई के कारण हुए टकराव में पुलिस फ़ायरिंग में पाँच लोग मारे गए। हाल ही में एक जज ने कह दिया कि देश बहुसंख्यकों की इच्छा के अनुसार चलेगा जबकि देश संविधान के अनुसार चलना चाहिए। देश की विविधता को रेखांकित करते हुए मोहन भागवत ने रामकृष्ण मिशन, जिसकी स्थापना स्वामी विवेकानंद ने की थी, का ज़िक्र किया जहां क्रिसमस मनाया जाता है। उनका कहना था कि “केवल हम ही ऐसा कर सकते हैं क्योंकि हम हिन्दू है”। इस बार भी सारे देश में धूमधाम से क्रिसमस मनाई गई। ऐसे हम हैं, ऐसे हमें रहना है।

भागवत उन लोगों की सावधान कर रहें हैं जो हिन्दुओं को कट्टर बनाने की कोशिश करते रहतें है। वह जानते है और समझतें हैं कि हमारा दर्शन उदार है। हमारा एकमात्र बड़ा धर्म है जिसने कभी ज़बरदस्ती नहीं की। पिछले सप्ताह जर्मनी के एक शहर में साऊदी अरब से गए शख़्स ने क्रिसमस मार्केट में लोगों पर गाड़ी चढ़ा दी जिसमें पाँच लोग मारे गए और 200 के क़रीब घायल है। यह व्यक्ति वहाँ दो दशक से रह रहा था। हमारे करोड़ों लोग भी विदेश मे है पर किसी भारतीय को ऐसी हरकत करते सुना नहीं गया क्योंकि हमें नफ़रत नहीं सिखाई जाती। उस ओर हमने नहीं जाना। पूर्व एशिया में कई देश हमारी संस्कृति से जुडे हुए हैं पर हमारे विचारो का प्रसार शांतिमय ढंग से किया गया। हमने इस्लाम और ईसाई धर्म के अनुयायियों की तरह किसी पर चढ़ाई नहीं की। भागवत का कहना है कि “हमलावरो के द्वारा इस्लाम भारत आया लेकिन जिन लोगों ने इसे स्वीकार किया वह बाहरी नहीं थे। चाहे उनकी प्रार्थना बाहर से आई हो और वह इसे जारी रखना चाहतें हों, यह ग़लत नहीं। हमारे यहां किसी पूजा का विरोध नहीं है”। भागवत तो यहाँ तक कह चुकें हैं कि हिन्दुओं और मुसलमानों का डीएनए एक है, जो बात कुछ को पसंद नहीं आई।

 भागवत यह बात उस वक़्त कह रहें है जब जगह जगह से मस्जिदों के नीचे खुदाई की माँग उठ रही है यहाँ तक कि अजमेर शरीफ़ की खुदाई की माँग उठ चुकी है। दूसरी तरफ़ इस्लामी देश हमारे प्रधानमंत्री को बुला कर उन्हें अपने देश का सर्वोच्च सम्मान दे रहे है। अभी उन्हें कुवेत के सर्वोच्च सम्मान मुबारक-अल- कबीर से नवाज़ा गया। वह देश उदारता दिखा रहें हैं पर हम रोज़ मंदिर-मस्जिद कर रहें है। इसी को रोकने के लिए मोहन भागवत ने अपने देशवासियों को याद करवा दिया कि यह देश ऐसे लोगों का देश है जहां हैरान करने वाली धर्म, भाषा, परम्परा, विचार,रिवाजों की भिन्नता है। भिन्नता को उभार कर अस्थाई राजनीतिक लाभ तो हो सकता है पर देश का नुक़सान होगा। यह संदेश उनके कार्यकर्ताओं के लिए भी है। मोहन भागवत बहुत चिन्तित लगतें है क्योंकि उनके भाषणों में यह धारा लगातार सुनने को मिल रही है। जून 2022 को उन्होंने कहा था, जो बात बार बार उद्धत की जा रही है, “हर रोज़ कोई नया मुद्दा क्यों उठाया जा रहा है? झगड़े क्यों बढ़ रहें हैं? ज्ञानवापी को लेकर हमारी आस्था पीढ़ियों से चली आ रही है। हम जो कर रहें हैं वह सही है पर हर मस्जिद में शिवलिंग की तलाश क्यों?”

भागवत की नसीहत के बावजूद विवाद थम नहीं रहे।कर्नाटक में एक सरकारी टीचर ने मुस्लिम छात्रों को पाकिस्तान जाने के लिए कहा क्योंकि ‘यह तुम्हारा देश नहीं है’। ऐसे मामले बहुत सामने आ रहें हैं। अहमदाबाद विश्वविद्यालय में नमाज़ पढ़ रहे विदेश मुस्लिम छात्रों पर भीड ने हमला कर दिया, दो घायल हो गए। विदेशी छात्रों के द्वारा हम सद्भावना फैलाने की कोशिश करते हैं पर अब देश विरोधी तत्व यह प्रचार कर रहें हैं कि भारत विदेशी मुस्लिम छात्रों के लिए असुरक्षित है। विदेशों में हमारी छवि ख़राब हो रही है। बांग्लादेश में जो हिन्दुओं पर हमले कर रहें हैं वह भी कह रहें हैं कि भारत के अंदर मुसलमान असुरक्षित हैं। अगर हमने विश्व गुरू या विश्व बंधु (जैसा आजकल कहा जा रहा है)बनना है तो अपनी समृद्ध सहिष्णु संस्कृति को बढ़ावा देना होगा, उसे कमजोर नहीं करना।

भागवत खुद को एम एस गोलवालकर के विचारों से दूर कर रहें हैं जो मुसलमानों और ईसाइयों को देश विरोधी समझते थे। वह समय और परिस्थिति के अनुसार अपनी संस्था को बदलने की कोशिश कर रहें है। लेकिन पुराने पूर्वाग्रह ख़त्म नहीं हो रहे पर मोहन भागवत को श्रेय जाता है कि वह कोशिश करते रहतें हैं। सभी सही सोच वाले लोगों को उनका समर्थन करना चाहिए। वह कई बार मुस्लिम बुद्धिजीवियों से मिल चुकें हैं। दिल्ली के एक मदरसे में उन्होंने 300 छात्रों से संवाद किया जहां उन्होंने आधुनिक शिक्षा पर ज़ोर दिया। जब उन्होंने छात्रों से पूछा कि वह क्या बनना चाहते हैं तो कोई डाक्टर तो कोई इंजीनियर तो कोई शिक्षिक तो कोई चार्टरड अकाउंटेंट बनना चाहता था। उन्होंने मुस्लिम समाज में प्रभाव रखने वाले और भारतीय इमाम संगठन के प्रमुख डा.उमेर अहमद इलियासी से भी मुलाक़ात की। इलियासी तो इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख को ‘राष्ट्रपिता’ और ‘राष्ट्रीय ऋषि’ तक कह दिया।

 वह पहले सरसंघचालक है जिन्होंने अतीत से खुद को अलग करने की कोशिश का है। पर यह भी सच्चाई है कि बहुत सफलता नहीं मिल रही। समाज में ज़हर भर चुका है, नफ़रत बढ रही है। उनके अपने विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल के लोग उनकी बात नहीं मान रहे। कई धर्म गुरू उनकी आलोचना कर रहें हैं। सोशल मीडिया पर उनकी आलोचना हो रही है और करने वाले अधिकतर दक्षिणपंथी कहे जा सकते है। अदालतों में लगभग डेढ़ दर्जन मंदिर-मस्जिद मामले लम्बित हैं, अधिकतर उत्तर प्रदेश से हैं। कानपुर की मेयर हैल्मट डाल मुस्लिम इलाक़ों में बंद पड़े मंदिर ढूँढ रहीं हैं। निश्चित तौर ऐसे मंदिर मिलेंगे, पर भागवत तो कह रहें हैं कि हर रोज़ नया विवाद उठाना सही नहीं है। इससे आभास यह मिलता है कि उनकी अपनी उत्तर प्रदेश की सरकार उनकी नसीहत पर चलने से इंकार कर रही है। पर केन्द्र सरकार को सावधान हो जाना चाहिए कि अगर इसी तरह मंदिर-मस्जिद विवाद फैलते गए तो देश में गम्भीर समस्या खड़ी हो जाएगी। जैसे सवाल किया जा रहा है, ‘कितने संभल सम्भाल सकती है सरकार?’

 अखिलेश यादव का कहना है कि भागवत को अपने उन कार्यकर्ताओं के खिलाफ कार्यवाही करनी चाहिए जो उनकी बात नही सुनते। सपा के एक और नेता राम गोपाल यादव का कहना था कि “मोहन भागवत जी ने सही कहा पर उनकी बात कोई नहीं सुनता”। सांसद इकरा हसन का कहना है कि “पहली बार मैं मोहन भागवत से सहमत हूँ …अब बस उनकी पार्टी को भी सहमत होना चाहिए”। यह शिकायतें ग़लत नहीं पर मोहन भागवत को यह श्रेय जाता है कि वह बार बार ग़लत को ग़लत कहने की हिम्मत दिखा रहें है। इस देश में बहुत कम लोग रह गए हैं जो ऐसी हिम्मत रखतें हैं। कई थक हार कर बैठ गए हैं तो कई डर गए हैं, तो कई समझते हैं कि कुछ नहीं बदलेगा। ऐसे में सबसे बड़ी हिन्दू संस्था के प्रमुख का कहना कि हर मस्जिद के नीचे शिवलिंग नहीं ढूँढना चाहिए मायने रखता है। कम से कम देश तो उनकी बात सुन रहा है, चर्चा हो रही है। भागवत समझते हैं कि अगर हम अतीत की ज़्यादतियों को सही करने में ही लगे रहे तो वर्तमान को ज़ख़्मी कर लेंगे। इसलिए अभी से मरहम लगाने की कोशिश कर रहें हैं।

अतीत ख़त्म हो चुका, हमें वर्तमान की सुध लेनी है। हमें पाकिस्तान या बांग्लादेश या अफ़ग़ानिस्तान नहीं बनना। जिसे ‘इंडिया स्टोरी’ कहा जाता है, उसे पटरी से उतरने नहीं देना। सदियों से हम अपनी विभिन्नता पर गर्व करते आ रहें हैं, अब बदलना नहीं है। हमारी प्रगति के लिए समाजिक सौहार्द बहुत ज़रूरी है। यह मोहन भागवत का भी संदेश है। यह विवेक की आवाज़ भी है। उन्हें कितनी सफलता मिलती है यह तो समय ही बताएगा, पर जैसे असरार- उल-हक़ मिज़ाज ने लिखा है,

            कुछ नहीं तो कम से कम ख़्वाब-ए-सहर देखा तो है,

            जिस तरफ़ देखा न था अब तक, उधर देखा तो है!

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.